Pauranik Kathaye - 7 in Hindi Mythological Stories by Devaki Ďěvjěěţ Singh books and stories PDF | पौराणिक कथाये - 7 - लोहड़ी की पौराणिक कथा

Featured Books
Categories
Share

पौराणिक कथाये - 7 - लोहड़ी की पौराणिक कथा

लोहडी का त्यौहार मकर संक्राती से एक दिन पहले मनाया जाता हैं ।

ये त्यौहार पूरे उत्साह और उमंग के साथ प्रति वर्ष 13 जनवरी को पूरे देश में मनाया जाता रहा है ।

इस त्योहार की ऐसी मान्यता है कि लोहड़ी का त्यौहार नविवाहित जोड़ों और नए जन्मे शिशुओं के लिए खास होता है ।

लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था । लोहड़ी का अर्थ होता है लो का अर्थ लकड़ी, ओ का अर्थ उपले और ड़ी का अर्थ रेवड़ी से है । यानि तीनों शब्द के अर्थों को मिला कर लोहड़ी शब्द बना है ।

ऐसा माना जाता है कि लोहडी के दिन से ही सर्दी कम होने लगती हैं ।

लोहड़ी की पौराणिक कथा

लोहड़ी का संबंध सुंदरी नामक एक कन्या तथा दुल्ला भट्टी नामक एक योद्धा से जोड़ा जाता है। इस संबंध में प्रचलित ऐतिहासिक कथा के अनुसार, गंजीबार क्षेत्र में एक ब्राह्मण रहता था जिसकी सुंदरी नामक एक कन्या थी जो अपने नाम की भांति बहुत सुंदर थी। वह इतनी रूपवान थी कि उसके रूप, यौवन व सौंदर्य की चर्चा गली-गली में होने लगी थी। धीरे-धीरे उसकी सुंदरता के चर्चे उड़ते-उड़ते गंजीबार के राजा तक पहुंचे। राजा उसकी सुंदरता का बखान सुनकर सुंदरी पर मोहित हो गया और उसने सुंदरी को अपने हरम की शोभा बनाने का निश्चय किया।

गंजीबार के राजा ने सुंदरी के पिता को संदेश भेजा कि वह अपनी बेटी को उसके हरम में भेज दे, इसके बदले में उसे धन-दौलत से लाद दिया जाएगा। उसने उस ब्राह्मण को अपनी बेटी को उसके हरम में भेजने के लिए अनेक तरह के प्रलोभन दिए।

राजा का संदेश मिलने पर बेचारा ब्राह्मण घबरा गया। वह अपनी लाडली बेटी को उसके हरम में नहीं भेजना चाहता था। जब उसे कुछ नहीं सूझा तो उसे जंगल में रहने वाले राजपूत योद्धा दुल्ला-भट्टी का ख्याल आया, जो एक कुख्यात डाकू बन चुका था लेकिन गरीबों व शोषितों की मदद करने के कारण लोगों के दिलों में उसके प्रति अपार श्रद्धा थी।

ब्राह्मण उसी रात दुल्ला भट्टी के पास पहुंचा और उसे विस्तार से सारी बात बताई। दुल्ला भट्टी ने ब्राह्मण की व्यथा सुन उसे सांत्वना दी और रात को खुद एक सुयोग्य ब्राह्मण लड़के की खोज में निकल पड़ा। दुल्ला भट्टी ने उसी रात एक योग्य ब्राह्मण लड़के को तलाश कर सुंदरी को अपनी ही बेटी मानकर अग्रि को साक्षी मानते हुए उसका कन्यादान अपने हाथों से किया और ब्राह्मण युवक के साथ सुंदरी का रात में ही विवाह कर दिया। उस समय दुल्ला-भट्टी के पास बेटी सुंदरी को देने के लिए कुछ भी न था। अत: उसने तिल व शक्कर देकर ही ब्राह्मण युवक के हाथ में सुंदरी का हाथ थमाकर सुंदरी को उसकी ससुराल विदा किया।

गंजीबार के राजा को इस बात की सूचना मिली तो वह आग-बबूला हो उठा। उसने उसी समय अपनी सेना को गंजीबार इलाके पर हमला करने तथा दुल्ला भट्टी का खात्मा करने का आदेश दिया। राजा का आदेश मिलते ही सेना दुल्ला भट्टी के ठिकाने की ओर बढ़ी लेकिन दुल्ला-भट्टी और उसके साथियों ने अपनी पूरी ताकत लगा कर राजा की सेना को बुरी तरह धूल चटा दी।

दुल्ला भट्टी के हाथों शाही सेना की करारी शिकस्त होने की खुशी में गंजीबार में लोगों ने अलाव जलाए और दुल्ला-भट्टी की प्रशंसा में गीत गाकर भंगड़ा डाला। कहा जाता है कि तभी से लोहड़ी के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों में सुंदरी और दुल्ला भट्टी को विशेष तौर पर याद किया जाने लगा।

सुंदर मुंदरिए हो
तेरा कौण विचारा हो
दुल्ला भट्टी वाला हो
दुल्ले धी ब्याही हो
सेर शक्कर पाई हो
कुड़ी दे मामे आए हो
मामे चूरी कुट्टी हो
जमींदारा लुट्टी हो
कुड़ी दा लाल दुपट्टा हो
दुल्ले धी ब्याही हो
दुल्ला भट्टी वाला हो
दुल्ला भट्टी वाला हो

लोहड़ी के मौके पर यह गीत आज भी जब वातावरण में गूंजता है तो दुल्ला भट्टी के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा का आभास स्वत: ही हो जाता है।

लोहड़ी की अन्य कथा

पंजाब व जम्मू-कश्मीर में 'लोहड़ी' के नाम से प्रचलित यह पर्व भगवान बाल कृष्ण के द्वारा 'लोहिता' नामक राक्षसी के वध की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन पंजाबी भाई जगह-जगह अलाव जलाकर उसके चहुंओर भांगड़ा नृत्य कर अपनी खुशी जाहिर करते हैं व पांच वस्तुएं तिल, गुड़, मक्का, मूंगफली व गजक से बने प्रसाद की अग्नि में आहुति प्रदान करते हैं। मूँगफली और रेवड़ी का प्रसाद सभी को बांटते हैं l

लोहड़ी की अग्नि में क्यों अर्पित करते हैं तिल

लोहड़ी पर जो अग्नि लगाई जाती है उसमें खास रूप से तिल समर्पित किए जाने की प्रथा है । धार्मिक पुराणों के अनुसार इस दिन अग्नि में तिल अर्पित करने का अपना विशेष महत्व होता है । गरुड़ पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु के शरीर से तिल उत्पन्न हुए हैं, ऐसे में इसका उपयोग धार्मिक क्रिया-कलापों में हमेशा किया जाता है और यही कारण है कि लोहड़ी पर अग्नि में तिल विशेष रूप से डाला जाता है, ताकि अग्नि देव खुश हो जाए और सुख समृद्धि प्रदान करें ।
जबकि, आयुर्वेदिक दृष्टि से देखा जाए तो इस दिन अग्नि में तिल डालने से वातावरण में मौजूद बहुत से संक्रमण मर जाते हैं और बातावरण एकदम साफ हो जाता हैं ।

लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएं

💐💐🙏🙏💐💐