Wo Maya he - 77 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 77

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

वो माया है.... - 77



(77)

आज विशाल का साइकोलॉजिकल टेस्ट था। उसके साइकोलॉजिकल टेस्ट के लिए एक अलग कमरे की व्यवस्था की गई थी। टेस्ट की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी के इंतज़ाम थे। कमरे में विशाल एक कुर्सी पर बैठा था। बीच में एक मेज़ थी। उसके दूसरी तरफ डॉ. हिना सैयद बैठी थीं। उन्होंने प्रक्रिया शुरू करने का इशारा किया। उसके बाद विशाल से बोलीं,
"मेरा नाम हिना सैयद है। मैं एक साइकोलॉजिस्ट हूँ। मैं तुमसे कुछ सवाल करूँगी। तुम्हें उसके जवाब देने होंगे। तुम तैयार हो।"
विशाल ने कहा,
"जी हम तैयार हैं......."
"गुड....."
डॉ. हिना ने उसे आश्वासन दिया कि उसे परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। बस जो सवाल पूछे जाएं अच्छी तरह सोचकर उनका जवाब दे। उन्होंने विशाल की तरफ देखकर कहा,
"तुम पर पुलिस ने इल्ज़ाम लगया है कि तुमने अपने छोटे भाई पुष्कर की हत्या कराने के लिए कौशल को भेजा था। तुमने इस इल्ज़ाम को स्वीकार किया है।"
विशाल ने सर हिलाकर हाँ किया। डॉ. हिना ने पूछा,
"विशाल तुमने अपने छोटे भाई को मरवाने के लिए पैसे क्यों दिए ?"
विशाल ने अपनी नज़रें झुका लीं। डॉ. हिना ने कहा,
"क्या तुम बचपन से अपने भाई पुष्कर से नफरत करते थे ?"
विशाल ने नज़रें उठाकर उनकी तरफ देखा। उसने कहा,
"हम अपने भाई से नफरत नहीं करते थे। उसे बहुत प्यार करते थे। जब वह पैदा हुआ था तो हमें बहुत खुशी हुई थी।"
"बचपन में कभी ऐसा हुआ था कि तुमने उसे पीटा हो। कुछ ऐसा किया हो जिससे उसे तकलीफ पहुँची हो ?"
"नहीं.... जब हम उसे चाहते थे तो ऐसा क्यों करते ?"
"तो फिर ज़रूर तुम्हारे छोटे भाई पुष्कर ने तुम्हारे साथ कुछ गलत किया होगा।"
विशाल कुछ क्षण सोचने के बाद बोला,
"नहीं वह भी हमें प्यार करता था। हमारी इज्ज़त करता था।"
डॉ. हिना ने एक पल उसके चेहरे को देखा। उसके बाद बोलीं,
"तुम पुष्कर को बहुत प्यार करते थे। वह भी तुम्हें बहुत प्यार करता था। फिर ऐसा क्यों हुआ कि तुमने एक आदमी को उसकी हत्या करने के लिए भेजा। इसका कोई तो कारण होगा।"
विशाल के चेहरे पर गुस्से की झलक दिखाई पड़ी। उसने कहा,
"जो हुआ उसके ज़िम्मेदार हमारे घरवाले हैं।"
डॉ. हिना बहुत सावधानी से विशाल को उस बात पर ले जाना चाहती थीं जब उसने पुलिस से माया का अस्तित्व होने की बात कही थी। उन्होंने कहा,
"तुमने पुष्कर की हत्या के लिए आदमी भेजा था। लेकिन उस बात के लिए तुम अपने घरवालों को दोष दे रहे हो। ऐसा क्यों ?"
"क्योंकी वह लोग दोषी हैं।"
"कौन लोग ? मेरा मतलब है कि परिवार में ऐसा कौन है जिसे तुम इस बात का दोषी मानते हो ?"
विशाल के चेहरे पर वही गुस्सा था जो थोड़ी देर पहले देखने को मिला था। उसने कहा,
"पापा, मम्मी, बुआ सभी। किसी को भी हमारे दुख से कोई लेना देना नहीं था। सबको बस पुष्कर की फिक्र थी। उसके ज़रिए घर में खुशियां लाना चाहते थे।"
डॉ. हिना ने विशाल के केस को स्टडी किया था। उसने और कौशल ने पुलिस को जो बयान दिया था वह पढ़ा था। इसके अलावा इस टेस्ट से पहले उन्होंने बद्रीनाथ को बुलाकर लंबी बात की थी। उन्हें बहुत कुछ पता था। डॉ. हिना ने कहा,
"घर में खुशियां आतीं तो इसमें गलत क्या था ? अब अगर उन खुशियों का कारण तुम्हारा भाई होता तो यह तो अच्छी बात होती। तुम तो अपने छोटे भाई पुष्कर को बहुत चाहते थे। फिर उसकी खुशी से तुम्हें तकलीफ क्या थी ?"
विशाल के चेहरे पर गुस्से के साथ पीड़ा उभर आई। उसने कहा,
"हमें तकलीफ थी क्योंकी उन लोगों ने हमारी खुशी की कोई परवाह नहीं की थी। पुष्कर ने दिशा को अपने लिए चुना। दिशा किसी को भी पसंद नहीं थी। पापा और बुआ को लगता था कि वह परिवार के लिए ठीक नहीं है। फिर भी पुष्कर की ज़िद के आगे झुक गए। हमने भी माया से प्यार किया था। सबको माया पसंद थी। पर पापा और बुआ ज़िद पर अड़ गए। हमने मनाने की कोशिश की नहीं माने। माया ने मिन्नतें कीं पर कोई असर नहीं हुआ। मम्मी जिन्होंने पुष्कर और दिशा की शादी कराने के लिए सिफारिश की उन्होंने हमारे लिए मुंह तक नहीं खोला था। हमारी और माया की शादी नहीं हो पाई थी। पुष्कर और दिशा की शादी आसानी से हो गई। इस बात से हमारे मन में बहुत गुस्सा था। अपने घरवालों से बदला लेने का एक ही उपाय समझ आया। हमने कौशल से कहा कि पुष्कर को मार दे। लेकिन वह पुष्कर की हत्या नहीं कर पाया। पुष्कर की हत्या माया के श्राप के कारण हुई है।"
विशाल अब बहुत विचलित नज़र आ रहा था। डॉ. हिना ने उसके सामने रखे पानी के गिलास की तरफ इशारा करके कहा,
"पानी पी लो। शांत हो जाओ। फिर बात करते हैं।"
विशाल ने गिलास उठाकर एकबार में पानी गटक लिया। डॉ. हिना उसके व्यवहार पर ध्यान दे रही थीं। विशाल अभी भी बहुत विचलित था। डॉ. हिना ने कहा,
"विशाल तुमने कहा कि तुम और माया शादी करने वाले थे। पर तुम दोनों की शादी हो नहीं पाई। फिर माया का क्या हुआ ?"
"उसने आत्महत्या कर ली।"
विशाल की आँखों से आंसू बहने लगे। डॉ. हिना ने कहा,
"उसने आत्महत्या कर ली तब तो तुम बहुत दुखी हुए होगे। पर तुमने तो कुसुम से शादी कर ली थी।"
विशाल इस सवाल को सुनकर तड़प उठा। उसने कहा,
"घरवालों के दबाव के कारण। तब हमें नहीं पता था कि माया ने आत्महत्या कर ली है। हमें लगा था कि उसके घरवालों ने भी उसकी शादी कर दी होगी।"
डॉ. हिना विशाल के दर्द को समझ रही थीं। वह चाहती थीं कि धीरे धीरे उसे उस मुकाम पर ले जाएं जहाँ उसका दूसरा व्यक्तित्व सामने आए। उन्होंने कहा,
"तुम अपनी पत्नी पत्नी कुसुम और बच्चे मोहित के साथ बहुत खुश थे। कभी तुम्हें इस बात की ग्लानि नहीं होती थी कि माया ने तुम्हारे लिए अपनी जान दे दी। लेकिन तुम अपने परिवार के साथ खुश हो।"
यह सवाल करके डॉ. हिना ने अपनी नज़रें विशाल के चेहरे पर टिका दीं। वह ध्यान से उसके चेहरे पर बदलते भावों को देख रही थीं। इससे पहले माया की आत्महत्या की बात करते हुए विशाल बहुत दुखी था। अब उसके चेहरे पर एक असंतोष था। ऐसा लग रहा था जैसे कि वह माया के लिए आंसू बहाने वाले विशाल से गुस्सा था। उसने कहा,
"हमने कितनी बार कहा था कि यह माया के साथ ज्यादती है। तब हिम्मत करते। उसका हाथ थाम लेते तो उसे आत्महत्या ना करनी पड़ती।"
विशाल की आवाज़ वैसी ही थी पर हावभाव एकदम अलग थे। डॉ. हिना ने कहा,
"तुमने यह बात किससे कही थी ?"
विशाल ने उनकी तरफ देखकर कहा,
"वही जो अपनी ज़िंदगी में मस्त हो गया था। जो अपनी पत्नी और बच्चे के साथ बहुत खुश था। जब तक माया की आत्महत्या का पता नहीं चला था तब तक तो ठीक था। पर जब इसे पता चल गया कि उसने इसका नाम लेते हुए खुद की ज़िंदगी खत्म कर ली है तब तो इसे सोचना चाहिए था। कुछ दिन झूठा दुख दिखाकर अपनी पत्नी और बेटे के साथ मज़े से रहने लगा।"
विशाल जो कह रहा था उससे स्पष्ट था कि उसके भीतर दो विशाल थे। एक जो माया को ना पाने के बाद सबकुछ भूलकर आगे बढ़ गया था। दूसरा वह जो माया के ना मिलने से नाराज़ था। अपने परिवार से नफरत करता था। बल्की अपने दूसरे हिस्से को भी पसंद नहीं करता था।
डॉ. हिना के लिए अब और अधिक सावधानी बरतना ज़रूरी था। वह चाह रही थीं कि विशाल के भीतर बसे उसके ही व्यक्तित्वों की सोच को बाहर ला सकें। उन्होंने कहा,
"तुमने उसे समझाया था कि यह ठीक नहीं है।"
"हम तो उस पल से समझा रहे थे जब माया हिम्मत करके घर आई थी। घर के आंगन में सबके सामने कह रही थी कि मेरा हाथ पकड़ कर ले चलो। हम लगातार इससे कह रहे थे कि पकड़ लो हाथ। यह डरपोक है। सोच रहा था कि घरवाले नाराज़ हो जाएंगे। घर से निकाल देंगे तो क्या होगा ? अपने डर के कारण चाहते हुए भी इसने माया की बात नहीं मानी।"
"उसने गलती की पर तुम तो वही चाहते थे। तुमने क्यों नहीं पकड़ लिया माया का हाथ। उसका हाथ पकड़ लेते। घरवालों से कह देते कि मैं इसी के साथ जीवन बिताऊँगा।"
डॉ. हिना के इस सवाल ने विशाल को परेशान कर दिया। ऐसा लग रहा था जैसे कि इस सवाल का उसके पास कोई जवाब नहीं है। डॉ. हिना ने कहा,
"तुम जानते थे कि माया के साथ गलत हो रहा है। अगर उसने हिम्मत नहीं दिखाई तो तुम दिखाते। तुम भी तो विशाल का ही हिस्सा हो ना। फिर तुमने माया का हाथ क्यों नहीं पकड़ा।"
इस बात ने जैसे विशाल के अंदर एक हलचल पैदा कर दी थी। वह बस इधर उधर देख रहा था। कुछ देर तक दुविधा में रहने के बाद ऐसा लगा जैसे कि विशाल फिर बदल गया। उसके हावभाव सामान्य हो गए। उसने डॉ. हिना की तरफ देखकर कहा,
"आप कह रही हैं कि हम अपने परिवार के साथ खुश थे। हमें माया की आत्महत्या का कोई अफसोस नहीं था। हमें अफसोस था। पर कुसुम ने हमें बहुत प्यार दिया था। उसके प्यार को नजरअंदाज़ कैसे कर देते ? हमने सोचा कि एक ज़िंदगी तो हमारे कारण बर्बाद हो गई है। अब कुसुम की ज़िंदगी बर्बाद क्यों करें।"
विशाल ने उस सवाल का जवाब दिया था जो डॉ. हिना ने पूछा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे बीच में जो कुछ भी हुआ विशाल उसके बारे में कुछ जानता ही ना हो।
डॉ. हिना इस समय आश्चर्य‌ में थीं। उन्हें ऐसा लग रहा था कि विशाल का दूसरा व्यक्तित्व खुद उससे छिपा हुआ है।