भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश स्थापना से अनंत चतुर्दशी को गणेश विसर्जन के साथ पूजा का समापन होता है l
यह पूजा 10 दिनों तक क्यों चलती है ?
इस पूजा का 10 दिनों तक चलने का मुख्य कारण है कि इन्हीं 10 दिनों में भगवान श्री गणेश ने महाभारत ग्रंथ की रचना की थी l इन 10 दिनों तक गणेश जी एक ही मुद्रा में बैठकर महाभारत को लिपिबद्ध करते रहे, इस कारण यह उत्सव 10 दिनों तक मनाया जाता है l
गणेश विसर्जन के पीछे महर्षि वेदव्यास से जुड़ी एक बेहद प्रसिद्ध पौराणिक कथा है l
महाभारत जैसे बड़े ग्रंथ को लिखना आसान काम नहीं था इसलिए महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए भगवान गणेश का आह्नान कर उनसे महाभारत को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की तो भगवान ने इसे स्वीकार कर लिया l लेकिन प्रार्थना को स्वीकार करने के बाद गणेश जी ने महर्षि वेदव्यास के सामने एक शर्त रखी 'कि प्रण लो 'मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो लिखना बंद कर दूंगा' l तब वेदव्यासजी ने कहा कि भगवन आप देवताओं में अग्रणी हैं, विद्या और बुद्धि के दाता हैं और मैं एक साधारण ऋषि हूं l यदि किसी श्लोक में मुझसे त्रुटि हो जाए तो आप उस श्लोक को ठीक कर उसे लिपिबद्ध करें l
इस तरह गणपति जी ने सहमति देते हुए महाभारत की रचना शुरु कर दी l
दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ, इतनी मेहनत से महाभारत की रचना कर रहे थे तो गणेश जी को इस कारण थकान होनी ही थी, इस महाग्रंथ की रचना करते समय उन्हें पानी पीना भी वर्जित था l
महाभारत की रचना करते समय धीरे धीरे गणपति जी के शरीर का तापमान बढ़ने इस ताप को कम करने के लिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की l मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पार्थिव गणेश भी पड़ा l
महाभारत को लिपिबद्ध करते और तेज गति से लिखते समय उनके क़लम की निब टूट गयी तो उन्होंने लेखन को न रोकते हुए अपना एक दांत तोड़कर स्याही में डुबोकर बिना रुके लिखने लग गए जिस कारण उन्हें एकदंत के नाम से भी जाना जाता है l
10 दिनों तक चलने वाला महाभारत का लेखन कार्य जब अनंत चतुर्दशी को संपन्न हुआ तो महर्षि वेदव्यास ने देखा कि गणपति जी का शारीरिक तापमान बहुत बढ़ा हुआ है l जो मिट्टी का लेप लगाया था जिससे उनका तापमान ना बढ़े वो भी सूखकर झड़ने लगा था, तो इसे देखते हुए वेदव्यास जी ने भगवान श्री गणेश जी को उनके लेखन कार्य समाप्त होने पर अनंत चतुर्दशी के दिन पानी में डाल दिया ताकि उनके शरीर का ताप कम हो सके l
इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए l इसलिए गणेश चतुर्थी पर गणेशजी को स्थापित किया जाता है और 10 दिन मन, वचन, कर्म और भक्ति भाव से उनकी पूजा करके अलग-अलग व्यंजनों का भोग लगाकर अनंत चतुर्दशी को खूब धूमधाम, रंग गुलाल और नाच गानों के साथ उनका विसर्जन किया जाता है l
कहते हैं आपके चाहने पर बप्पा आपके घर नहीं आते lआपकी किस्मत के तारे जब चमकने वाले होते हैं तो वो खुशखबरियों के साथ आपके घर में प्रवेश करते हैं और जाते-जाते आपके सारे काम समपन्न करके वापस अपने लोक में लौट जाते हैं l
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