Wo Maya he - 78 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 78

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वो माया है.... - 78



(78)

विशाल इस समय बिल्कुल सामान्य था। ठीक उसी तरह जैसे इस टेस्ट की शुरुआत में था। वह बता रहा था कि उसे माया के आत्महत्या कर लेने का दुख था। पर वह कुसुम को वह प्यार देना चाहता था जिस पर पत्नी होने के नाते उसका हक था। डॉ. हिना उससे कुसुम और मोहित की अचानक हुई मौत के बारे में जानना चाहती थीं। उन्होंने कहा,
"तुम अपनी पत्नी कुसुम और बेटे मोहित के साथ बहुत खुश थे। सबकुछ अच्छा चल रहा था। फिर तुम्हारी पत्नी और बच्चे की मौत हो जाती है। उनकी मौत पर क्या बीती थी तुम पर ?"
विशाल के चेहरे पर पीड़ा उभर आई। उसकी आँखों में नमी आ गई। उसने रुंधे हुए गले से कहा,
"हमारा तो सबकुछ खत्म हो गया था। कुछ समझ ही नहीं आया था कि अचानक यह क्या हो गया ?"
डॉ. हिना ने बात आगे बढ़ाई,
"मोहित का चौथा जन्मदिन तुम लोगों ने बड़ी धूमधाम से मनाया था। एक रेस्टोरेंट में पार्टी दी थी। लेकिन पार्टी से लौटकर कुछ देर बाद ही अचानक कुसुम और मोहित की तबीयत बिगड़ जाती है। अस्पताल पहुँचने पर उनकी मौत हो जाती है। सचमुच बहुत अजीब बात थी।‌ तुम बता सकते हो कि उस रात क्या हुआ था ?"
विशाल के चेहरे पर छाई पीड़ा और गहरा गई। उसने उस रात जो हुआ था वह बताया। उसने वही सारी बातें बताई थीं जो डॉ. हिना ने बद्रीनाथ से सुनी थीं। डॉ. हिना ने कहा,
"विशाल तुमको यह बात अजीब नहीं लगी कि जो खाना सबने खाया था उसे खाकर सिर्फ कुसुम और मोहित ही बीमार क्यों पड़े ? डॉ. का कहना था कि उन्हें ज़हर दिया गया था। तब तो इस मामले को पुलिस में रिपोर्ट करना चाहिए था। उन दोनों की लाश का पोस्टमार्टम होना चाहिए था। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्यों तुमने बिना किसी जांच पड़ताल के उन लोगों का अंतिम संस्कार कर दिया ?"
विशाल ने डॉ. हिना की तरफ देखकर कहा,
"पुलिस इस मामले में कुछ नहीं कर सकती थी। पोस्टमार्टम की कोई ज़रूरत नहीं थी।"
"पोस्टमार्टम से पता चलता कि उन दोनों को किस तरह का ज़हर दिया गया। पुलिस उस इंसान का पता करती जिसने उन लोगों को ज़हर दिया था।"
"कुसुम और मोहित की मौत का कारण माया का श्राप ही था। उसने ही सब किया था। उसे अच्छा नहीं लग रहा था कि हम अपने परिवार के साथ खुश रहें।‌ उसने सपने में आकर मुझसे यह बात कही थी। उसके श्राप के कारण ही कुसुम और मोहित की अचानक मौत हो गई। पुलिस उसे कैसे पकड़ सकती थी ?"
"तुमने सही कहा विशाल। पुलिस माया को नहीं पकड़ सकती थी। माया ने तो आत्महत्या कर ली थी। वह उस घटना से बहुत पहले ही दुनिया छोड़कर जा चुकी थी। जब उसका कोई अस्तित्व ही नहीं था तो वह किसी को कैसे मार सकती थी ?"
डॉ. हिना इस तरह से यह बात कह रही थीं कि विशाल के भीतर छिपा दूसरा व्यक्तित्व सामने आ सके। वह उसके चेहरे की तरफ ध्यान से देख रही थीं। डॉ. हिना विशाल के चेहरे पर बदलते हुए भावों को देख रही थीं। उन्होंने कहा,
"तुमने कहा था कि पुष्कर की हत्या में माया का हाथ था। अभी कह रहे हो कि तुम्हारी पत्नी और बच्चे की मौत का कारण भी माया थी। तुम खुद ही सोचकर देखो कि जो इस दुनिया में नहीं है, वह कुछ कैसे कर सकती है ? यह तुम्हारे मन का वहम था कि यह सब माया ने किया है।"
विशाल के चेहरे के हावभाव अब बिल्कुल वैसे ही हो गए थे जैसे कुछ देर पहले थे। डॉ. हिना की कही बात का असर हो गया था। वह विशाल के उस हिस्से को बाहर आने के लिए उकसा रही थीं जिसने माया का अस्तित्व होने की बात की थी। उन्होंने कहा,
"यह सोचना एकदम फिज़ूल है कि यह सब माया ने किया है। कोई मरा हुआ इंसान भला कुछ कर सकता है। तुम और तुम्हारे घरवालों ने इस सबको माया का श्राप कहकर गलती की थी।"
विशाल गुस्से से उनकी तरफ देख रहा था। उसने कहा,
"माया है.... उसने ही यह सब किया था.... उसने कुसुम और मोहित को मारा था...."
डॉ. हिना का माया के अस्तित्व पर सवाल उठाना विशाल के इस व्यक्तित्व को अच्छा नहीं लगा था। उसने साफ कह दिया था कि माया है। डॉ. हिना चाहती थी कि वह खुलकर इस मुद्दे पर बोले। उन्होंने कहा,
"जब कुसुम और मोहित की मौत हुई उससे पहले ही माया ने आत्महत्या कर ली थी। फिर वह कैसे उन दोनों की मौत की ज़िम्मेदारी हो सकती है ?"
विशाल का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। उसने कहा,
"माया के साथ अन्याय हुआ था। उसके मिन्नतें करने के बावजूद भी किसी ने उसकी बात नहीं मानी।‌ घर के आंगन में खड़े होकर उसने श्राप दिया था कि वह घर में खुशियां नहीं आने देगी। वह कैसे देख सकती थी कि जिन लोगों ने उसके साथ अन्याय किया वह खुश रहें। इसलिए वह अपने श्राप को पूरा करने के लिए वापस आई थी।"
"तुम कैसे कह सकते हो कि माया अपने श्राप को पूरा करने के लिए वापस आई थी ?"
विशाल के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान तैर गई। उसने कहा,
"माया अपना बदला लेने वापस आई थी। उसने हमें खुद बताया था कि उसे अच्छा नहीं लग रहा है कि इस घर में खुशियां आएं। इसलिए वह इस घर की खुशियों में आग लगा देगी।"
डॉ. हिना समझने की कोशिश कर रही थीं। ऐसा लग रहा था कि विशाल के व्यक्तित्व का यह हिस्सा माया का ही रूप है। उन्होंने पूछा,
"माया ने तुमसे कहा कि उसे घर में खुशियां आना अच्छा नहीं लग रहा है। माया तुमसे बात कैसे करती थी।"
"माया अक्सर देर रात हमारे पास आती थी जब सब सो रहे होते थे। तब वह अपने दिल का हाल हमें सुनाती थी। कहती थी कि हमारे साथ अच्छा नहीं हुआ। हमें दुख देकर सब लोग बहुत खुश हैं। मोहित के जन्मदिन से दो रात पहले भी वह हमारे पास आई थी।"
"उस समय माया ने क्या कहा था ?"
"माया ने आत्महत्या कर ली यह जानने के बाद भी यह अपने परिवार के साथ खुश था।‌ हमें ऐसा लगता था कि यह माया के साथ नाइंसाफी है। हमने इसे कितनी बार समझाया कि माया ने तुम्हारे प्यार के लिए जान दे दी। तुम उसके प्यार का ज़रा भी मान नहीं रख पाए। अपनी खुशियों में मस्त होकर सब भूल गए। लेकिन इसने कभी हमारी बात पर ध्यान नहीं दिया। दिन पर दिन कुसुम के और करीब जा रहा था। माया की याद तो इसके दिल से पूरी तरह मिट गई थी। माया यह सह नहीं पा रही थी। उस रात माया हमारे पास आई और हमसे कहा कि हम उसे इंसाफ दिलाएं।"
अब तक की बातचीत से डॉ. हिना को समझ आ गया था कि विशाल के व्यक्तित्व का दूसरा हिस्सा ऐसा था जो कभी माया को भुला नहीं पाया था। उसे माया का उसके प्यार के लिए आत्महत्या कर लेना सहन नहीं हो पाया था। इसलिए विशाल के अंदर मनोवैज्ञानिक रूप से दो विशाल बन गए थे। एक वह जिसने अतीत को भूलकर वर्तमान को अपना लिया था। उसने मान लिया था कि कुसुम और मोहित उसका वर्तमान और भविष्य हैं। अतीत को पीछे छोड़ना ही अच्छा है। दूसरा विशाल माया और उसकी यादों से जुड़ा हुआ था। उसे लगता था कि माया के साथ सबने बहुत गलत किया। उस विशाल ने भी जिसने माया को अतीत मानकर भुला दिया है। इस समय उनके सामने वह विशाल था जो माया के साथ इतना अधिक जुड़ा हुआ था कि कई बार खुद को ही माया समझ लेता था। डॉ. हिना ने आगे कहा,
"तुमको लगता था कि माया के साथ नाइंसाफी हुई थी। पर उस नाइंसाफी के लिए तुम भी तो ज़िम्मेदार थे।"
यह सवाल सुनकर विशाल के चेहरे पर गुस्सा झलकने लगा। उसने कहा,
"हमने कब उसके साथ नाइंसाफी की। माया के साथ नाइंसाफी इसने की थी।"
"तुम बार बार किसका ज़िक्र करते हो ? तुम्हारे अलावा दूसरा कौन है ?"
"बताया तो था वही जिसने माया के गिड़गिड़ाने पर उसका हाथ तक नहीं थामा था। वह जो सब भूलकर नई ज़िंदगी में रम गया था।"
"नाम क्या है उसका ?"
"विशाल......."
"तुम्हारा नाम क्या है ?"
यह सवाल सुनकर विशाल परेशान हो गया। डॉ. हिना ने कहा,
"अच्छा यह बताओ कि क्या विशाल तुम्हारे साथ ही रहता है ?"
"हाँ....."
"तुम विशाल को माया के साथ हुए अन्याय का दोषी मानते हो।"
"अगर वह दोषी नहीं है तो कौन है ?"
"तुम और विशाल एकसाथ रहते हो। तुमने बताया था कि जिस दिन माया घर आकर गिड़गिड़ा रही थी तुम विशाल से कह रहे थे कि उसका हाथ थाम लो। अगर उसने नहीं थामा था तो तुम माया का हाथ थाम लेते। तुमने क्यों नहीं थाम लिया ?"
डॉ. हिना ने पिछली बार जब यह सवाल पूछा था तो जवाब नहीं मिला था। विशाल अपने सामान्य रूप में वापस आ गया था। इस बार उन्होंने फिर वही सवाल पूछा था। वह सोच रही थीं कि इस बार ना जाने क्या होगा ? लेकिन इस बार उनके सवाल का जवाब मिल गया।
"हम कैसे थाम लेते हाथ ? माया प्यार तो विशाल से करती थी। उससे ही हाथ थाम लेने की मिन्नत कर रही थी।"
"पर तुम हो तो विशाल का ही हिस्सा ना।"
यह सुनते ही विशाल का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने कहा,
"वह डरपोक है। स्वार्थी है। हम उसके जैसे नहीं हैं। हम उससे अलग हैं।"
जिस तरह की प्रतिक्रिया सामने आई थी उससे स्पष्ट था कि विशाल के व्यक्तित्व का यह हिस्सा खुद को उससे अलग और माया के करीब मानता है।