Pauranik Kathaye - 6 in Hindi Mythological Stories by Devaki Ďěvjěěţ Singh books and stories PDF | पौराणिक कथाये - 6 - क्रिसमस ईव और क्रिसमस डे से जुड़ी पौराणिक कथा

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पौराणिक कथाये - 6 - क्रिसमस ईव और क्रिसमस डे से जुड़ी पौराणिक कथा

क्रिसमस ईव का त्योहार क्रिसमस के एक दिन पहले ( 24 दिसंबर को) मनाया जाता है।

क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया जाता है।

क्रिसमस ईव की रात को युवाओ की टोली जिन्हें कैरोल कहा जाता है ,वे ईशा मसीह के जन्म से जुड़े गीतों को घर घर जाकर गाते हैं।

क्रिसमस ईव की शाम हमारी सोसाइटी में, क्रिसमस ट्री को लाइटों से सजाकर, एक आदमी सांता की ड्रेस पहनकर, कुछ आदमी बजाते हुए, कुछ गाते हुए,सामुहिक रूप से घुमकर अपना धार्मिक प्रदर्शन कर रहे थे जो कि बहुत ही सुंदर, मनोरम दृश्य था।

क्रिसमस डे क्यों मनाया जाता है ?

क्रिसमस का त्यौहार ईसाइ समुदाय का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है l क्रिसमस का त्यौहार यीशु मसीह के जन्म के अवसर में मनाया जाता है l माना जाता है की ईशा मसीह का जन्म 25 दिसम्बर को हुआ था, इसी कारण है कि हम 25 दिसम्बर को क्रिसमस डे मनाते हैं l ईसा मसीह प्रभु यीशु के जन्म के उपलक्ष्य में क्रिसमस डे मनाया जाता है l

क्रिसमस डे से जुड़ी कहानी

बहुत समय पहले, नाजरेथ नामक एक जगह थी जहाँ मरियम (मैरी) नाम की एक महिला रहती थी। वह बहुत मेहनत थी और दूसरों के लिए भी अच्छी थी। वह यूसुफ नामक एक आदमी से प्यार करती थी जो एक बहुत अच्छा युवा था l

एक दिन, ईश्वर ने एक सन्देश के साथ गेब्रियल नामक परी को मरियम के पास भेजा। उसने उसे बताया की ईश्वर लोगों की सहायता के लिए धरती पर एक पवित्र आत्मा भेज रहा है l वह आत्मा मैरी के बेटे के रूप में पैदा होगी और उसे यीशु नाम देना l

मैरी यह सुनकर चिंतित हो गई की उसके अविवाहित होते हुए यह कैसे हो सकता है। परी ने उससे कहा की यह ईश्वर की तरफ से एक चमत्कार होगा तुम्हें इसके बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। उसने यह भी बताया की एलिज़ाबेथ नाम के उसके चचेरे भाई जिनके बच्चे नहीं थे वे जॉन बैपटिस्ट नाम एक बच्चे को भी जन्म देंगे जो यीशु के जन्म के लिए रास्ता तैयार करेगा l

यह सुनकर मैरी ईश्वर इच्छा से सहमत हो गई। वह एलिज़ाबेथ से मिलने गई और तीन महीने बाद वापस लौट आई l तब तक वह गर्भवती हो चुकी थी l इससे यूसुफ चिंतित था और उसने मरियम से शादी नहीं करने के विचार शुरू किए l लेकिन एक रात सोते समय, एक परी यूसुफ को सपने भी दिखाई दी, उसने उसे ईश्वर की इच्छा के बारे में बताया। यूसुफ अगली सुबह उठा और उसने फैसला लिया की वह मैरी को अपनी पत्नी बना लेगा।

शादी के बाद यूसुफ और मरियम बेथहलम चले आए। जब वे वहां पहुंचे तो उन्होंने पाया की वहां भीड़ बहुत थी और उनके रहने के लिए वहाँ कोई जगह नहीं बची l इसलिए उन्होंने एक जानवरों के खलिहान में रहने का फैसला किया। वही पर मरियम ने ईश्वर के पुत्र को जन्म दिया और उसे यीशु नाम दिया।

ईश्वर ने यीशु का जन्म आकाश में एक उज्ज्वल सितारे द्वारा संकेतित किया। दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बुद्धिमान पुरुषों ने इस सितारे के महत्व को समझ लिया था। उन्होंने यीशु के जन्मस्थान तक पहुंचने के लिए उस तारे का पालन किया l वे बच्चे और उसके माँ-बाप के लिए उपहार लेकर आए l बेथहलम के अन्य हिस्सों में, जहाँ चरवाहे अपने जानवर चरा रहे थे l स्वर्गदूत उन्हें अच्छी खबर देने लगे l उन्होंने दुनिया पर पवित्र आत्मा का स्वागत करने के लिए गाने गाये और यीशु के जन्म का आनंद लिया l

तब से इस दिन को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है l लोग यीशु मसीह के जन्म का जश्न मनाने के लिए मध्यरात्रि में चर्च जाते है। उपहार का आदान-प्रदान करते है, कैरल गाते है, नए कपड़े पहनते है और हर्षोल्लास से क्रिसमस मनाते है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार

जब प्राचीन समय में यूरोप में गैर ईसाई समुदाय के लोग सूर्य के उत्तरायण के मौके पर एक बड़ा त्योहार मनाते थे l इनमें प्रमुख था 25 दिसंबर को सूर्य के उत्तरायण होने का त्योहार l इस तारीख़ को वर्ष का सबसे लंबा दिन होना शुरू होने की वजह से, इसे सूर्य देवता के पुनर्जन्म का दिन के रूप में माना जाता था l कहा जाता है कि इसी वजह से ईसाई समुदाय के लोगों ने इस दिन को ईशू के जन्मदिन के त्योहार क्रिसमस के तौर पर चुना l तब से 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म के उपलक्ष्य में क्रिसमस के रूप में मनाया जाने लगा l क्रिसमस से पहले ईस्टर ईसाई समुदाय के लोगों का प्रमुख त्योहार था l

क्रिसमस डे कैसे मनाया जाता है ?

क्रिसमस का पर्व एक ऐसा उत्सव है जो लोगों के जीवन में खुशी, आनंद और पूजा से भरा होता है l इस अवसर पर, लोग चर्च जाते हैं, ख़ुशी से लोकगीत गाते हैं, विभिन्न धार्मिक सेवाओं में भाग लेते हैं, उपहार प्रस्तुत करते हैं, होली, मिस्टलेट, लाइट्स, फूलों और क्रिसमस ट्री के साथ अपने घरों को सुशोभित करते हैं l क्रिसमस की पूर्व संध्या पर, दुनिया भर के चर्च शाम की सेवाओं का प्रदर्शन करते हैं जिसे हम क्रिसमस ईव के नाम से जानते हैं l क्रिसमस ईव यानि 24 दिसम्बर की रात को, कई चर्च असाधारण मोमबत्ती की रोशनी में सेवाएं प्रदान करते हैं l

अगले दिन सुबह 25 दिसम्बर को सभी लोग गिरजाघरो में जाकर एक दूसरे को उपहार देते हैं l सांता क्लॉज़ क्रिसमस कार्यक्रम में एक प्रशंसित व्यक्तित्व है जो बच्चों को उपहार वितरित करते है l लोग कई केक और दावतें तैयार करते हैं l बच्चे इस त्यौहार को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते है और उपहारों के लिए उत्साहित होते हैं जो माता-पिता, दोस्तों द्वारा दिए जाते हैं l

क्रिसमस प्यार, खुशियों और शांति का त्यौहार है तथा यह इंसान के जीवन को सुखी और सार्थक बनाने की सीख देता है l क्रिसमस लोगो को हमेशा हंसी खुशी से जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करता है l

क्रिसमस ट्री का इतिहास क्या है?

क्रिसमस के मौके पर क्रिसमस ट्री का खास महत्व है, हर कोई इसे अपने घर में सजाते हैं l इसे लेकर ऐसा मानना है कि क्रिसमस ट्री की शुरूआत उत्तरी यूरोप में कई सदी पहले हुई थी l उस दौरान बेर नाम के एक पेड़ को सजाकर विंटर फेस्टीवल मनाया जाता था l मान्यता है कि प्रभु यीशु के जन्म के समय सभी देवताओं ने सदाबहार वृक्ष को सजाया था, तभी से इस वृक्ष को क्रिसमस ट्री के नाम से जाना जाने लगा l क्रिसमस ट्री को सदाबहार पेड़ के नाम से भी जाना जाता है l यह एक ऐसा पेड़ है जो कभी नहीं मुरझाता है, और ये बर्फ में भी हमेशा हरा-भरा रहता है l इसी कारण ईसाइ धर्म में इस पेड़ की तुलना प्रभु मसीह यीशु से की जाती है l जिसके कारण ईसाइ धर्म के लोग सदाबहार झाड़ियों और पेड़ों को पवित्र मानते हैं l इसीलिए क्रिसमस के दिन क्रिसमस ट्री को सजाने का रिवाज शुरू कर दिया गया और इस रिवाज को लोग आज भी मानते हैं l