Pauranik Kathaye - 14 in Hindi Mythological Stories by Devaki Ďěvjěěţ Singh books and stories PDF | पौराणिक कथाये - 14 - भगवान परशुराम जयंती उनसे जुड़े तथ्य

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पौराणिक कथाये - 14 - भगवान परशुराम जयंती उनसे जुड़े तथ्य

भगवान परशुराम की जयंती पर उनसे जुड़े तथ्य

☀️विष्णु अवतार
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम को विष्णु के दशावतारों में से छठा अवतार माना जाता है। उनके पिता का नाम ऋषि जमदग्नि था। जमदग्नि ने चंद्रवंशी राजा की पुत्री रेणुका से विवाह किया था। उन्होंने पुत्र के लिए एक महान यज्ञ किया था। इस यज्ञ से प्रसन्न होकर इंद्रदेव ने उन्हें तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया और फिर अक्षय तृतीया को परशुराम ने जन्म लिया ।

☀️न्याय के देवता
परशुराम भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। उनका जन्म भगवान श्रीराम के जन्म से पहले हुआ था। मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था। परशुराम जी के जन्म समय को सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। भगवान शिव के परमभक्त परशुराम जी को न्याय का देवता माना जाता है।

☀️गणपति को भी दिया था दंड
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम के क्रोध से स्वयं गणेश जी भी नहीं बच पाये थे। ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार जब परशुराम जी भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे तो भगवान गणेश जी उन्हें शिव से मुलाकात करने के लिए रोक दिया। इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया था। जिसके बाद भगवान गणेश एकदंत कहलाने लगे।

☀️ हर युग में रहे मौजूद
रामायण और महाभारत दो युगों की पहचान हैं। रामायण त्रेतायुग में और महाभारत द्वापर में हुआ था। पुराणों के अनुसार एक युग लाखों वर्षों का होता है। ऐसे में देखें तो भगवान परशुराम ने न सिर्फ श्री राम की लीला बल्कि महाभारत का युद्ध भी देखा।

☀️भगवान कृष्ण को दिया चक्र
रामायण काल में सीता स्वयंवर में धनुष टूटने के पश्चात् परशुराम जी जब क्रोधित हुए और उनका लक्ष्मण से संवाद हुआ तो उसके बाद भगवान श्री राम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र सौंपा था। वही सुदर्शन चक्र परशुराम जी ने द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण को वापस किया।

☀️परशुराम तथा कर्ण की कथा
परशुराम जी ने कर्ण और पितामह भीष्म को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी दी थी। कर्ण ने भगवान परशुराम से झूठ बोलकर शिक्षा ग्रहण की थी।

परशुराम कर्ण के गुरु थे ।एक कथा के अनुसार एक बार परशुराम कर्ण की जंघा पर सो रहे थे की की तभी एक कीड़ा करण के तलवों में काटने लगा। लेकिन अपनी गुरु की नींद ना टूटे इस कारण कर्ण उस पीड़ा को सहता रह और उसके पैरों से खून निकलना शुरू हो गया।
अचानक परशुराम जी नींद से उठते ही समझ जाते हैं कि एक ब्राह्मण पुत्र में इतनी सहनशीलता नहीं हो सकती तथा वह कर्ण को श्राप देते हैं कि जब भी उसे मेरे द्वारा दी गई विद्या की आवश्यकता होगी तब वह उसके काम नहीं आयेगी।


☀️21 बार किया क्षत्रियों का नाश
भगवान परशुराम कभी अकारण क्रोध नहीं करते थे। जब सम्राट सहस्त्रार्जुन का अत्याचार व अनाचार अपनी चरम सीमा लांघ गया तब भगवान परशुराम ने उसे दंडित किया।
भगवान परशुराम को जब अपनी मां से पता चला कि ऋषि-मुनियों के आश्रमों को नष्ट और अकारण उनका वध करने वाला दुष्ट राजा सहस्त्रार्जुन ने उनके आश्रम में आग लगा दी और कामधेनु छीन कर ले गया। तब उन्होंने पृथ्वी को दुष्ट क्षत्रियों से रहित करने का प्रण किया।
इसके पश्चात् उन्होंने सहस्त्रार्जुन की अक्षौहिणी सेना व उसके सौ पुत्रों के साथ ही उसका भी वध कर दिया। भगवान परशुराम ने 21 बार दुष्ट क्षत्रियों का विनाश किया।

☀️परशुराम नाम की कथा
परशुराम जी का नाम बचपन से परशुराम नहीं था उनकी माता ने इनका नाम राम रखा था। लेकिन उनकी पिता की आज्ञा थी कि वह हिमालय पर्वत जाएं और भगवान शिव की साधना करें।
अपनी पिता की आज्ञा मानकर वह हिमालय जाकर भगवान शंकर की साधना करने लगे इस साधना से भगवान शंकर प्रसन्न हुए तथा उन्होंने एक परशु (फरसा) दीया जिसके कारण इनका नाम आगे जाकर परशुराम पड़ा।

☀️परशुराम द्वारा माता का गला काटने की कथा

एक दिन जमदग्नि ने अपनी पत्नी को हवन हेतु गंगा तट से जल लाने को भेजा। परशुराम जी की माता रेणुका जल के लिए गंगा तट जैसे ही पहुंचे वहां यक्ष राक्षस अप्सराओं के साथ जल क्रीड़ा कर रहा था। रेणुका यक्ष राक्षस कौन देखने लगी अर्थात आसक्त हो गई और जल ले जाने में देरी हो गई।

जमदग्नि ने अपनी पत्नी से जल देर में लाने का कारण पूछा पर रेणुका ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर उन्होंने अपनी त्रिकाल दृष्टि से सब कुछ देख लिया और क्रोधित होकर उन्होंने अपने चारो पुत्रो को अपनी माता का वध करने के लिए कहा। परशुराम जी के अलावा कोई भी पुत्र अपनी माता का वध करने को तैयार नहीं हुआ तथा अंतिम में पिता की आज्ञा से परशुराम जी ने अपने फरसे से माता का गला धड़ से अलग कर दीया।

परशुराम जी द्वारा आज्ञा मानने के कारण प्रसन्न होकर जमदग्नि ने पुत्र परशुराम जी को वर मांगने को कहा। परशुराम जी ने अपनी माता को पुनः जीवित करने तथा उनके द्वारा वध किए जाने की स्मृति नष्ट हो जाए और अपने लिए अमरता का वरदान मांग लिया।