रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 16
[विनीत जी गए घर छोड़कर]
गरिमा जी रोते हुए सहगल मेंशन में आईं उनकी आंखें आंसुओं को चाहकर भी रोक नहीं पा रही थीं। वो बड़े–बड़े कदमों से अपने कमरे की तरफ जाने वाली थीं कि दामिनी जी की आवाज़ पर रुक गईं, "गरिमा!"
गरिमा जी ने अपने आंसुओं को पोंछा और दामिनी जी की तरफ देखा लेकिन दामिनी जी उनकी सूजी हुई आंखों को देखकर समझ चुकी थीं कि वो रो रही थीं। दामिनी जी उनके पास आईं और उनके गाल पर हाथ रखकर बोलीं, "तुम रो रही थी?"
गरिमा जी दामिनी जी के सामने झूठ नहीं बोल पाती थीं इसलिए उन्होंने दूसरी तरफ मुड़कर कहा, "नहीं, मां! ऐसा… ऐसा कुछ नहीं है।"
दामिनी जी ने उन्हें कंधे से पकड़कर अपनी तरफ किया और बोलीं, "गरिमा! तुम मुझसे अपने आंसू नहीं छुपा सकती… बताओ, क्या हुआ है?"
गरिमा जी अब खुद को रोक नहीं पाईं और रोते हुए दामिनी जी के गले से लग गईं वो अपनी आंसू भरी आंखों के साथ बोलीं, "मां! सब खत्म हो गया… मेरी पूरी ज़िन्दगी एक पल में पलट गई, सबकुछ बरबाद हो गया।"
दामिनी जी ने गरिमा जी को खुद से अलग किया उनको इस तरह रोता हुआ देखकर दामिनी जी का कलेजा जैसे बाहर निकला जा रहा था। उन्होंने गरिमा जी के आंसू पोंछते हुए कहा, "बेटा! क्या हुआ? तुम… तुम ये सब क्यों कह रही हो?"
गरिमा जी ने रोते हुए दामिनी जी को सारी बातें बताईं तो दामिनी जी हैरान रह गईं, वो मन ही मन बोलीं, "ये ठीक नहीं हुआ, गरिमा को ये सब कैसे पता चल गया! ये तो पूरी सच्चाई जानती भी नहीं है और सच… सच इसे बताया भी नहीं जा सकता। हे प्रभु! ये कैसी लीला रच रहे हैं आप? कुछ तो समाधान निकालिए इसका।"
दामिनी जी यूंही चुप खड़ी थीं क्योंकि वो अपनी ही उधेड़बुन में व्यस्त थीं। गरिमा जी ये सब देखकर आश्चर्यचकित थीं कि दामिनी जी कुछ कह क्यों नहीं रही हैं
"मां! अब मैं क्या करूं? आप ही बताइए कि क्या फैसला लूं मैं? मैं…", गरिमा जी अपनी बात पूरी कर पातीं उससे पहले ही उनकी नज़र दरवाज़े पर खड़े विनीत जी पर पड़ी। उन्हें देखते ही गरिमा जी की आंखों में आंसुओं की जगह गुस्से ने ले ली। गरिमा जी ने दहकती हुई नजरों से उनकी तरफ देखा और दौड़कर अपने कमरे की तरफ चली गईं।
दामिनी जी उन्हें आवाज़ देती रह गईं पर गरिमा जी बिना कुछ सुने अपने कमरे में चली गईं। दामिनी जी ने पीछे मुड़कर देखा तो वहां विनीत जी खड़े थे।
…
"नहीं, अब मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं उस धोखेबाज इंसान के साथ एक पल भी नहीं रह पाऊंगी। मैं… मैं कहीं और चली जाऊंगी कहीं ऐसी जगह जहां उस इंसान की याद, इनकी परछाई भी ना पहुंच पाए।", कहकर गरिमा जी ने अपना सामान पैक किया और अपने ट्रॉली बैग के साथ कमरे से बाहर निकल गईं।
गरिमा जी गुस्से से सीढ़ियों से उतरकर आ रही थीं। उनकी रोने की वजह से सूजी हुई आंखें अब गुस्से से लाल हो चुकी थीं।
दामिनी जी और विनीत जी दोनों ही गरिमा जी के हाथ में उनका सामान देखकर हैरान थे।
दामिनी जी उनके पास आकर चौंकते हुए बोलीं, "बेटा! तुम… तुम ये सामान के साथ कहां जा रही हो?"
गरिमा जी ने गुस्से से विनीत जी की तरफ देखकर दामिनी जी से कहा, "मां! मैं उस शख्स के साथ बिलकुल नहीं रह सकती जिसकी वजह से मेरी पूरी जिंदगी बरबाद हो गई। मैं…" कहकर गरिमा जी दामिनी जी के कमरे की तरफ बढ़ने को हुईं कि दामिनी जी ने उन्हें रोका, "कहां जा रही हो तुम?"
"मैं अक्कू को लेने के लिए जा रही हूं।", गरिमा जी ने दामिनी जी के हाथ से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा।
आकृति आराम से दामिनी जी के कमरे में सो रही थी। वो बेचारी बच्ची तो ये जानती ही नहीं थी कि बाहर कितना बड़ा कोहराम मचा हुआ था!
दामिनी जी गरिमा जी के आगे हाथ जोड़कर बोलीं, "नहीं, बेटा! ऐसा मत करो। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं।"
गरिमा जी ने दामिनी जी के हाथों को नीचे किया और बोलीं, "नहीं, मां! इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। आप क्यों हाथ जोड़ रही हैं?"
"तो फिर तुम मुझे इस सबकी सज़ा क्यों दे रही हो? क्यों मुझे मेरी अक्कू से अलग कर रही हो?", दामिनी जी ने नम आंखों के साथ कहा तो इस बार विनीत जी बोले, "तुम्हें कहीं जाने की कोई ज़रूरत नहीं है। गलती मैंने की है तो… इस घर से मुझे जाना चाहिए।"
गरिमा जी को विनीत जी के शब्द बहुत ज़्यादा तकलीफ पहुंचा रहे थे, वो उनके मुंह से एक शब्द भी नहीं सुनना चाहती थीं। वो गुस्से में उन्हें हाथ दिखाकर बोलीं, "मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी क्योंकि मैं आपसे अपने सारे रिश्ते खत्म कर चुकी हूं तो प्लीज मुझे मत बताइए कि मैं क्या करूं और क्या नहीं…"
फिर गरिमा जी दामिनी जी की तरफ देखकर बोलीं, "और, मां! मैं दूसरों की तरह किसी का परिवार नहीं तोड़ना चाहती, मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से एक मां से उसका बेटा अलग हो जाए इसलिए… मैं ये घर छोड़कर जा रही हूं।"
विनीत जी गरिमा जी को रोकने की कोशिश में बोले, "तो, तुम्हें ये भी हक नहीं बनता कि तुम एक दादी को उसकी पोती से अलग करो… मां को ज़्यादा खुशी तब होगी जब अक्कू उनके पास रहे इसलिए तुम यहीं रहो, मैं चला जाऊंगा इस घर से हमेशा हमेशा के लिए।"
गरिमा जी कुछ कहने को हुई कि पीछे से दामिनी जी कड़क आवाज़ में बोलीं, "हां, तुम्हें जाना ही पड़ेगा क्योंकि गलती तुम्हारी थी… तुम्हारी वजह से मेरी गरिमा को आज ये दिन देखना पड़ा। अभी के अभी मेरे घर से बाहर निकल जाओ।"
अपने दिल पर बोझ रखकर दामिनी जी ने ये सब बोल तो दिया पर इस सब को बोलने में ना जाने कितनी बार टूटी होंगी वो पर विनीत जी के वादे को रखने के लिए उन्हें ये कहना ही पड़ा।
(अगर आप सब सोच रहे हैं कि आखिर विनीत जी ने कब दामिनी जी से वचन लिया तो एपिसोड 2 पढ़िए)
दामिनी जी की बात पर तो खुद गरिमा जी हैरान होकर उन्हें देख रही थीं।
दामिनी जी गरिमा जी के पास आईं और बोलीं, "बेटा! मैंने कभी तुम में और विनीत में कोई फर्क नहीं किया अगर वो गलत है तो उसे उसकी सज़ा मिलनी ही चाहिए।" कहकर दामिनी जी ने गरिमा जी को गले से लगा लिया।
विनीत जी मुस्कुराकर ये सब देख रहे थे वो भले ही आज अपने घर को छोड़कर जाने वाले थे पर मन में एक संतुष्टि थी कि अब उनकी मां, पत्नी और बेटी अकेली नहीं हैं बल्कि वो तीनों एक–दूसरे के साथ हैं।
आंखों में नमी भरकर और चहरे पर एक मुस्कान लेकर विनीत जी घर से बाहर निकलने लगे। गरिमा जी की पीठ और दामिनी जी का चहरा विनीत जी की तरफ था, आज दामिनी जी को ऐसा लग रहा था जैसे कोई उनके कलेजे को जबरदस्ती बाहर निकाल रहा हो।
आंखों में उन दोनों की छवि को भरकर विनीत जी बाहर निकल गए और ये सोचकर कि शायद वो अपने बेटे से आखिरी बार मिल रही हैं दामिनी जी ने भी अपनी नम आंखों में उनकी छवि को कैद कर लिया।
"उस दिन भी उन्होंने मुझे और तुम्हें नहीं बल्कि इस लड़की और इसकी मां को चुना।", गरिमा जी ने प्रदिति की तरफ घृणा से इशारा करते हुए कहा।
वहां खड़े हर एक इंसान की आंखों में आंसू थे। गरिमा जी ने आकृति से सवाल करते हुए कहा, "अब तुम ही बताओ कि मैं जो भी कर रही हूं क्या वो गलत है?"
आकृति अपने आंसुओं को पोंछकर बोली, "मॉम! मैं नहीं जानती कि कौन सही है और कौन गलत? मुझे नहीं पता कि डैड ने आपको धोखा क्यों दिया पर मैं इतना जानती हूं कि इस सब में दी की कोई गलती नहीं है।"
गरिमा जी ने आकृति को समझाते हुए कहा, "बेटा! अभी तुमने ये दुनिया पूरी तरह देखी नहीं है। यहां लोग सिर्फ हमारा यूज करते हैं ये लड़की भी तुम्हें सिर्फ यूज कर रही है। मुझे तो लगता है कि ये हमारे बिजनेस की ताक में है, ये हमारे बिजनेस को हड़पकर अपने पापा को दे देगी और एक बार फिर हमें वही दिखा मिलेगा जो सालों पहले मिला था।"
गरिमा जी की बात सुनकर आकृति प्रदिति के पास गई और उसके चहरे की तरफ इशारा करते हुए बोली, "एक बार इनका चहरा देखिए, इनकी आंखों में देखिए… क्या आपको लगता है कि ये आंसू झूठे हैं? क्या ये मासूम सा चहरा आपको धोखा दे रहा है? मॉम! सिर्फ इसलिए क्योंकि ये डैड की बेटी हैं आप ये भी भूल गईं कि उन्होंने मेरी इज्ज़त को बचाया था।"
"हां, तो हमने भी इसकी जान बचाई… हो गया हिसाब बराबर।", गरिमा जी ने दूसरी तरफ देखकर कहा तो आकृति अपनी भौंहों को जोड़कर हैरानी से बोली, "मॉम! ये ज़िन्दगी है, आपका बिजनेस नहीं जो यहां आप हिसाब को बराबर कर रही हैं… रिश्तों में हिसाब नहीं लगाया जाता बल्कि उन्हें प्यार से निभाया जाता है, एक–दूसरे के लिए सैक्रिफाइस किया जाता है।"
"बहुत निभा लिए ऐसे खोखले रिश्ते, अब मुझमें हिम्मत नहीं है फिर से कोई भी धोखा झेलने की।", गरिमा जी ने गुस्से में कहा तो आकृति कुछ कहने को हुई कि प्रदिति ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया और बोली, "अक्कू! अगर मेरे यहां रहने से मां को तकलीफ हो रही है तो मेरा यहां से जाना ही बेहतर होगा।"
आकृति ने प्रदिति की बात के कटाक्ष में कहा, "नहीं, दी! जब आप गलत हैं ही नहीं तो आपको सज़ा क्यों मिले! आप कहीं नहीं जायेंगी, यहीं रहेंगी आप।"
दामिनी जी पीछे खड़ी बस आंखें बंद करके भगवान से प्रार्थना कर रही थीं कि वो सब ठीक कर दें क्योंकि वो अभी कुछ भी कहने की हालत में नहीं थीं अगर प्रदिति का साथ देतीं तो गरिमा जी के सवालों के जवाब कैसे देतीं और गरिमा जी का साथ दे नहीं सकती थीं क्योंकि वो अच्छे से जानती थीं कि गलत गरिमा जी ही थीं और प्रदिति की कोई गलती नहीं थी।
जब गरिमा जी से ये सब बर्दाश्त नहीं हुआ तो उन्होंने प्रदिति का हाथ फिर से पकड़ा और तेज़ी से घर की चौखट के बाहर कर दिया आकृति पीछे से रोकती रह गई पर गरिमा जी नहीं रुकीं। जब गरिमा जी ने प्रदिति को घर से बाहर निकाला तो उसका पैर बीच में अटक गया और वो गिरने को हुई कि किसी ने उसे थाम लिया।
क्रमशः