Me Papan aesi jali - Last part in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | मैं पापन ऐसी जली--(अन्तिम भाग)

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मैं पापन ऐसी जली--(अन्तिम भाग)

और तब तक बच्चे की माँ भी सरगम के पास पहुँच गई थी और जैसे ही उसने सरगम के चेहरे की ओर देखा तो भौचक्की रह गई और उससे बोली....
"सरगम दीदी! तुम! कैसीं हो दीदी?"
"मैं अच्छी हूँ भानू! और तुम कैसीं हो"?सरगम बोली...
"मैं भी ठीक हूँ दीदी! मैं ना टोकती त़ो चुपके चुपके निकली जा रही थी और सुनाओ क्या चल रहा है जिन्दगी में",भानुप्रिया बोली....
"सब ठीक ही चल रहा है,अच्छा!मैं तुमसे आधे घण्टे बाद मिलूँ,आधे घण्टे बाद मेरी शिफ्ट खतम हो जाएगी,तब इत्मीनान से बातें करेगें",सरगम बोली....
"ठीक है दीदी! लेकिन मिलना जरूर बहुत सी बातें करनी हैं तुमसे और बहुत कुछ बताना है,सबके बारें में",भानुप्रिया बोली...
"तो ऐसा करना तुम आधे घण्टे बाद मुझे कैन्टीन में मिलना,मैं तुम्हें वहीं मिलूँगीं",सरगम बोली....
और फिर आधे घण्टे बाद भानुप्रिया सरगम से कैन्टीन में मिली तब भानुप्रिया सरगम से बोली....
"मेरे पति भी यहाँ आने वाले हैं,मैंने उन्हें टेलीफोन करके ये सोचकर यहाँ बुला लिया कि वें तुमसे भी मिल लेगें",
"बिल्कुल ठीक किया,वैसे तुम्हारा पति होगा कोई हैण्डसम बिजनेस टाइकून",सरगम बोली...
"खुद ही देख लेना",भानुप्रिया बोली....
और दोनों बातें ही कर रहीं थीं कि तभी भानुप्रिया के पति वहाँ आए और उन्हें देखकर भानू के बेटे निपुण ने पुकारा....
"पापा...आप आ गए,देखिए ना ये आण्टी और माँ आपके बारें में ही बातें कर रहे थीं",
और भानुप्रिया के पति को देखते ही सरगम की खुशी का ठिकाना ना रहा और वो उनसे बोली....
"कमलकान्त बाबू! तो आप हैं भानू के पति",
"हाँ! मैं ही हूँ इनका पति,आप यही तो चाहती थीं",कमलकान्त बोला...
"मैं बता नहीं सकती कि ये देखकर मुझे कितनी खुशी हो रही है,आखिरकार आप दोनों ने शादी कर ही ली और भानू का प्यार उसको मिल गया",सरगम बोली....
और फिर सभी कुछ देर तक यूँ ही बातें करते रहें और फिर कुछ बातें जो बच्चे के सामने नहीं हो सकतीं थीं ,इसलिए कमलकान्त बच्चे को लेकर कैण्टीन केबाहर चला गया और फिर भानुप्रिया ने सरगम को सब कुछ बताया कि उसके जाने के बाद घर में क्या क्या हुआ....?
तब भानू सरगम से बोली....
"दीदी तुम्हारे जाने के बाद आदेश भइया की शादी मालविका से तय हो गई और कुछ दिनों बाद मालविका बहू बनकर घर में आ गई,कुछ दिनों तक दोनों ठीक से साथ में रहे लेकिन फिर मालविका की अय्याशियांँ बढ़ने लगीं,उसकी देर रात तक पुरूष मित्रों के साथ चलने वाली पार्टियांँ और धुत होकर घर लौटना,ये सब ना आदेश भइया को अच्छा लगा और ना ही माँ पापा को,इसलिए उसके पिता के पास शिकायत गई तो वें बोले कि हमारी बेटी तो हमेशा से ऐसे ही अपनी जिन्दगी जीती आई है और हमेशा ऐसी ही जिन्दगी जीती रहेगी, उस पर पाबन्दी लगाने वाले आप लोग कौन होते हैं,यहाँ तक कि मालविका के कई पुरूषों के साथ नाजायज सम्बन्ध भी थे,आदेश भइया और उसके बीच कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था,फिर उसने भी आदेश भइया को भी कई लड़कियों के साथ रंगे हाथ पकड़ा ....
भइया तो पहले भी कम नहीं थे,वें काँलेज के समय से ही अय्याश किस्म के थे,ये बात बाद में हम सबको कमल ने बताई,जब भइया और भाभी के रिश्तों के बीच खटास आ गई तो फिर सबकुछ बिखरने लगा,भाभी पहली बार माँ बनी तो भइया बोले कि ये बच्चा मेरा नहीं है,हमारे बीच तो कभी भी ऐसे सम्बन्ध ही नहीं बने तो भाभी ने गुस्से मेंआकर तुरन्त उस बच्चे को अबार्ट करा दिया ,फिर भाभी अपने मायके में रहने लगी और फिर कभी वापस नहीं लौटीं,उनके पिता तलाक के पेपर देने घर आ पहुँचे और भइया ने गुस्से में आकर साइन भी कर दिए,इस बात से माँ पापा को बहुत दुख पहुँचा,फिर भइया बहुत ज्यादा दुखी रहने लगे और ना जाने किन किन और कैसीं कैसीं लड़कियों के साथ रात बिताने लगे,बहुत शराब पीने लगे और फिर उन्हें भयानक बिमारी हो गई और वें अब अस्पताल में भरती हैं और अब शायद कुछ ही दिनों के मेहमान हैं,मैं उन्हें देखने ही अस्पताल आई थी"
"ऐसी कौन सी बिमारी हो गई है उन्हें",सरगम ने पूछा....
"एड्स....एड्स हो गया है उन्हें और उनका बचना बड़ा मुश्किल है",भानू बोली....
"ओह...इतना सबकुछ हो गया,कहाँ एडमिट हैं आदेश जी मैं उन्हें देखना चाहती हूँ",सरगम बोली....
"उन्होंने तुम्हारे साथ ऐसा किया और तुम अब भी उनसे मिलना चाहती हो,",भानू बोली....
"वें अपने किए की सजा पा चुके हैं भानू!", सरगम बोली....
और फिर सरगम भानू के साथ आदेश से मिलने गई,सरगम को देखकर आदेश फूट फूटकर रो पड़ा और सरगम से बोला....
" मुझे माँफ कर दो सरगम! मैनें तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया",
फिर सरगम कुछ ना बोल सकी और फिर सदानन्द जी और शीतला जी ने भी उससे माँफी माँगी,लेकिन सरगम तब भी कुछ ना बोली,भला उसके पास बोलने के लिए रह ही क्या गया था,जो आदेश और उसके माँ बाप ने किया था उसकी सजा तो वें भुगत ही चुके थे और फिर कुछ दिनों बाद आदेश की मृत्यु हो गई.....
लेकिन अब सरगम के पास दो दोस्त थे,एक कमल बाबू और दूसरी भानू,निपुण भी बहुत प्यारा था,वो भी सरगम को बहुत चाहता था और ऐसे ही एक दिन उसे अस्पताल में गनपत भइया मिल गए तो सरगम ने उन्हें फौरन पहचानते हुए कहा....
"गनपत भइया आप! कैसें हैं और सिमकी कैसीं हैं",?
"सरगम दीदी! मैं तो बिलकुल ठीक हूँ और वो भी ठीक है,दिनभर अपने दोनों बच्चों की सेवा में लगी रहती है",
"अच्छा! दो बच्चे हो गए,बधाई हो",सरगम बोली....
"हाँ! दो बच्चे हो गए",गनपत बोला...
"अभी भी वहीं काम करते हो",सरगम ने पूछा...
"नहीं! आपके जाते ही कुछ महीनों के बाद मैनें वो नौकरी छोड़ दी थी फिर कहीं और काम करने लगा था", गनपत बोला....
दोनों बाते ही कर रहे थे कि तभी गनपत के साहब अपनी बेटी के साथ वहाँ आ पहुँचे और गनपत से बोले...
"गनपत! चलो अब घर चलें",
और फिर जैसे ही सरगम ने गनपत के साहब को देखा तो वो उन्हें पहचान गई, वो कोई और नहीं शाश्वत था,जो उसके साथ काँलेज में पढ़ा करता था और उसने सरगम से अपने प्यार का इजहार भी किया था,जब गनपत के साहब उधर आए और गनपत ने देखा कि वें सरगम से बातें करना चाह रहे हैं तो वो बाहर कार के पास जाकर उनका इन्तजार करने लगा और फिर शाश्वत ने भी सरगम को देखा तो बोला....
"सरगम तुम! और यहाँ,"
"हाँ! मैं यहाँ नर्स हूँ और तुम यहाँ कैसें"?,सरगम ने पूछा...
"ये मेरी बेटी है विवेका इसका हाथ जल गया था इसलिए दवा लेने डाक्टर के पास आया था",शाश्वत बोला...
"ओह...कैसें जल गई बच्ची? ध्यान नहीं दिया क्या माँ ने"? सरगम ने पूछा...
"माँ होती तब तो ध्यान देती",शाश्वत बोला...
"ओह...तो ये बात है,लेकिन उन्हें हुआ क्या था"?सरगम ने पूछा...
"बस ! बच्ची को जन्म देते समय कुछ समस्या हो गई थी,डाक्टर ने बहुत कोशिश की बचाने की लेकिन वो बच ना सकी",शाश्वत बोला....
"ओह...बच्ची तो बहुत प्यारी है,अकेले कैसे सम्भालते हो इसे?",सरगम बोली...
"बस! सम्भाल लेता हूँ",शाश्वत बोला....
"दूसरी शादी का नहीं सोचा",सरगम ने पूछा...
"नहीं! बच्ची के बारें में सोचकर नहीं की दूसरी शादी,क्या पता नई माँ कैसीं निकले ?",शाश्वत बोला...
"ये भी सही कहा तुमने",सरगम बोली...
"अच्छा! ये बताओ तुम गनपत को कैसें जानती हो",?,शाश्वत ने पूछा...
"बहुत पुरानी जान पहचान है गनपत भइया से,बहुत साल पहले मैं भी दिल्ली में रहती थी और मैं जिनके घर में रहती थी तो गनपत भइया वहाँ ड्राइवर थे",सरगम बोली....
"क्या तुम अभी बिजी हो",?शाश्वत ने पूछा...
"क्यों"?सरगम ने पूछा...
"कहीं बैठकर काँफी पीते हुए बातें करते",शाश्वत बोला....
"अभी तो शाम तक मेरी शिफ्ट है",सरगम बोली...
"तो फिर काम के बाद शाम को मिलो,ऐसा करो तुम मेरे घर आ जाना,मैं गनपत को कार लेकर तुम्हारे घर भेज दूँगा",शाश्वत बोला....
"मेरा घर नहीं है,मैं तो अस्पताल के क्वार्टर में ही रहती हूँ",सरगम बोली...
"तो कोई बात नहीं पता बता दो, तो वो वहाँ कार लेकर चला आएगा",सरगम बोली...
"ठीक है मैं शाम को छः बजे तैयार मिलूँगीं",सरगम बोली...
और फिर शाश्वत वहाँ से चला गया,शाम को सरगम गनपत के साथ शाश्वत के घर पहुँची तो घर की नेमप्लेट पर प्रोफेसर शाश्वत मिश्रा लिखा था,वो भीतर गई और उसने देखा कि शाश्वत का घर बहुत ही आलीशान था और फिर वो शाश्वत की बेटी विवेका के साथ बातें करने लगी और बच्ची कुछ ही देर में सरगम से घुलमिल गई और फिर सरगम उससे बोली कि मैं ही कल से तुम्हारी पट्टी कर दिया करूँगीं,तुम अस्पताल मत जाया करो,
"ठीक है आण्टी! वैसे भी मुझे डाक्टर अंकल कुछ ज्यादा अच्छे नहीं लगे,",विवेका बोली...
फिर विवेका की बात पर सरगम ने मुस्कुराते हुए पूछा...
"और मैं"?
"आप तो बहुत अच्छी हैं",विवेका बोली...
और फिर इतने में शाश्वत काँफी लेकर हाजिर हुआ और विवेका से बोला...
"बेटा! अब आप कुछ देर अपने खिलौनों से खेल लो,तब तक मैं और आण्टी काँफी पी लें,",
"ओके पापा!",
और ऐसा कहकर विवेका वहाँ से चली गई तो शाश्वत सरगम से बोला....
"और सुनाओ,कैसी चल रही है लाइफ"?
"बस! ठीकठाक ही चल रही है",सरगम बोली...
"मुझे लगता है कि शायद तुमने अब तक शादी नहीं की",शाश्वत बोला...
"हाँ! नहीं की",सरगम बोली....
"क्यों नहीं की,तुम पर तो कोई भी मर मिटे",शाश्वत बोला....
तब सरगम बोली....
"मैं जिसे पसंद करती थी उसने मुझे पसंद नहीं किया और जो मुझे पसंद करता था मैनें उसे पसंद नहीं किया इसलिए शादी नहीं हो सकी",सरगम बोली....
"वैसे तुम्हें पसंद करने वालों की तादाद कुछ ज्यादा ही होगी और उनमें से मैं भी एक हूँ",शाश्वत बोला....
"लेकिन तुमने तो कर ली ना शादी",सरगम बोली....
तब शाश्वत बोला....
"मेरी शादी मजबूरी में हुई थी,मेरी भाभी की बहन थी सुगीता,जब भाभी के पिता मरने लगें तो उन्होंने मेरे पिता से वचन लिया कि उनके बाद सुगीता दुनिया में बिल्कुल अकेली रह जाएगी इसलिए उसे अपनी छोटी बहू बना ले ताकि उसे सहारा मिल जाएं ,क्योंकि सुगीता की माँ भी नहीं थी और फिर मेरे पिता ने उनके वचन का मान रखते हुए शादी के लिए हामी भर दी और फिर मेरी शादी सुगीता से हो गई,मैं शादी करना ही नहीं चाहता था",
"शादी क्यों नहीं करना चाहते थे",सरगम ने पूछा....
"तुम जो दिल में बसी थी,तुमने मेरा दिल तोड़ दिया तो मैं बिल्कुल बिखर सा गया था,मैं कितने दिनों तक अँधेरे कमरें में बैठकर रोया,तुम्हें क्या पता?, तुम तो पत्थरदिल निकली ,जरा भी रहम ना आया तुम्हें मेरा दिल तोड़ते हुए,तुम्हें याद है तुमने मेरा दिया हुआ गुलाब किस तरह स्पिरिट लैंप में जलाया था और जब वो ठीक से ना जला तो उसे तुमने खिड़की से बाहर फेंक दिया",शाश्वत बोला....
"तुम्हारा दिल तोड़ा इसलिए शायद भगवान ने मुझे ऐसी सजा दी",सरगम बोली...
"ये क्या कह रही हो तुम,भला कैसी सजा"?,शाश्वत ने पूछा....
"सजा ही तो थी ,मैं पापन ऐसी जली कि कोयला भई ना राख",सरगम बोली...
"कहना क्या चाह रही हो तुम जरा खुलकर बताओ"?,शाश्वत ने पूछा...
फिर सरगम ने अपनी सारी कहानी शाश्वत को कह सुनाई और शाश्वत ने ध्यान से सरगम की पूरी बात सुनी और उससे बोला....
"तो कहानी जहाँ से शुरू हुई थी तो क्या तुम वहीं पर खतम करना चाहोगी",?
"मतलब क्या है तुम्हारा"?सरगम ने पूछा...
"मतलब बिल्कुल शीशे की तरह साफ है कि क्या तुम अपने उस पुराने दिवाने को अपनाने के लिए तैयार हो, क्या तुम मेरी इस बच्ची की माँ बनोगी? कोई जल्दबाजी नहीं है खूब सोच समझकर फैसला करना, अगर हाँ में जवाब दोगी तो भी ठीक है,ना में जवाब दोगी तो भी ठीक",शाश्वत बोला....
"मुझे थोड़ा वक्त चाहिए",सरगम बोली...
"हाँ ! बिल्कुल,कितना भी वक्त ले लो, शाश्वत बोला....
"तुम्हें इस बारें में अपने परिवार से भी तो बात करनी पड़ेगी",सरगम बोली...
"उसकी चिन्ता तुम मत करो,मेरे परिवार के नाम पर केवल भइया भाभी और उनके बच्चे ही हैं,वें भी विदेश जाकर बस गए हैं,ये बात सुनकर तो वें बहुत खुश होगें,वो ना जाने मुझसे कब से शादी करने को कह रहे हैं,शाश्वत बोला...
और फिर ऐसे ही सरगम और शाश्वत मिलने लगें,विवेका भी सरगम को बहुत पसंद करने लगी और शाश्वत के मन में अभी भी उसके लिए पहले जैसा प्यार देखकर सरगम का दिल पिघल गया और करीब एक साल की मुलाकातों के बाद सरगम ने शाश्वत से शादी के लिए हाँ कर दी.....
फिर सरगम ने शादी में जसवीर ,राधेश्याम,भानुप्रिया,सुजाता ,सिमकी सबको परिवार सहित बुलाया,सब बहुत खुश थे कि आखिरकार सरगम ने शादी कर ही ली और सबसे ज्यादा खुश तो राधेश्याम था सरगम की शादी से और जब सरगम अकेली बैठी थी तो वो उसके पास जाकर बोला....
"अच्छा लग रहा है आपको दुल्हन के रूप में देखकर,ईश्वर करें आप हमेशा यूँ ही खुश रहें",
तब सरगम बोली...
"सच कहा! राधेश्याम जी! बहुत जली मैं अब तक अपने उस पाप को लेकर,मैं पापन ऐसी जली! कि अब जाकर खुशियाँ नसीब हुई हैं",
" और आप हमेशा ऐसे ही खुश रहेगीं,ईश्वर ने आपका बहुत इम्तिहान ले लिया अब वो और इम्तिहान नहीं लेगा आपका,बस ऐसे ही हमेशा खुश रहिए",राधेश्याम बोला....
और ऐसे ही सरगम ने इतने संघर्षों के बाद आखिरकार सूकून पा ही लिया.....

समाप्त....
सरोज वर्मा....