लेखक: प्रफुल शाह
खण्ड 29
गुरुवार, 09/12/1999
सूर्यकान्त भांडेपाटील ने महसूस किया कि उसने जिंदगी के खेल में सबकुछ खो दिया है। लोग उसके बारे में, एक पिता के बारे में, जिसके अपने बच्चे का अपहरण हो गया है, ऐसा कैसे बोल सकते हैं? कैसे ऐसा बोल सकते हैं कि उसने फिरौती की रकम नहीं दी है? वे ऐसा कैसे बोल सकते हैं कि उसने पैसों को बिजनेस के नुकसान की भरपाई करने के लिए अपने पास रख लिया ? वे ऐसा कैसे कह सकते हैं कि अपहरण महज एक कहानी थी और उसने अपने बच्चे को गुजरात में किसी के पास रखवा दिया है?
शिरवळनिवासी तो उसके नजदीक नहीं थे, इसलिए वो तो जो मन में आए, कह सकते हैं। लेकिन परिवार के सदस्यों का क्या, उसके अपने, उसके प्रियजन कैसे इन बातों पर भरोसा कर सकते हैं? वे मुझसे साथ दूरी कैसे बना सकते हैं? वे मेरे साथ बातचीत करना कैसे बंद कर सकते हैं?
सूर्रकान्त भ्रमित था, क्या वाकई ऐसा है, या मैं ऐसा सोच रहा हूं?
सूर्रकान्त शिरवळ के प्रमुख नागरिकों में से एक था। उसके अच्छे राजनीतिक संबंध थे। उसका समाज में एक अच्छा स्थान था। क्या वह कभी ऐसा किसी से कह सकता है कि उसके बेटे का अपहरण करके उसे गुजरात में ले जाया जाए ताकि समाचार पत्रों की सुर्खियों में उसे स्थान मिले?
सूर्यकान्त बुरी तरह आहत था। वह पूरी तरह अपने विचारों में खोया हुआ था। ‘मेरा परिवार कितना प्यार करने वाला है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो प्रतिभा मुझसे कुछ अनुचित मांग कर सकती है। वह मेरी जिंदगी है। वह मेरा प्यार है। वही तो है जिसने पूरे परिवार को अपने प्यार, साहस और भावनाओं से बांध कर रखा हुआ है। मैं जब अपने बिजनेस के लिए बाहर होता हूं, वही तो परिवार को अपने शिक्षण के काम को भी साथ-साथ संभालती है। शिरवळ में जो कुछ बातें हो रहीं हैं, यदि वह उन पर भरोसा करने लगी तो मेरे परिवार की नींव हिल जाएगी। यह वही प्रतिभा है, जिसके लिए मैंने सारी दुनिया से लड़ाई की थी। यह वही प्रतिभा है जिसने मेरा साथ पाने के लिए अपना सब कुछ छोड़ दिया था। क्या उसे मेरे इरादों पर संदेह हो सकता है?’
सूर्यकान्त यादों में खो गया।
ये वो दिन थे जब वह अपने चाचा शामराव और चाची शालन के साथ सातारा जिले के वाई गांव में सिंचाई विभाग की कॉलोनी वाले उनके घर में रहता था। यह गांव शूटिंग लोकेशन के लिए विख्यात था। कई हिंदी फिल्मों की यहां पर शूटिंग हुई थी। सूर्यकान्त जब नौवीं कक्षा में पढ़ रहा था, तब सातारा जिले मावली गांव में गया था। उसका दोस्त अपनी चाची से मिलने वहां जा रहा था और उसने सूर्यकान्त को भी अपने साथ चलने के लिए कहा था।
तब पहली बार उसने प्रतिभा को देखा था। उनका आपस में कोई परिचय नहीं था, कोई संपर्क नहीं, प्रेम का आदान-प्रदान नहीं। उन्हें यह भी नहीं मालूम था कि वे दोबारा आपस में मिलने वाले हैं और वजह बनेगी पढ़ाई।
दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रतिभा ने सातारा में डीएड (डिप्लोमा इन एजुकेशन) लिया और सूर्यकान्त ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के लिए वेणुताई चौहान पॉलीटेक्निक, फाल्टन में एडमिशन लिया।
प्रतिभा ने डिप्लोमा दो सालों में पूरा कर लिया और सूर्यकान्त दोनों ही सालों में फेल हुआ।
क्या इस वजह से उनकी प्रेम कहानी समाप्त हो गई? बिल्कुल नहीं। उनकी कहानी में एक मोड़ आया, एक सुखद मोड़।
प्रतिभा को अपनी पहली नौकरी फाल्टन में ही मिली। उनके स्कूल और कॉलेज अगल-बगल थे। दोनों एक नए शहर में मिले, अपने घर-परिवार से दूर। उनकी दोस्ती बढ़ी, दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण था, इसके पहले कि वे कुछ समझ पाते, दोनों प्यार में पड़ गए।
प्रतिभा के परिवार वालों को उसकी शादी करने की जल्दी थी। उसने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी और उसे नौकरी भी मिल चुकी थी। उसने अपने परिवार को सूर्यकान्त से अपने प्रेम प्रकरण के बारे में बताया। उसे थोड़ी-बहुत उम्मीद थी कि घर वाले इस रिश्ते को मंजूरी दे ही देंगे। लेकिन उन्होंने तो सूर्यकान्त को यह मान कर पूरी तरह से नकार दिया कि वह बेकार व्यक्ति है। प्रतिभा के घर वालों ने न केवल सूर्यकान्त के प्रति अपनी नापसंदगी का इजहार किया, बल्कि प्रतिभा को नौकरी छोड़कर घर लौटने के लिए भी बाध्य किया।
अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार
©प्रफुल शाह
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