लेखक: प्रफुल शाह
खण्ड 43
गुरुवार 27/01/2000
सूर्यकान्त भांडेपाटील संकेत अपहरण केस में पुलिस की ढीले-ढाले रवैये से त्रस्त हो गया। अपने गुस्से को काबू करने की जगह उसने सीधे खंडाला में प्रेस कॉन्फ्रेन्स लेकर अपने भीतर का गुस्सा बाहर निकालने का पक्का इरादा कर लिया।
प्रेस रिपोर्टरों के लिए एक बड़ी हैरत की बात थी। एक पकी-पकाई स्टोरी हाथ लगने वाली थी। उन्होंने अब तक किसी अपह्रत बच्चे के पिता का रौद्र रूप प्रत्यक्ष रूप में देखा नहीं था। सूर्यकान्त के एक-एक वाक्य के साथ पत्रकारों के बॉलपेन की गति कागज पर तेजी से बढ़ती जा रही थी। अपह्रत बालक के पिता के सुलगते अंगारे जैसी वेदना उनके कागज पर पैने अक्षरों का आकार लेकर उतरती जा रही थी।
“संकेत के अपहरण के बाद पुलिस ने घर का लैंडलाइन फोन टेप करनेकी व्यवस्था क्यों नहीं की?”
“पहली बार जब कोई फिरौती की रकम लेने के लिए नहीं आया तो उसके बाद पुलिस वालों ने तयशुदा जगह पर पहरा देकर किसी को जेल में बंद क्यों नहीं किया?”
“दूसरी बार जब रकम देने के लिए गया तब घरवालों ने पुलिस को सूचना दी थी लेकिन पुलिस दल के निर्धारित जगह पर देरी से पहुंचने का कारण क्या था? उसके बाद मजबूत व्यूह रचना करके गुनाहगार को पकड़ने में पुलिस विभाग विफल क्यों रहा?”
“ पांच मिनट के भीतर ही एक लाख रुपए की रकम कौन उठाकर ले गया? अपहरणकर्ता ने, या वहां पर कोई और उपस्थित था?”
“लाख रुपए उठाकर ले जाना व्यक्ति इतने कम समय में आखिर कितनी दूर भाग कर जा सकता था? पुलिस वालों ने समय रहते ही मेहनत करके गुनाहगार को बेड़ियां क्यों नहीं पहनाईं?”
“अपहरणकर्ता या फिर एक लाख रुपए उठाकर ले जाने वाले को जेल में डालने के लिए पुलिस वालों ने निर्धारित जगह के आसपास के पूरे इलाके को घेरा क्यों नहीं? पक्का बंदोबस्त करने में पुलिस क्यों विफल रही?”
“निर्धारित स्थान पर एक पुलिस वाला मिला था। उससे अच्छी तरह पूछताछ क्यों नहीं की गई?”
“किसी पुलिस वाले ने अपहरणकर्ता या फिर एक लाख रुपए उठा कर ले जाने वाले के साथ सांठगांठ तो नहीं की थी?”
“फिरौती की रकम रखने वाले स्थान पर एक दंपती दिखाई दिया था। उनसे भी ऊपर-ऊपर पूछताछ की गई। उन्हें जल्दी ही छोड़ दिया गया। उनसे ठीक तरह से पूछताछ क्यों नहीं की गई?”
“वह दंपती जिस स्कूटर पर जा रहा था, पुलिस ने उस वाहन का नंबर भी नोट नहीं किया।”
“फिरौती की रकम चुका देने के बाद पुलिस वालों ने वक्त की नजाकत को समझते हुए तुरंत पास के टोलनाके और पुलिस चेकपोस्ट को सतर्क करने में ढिलाई क्यों बरती?”
“टोलनाका और पुलिस चेकपोस्ट पर सूचना देकर संदेहास्पद आरोपी को पकड़ा नहीं जा सकता था क्या? पुलिस वालों ने ये निर्णय तुरंत क्यों नहीं लिया?”
“एक लाख रुपयों की रकम लेकर भागे हुए अपराधी को पुलिस घने जंगल में खोजने के बजाय मेन रोड पर खोजने के लिए क्यों निकली?”
“दूसरा टेलीफोन कॉल कहां से आया था?”
“टेलीफोन कॉल की रेकॉर्डिंग की पुलिस ने पर्याप्त व्यवस्था की थी क्या?”
“सौ बार पूछने के बाद भी पुलिस जहां से फोन कॉल आए थे, उन स्थानों को सार्वजनिक क्यों नहीं कर रही है ?”
“एक लाख रुपयों के नोटों के नंबर पुलिस विभाग को लिखित में सूचित किए गए थे। उस जानकारी का क्या उपयोग किया गया? उसका नतीजा क्या निकला?”
“पुलिस को एक संदेहास्पद व्यक्ति अमजद शेख का नाम बताया गया है उसका पता लगाने के लिए सूर्यकान्त भांडेपाटील परिवार के सदस्य, मित्रगण पुलिस वालों के साथ मिलकर पूरे महाराष्ट्र सहित गुजरात, कर्नाटक और अन्य स्थानों पर लगातार खोज कर रहे हैं लेकिन गुनाहगार को पकड़ने में क्या पुलिस व्यवस्था नाकाबिल साबित हो रही है?”
“सच तो यही है कि सातारा पुलिस विभाग ने संकेत अपहरण मामले की ओर ध्यान ही नहीं दिया।”
“अपहरण और फिरौती के अपराध पर गंभीरतापूर्वक विचार नहीं किया गया। ”
“पुलिस को साई विहार के टेलीफोन कॉल की टेपिंग के लिखित में रजामंदी दे दी गई थी उसके बाद भी नतीजा अब तक शून्य ही क्यों है?”
“’टेलीफोन विभाग और पुलिस विभाग की अंधेरगर्दी पर शासन कठोर कार्रवाई करे।”
“आदरणीय छगन भुजबल जी, अजीतदादा पवार साहब, एसपी सुरेश खोपड़े और अन्य राजनेताओं से सीधे संपर्क करने के बावजूद अपराधी पकड़ में नहीं आ रहा है इसका क्या अर्थ निकाला जाए?”
“पुलिस विभाग के पास पर्याप्त कर्मचारी नहीं? गुनाहगारों को पकड़ने की हिम्मत नहीं?या व्यूह रचना करने की बौद्धिक क्षमता नहीं?”
सूर्यकान्त भांडेपाटील के मुंह से तोप के गोले धड़ाधड़ बाहर निकलते जा रहे थे। उसकी नाराजगी और बेअसर व्यवस्था पर उठाए गए बेधड़क सवाल पत्रकारों के नोटपैड पर तीव्र गति से अंकित होते जा रहे थे। खंडाला की प्रेस कॉन्फ्रेन्स में सूर्यकान्त एंग्रीयंगमैन बनकर जांच व्यवस्था के विरुद्ध आग उगल रहा था बावजूद कथा के मुख्य नायक को पहचानने में विफलता ही हाथ लगी थी। अपराधी पुलिस की पहुंच से बाहर आजाद घूम-फिर रहा था। मजे ले रहा था।
सूर्यकान्त के आक्रोश और गुस्से का धनुष-बाण एक ही निशाने पर टिका हुआ था-सातारा पुलिस।
संकेत अपहरण केस में पुलिस की ओर हुई ढिलाई और पूरी व्यवस्था की बहानेबाजी और टालमटोल को सबके सामने लाकर सूर्यकान्त ने राहत की सांस ली। उसके हिसाब से बातों का बहाव खत्म हो चुका था।
लेकिन क्रोध का ज्वालामुखी सर से पांव तक धधक रहा था। एक पत्रकार ने सूर्यकान्त की दुखती नस पर हाथ रखते हुए एक चतुराई भरा सवाल उसकी ओर फेंका।
“संकेत को वापस लाने के लिए आप स्वयं क्या कर सकते हैं?”
“हम तो कुछ भी करने के लिए तैयार हैं।”
“संकेत को वापस लाने के लिए शासन का मौन विरोध कर सकते हैं?”
“आमरण अनशन कर सकते हैं?”
“संकेत को वापस लाने के लिए कुछ भी कर सकता हूं, अनशन क्या चीज है?”
“आमरण अनशन के बारे में कह रहा हूं साहब...”
“हां. हां। संकेत को वापस लाने के लिए अपनी जान देना पड़े तो भी देने को तैयार हूं।”
“आप अकेले अनशन कर सकते हैं या आपको क्या लगता हैइसमें आपकी पत्नी, मां-पिता, परिवार के सभी लोग आपका साथ देंगे?”
“संकेत को सुरक्षित देखने के लिए हम सभी कुछ भी करने को तैयार हैं।”
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शुक्रवार 28/01/2000
सूर्यदेव पूर्व दिशा की ओर निकल पड़े। सुबह होते ही सातारा जिले के सभी समाचार पत्रों में अपह्रत संकेत और सूर्यकान्त भांडेपाटील की खबर दिखाई दी। आज के समाचार पत्रों में सूर्यकान्त टॉक ऑफ द टाउन था।
“संकेत नहीं मिला तो आमरण अनशन की धमकी।”
“पुलिस विभाग की अकर्मण्यता के विरुद्ध आमरण अनशन का शस्त्र।”
“आमरण अनशन से सोया हुआ पुलिस बल जागेगा?”
समाचार पत्रों में चुभते हुए सवाल पढ़कर शिरवळ में चौंका देने वाली शांति पसर गई। आज सूर्यकान्त शिरवळ का हीरो बन गया था। उसने गजब ढा दिया था। पुलिस को उकसाने का असली साहस दिखाया था। साहस कहें या दुःसाहस?
साई विहार में विष्णु भांडेपाटील, जनाबाईष शामराव, शालन, प्रतिभा, संजय, विवेक, शेखर-सभी को समझ में आ गया था कि अब सामने एक अलग ही मोड़ आने वाला है। सूर्यकान्त ने सोए हुए नाग की पूंछ पर पैर रख दिया है।
शिरवळवासियों को भरोसा था कि पुलिस वाले अब सूर्यकान्त को समझाएंगे। मीठा बोलेंगे। दोस्ताना व्यवहार करेंगे और फिर मीठी छुरी से उसका गला काटेंगे। सांकेतिक धमकी देकर अनशन का निर्णय वापस लेने के लिए बाध्य करेंगे और साथ में जल्द ही संकेत अपहरण मामले का पता लगाने का वादा भी करेंगे।
अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार
©प्रफुल शाह