लेखक: प्रफुल शाह
खण्ड 33
शनिवार, 11/12/1999
यह मानव का स्वभाव ही है कि वह किसी की दोस्ती या निकटता को सहजता से नहीं ले पाता, पचा भी नहीं पाता। शिरवळ की गॉसिप गैंग भी सूर्यकान्त और रफीक़ की दोस्ती के बारे में तरह-तरह की बातें बनाने लगा।
“रफीक़ संकेत के अपहरण से पहले तो सूर्यकान्त के इतने निकट नहीं था।”
“हां, वे एकदूसरे को जानते-पहचानते ही तो थे।”
“सड़क पर आमने-सामने पड़ जाएं तो वे एकदूसरे को देख कर मुस्कुराते भी नहीं थे।”
“जब से संकेत गायब हुआ, रफीक़ लगातार सूर्यकान्त के साथ बना हुआ है।”
“इसमें कोई गड़बड़ तो नहीं? ”
“सूर्यकान्त को इस परिवर्तन को समझना चाहिए। ”
“वैसे तो गांव में कई लोग हैं, जिन्हें सूर्यकान्त जानता-पहचानता है, लेकिन वह रफीक़ के साथ ही रहना पसंद करता है।”
“यदि सूर्यकान्त ने हमसे मदद मांगी तो हमने न तो थोड़ी कहा होता।”
“चलो, उम्मीद करें कि संकेत अपहरण मामले में अब और कोई नया पेंच न पड़ जाए।”
“हां, ये तो सही है। यदि ऐसा हुआ तो शिरवळ वाले एकदूसरे पर आगे भरोसा करना ही छोड़ देंगे।”
“इस विषय को यहीं खत्म करो। सूर्यकान्त के परिवार के मामलों में हम भला इतनी चिंता क्यों करें?”
“चलो, नदी तक घूम आएं। अपना तंबाकू खाने का समय भी हो गया है।”
सूर्यकान्त नीरा के किनारे बैठा हुआ था। कुछ देर बाद उसने चहलकदमी शुरू कर दी। नीरा के साफ-ताजे पानी के ऊपर से बह रही ठंडी बयार उसके शर्ट की पॉकेट से गुजरकर चहक रही थी। उसे संकेत की याद हो आई, वह उसकी बाहों में था, बिलुकल वैसे ही, जैसे कि हर बच्चा जानता है, वह अपने पिता की बाहों में पूरी तरह सुरिक्षत है और उसे चिंता करने का कोई कारण नहीं। जैसा की फोटो में नजर आ रहा था, सूर्यकान्त भगवान के चित्र की ओर देख रहा था और अपने बच्चे के लिए उनसे आशीर्वाद मांग रहा था, साथ ही वह उन्हें धन्यवाद भी दे रहा था कि उसे इतना प्यारा बच्चा दिया है।
सही है, ईश्वर ने संकेत के जन्म के समय उसके परिवार की बड़ी सहायता की थी। लेकिन उसकी कृपा में उस वक्त शायद कुछ कमी रह गई होगी।
सूर्यकान्त फिर से भूतकाल में लौट गया....
1996। प्रतिभा गर्भवती थी। वह अपनी दूसरी डिलवरी के लिए अपने माता-पिता के घर चली गई थी। 8 अक्तूबर को शाम 5 से 8 बजे के बीच जब डॉक्टर के सहायक का उसके पास फोन आया, उस समय वह अपने बिजनेस में व्यस्त था। उससे कहा गया कि वह तुरंत सातारा मेटरनिटी अस्पताल में पहुंचे, क्योंकि प्रतिभा को इमरजेंसी के कारण अस्पताल में भरती कराया गया है।
सूर्यकान्त ने अपना काम तुरंत छोड़ दिया और अपनी खुली जीप में सातारा की ओर निकल पड़ा। उसे इस मुश्किल की घड़ी में प्रतिभा के साथ होना था। ‘मेरा दूसरा बच्चा कैसा होगा?’ उसके विचार जीप की गति की ही तरह तेजी से भाग रहे थे। लगभग एक घंटे तक, 60 किलोमीटर गाड़ी चलाने के बाद वह अस्पताल पहुंच गया। वह प्रतिभा से मिलने के लिए व्यग्र था।
सूर्यकान्त ने अस्पताल के रिसेप्शन में पूछताछ की।
“प्रतिभा भांडेपाटील कहां भरती हैं?”
“मरीज के साथ आपका क्या रिश्ता है?”
“मैं उसका पति हूं, सूर्यकान्त भांडेपाटील।”
रिसेप्शनिस्ट ने तुरंत उसे प्रतिभा की फाइल सौंप दी।
“इस पेपर पर अपनी सहमति दें। उनका ऑपरेशन करना होगा।”
“मैं उससे मिलना चाहता हूं।”
“इमरजेंसी है। हम आपकी ही राह देख रहे थे ताकि आपसे सहमति ले सकें।”
“हां, ठीक है। लेकिन मैं पहले उससे एक बार मिलना चाहता हूं ताकि मैं निश्चिंत हो सकूं कि सबकुछ ठीक है।”
“सर, ये समय उनसे मिलने का नहीं है। इस कागज पर तुरंत दस्तखत कर दें।”
सूर्यकान्त को गुस्सा आ गया। उसने रिसेप्शनिस्ट से ऊंची आवाज में बात की।
“मैं पहले उससे मिलूंगा, उसके बाद इस कागज पर साइन करूंगा।”
“सर, ऊंची आवाज में बात न करें, यह अस्पताल है।”
“जोर से बात क्यों न करूं? मैं इतनी दूर से भागकर सातारा सिर्फ अपनी पत्नी से मिलने के लिए आया हूं। मैं उससे केवल एक बार मिलना चाहता हूं और आप मुझेस बार-बार कह रहे हैं... अपना नाम लिखें, अपनी रजामंदी दें, फॉर्म पर साइन करें। मैं नहीं करने वाला। ”
रिसेप्शनिस्ट आगे कुछ कहना ही चाहती थी, पर कह नहीं पाई। उसने सामने से उसने डॉक्टर को उनकी तरफ आते हुए देखा। डॉक्टर ने पूछ शोरगुल किस बात को लेकर हो रहा है।
“ये स्थिति की गंभीरता को समझ ही नहीं रहे हैं। वह अड़े हुए हैं और एक ही बात के लिए बहस किए जा रहे हैं।”
“ये कौन हैं?”
“सूर्यकान्त भांडेपाटील, प्रतिभा के पति।”
“अच्छी बात है कि आप समय पर यहां पहुंच गए। हमें सीजेरियन डिलेवरी करनी होगी। अपनी सहमति दें। उसके बाद हम बाकी बातों पर चर्चा करेंगे।”
“मैं फॉर्म पर साइन प्रतिभा से मिलने के बाद ही करूंगा।”
“यह समय जिद करने या बहस करने का नहीं है। मां-बच्चे की जान जोखिम में है। अपनी सहमति दें।”
“मैं जाकर उसे एक बार देखना चाहता हूं। मैं आश्वस्त होना चाहता हूं कि मेरी पत्नी जिंदा है। मैं उसके बाद ही अपनी सहमति दूंगा।”
डॉक्टर उसकी ऊंची आवाज को सहन नहीं कर पाए।
“यदि आप साइन नहीं करेंगे तो हम किसी भी बात के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।”
“मरीज आपके अस्पताल में है। आप ऐसे कैसे कह सकते हैं कि यह आपकी जिम्मेदारी नहीं है?”
दोनों ही तरफ अहं अड़ा हुआ था।
“इन्हें अपनी पत्नी से मिलने जाने दें, केवल दो मिनट के लिए, जब ये सहमति दे दें उसके बाद। हमें सीजेरियन के लिए देर हो रह है। ”
“मेरी पत्नी इस अस्पताल में एक मिनट भी नहीं रुकेगी। मैं उसे किसी दूसरे अस्पताल में ले जाऊंगा।”
“यदि आप उन्हें हमारी इजाजत के बिना ले जाते हैं, तो हम किसी भी बात के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।”
“मुझे ऐसे डॉक्टर और ऐसे अस्पताल की जरूरत नहीं है।”
“चिकित्सकीय परामर्श के विरुद्ध डिस्चार्ज शीट पर इनसे साइन ले लें।”
“सूर्यकान्त ने आखरी वाक्य को सुनने तक का इंतजार नहीं किया। वह अस्पताल के भीतर चला गया, नर्स और वार्ड बॉय से प्रतिभा के रूम नंबर के बारे में पता किया। वह उस कमरे तक पहुंच गया, जहां प्रतिभा एडमिट थी। इससे पहले कि वह कुछ बोल पाती, उसने उससे तुरंत यहां से चलने को कहा।”
“...लेकिन डॉक्टर तो कह रहे थे...”
“तुम खड़ी हो जाओ...”
सूर्यकान्त ने फाइल अपने हाथ में ली, जितनी दवाइयां अपने एक हाथ में उठा सकता था, उठा लीं और दूसरे हाथ से प्रतिभा को पकड़ा। दोनों अस्पताल के कमरे से बाहर आ गए। रिसेप्शनिस्ट और डॉक्टर को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था।
“तुम मुझे नहीं जानते हो। यदि तुम अपनी पत्नी का ऑपरेशन मेरे अस्पताल में नहीं करवाओगे, तो मैं भी देखता हूं कि सातारा का कौन-सा डॉक्टर तुम्हारे केस को संभालता है।”
सूर्यकान्त ने पलटकर डॉक्टर की ओर देखा। वह उसे एक घूंसा मारना चाहता था लेकिन उसने प्रतिभा की गंभीर स्थिति को देखते हुए खुद पर काबू रखा। दोनों वहां से बाहर निकल गए। उसने प्रतिभा को जीप में बैठने में मदद की और अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी।
अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार
©प्रफुल शाह
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