Bharosa - 2 in Hindi Fiction Stories by Gajendra Kudmate books and stories PDF | भरोसा - भाग 2

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भरोसा - भाग 2

भाग - २
चाय पिने के बाद चाची बुधिया से पुछती है,” बेटा, एक बात कहू ?” तो बुधिया कहती है, “ हाँ चाची, कहो ना इसमें पुछ्ने कि क्या बात है.” चाची बोलती है, “ बेटा मुझे रामदिन के बारे में बात कहनी है.” क्यों नही चाची, तुम मेरे बारे में साथ हि साथ इनके बारे में कोई भी बात कर सकती हो वह भी बिना झिजक के आखीर वह भी तो आपके बेटे के समान हि है.” तभी चाची कहती है, “ हा रे पगली , तो सून पहले मुझे बता रामदिन को शहर गये कितने दिन हुये है?” थोड़े देर के लिये बुधिया एकदम खामोश हो गयी और उसके चेहरे पर उदासी छा गयी. थोड़े देर के बाद वह सहमाती हुई बोली, “ चाची दिन नही साल हो गये है.” तभी चाची बोलती, “ हा बाबा साल हो गये है तो कितने साल हो गये है?” बुधिया बोली, “ जी उन्हे शहर गये ५ साल हो गये.” और कहते कहते बुधिया कि आंखे नम हो जाती है.
तभी चाची कहती है, “ हा बेटा, ५ साल हो गये है, तो अब बता इन ५ सालो में वह नालायक कितनी बार गाँव आया है?” तब बुधिया कहती है, “ चाची वह तो ४ से ५ बार हि गाँव आये है बस वह भी एक दिन कभी दो दिन के लिये. उनको आने कि जितनी जल्दी नही होती है, जाने कि उससे ज्यादा जल्दी होती है. घर में पैर रखा कि नही, वापस लौटने कि बात करते है. जैसे कि सारे जमाने का काम इनको हि करना पड़ता है.” तभी चाची कहती है, “इस कारण से हि मुझे रामदिन पर शक होता है, जवान लुगाई घर पर अकेली है. उससे मिलने को पती साल में एक बार आता है और आते हि जाने कि बात करता है. मुझे तो पक्का दाल में कुछ काला लगता है.” तभी बुधिया कहती है, “ नही चाची, ऐसा नही हो सकता. वह ऐसा वैसा कुछ नही कर सकते है. मुझे उन पर पुरा भरोसा है.
तभी चाची कहती है, “वह तो है बेटा, लेकीन मर्द कि फितरत हि ऐसी होती है कि, कुछ कहा नही जा सकता. खुदका पती हो या और कोई भी मर्द हो किसी पर आंख मुंदकर भरोसा नही करना चाहिये. अच्छा मै खेत जा रही हुं कुछ चाहिये हो तो बता दे लौटते वक्त ला दुंगी.” तब बुधिया बोली , “ नही चाची, अभी सब्जी तरकारी है पर्याप्त गर लगी तो मै आपके घर से ले लुंगी.” इतना कहकर दोनों भी अपने काम करने लगी. काम करते करते बुधिया के मन में चाची कि बात बार बार आ रही थी. आजतक उसके जेहन में रामदिन के बारे में जो भरोसा था वह आज कूछ हद तक हिचकोले खाते दिख रहा था. वैसे भी एक महिनेसे ज्यादा का वक्त हो चला था. तो बुधियाने सोचा आज नुक्क्ड पर जाकर फोन लगाकर उनसे हालचाल पुछ लेती हुं. अब इस बार उनको किसी भी तरहा गाँव आने के लिये कहती हुं.
बुधिया ने अपने सुबह के काम का निपटारा कर दिया और नहा धोकर वह नुक्कड पर फोन करने चली गयी हाथ में एक चीट पकडकर. उस चीट में रामदिन ने उसका फोन नंबर बुधिया को दिया था. वह नंबर भी बहोत कोशिश करने पर लग जाता है. बुधिया एक दुकान पर जाकर बोलती है, “ ऐ भैया, जरा एक फोन लगा दोगे शहर में.” तो वह दुकानवाला बोला, “बहन फोन करने के पैसे लगेंगे.” तब बुधिया बोली, हाँ भैया, मै जानती हुं, पहली बार नही फोन कर रही हुं. पिछली बार भी तुम्हारे दुकान से हि फोन लगाया था तब कोई और था.” तब दुकानवाला बोला, हाँ मेरे भैया रहे होंगे, लाइये दिजीये नंबर मै फोन लगा देता हुं.” कहते हुये उसने वह चीट ली और फोन लगाने लगा. वह बार बार फोन लगाने कि कोशिश करता रहा और फोन लग नही रहा था. तब वह बोला, “ बहन, यह नंबर किसने दिया है तुमको.” बुधिया बोली, यह नंबर मेरे पती का है, वह शहर में काम करने गये है. उनसे बात करनी है. तुम चिंता मत करो यह नंबर बहोत मुश्कील से लगता है. थोड़ी देर रुक जाओ फिर लगाकर देखना मै यही रुकती हुं.”
फिर करीब करीब आधे घंटे के बाद बुधिया ने कहा, “ ऐ भैया, अब फोन लगाकर देखो शायद फोन लग जाये.” तो दुकानवाले ने फोन लगाया, इस बार फोन लग गया. फोन कि घंटी बजी और थोड़ी देर के बाद किसी ने फोन उठाया. तब दुकानवाला बोला ,” हेलो, मै मांझी गाव से बोल रहा हुं, रामदिन साहब से बात हो सकती है.” तब सामने से आवाज आयी कि, “ मै साहब कि पत्नी बोल रही हुं, साहब घर पर नही है काम पर गये है. मै आपकी बात उनको बता दुंगी कहकर उसने फोन रख दिया. बुधिया बोली,” लाओ भैया हम बात करेंगे.” तब दुकानदार बोला, “ बहन फोन कट हो गया है,” तब बुधिया बोली ” पर तुम तो बात कर रहे थे.” तब वह बोला, “ हाँ मैने बात कि उधर से कोई महिला बोल रही थी और उसने कहा कि साहब घर पर नही है आने के बाद मै उनको बताउंगी कहकर उसने फोन काट दिया.” यह सुनकर बुधिया जरा असमंजस में पड गयी थी. और इस हि उधडबून में वह घर कि तरफ जाने लगी. उसके कानो में वह दुकानवाले के बोल गुंज रहे थे, सामने से किसी महिला ने बात कि. बुधिया निशब्द होकर घर कि तरफ बढ़ती जा रही थी.
शेष अगले भाग में .............