Pauranik Kathaye - 21 in Hindi Mythological Stories by Devaki Ďěvjěěţ Singh books and stories PDF | पौराणिक कथाये - 21 - रक्षाबंधन की पौराणिक कथा

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पौराणिक कथाये - 21 - रक्षाबंधन की पौराणिक कथा

रक्षा बंधन का पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है l यह पर्व भाई -बहन के रिश्तों की अटूट डोर का प्रतीक है l

रक्षाबंधन भारतीय परम्पराओं का यह एक ऎसा पर्व है, जो केवल भाई बहन के स्नेह के साथ साथ हर सामाजिक संबन्ध को मजबूत करता है l इस लिये यह पर्व भाई-बहन को आपस में जोडने के साथ साथ सांस्कृतिक, सामाजिक महत्व भी रखता है l

रक्षाबंधन का अर्थ
रक्षा करने और करवाने के लिए बांधा जाने वाला पवित्र धागा रक्षा बंधन कहलाता है l रक्षा बंधन के महत्व को समझने के लिये सबसे पहले इसके अर्थ को समझना होगा ,“रक्षाबंधन ” रक्षा बंधन दो शब्दों से मिलकर बना है l अर्थात एक ऎसा बंधन जो रक्षा का वचन लें l इस दिन भाई अपनी बहन को उसकी दायित्वों का वचन अपने ऊपर लेते है l

🏵राखी बांधते समय बोले जाने वाला मंत्र 🏵
सनातन धर्म में अनेक रीति-रिवाज तथा मान्यताएं हैं जिनका सिर्फ धार्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक पक्ष भी है जो वर्तमान समय में भी एकदम सटीक है। मौली को रक्षा कवच के रूप में भी शरीर पर बांधा जाता है। मौली को संकल्प, रक्षा एवं विश्वास का प्रतीक माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार मौली बाँधने से त्रिदेव -ब्रह्मा,विष्णु व महेश एवं त्रिदेवियां - लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की असीम कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्माजी की कृपा से कीर्ति विष्णुजी की अनुकंपा से रक्षाबल मिलता है और भगवान शिव दुर्गुणों का विनाश करते हैं। आज भी लोग कलावा या राखी बांधते वक्त इस मंत्र का उच्चारण करते हैं -

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

शरीर विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो कलावा बाँधने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है। त्रिदोष -वात, पित्त तथा कफ का शरीर में संतुलन बना रहता है l




रक्षा बंधन की पौराणिक कथाएं

1>कथा 🏵जब राजा बलि को माता लक्ष्मी ने बांधी राखी 🏵
राजा बली बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त भी थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आए और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं। तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। इस पर बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है।

2 > कथा 🏵जब श्रीकृष्ण को द्रौपदी ने बांधी थी राखी🏵 पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब शिशुपाल का वध श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से किया था तब उनकी उंगली में चोट लग गई थी। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर बांध दी थी। यह देखकर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि वो उनकी साड़ी की कीमत जरूर अदा करेंगे। फिर जब महाभारत में द्युतक्रीड़ा के दौरान युद्धिष्ठिर द्रौपदी को हार गए थे। तब दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रौपदी को जीता था। दुशासन, द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया था। यहां द्रौपदी का चीरहरण किया गया। सभी को मौन देख द्रौपदी ने वासुदेव श्रीकृष्ण का आव्हान किया। उन्होंने कहा, ''हे गोविंद! आज आस्था और अनास्था के बीच युद्ध है। मुझे देखना है कि क्या सही में ईश्वर है।'' उनकी लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने चमत्कार किया। वो द्रौपदी की साड़ी को तब तक लंबा करते गए जब तक दुशासन थक कर बेहोश नहीं हो गया। इस तरह श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की राखी की लाज रखी।

3> कथा 🏵जब इंद्राणी ने अपने पति को बांधा था रक्षासूत्र🏵
मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में वृत्रासुर नाम का एक असुर हुआ करता था, जिसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। इसे वरदान मिला था कि इस पर इस समय तक के बने हुए किसी भी अस्त्र-शस्त्र के प्रहार का असर नहीं होगा। महर्षि दधिचि ने देवताओं को जीत दिलाने के लिए अपना शरीर त्याग किया और उनकी हड्डियों से अस्त्र-शस्त्र बनाए गए। साथ ही वज्र नाम का एक अस्त्र भी बनाया गया जिसे इंद्र को दिया गया। इस अस्त्र को लेकर युद्ध में जाने से पहले वो अपने गुरु बृहस्पति के गए और कहा कि यह आखिरी युद्ध है। अगर वो जीत नहीं पाए तो वीरगति को प्राप्त हो जाएंगे। यह सुनकर पत्नी शचि अपने पति को एक रक्षासूत्र बांधा जो उनके तपोबल से अभिमंत्रित था। यह रक्षासूत्र जिस दिन बांधा गया था उस दिन श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि थी। युद्ध के दौरान इंद्र ने वृत्रासुर का वध कर दिया और स्वर्ग पर फिर से अधिकार स्थापित कर लिया।