LOVE VS FAITH in Hindi Love Stories by ANKIT YADAV books and stories PDF | श्रद्धा vs प्रेम

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श्रद्धा vs प्रेम

श्रद्धा क्या है ? प्रेम क्या है ? क्या इन दोनो मे कोई समानता है या फिर ये दोनों एक - दुसरे से परस्पर भिन्न है ?
सामान्य जीवन की चर्चा करें, तो प्रेम दो चीजों का मिश्रण है - आकर्षक और परिचय । केवल आकर्षण भर होना भी प्रेम नही है, दरअसल केवल आकर्षण एक लोभ है और वह लोभ है किसी व्यक्ति के शरीर का देह का । मुझे किसी व्यक्ति से आकर्षण है, जैसे : - रोड पर जाते हुए कोई मुझे बहुत अच्छा लगा और उसके जाने के पश्चात भी मुझे उसकी लगातार याद आ रही है, तो भी यह प्रेम नहीं है अपितु यह देह/शरीर के प्रति लोभ मात्र है ।
केवल परिचय होना भी प्रेम की कसौटी नहीं है। जैसे मैं किसी भी नायिका का ले जैसे कैटरीना कैफ या किसी सामान्य व्यक्ति को ले , मैं उनको जानता हूं उसका नाम पता मुझे ज्ञात है उसका कॉलेज पता है सब पता है पर मेरा यदि उसमें आकर्षण नहीं है, तो भी ये प्रेम नहीं है।
दरअसल प्रेम होता है परिचय और आकर्षण के मिलन से। यदि आपको किसी व्यक्ति से आकर्षण गहरा परिचय दोनों है, तो ये प्रेम की स्थिति है। परिचय का संबंध यहां केवल उस व्यक्ति की सूचनाओं से नहीं है, बल्कि उसकी भावनाओं की, रुचियों की जानकारी होने से है, समस्या यह है कि आजकल के प्रेम आकर्षण मंत्र रह गए हैं, उनमें वह परिचय नहीं है और इसी वजह से प्रेम विवाह, रिलेशनशिप आदि टूटने की कगार पर बने रहते हैं। यदि शुरुआत में आकर्षण हो और फिर परिचय की प्रक्रिया चले, तो आप इस परिचय की प्रक्रिया में अपने आप समझ जाएंगे कि वह व्यक्ति कितना आपके लिए लायक है और कितना नहीं ?
दूसरी बात यह है कि प्रेम का निश्चित कोई कारण नहीं होता है कि प्रेम इसी व्यक्ति से क्यों हुआ, बस प्रेम हो गया तो वह हो जाता है । प्रेम विज्ञान के नियमों से नहीं बांदा की उसमें कारण, कार्य नियम तलाशे जाएं, वह तो दो ह्दयो का मिलन मात्र है। प्रेम की प्रक्रिया में सही क्रम है कि यह कर्म से व्यक्ति की तरफ जाए परंतु यह व्यक्ति से कर्म आजकल चलती है, अर्थात अगर परिचय के दौरान आपको उसे व्यक्ति के कर्मों की जानकारी हो, तो पर्याप्त संभावनाएं की आपका उसके पति रिस्पांस बदलेगा।
प्रेम में केवल दो पक्ष होते हैं - प्रेमी और प्रेमिका । प्रेम एक संकीर्ण भाव है अर्थात वह इतना व्यापक नहीं कि उसने समाज भी सम सके । प्रेम में व्यक्तियों को केवल एक दूसरे के प्रति और आसक्ति का भाव बना रहता है, सामाजिक संदर्भों में उनकी रुचि नहीं रहती ।
जब प्रेम गहरा होता है तो उसमें अधिकार की इच्छा पैदा होने लगती है, जैसे - युवक और युवतियों का एक-दूसरे का फोन चेक करना, उनकी ये की करना जैसी बातें शामिल है। इस अधिकार सुख का अपना मजा है, अगर यह अधिकार सीमित मात्रा में हो और प्रेमी प्रेमिका दोनों पक्षों में हो तो इससे प्रेम अत्यंत गहरा होता है। परंतु जब यह अधिकार सुख दूसरे व्यक्ति की निजी जिंदगी में बहुत ज्यादा दखल देने लगे तो यह घातक हो जाता है ।
अंतिम बात के रूप में कहे तो प्राय: प्रेम एक व्यक्तिगत भाव है यानी ये दो व्यक्तियों तक सीमित रहता है। आजकल वर्तमान में कुछ अजीब से रुझान दिखाई पड़ते हैं इसमें लड़के अफसर अपनी प्रेमिका/ gf/ नायिका को हर जगह बताते फिरते हैं - यह एक तरह का नशा आजकल है । युवतियों भी प्राय : ऐसा करती है क्योंकि ऐसा करने से वह अपने bf/नायक/ प्रेमी के प्रति निश्चित महसूस करती है परंतु प्रेम जो गहरा प्रेम होता है वह व्यक्तिगत होता है, उसको समाज की स्वीकार्यता की चिंता नहीं रहती अपितु वह उन दो व्यक्तियों के स्वीकार्य मात्र से ही चलता रहता है।
श्रद्धा की अब थोड़ी सी बात कर लेते हैं श्रद्धा का अर्थ किसी के प्रति गहरी निष्ठा और आदर करने से है। जैसे महात्मा गांधी के प्रति हम सबको जो है वह श्रद्धा है । श्रद्धा के प्रति एक निश्चित कारण होता है, वह प्रेम की तरह बिना कारण के नहीं होता, जैसे महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धा के हमारे निश्चित कारण है कि उन्होंने भारत की स्वाधीनता में एक अत्यंत अतुलनीय प्रतिभा का प्रदर्शन किया ।
श्रद्धा की प्रक्रिया कर्म से व्यक्ति की है अर्थात पहले हम किसी व्यक्ति के कर्म देखते हैं, उसके पश्चात उससे श्रद्धा का भाव जागता है। फिर श्रद्धा एक विस्तृत मनोभाव है, हम आपको शेयर कर सकते हैं जैसे कि हम गांधी जयंती को करते भी हैं। श्रद्धा में परिचय होना भी आवश्यक नहीं, जैसे महात्मा गांधी का परिचय हमें ना भी हो, तब भी उनके गुण उनके प्रति श्रद्धा होने के लिए पर्याप्त हैं। अंतिम बात यह है कि श्रद्धा में अधिकार नहीं होता जैसे हमारी श्रद्धा महात्मा गांधी के प्रति है तो हमारा कोई अधिकार उनके ऊपर नहीं बनता ।
पूरे बात को सार रूप में कहे तो प्रेम और श्रद्धा एक सिक्के के दो पहलू ही अपितु दो सिक्कों के अलग-अलग पहलू हैं। वह दोनों कई बिंदुओं पर आपस में जुड़ते हैं पर उनमें परस्पर अंतर बना रहता है।