🌹जहां राधा वहां कृष्ण 🌹
🌹जहां प्रेम वहां संगीत 🌹
🌹तो जोर से बोलिए !
🌹जय श्री राधे कृष्ण🌹
एक बार श्रीकृष्ण बीमार पड़ गए थे। उन पर किसी भी जड़ी-बूटी और दवा का कोई असर नहीं हुआ। सभी परेशान थे। श्रीकृष्ण जानते हैं थे कि वो किस तरह से ठीक हो सकते हैं। लेकिन वो किसी को बता नहीं रहे थे। पूरा गांव परेशान था ऐसे में उन्होंने सभी गोपियों के दुःख देखकर अपना इलाज गोपियों को बता दिया।
इलाज सुनकर सभी गोपियां दुविधा में पड़ गईं। श्रीकृष्ण ने उन्होंने बताया था कि उन्हें उस गोपी का चरणामृत पिलाया जाए जो उनसे बेहतर प्रेम करती है। यह सुन सभी गोपियां चिंतित हो गईं क्योंकि श्रीकृष्ण सभी के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे। वे सभी उनकी परम भक्त थीं। लेकिन हर कोई इसी डर में था कि कहीं अगर यह उपाय सफल नहीं हुआ तो अनर्थ हो जाएगा और पाप के लिए उन्हें नरक भोगना पड़ेगा।
सभी को दुविधा में देख उनकी प्रिय राधा वहां आ गईं। कृष्ण की ऐसी हालत देख वह बेहद परेशान हो गईं। तब गोपियों ने उन्हें उपाय बताया कि कैसे कृष्ण जी ठीक हो सकते हैं। राधा ने एक क्षण भी गवाएं अपने पांव धोकर चरणामृत लिया और श्रीकृष्ण को पिलाने के लिए आगे बढ़ी।
राधा को पता था कि वो क्या कर रही हैं लेकिन वो नरक में जाने को भी तैयार थीं। जैसे ही श्रीकृष्ण ने चरणामृत पिया वो धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगे। ऐसे में यह सिद्ध हो गया कि राधा के सच्चे प्रेम और निष्ठा से ही कृष्ण जी स्वस्थ हुए हैं।
राधा-कृष्ण का कभी विवाह ना हुआ लेकिन उनका प्यार इतना पवित्र एवं सच्चा था कि आज भी दोनों का नाम एक साथ लेने में भक्त एक क्षण भी संदेह महसूस नहीं करते। उनके भक्तों के लिए कृष्ण केवल राधा के हैं तथा राधा भी कृष्ण की ही हैं।
राधा-कृष्ण की इस कहानी ने चरणामृत को एक ऐतिहासिक पहलू तो दिया ही लेकिन आज भी चरणामृत को प्रभु का प्रसाद मानकर भक्तों में बांटा जाता है। पीतल के बर्तन में पीतल के ही चम्मच से, थोड़ा मीठा सा यह अमृत भक्तों के कंठ को पवित्र बनाता है।
जब भगवान का वामन अवतार हुआ, और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडलु में से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया, वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, ये शक्ति उनके पास कहाँ से आयी? शक्ति है भगवान के चरणों की जिस पर ब्रह्मा जी ने साधारण जल चढाया था पर चरणों का स्पर्श होते ही बन गई गंगा जी।
हमारे धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है।
कहते हैं भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।
चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है। चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते।
इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत औषधी के समान है। यदि उसमें तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधीय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है। तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि,स्मरण शक्ति को बढ़ाता है। कहते हैं सीधे हाथ में तुलसी चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ काम का जल्द परिणाम मिलता है।
इसीलिए चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेना चाहिये, लेकिन चरणामृत लेने के बाद अधिकतर लोगों की आदत होती है कि वे अपना हाथ सिर पर फेरते हैं।
दरअसल शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ रखना अच्छा नहीं माना जाता है।कहते हैं इससे विचारों में सकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती है। इसीलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ नहीं फेरना चाहिए।