Hotel Haunted - 33 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 33

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 33

आज के दिन हुई घटना के बारे मे सोचते हुए में कब घर पहुंच गया पता ही नहीं चला, घर पहुचते ही देखा कि घर में शांति है, शायद मां ऊपर अपने कमरे में होगी,मन में यह सोच के शांति मिली की अच्छा हुआ मां होल मैं नही है वरना मेरी ऐसी हालत देखकर बेवजह टेंशन लेती। यह सोच के मैं अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा, भिगने की वजह से पूरा बदन गिला था तो घर के अंदर आते ही ठंड भी लग रही थी। मैं अपने रूम की तरफ बढ़ ही रहा था कि तभी मेरे कानों में आवाज पड़ी " श्रेयस.... बेटा आज इतनी जल्दी आ गया!" माँ की आवाज सुनते ही मेरे कदम सीढ़ियों पर ही रुक गए। मैने बिना मुड़े अपने कमरे की तरफ़ बढ़ते हुए जवाब दिया"हां माँ वो आज क्लास नहीं हुई।"


"अच्छा पर इतनी जल्दी में कमरे में कहा जा रहा है " शिल्पा ने सीढ़ियों के पास आते हुए कहा। "वो माँ बारिश में भीग गया था इसलिए कपड़े बदलने जा रहा हूँ" कहते हैं हुए मेने थोड़ा आगे बढ़ा ही था की "हर्ष.....ये क्या हालत बना रखी है?" जैसी ही माँ के मुँह से ये बात सुनी मेने अपनी आंखें बंद करी और एक गहरी सांस छोड़ी। मैं मुड़ा और जब मेरी नज़र हॉल पे पड़ी तो भाई अभी अभी घर में आया था,उसके चेहरे पर घाव के निशान अभी भी साफ नजर आ रहे थे और माँ उसके बिलकुल करीब खड़ी उससे पूछ रही थी। अनहोने मेरी तरफ जब अपनी नजरें घुमाई और जैसे ही मेरी हालत देखी तो उनका मुंह खुला रह गया क्योंकी मेरी हालत भी कुछ कुछ भाई जैसी ही थी।


"कहीं तुम दोनों ने आपस में लड़ाई तो नहीं की है ना??" माँ ने हम दोनों की तरफ देखते हुए हेरानी भर्रे लफ्ज़ों से पुछा "अरे नहीं मां मेरी और भाई की लड़ाई क्यों होगी भला?आप बेवजह टेंशन मत लो वरना आपकी तबियत फिर खराब हो जायेगी" मैंने मां के हाथ को पकड़ते हुए कहा लेकिन माँ इस वक़्त बहुत गुस्से में थी इसलिए उनको अपना हाथ से छुड़वा लिया..."तुम बात को घुमाने की कोशिश मत करो और देख श्रेयस अगर तू इसे बचाने के झूठ बोल रहा है तो मैं कह देती हूं, मैं फिर तुझसे कभी बात नहीं करूंगी "मां ने मेरी तरफ गुस्से भरी नजरों से देखते हुए कहा।मैं कुछ कहता हूं उससे पहले "वाह... वाह.. क्या बात है, अब क्या मेरे इतने बुरे दिन आ गये हैं कि ये भाई साहब मुझे बचाएंगे,और रही बात लड़ाई की तो इसमें कहा इतनी हिम्मत है जो मुझसे लड़ सके "मेरी तरफ देखते हुए भाई ने गुस्से में कहा तेज़ी से चलते हुए अपने कमरे मैं चला गया।


" हर्ष.. रुक....अभी मेरी बात खत्म नहीं हुई है " माँ ने उसे रोकने की कोशिश की पर वो इतना गुस्से मैं था इसलिए वो नहीं रुका " श्रेयस अब तू बता क्या हुआ है... मुझे चिंता हो रही है" माँ मेरी तरफ आते हुए बोली "मां आप क्यों इतनी चिंता करती हो, कुछ नहीं हुआ, मेरा और भाई का झगड़ा नहीं हुआ है "मेने माँ को शांति से समझते हुए कहा। "तो फिर तुम दोनों को इतनी चोट कैसे लगी" माँ ने मेरे चेहरे पे लगी हुई चोट को छूते हुए कहा। मैं समझ चुका था कि अब कुछ भी छुपाने का कोई फ़ैदा नहीं है, "असल में माँ हुआ यूं की..................." फिर मैंने जो कुछ हुआ सब कुछ बता दिया, मेरी बात सुन के माँ के चेहरे पर हल्का गुस्सा और चिंता छा गई "उसने तुझे इतनी बुरी तरह से मारा और तूने कुछ नहीं किया श्रेयस?" माँ ने थोड़ा गुस्से में कहा।मैंने उन्हें ऐसे परेशान देखा तो मुझे थोड़ी तकलीफ़ हुई, मेने उनके दोनों हाथों को पकड़ते हुए उनको सोफ़े पर बिठा दिया।"बोलता क्यों नहीं श्रेयस.....उसने तुझे इतना मारा और क्यों तूने कुछ नहीं किया? तुझे याद है ना मैंने कहा था कि अगर हम सही हैं तो फिर हमें किसी चीज़ से डरना नहीं चाहिए, फिर चाहे सामने कोई भी हो। "मां ने मेरे बालों को सहलाते हुए कहा...."मुझे सब कुछ याद है माँ, आपकी हर बात याद है, पर....." इतना कह के में रुक गया और माँ की तरफ देखने लगेगा, वो मुझे देख रही थी अपने सवाल के जवाब का इंतज़ार कर रही थी।


"क्यूँकी मेरी वजह से पहले ही काफी लोग तकलीफ उठा चुके है और अब मैं नही चाहता की मेरी वजह से दूसरी कोई भी प्रोब्लम create हो और बात ज्यादा न बढ़ जाए इसलिए मैने कुछ नही किया।"मां को जो वजह थी मैंने बता दी। मैने उनकी तरफ देखा तो उनकी आंखें हल्की सी नम थी,उन्होंने मेरे सिर पर अपना हाथ रखते हुए कहा "कब तक यूं ही अपने आप को दोष देते हुए तकलीफ मैं जीता रहेगा,खुद को इस gulit से आजाद क्यों नहीं कर लेता? दूसरो के बारे मैं इतना ना सोचकर थोडा खुद का भी ध्यान रख ले।"मैने मुस्कुराते हुए उनके चेहरे की ओर देखकर जवाब दिया"आप हो न मेरा ख्याल रखने के लिए।"इतना कहकर मैंने अपना सिर उनके हाथों मैं रख दिया,उन्होंने धीरे से मेरा सिर ऊपर किया और मेरे सिर पे अपने प्यार की मिठास रख दी।



"अब तुम कमरे में जाकर चेंज कर लो,में तुम दोनों के लिए दवाई ले कर आती हूं" माँ ने मेरे चेहरे को सहलते हुए कहा। "पर मुझे तो अपनी मेरी दवाई अभी दे दी।"मेरी ये बात सुनकर माँ ने मेरे चेहरे को अपने हाथों से सहलाया और मुस्कुराती हुई अपने कमरे में चली गई, मैं कपड़े चेंज करके अपने बेड पर लेटा हुआ था तभी माँ कमरे में आई और उन्होंने मुझे दवाई दे दी, दवाई खाकर थोड़ी देर में कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। उधर हर्ष अपने कमरे में चेंज करने के बाद बेड पर लेटा हुआ था, तभी शिल्पा कमरे में आई और उसके बगल में आकर बैठ गई "चल हर्ष...ले दवाई खा ले" शिल्पा ने दवा और पानी का गिलास हर्ष की तरफ बढ़ाते हुए कहा "मुझे नहीं खानी.... मैं बिल्कुल ठीक हूं।" हर्ष ने थोड़ा रूड होते कहा "अब तू अपनी माँ से इतना गुस्सा होगा?" कहते हुए शिल्पा ने Medicine को टेबल पे रख दिया और हर्ष की तरफ देखने लगेगी, जो दूसरी ओर मुंह करके बैठा हुआ था " अच्छा चल मैं सॉरी बोलती हूं,मैं उस वक्त कुछ ज्यादा ही गुस्सा हो गई थी... I'm sorry" कहते हुए शिल्पा ने अपने कान पकड़ लिए,हर्ष ने शिल्पा के मुँह से सॉरी सुना तो वो उसकी तरफ देखने लगेगा" माँ ये क्या कर रही हो? "कहते हुए हर्ष ने शिल्पा के हाथों से उसके कानों को छुड़वा दिया "मैं भला आपसे कैसे नाराज हों सकता हूं?"कहते हुए वो बिस्तर पे बैठ गया।


"तो चल फिर ये दवाई खा ले।" कहते हुए शिल्पा ने दवाई उसके हाथो मैं रख दी, पानी का गिलास ख़तम करने के बाद, हर्ष अपनी मां की और देखने लगा। "क्या देख रहा है" हर्ष को अपनी तरफ देखते हुए महसुस किया तो शिल्पा ने मुस्कुराते हुए पूछा "अच्छा लगा ये देख की आप आज मेरे साथ बैठी हो" हर्ष ने शिल्पा का हाथ पकड़ते हुए कहा "एक माँ अपने बच्चों से दूर कैसे रह सकती है" कहते हुए शिल्पा ने हर्ष के माथे पे अपना हाथ रखा "चल थोड़ी देर आराम करले..." शिल्पा के कहते ही हर्ष बेड पे लेट गया और शिल्पा वही उसके बगल में बैठकर उसका हाथ पकड़े उसके माथे को सहलाती रही......दवाई का असर और शरीर के दर्द ने हर्ष को कब नींद के आगोश में पहुुंचा दिया उसे पता ही नहीं चला, शिल्पा ने जब देखा कि हर्ष सो चुका है तो उसने अपना हाथ हर्ष के हाथ से अलग किया, उसके माथे पे अपने ममता की मिठास रखी और लाइट बंद करके रूम से बाहर निकल गई।


शाम के 5 बजे बाल्कनी में खड़ा बाहार की ठंडी हवाओ को मेहसूस कर रहा था, बारिश रुक चुकी थी पर मौसम अभी भी बेहद सुहाना था,आसमान मैं काले बादलों के बीच से शाम का ढलता हुआ सूरज अपनी केसरी रोशनी बिखेर रहा था और बहती हुई ठंडी हवा दिल और शरीर को सुकून पहुंच रही थी।मैं आंखे बंध करके इन नजारों मैं खोया था तभी "श्रेयस,लो कॉफ़ी पी लो" कहते हुए माँ पीछे से आई और मेरे पास आकर खड़ी हो गई।" Thank you" मेने कॉफ़ी का मग लेते हुए कहा "अब कैसा लग रहा है?" माँ ने चेहरे पर देखते हुए कहा, असल में गाल पे अभी भी सुजन थी और हाथ हल्के से छील गए थे "अब अच्छा लग रहा है माँ और ये कॉफी के सामने तो यह सब कुछ भी नही है" मेने सिप लेते हुए कहा और माँ मुझे यूं देख मुस्कुरा पड़ी "आज और कोई exercise करने की जरुरत नहीं है इसलिए आज आराम कर लेना" माँ ने कहा तो मैंने हां मैं गर्दन हिलाई। "अरे कैसी exercise जहां ताकत दिखानी होती है वहा तो कुछ होता नहीं, डरपोक है एक नंबर का "तभी अंदर से भाई की आवाज सुनी तो में हल्का सा हंस पड़ा। "कहाँ जा रहा है?" माँ ने हर्ष की बात को अनसुना करते हुए कहा, "अवी के घर" जा रहा हूँ, कल प्रोजेक्ट सबमिशन का फाइनल डे है,उसके लिए जा रहा हूं "कहते हुए हर्ष ने जूते पहन रहा था "अरे तुझे चोट लगी है और तू बाहर जा रहा है, श्रेयस हेल्प कर देगा....तू आराम कर बेटा" शिल्पा बोलती हुई कुछ कदम अंदर चली गई " में जा रहा हूं, डिनर टाइम से पहले आ जाऊंगा " हर्ष ने शिल्पा की बात को अनसुना करा और वो घर से निकल गया। "ये लड़का भी ना, क्या करूं इसका..." शिल्पा ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा।



मैं वहीं खड़ा कॉफ़ी पी रहा था और कॉफ़ी पीते हुए अचानक एक बात ज़ेहन मैं आई, लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि उस बात को शुरू करूं तो कैसे?"अपने भाई की बातों का बुरा मत मानना तू तो जानता है ना कि वो बस ऐसे ही बोलता रहता है" मुझे ऐसा सोच में डूबा देखकर माँ को लगा कि मैं भाई की बात का बुरा मान गया'' नहीं माँ ऐसा कुछ नहीं है "मेने हल्की सी मुस्कान लाते हुए कहा "तू कुछ कहना चाहता है?"

"हां...पर पहले आप बैठो" मेने मां को पकड़ के सोफे पर बिठाया, अपना कॉफी का मग वहीं टेबल पर रखा और अपना सर उनकी गोदी में रख के सोफ़े पर लेट गया"हां बोल क्या कहना चाहता है?" माँ ने मेरे बालों को सहलाते हुए कहा। "समझ नहीं आ रहा कैसे कहूं...." मैंने अपनी दुविधा जाहिर करते हुए कहा "बिना किसी डर के तू कुछ भी पूछ सकता है श्रेयस, तू जानता है ना की मैं तेरी किसी भी बात का बुरा नहीं मानती"मां ने बेहद प्यार से अपनी बात कही।"मां क्या भाई को बचपन से पता था की में.......मतलब...की में उनका सगा भाई नहीं हूं।'' मैंने अपनी बात अटकते हुए कहीं क्यों कि मैं नहीं चाहता था कि मां को मेरी किसी भी बात का बुरा लगे।मेरी बात सुनते ही माँ ने मेरी आँखों में देखा और एक गहरी सांस छोड़ने के बाद कहा "नहीं" माँ का ये शब्द सुनते ही जान की जिज्ञासा और बढ़ गई "तो फिर कब उन्हे पत्ता चला?" मेने अपना अगला सवाल किया। मेरी बात सुन के माँ ने कुछ देर मेरी आँखों में देखा वो जान चुकी थी कि एक ना एक दिन तो इस बात के बारे में मुझे पता चलना ही है इसलिए उन्हें आगे कहना शुरू किया। "सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था, तुम दोनों के बीच छोटा मोटा झगड़ा चलता था जो कि हर भाई के बीच में होता है लेकिन दोनों एक दूसरे से प्यार भी उतना ही करते थे, खासकर तू, लेकिन उस एक रात ने हर्ष के दिल में उस कड़वाहट को जन्म दिया जो मैं कभी नहीं चाहती थी,उस रात वो बात पता चल गई जो मैं अपने साथ दफ़न कर देना चाहती थी " माँ ने एक ही सांस में इतना कहा और फिर कुछ पल मेरी तरफ देखने लगी।मैं बैठकर जिज्ञासा से उनकी ओर देख रहा था क्योंकि आज मुझे मेरे अतीत में हुई उस घटना के बारे में पता चलने वाला था, जिसने मेरे साथ सभी की जिंदगी में बदलाव कर दिये थे।


To be continued......