लेखक: प्रफुल शाह
खण्ड 35
रविवार, 12/12/1999
प्रतिभा सुबह जल्दी जाग गई। सूर्यकान्त तो पहले ही जाग चुका था और तैयार होकर उसे कहीं निकलने की जल्दी थी। प्रतिभा ने उसे देर रात तक कुछ लिखते हुए देखा था। उसने जनाबाई को इस बारे में बताया। जैसा कि हमेशा होता है, जनाबाई ने विष्णु को, विष्णु ने शालन को शालन ने शामराव को बात आगे बढ़ा दी। तो अब जब सूर्यकान्त साई विहार से बाहर निकलने को था, पांच जोड़ी आंखें सूर्यकान्त का पीछा कर रही थीं। वास्तव में वे जानना चाहते थे कि आखिर मामला क्या था। लेकिन सूर्यकान्त किसी को भी इस बारे में कुछ बताने के मूड में नहीं था। उसने बाकी दिनों के मुकाबले कुछ अच्छे कपड़े पहने थे, बालों को ठीक तरह से बनाया और चप्पल पहनने की बजाय जूते-मोजे पहने। प्रतिभा समझ गई कि वह किसी खास व्यक्ति से मिलने जा रहा है। बाइक या जीप न लेकर वह पैदल ही निकला। यह उसके लिए आश्चर्य की बात थी। ‘इतनी अच्छी तरह से तैयार होकर वह पैदल क्यों निकला? यदि उसे गांव में ही किसी से मिलना था तो उसे इस तरह से तैयार होन की क्या आवश्यकता थी?’ शामराव को भी संदेह हो रहा था ’क्या उसने काम पर जाना शुरू कर दिया?’
सूर्यकान्त सड़क पर सुबह 8 बजे पहुंच गया। प्रतीक्षा में जैसे ही उसने अपनी घड़ी की ओर देखा, दूसरी दिशा से एक जीप ठीक उसके पास आकर रुकी। नितिन भारगुड़ेपाटील, उसका दोस्त और तहसील पंचायत समिति का सभापति उस जीप में बैठा था। सूर्यकान्त जीप में बैठा, दोनों ने एकदूसरे का अभिवादन किया और फिर उन्होंने मुख्य विषय पर बात करना शुरु किया।
“हम वहां जा तो रहे हैं पर क्या आज उनसे मुलाकात हो पाएगी?”
“आज शरद पवार का जन्मदिन है। वह पवार के जन्मदिन के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जा रहा है। वैसे तो वह बहुत व्यस्त रहने वाला है, लेकिन मैंने अच्छी तरह से योजना बना ली है। भरोसा तो है कि कोई समस्या खड़ी नहीं होगी।”
“क्या तुमको लगता है कि इस मामले में इससे हमको फायदा होगा?”
“इसमें कोई शंका ही नहीं। तुम खुद देख लेना।”
नितिन भारगुडेपाटील तहसील स्तर का एक सक्रिय और सफल नेता था। उसने पहली रात को सूर्यकान्त को फोन किया था और कार्ययोजना बता दी थी। जीप हाईवे पर दौड़ रही थी, यह उनकी योजना के लागू करने का पहला चरण था।
साई विहार में भी बहुत कुछ चल रहा था। पहले दिन, सूर्यकान्त ने मुंबई से एक महिला भविष्यवक्ता को बुलाया था। बच्चे के गुमशुदा होने की बात सुनकर उसने सलाह दी कि बच्चे को घर वापस लाने के लिए परिवार को सत्यनारायण की पूजा करवानी चाहिए। उसकी सलाह को मानते हुए भांडेपाटील परिवार इसके लिए तैयार हो रहा था। जनाबाई, शालन और कुसुम कथा में लगने वाले सामान की सूची बनाने लग गईं। प्रतिभा भी उत्साहित थी कि इतने दिनों बाद घर में कुछ होने जा रहा है। विष्णु और शामराव इस पूजा के लिए पंडित बुलाने के लिए गांव निकल गए। इस अफता-तफरी में सौरभ पूरी तरह खो गया था। इस दुर्भाग्यजनक घटना के बाद उसके भीतर की बच्चों जैसी हरकतें तो पूरी तरह नष्ट हो चुकी थीं। वह आशाभरी नजरों से दूर कहीं देख रहा था।
सूर्यकान्त ने जैसे ही दूर से श्री मकरंद पाटील की नामपट्टिका देखी, वह सतर्क हो गया। जीप ने 60 किलोमीटर की दूरी तय करके सातारा पहुंचने में करीब सवा घंटा लगाया। श्री पाटील एनसीपी के स्थानीय राजनीतिक गलियारे में एक प्रतिष्ठित नाम था। जैसे ही सूर्यकान्त, नितिन और पाटील मिले, पाटील ने आश्वस्त किया कि सबकुछ अच्छी तरह से जमा लिया गया है और काम हो जाएगा। उन्होंने आधे घंटे में चाय और नाश्ता खत्म किया। अब सभी लोग श्री पाटील की सफारी में सवार हो गए। नई कार, नई दिशा और आशा की एक नई किरण!
प्रतिभा आशान्वित थी। ‘भगवान सत्यनारायण अवश्य ही मुझे आशीर्वाद देंगे। वे एक मां को अब और आंसू नहीं बहाने देंगे।’ उसने सौरभ, पायल और पराग को समझाया। “कल हम सत्यनारायण की पूजा करने वाले हैं। तुम लोगों को चुपचाप बैठकर कहानी सुनना है और कोई शैतानी नहीं करना। कथा के बाद संकेत अवश्य घर वापस आ जाएगा।”
सभी ने अपना सिर हिलाकर सहमति दे दी। छोटी पायल ने धीरे से पूछा, “हम कोई शैतानी नहीं करेंगे, पर क्या हम प्रसाद खा सकते हैं?” उसके मासूमियत से भरे अनुरोध ने प्रतिभा के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी। “हां, तुम सबको प्रसाद मिलेगा, एक बार नहीं दो-दो बार। एक बार तुम्हाके लिए और दूसरी बार संकेत के लिए।”
सौरभ नाराज हो गया। वह खड़ा हो गया और बोला,“मैं संकेत के साथ प्रसाद खाऊंगा।” प्रतिभा को उसकी जिद अच्छी लगी। “ठीक है, तुम संकेत के साथ प्रसाद खाना। वह जरूर वापस आएगा।”
“एक बार हम दादा से मिल भर लें, संकेत जरूर वापस आएगा। आप उनके काम करने का तरीका देखना।” श्री पाटील ने आश्वासन दिया। सातारा के राजनीतिक आकाश में, वह एक उभरता हुआ सितारा था। उनकी सफारी हाईवे पर दौड़ती जा रही थी। उसने 50 किलोमीटर का रास्ता एक घंटे में पूरा कर लिया। उनके इस आश्वासन के बाद, सूर्यकान्त के भीतर नई आशा जगी और नया हौसला भी।
अंततः, वे कराड पहुंच गए। श्री पाटील ने अपने ड्राइवर से कहा, “रेस्ट हाउस माहित आहे न?”(रेस्ट हाउस कहां है, तुम्हें मालूम है न?)
ड्राइवर ने हां कहा और गाड़ी चलाते रहा। जल्दी ही वे रेस्ट हाउस पहुंच गए। सूर्यकान्त, नितिन और श्री पाटील सफारी से नीचे उतरे। श्री पाटील ने थोड़ा तेजी से चलते हुए प्रवेश द्वार पर इंतजार कर रहे किसी व्यक्ति से कुछ कहा। वह लौट कर आए और अपने साथियों को रेस्ट हाउस के एक कमरे में ले गए। उन्हें चाय-पानी दिया गया।
रेस्ट हाउस के बरामदे में बहुत सारे लोग इकट्ठा थे। हर कोई आशापूर्वक कमरे की ओर देख रहा था। किसी ने कहा, “दादा नागपुर के लिए किसी भी समय निकल सकते हैं।”
सूर्यकान्त ने नितिन से पूछा, “हम इतनी दूर चलकर आए हैं और दादा नागपुर निकल जाएंगे?”
श्री पाटील ने अपना हाथ सूर्यकान्त के कंधे पर रखा। “विधान सभा का शीत सत्र कल से प्रारंभ होने वाला है। इसलिए दादा नागपुर जाएंगे लेकिन हमसे बिना मिले नहीं जाएंगे।”
वह खड़े हुए और सूर्यकान्त से अपने साथ लाए आवेदन को उन्हें देने के लिए कहा। वह आवेदन उन्होंने किसी और को सौप दिया, उससे कुछ कहा और कमरे के भीतर चले गए। यह सब देखकर नितिन ने सूर्यकान्त को इशारा किया कि अब उन्हें किसी भी वक्त बुलाया जा सकता है।
15 मिनट के बाद श्री पाटील ने कमरे का दरवाजा खोला और दोनों को हाथ हिलाकर कमरे में बुला लिया। सूर्यकान्त और नितिन ने वहां अजीत पवार को बैठा हुआ पाया। दुबला-पतला व्यक्ति सफेद पैंट शर्ट में था। श्री पवार का महाराष्ट्र की राजनीति में अच्छा नाम था। उन्होंने महाराष्ट्र की कॉंग्रेस और एनसीपी की मिली-जुली सरकार के गठन में अहम भूमिका अदा की थी। नितिन ने उनके पैर छुए। सूर्यकान्त उनके पास गया और बहुत धीमी आवाज में बोला, “दादा माझा मुलगा संकेत...”(मेरा बेटा संकेत...) श्री पवार कुछ चबा रहे थे. उन्होंने कहा, “हम्म्मम” उन्होंने अपने पर्सनल असिस्टेंट से पूछा, “सातारा में एसपी कौन है?”
अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार
©प्रफुल शाह
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