श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर नाग पंचमी का त्योहार मनाया जा रहा है। पौराणिक काल से नाग पंचमी के तिथि पर नागदेव की पूजा की जाती है क्योंकि पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। नाग पंचमी के दिन विधि-विधान से नागों की पूजा होती है। सावन का महीना चल रहा है और सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा आराधना की जाती है। नाग देवता भगवान शिव की गले की शोभा बढ़ाते हैं।
ऐसे में नाग पंचमी के दिन नागों की उपासना का विधान है। मान्यता है नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने पर कुंडली में मौजूद कालसर्प और राहु दोष दूर हो जाता है। इसके अलावा जीवन के सभी पाप भी नष्ट हो जाते हैं। नाग पंचमी के अवसर पर भगवान शिव के साथ नाग देवता की पूजा करने पर सभी तरह के सुख की प्राप्ति की जा सकती है।
नाग पंचमी का महत्व
- पौराणिक काल से ही सांपों को देवता के रूप में पूजा जाता है। इस कारण से नाग पंचमी के दिन नागदेवता की पूजा का महत्व काफी है।
- ऐसी मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने पर व्यक्ति को सांप के डसने का भय समाप्त हो जाता है।
- नाग पंचमी क दिन नागदेवता की पूजा और दूध पिलाने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
- नाग देवता भगवान शिव की गले की शोभा बढ़ाते हैं। भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हैं।
नाग पंचमी शुरू होने की पौराणिक कथा
नाग पंचमी मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है. इनमें से तीन खास कथाएं बता रहे हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार जनमेजय अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र थे। जब जनमेजय ने पिता की मृत्यु का कारण सर्पदंश जाना तो उसने बदला लेने के लिए सर्पसत्र नामक यज्ञ का आयोजन किया। नागों की रक्षा के लिए यज्ञ को ऋषि आस्तिक मुनि ने श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन रोक दिया और नागों की रक्षा की। इस कारण तक्षक नाग के बचने से नागों का वंश बच गया। आग के ताप से नाग को बचाने के लिए ऋषि ने उनपर कच्चा दूध डाल दिया था। तभी से नागपंचमी मनाई जाने लगी। वहीं नाग देवता को दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ था तब किसी को भी रस्सी नहीं मिल रही थी। इस समय वासुकि नाग को रस्सी की तरह इस्तेमाल किया गया था। जहां देवताओं ने वासुकी नाग की पूंछ पकड़ी थी वहीं, दानवों ने उनका मुंह पकड़ा था। मंथन में पहले विष निकला था जिसे शिव भगवान में अपने कंठ में धारण किया था और समस्त लोकों की रक्षा की थी। वहीं, मंथन से जब अमृत निकला तो देवताओं ने इसे पीकर अमरत्व को प्राप्त किया। इसके बाद से ही इस तिथि को नाग पंचमी के पर्व के तौर पर मनाया जाता है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन के लोगों की जानक नाग को हराकर बचाई थी। श्री कृष्ण भगवान ने सांप के फन पर नृत्य किया था। जिसके बाद वो नथैया कहलाए थे। तब से ही नागों की पूजा की परंपरा चली आ रही है।
नाग पंचमी के दिन जिन नाग देवों का स्मरण कर पूजा की जाती है। उन नामों में अनंत, वासुकी, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट, शंख, कालिया और पिंगल प्रमुख हैं। इस दिन घर के दरवाजे पर सांप की 8 आकृतियां बनाने की परंपरा है। हल्दी, रोली, अक्षत और पुष्प चढ़ाकर सर्प देवता की पूजा करें। कच्छे दूध में घी और शक्कर मिलाकर नाग देव का स्मरण कर उन्हें अर्पित करें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नाग पंचमी का लाभ व्रती को तभी प्राप्त होता है जब वह नाग पंचमी की व्रत कथा को पढ़ता या सुनता है। नाग पंचमी की व्रत कथा इस प्रकार है -
एक बार किसी गांव में एक किसान रहता था। किसान के एक बेटी और दो बेटे थे। किसान बहुत मेहनती था। अपने परिवार को पालन पोषण के लिए वो खुद हल चलाता था। एक दिन हल जोतते हुए किसान ने गलती से एक नागिन के अंडों को कुचल दिया और सभी अंडे नष्ट हो गए। नागिन खेत में नहीं थी। जब वह लौटी तो बहुत गुस्सा हुई और उसने बदला लेने की ठानी ली। नागिन ने कुछ ही समय बाद किसान के बेटों को डस लिया, जिससे दोनों की मौत हो गई।
नागिन किसान की बेटी को भी डसना चाहती थी। लेकिन वो घर पर नहीं थी। अगले दिन नागिन फिर किसान के घर आई तो देखकर बहुत हैरान हुई, क्योंकि किसान की बेटी ने नागिन के सामने एक कटोरी में दूध रख दिया और नागिन से माफी मांगने लगी। किसान की बेटी के इस रवैये से नागिन बहुत खुश हुई और नागिन ने दोनों भाइयों को जीवित कर दिया। यह घटना श्रावण शुक्ल की पंचमी को हुई थी, यही कारण है कि इस दिन नागों की पूजा की जाती है।
एक दूसरी कथा के मुताबिक
एक राजा की रानी गर्भवती थी। उसने राजा से जंगल से फल लाने की इच्छा व्यक्त की।
राजा वन से करैली तोड़ने लगा। तभी वहां नाग देवता आ गए और कहा कि तुमने मेरी आज्ञा की बिना करैली क्यों तोड़ी? राजा ने क्षमा मांगी लेकिन नाग देवता ने एक न सुनी। राजा ने नाग देवता से कहा कि मैंने रानी को वचन दिया है, इसलिए वो करैली को घर ले जाना चाहते हैं। नागदेवता ने कहा ठीक है ले जाओ लेकिन इसके बदले में तुम्हें अपनी पहली संतान मुझे देनी पड़ेगी। राजा को कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करे। राजा ने वचन दे दिया और घर आ गया।
घर आकर राजा ने रानी को सारी बात बताई। रानी ने एक बेटे और एक बेटी को जन्म दिया। कुछ ही दिनों में नाग राजा के घर संतान लेने पहुंचा। राजा ने कहा कि पहली संतान लड़की हुई थी, लड़की के मुंडन के बाद आना, तभी दूंगा। राजा की बात मानकार नाग वहां से चला गया। नाग फिर आया, राजा ने नाग को कहा कि शादी के बाद आना। लेकिन नाग ने सोचा की शादी के बाद तो पिता का पुत्री पर कोई अधिकार ही नहीं रहता। इसलिए नाग ने लड़की को उठा ले जाने की योजना बनाई।
एक दिन नाग राजा की बेटी को उठाकर ले गया और राजा को बता दिया। राजा ने जैसे ही बेटी को ले जाने की बात सुनी तो राजा की उसी समय मौत हो गई। राजा की मौत की खबर सुनकर रानी भी मर गई। अब घर में राजा का लड़का अकेला रह गया। राजा के बेटे को उसके रिश्तेदारों ने लूट लिया और भिखारी बना लिया। राजा का बेटा भीख मांगने लगा। एक दिन भीख मांगते हुए राजा का लड़का नाग के घर पहुंचा तो उसकी बहन ने उसे पहचान लिया और फिर दोनों भाई-बहन प्रेम पूर्वक रहने लगे। तभी से यह त्योहार मनाया जाता है।
हमारे पुराणों में नागपंचमी की कई कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से कुछ का वर्णन किया है।
🐍🐍🙏🙏आप सभी को नागपंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🐍🐍