Pauranik Kathaye - 16 in Hindi Mythological Stories by Devaki Ďěvjěěţ Singh books and stories PDF | पौराणिक कथाये - 16 - सावन व्रत कथा

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पौराणिक कथाये - 16 - सावन व्रत कथा

सावन के पवित्र महीने में सोमवारी का व्रत रखना भक्तों के लिए अत्यंत कल्याणकारी माना गया है। कहा जाता है कि भगवान शिव का जो भक्त सच्चे मन से इस महीने में उनकी पूजा-आराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सोमवारी व्रत पुरुष और महिला, दोनों के लिए रखना मंगलमय माना गया है

मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त सावन‌ सोमवारी का व्रत रखता है तथा भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा करता है उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और‌ सुखी वैवाहिक जीवन के लिए शादीशुदा महिलाएं यह व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि, कुंवारी कन्याओं के लिए भी यह व्रत रखना लाभदायक होता है। जो कन्या यह व्रत रखती है उसे योग्य वर‌ की प्राप्ति होती है।

सावन के पहले सोमवार में व्रत रखने के लिए सुबह स्नान करके मंदिर जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करें। इस दौरान भगवान शिव को बेलपत्र धतूरा, भांग, चंदन, पुष्प आदि समर्पित करें। इसके बाद घर में जाकर भगवान शिव व मां पार्वती की विधि विधान से पूजा करें। पूजा करने के दौरान सबसे पहले भगवान गणेश की आरती करें। उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें। इसके बाद भगवान शिव को रोली, अक्षत, पुष्प, धूप व दीपक अर्पित करें। इसके बाद सावन सोमवार के व्रत की कथा पढ़ें व भगवान शिव का मंत्र का जाप करें।


सावन सोमवार के मंत्र




पूजा आरंभ करने से पहले भोले
नाथ को प्रसन्न करने का मंत्र-
नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।
ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिमहिर्बम्हणोधपतिर्बम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।।

भगवान शिव का मूल मंत्र-
ॐ नमः शिवाय

शिवजी को प्रिय मंत्र
ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।
नमो नीलकण्ठाय।
ॐ पार्वतीपतये नमः।
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।


महामृत्युंजय मंत्र-
ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

रुद्र गायत्री मंत्र-
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥


सावन सोमवार व्रत कथा





पौराणिक कथा के अनुसार एक बार किसी शहर में एक साहूकार था जिसके घर में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी। केवल वह और उसकी पत्नी इस बात से दुखी थे कि उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति की इच्छा से वह हर सोमवार को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा किया करते थे। साहूकार की पूजा से खुश होकर माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान देने का आग्रह किया, परंतु भोलेनाथ ने कहा कि इनकी भाग्य में संतान सुख नहीं है।लेकिन माता पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर भगवान शिव वरदान देने को तैयार तो हो गए परंतु उन्होंने कहा कि इनके जो भी संतान होगी वह अल्पायु होगी। भोलेनाथ के वरदान से साहूकार के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। साहूकार को पता था कि उसका पुत्र अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगा।

जब साहूकार का पुत्र 11 वर्ष का हो गया तो उसने उसके मामा के साथ शिक्षा प्राप्ति के लिए काशी भेज दिया। साथ ही जाने से पहले अपने पुत्र से कहा कि रास्ते में वह जहां भी रुके वहां ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दे और यज्ञ करे।साहूकार का पुत्र और मामा जब रास्ते में जा रहे थे तो एक नगर के राजा के बेटी की शादी होने वाली थी परंतु जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह काना था और राजा को इस बात का पता नहीं था। तब राजकुमार के पिता ने इस बात का फायदा उठाते हुए अपने काने बेटे की जगह साहूकार के बेटे को दूल्हा बना कर बैठा दिया और उसी से राजकुमारी का विवाह हो गया। परंतु काशी से निकलने का समय आया था साहूकार के पुत्र ने राजकुमारी के दुपट्टे पर सच्चाई लिख दी कि तुम्हारा विवाह तो मुझसे हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम ससुराल जाओगी वह काना है। राजकुमारी ने यह बात जानकर काने राजकुमार से अपना विवाह तोड़ दिया।

इसके बाद जब साहूकार का बेटा और मामा काशी पहुंच गए तो वह 16 साल का हो चुका था। 16 साल का होते ही उसकी तबीयत बिगड़ने लगी तथा कुछ दिनों बाद मृत्यु भी हो गई। इस बात से दुखी हुआ मामा रोने लगा। उसी दौरान भगवान शिव और माता पार्वती वहां से गुजर रहे थे। तब शिवजी ने मृतक बच्चे को देखकर कहा कि यह तो उसी साहूकार का बेटा है। यह सुनकर माता पार्वती बहुत निराश हो गईं।तब वह दोबारा हठ लेकर बैठ गईं कि शिवजी साहूकार के बेटे को पुनः जीवित कर दें। देवी पार्वती के बार-बार ऐसा कहने पर शिवजी ने व्यापारी के पुत्र को दोबारा जिंदा कर दिया। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद जब वह मामा के साथ दोबारा अपने शहर जा रहा था तो रास्ते में उसी जगह रुका जहां पर उसका विवाह राजकुमारी से कर दिया गया था।

तब राजा ने साहूकार के पुत्र को पहचानकर और खूब सारा धन देकर अपनी राजकुमारी के साथ उसे विदा कर दिया। जब साहूकार को यह बात पता चली तो वह खुशी से फूला नहीं समाया। उसी रात साहूकार के सपने में भगवान शिव आकर बोले कि, मैंने तुम्हारे सोमवार व्रत करने और व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर ही यह फल दिया है और तुम्हारी बेटे को दीर्घायु प्रदान की है। इस प्रकार मान्यता है कि सावन सोमवार के दिन इस व्रत कथा को सुनने अथवा पढ़ने से हर इच्छा पूरी होती है।