लेखक: प्रफुल शाह
खण्ड 13
मंगलवार, 30/11/1999
जैसे ही संजय अंकल सौरभ के कमरे में दाखिल हुए, वह बहुत खुश हो गया। वह आश्वस्त हो गया कि संकेत को घर वापस ले आया गया है। वह इस खुशखबर को अपने दोस्तों पायल और पराग के अलावा संकेत के साथियों माधुरी, स्वप्निल, अपर्णा और रोहण के साथ भी बांटना चाहता था।
सूर्यकान्त का चचेरा भाई संजय भांडेपाटील सातारा जिले में पुलिस कॉंस्टेबल था। दोपहर 2.30 बजे वह साई विहार में आया। इस मुश्किल की घड़ी में वह अपने बड़े भाई की मदद के लिए साथ खड़ा होना चाहता था। पुलिस दल में कुछ दिनों से काम करते हुए उसे यह बड़ी अच्छी तरह से मालूम था कि किसी बच्चे के घर से बाहर 26 घंटे से अधिक रहने के दुष्परिणाम क्या हो सकते हैं। उसके लिए तर्कसंगत रूप से यह निष्कर्ष निकाल पाना बहुत आसान था कि आगे क्या हो सकता है। “चिंता मत करो। संकेत जल्दी ही घर वापस लौटेगा। वह शिरवळ में रहने वाले हर व्यक्ति तुमको जानता है और उनको यह भी पता है कि तुम्हारी ऊपर तक पहुंच है। किस मूर्ख ने ये गलती की है।” छोटे भाई ने बड़े भाई सूर्यकान्त को सांत्वना।
शिरवळ के निवासियों की नजरें साई विहार में आने-जाने वाले हर व्यक्ति पर लगी हुई थी। उनमें से कुछ तो अब भी इस तथ्य को पचा नहीं पा रहे थे कि संकेत बीते 24 घंटों से घर वापस नहीं आया है और उसका मामा शेखर देशमुख दो दिनों से उनके घर नहीं आया है। किसी को नहीं पता था कि शेखर कहां है और उसकी तरफ से इधर किसी को फोन नहीं आया है।
संकेत के खोने से पहले, उसका मामा ही खो गया! लोगों को बहुत फिक्र हो रही थी, क्योंकि जिस आदमी ने संकेत को अगवा किया था उसका जो हुलिया अंजलि टीचर ने बताया था, वो संकेत के मामा शेखर की ही तरह था।
मामले को और गंभीर बनाने के लिए अब संजय भांडेपाटील भी शिरवळ में आ चुका है। एक आदमी ने कुछ लोगों को अपने नजदीक बुलाया और फुसफुसाया, “सूर्यकान्त और प्रतिभा ने प्रेमविवाह किया था। मैंने सुना है कि इस शादी को लेकर उस समय दोनों परिवारों में काफी विरोध हुआ था। क्या कोई इतने साल बाद बैर भुना सकता है? और वह भी अपने भांजे को अगवा करके...?”
इधर यह बात हुई और उधर शिरवळ पुलिस चौकी में इंसपेक्टर माने के कानों तक पहुंच गई। ‘यह मामला तो दिन ब दिन जटिल ही होता जा रहा है. पुलिस दल को इसे सुलझाना एक कठिन चुनौती होगी।’ माने सोच रहे थे।
पूरे शिरवळ में इस समय दो ही सवाल गूंज रहे थेः संकेत कहां है? वह घर वापस कब आएगा? यह गूंज नीरा के के किनारों तक भी पहुंच ही गई। अफसोस उनके कान नहीं हैं। समय तेजी से भाग रहा था, उसे इस दुःखद घटना से भला क्या लेना-देना!
शाम के 5 बजे, भोंगवली गांव से एक बस ने शिरवळ बस डिपो में प्रवेश किया। एक समझदार वृद्ध दंपति बस से बाहर निकला। एक की उम्र 68 बरस की थी और दूसरी करीब 58 की। उनके दिमाग में भी एक केवल एक ही नाम गूंज रहा थाः संकेत!
शिरवळ और भोंगवली नीरा के दो अलग-अलग किनारों पर स्थित थे। वास्तव में उनके बीच दूरी बहुत कम थी, लेकिन बस को गंतव्य तक पहुंचने के लिए 12 किलोमीटर का फेरा लगाना पड़ता था।
हालांकि, दोनों वृद्ध दंपति काफी थका हुआ था पर उनके भीतर अपने गंतव्य तक पहुंचने की अद्भुत शक्ति नजर आ रही थी। उनकी नजरें अच्छी थीं, इसके लिए अच्छा खाना, अच्छी आदतों और सादगी भरी जीवनचर्या को ही धन्यवाद देना होगा। दुर्भाग्य से, उनके भीतर उनके भीतर आशा की कोई चमक नहीं थी, केवल भय समाया हुआ था।
यह वृद्ध दंपति सूर्यकान्त के माता-पिता थे। विष्णु भांडेपाटील और जनाबाई। सारा शिरवळ उन्हें पहचानता था और वे भी सभी को जानते थे। वे काफी बातूनी थे और लोगों से संपर्क और संवाद करने में उन्हें आनंद मिलता था। वे लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे, यही वजह है कि सभी से संबंध बनाने में उन्हें आसानी भी होती थी। लेकिन आज, वे किसी से भी बात करने की मनःस्थिति में नहीं दिख रहे थे। और, उनकी तेजकदमी को देखकर किसी ने उन्हें रोककर बात करने की हिम्मत भी नहीं जुटाई। लोगों उनकी उम्र पर तरस खा रहे थे कि उन्हें इतनी मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ रही है। कुछ लोगों का रवैया सकारात्मक था। वे सोच रहे थे कि अच्छा ही हुआ वे लोग यहां आ गए, घर की देखभाल हो जाएगी, खासतौर पर प्रतिभा का ध्यान रखना आसान होगा।
विष्णु भांडेपाटील महाराष्ट्र सरकार के सिंचाई विभाग में काम करते थे। उनका सबसे बड़ा सहारा उनका क्रोध था, जो हमेशा ही फटने को तैयार रहता था। लगातार तंबाकू चबाते रहना उनकी आदत में शुमार था। साई विहार की ओर जाते हुए उन्होंने जनाबाई को चेताया, “शांत रहना, घर में घुसते ही रोना-धोना शुरू मत कर देना।” वैसे, वह कम ही बोलती हैं। मामले की गंभीरता को समझते हुए उन्होंने सहमति में अपना सिर हिला दिया।
इंसपेक्टर सतीश माने इसी एक प्रासंगिक प्रश्न के जवाब को तलाशते हुए परेशान हुए जा रहे थे। उन्होंने सीनियर कॉन्स्टेबल को तलब किया। “शेखर देशमुख के बारे में सारी जानकारी इक्ट्ठी करो। वो जीने-खाने के लिए क्या करता है? किन-किन जगहों पर वह हमेशा उठता-बैठता है? उसके दोस्त-यार और पहचानने वाले कौन हैं? क्या उसे कोई बुरी लत है? क्या उसका कोई खास दोस्त या दुश्मन है? सूर्यकान्त के साथ उसके संबंध अच्छे हैं?”
सीनियर कॉन्स्टेबल इंसपेक्टर माने की होशियारी से प्रभावित हुआ। “समझ गया साहब। आखिर वह किसी को बताए बिना बच्चे के खोने से एक दिन पहले ही गायब कैसे हो गया? मी बराबर काढ़तो शेखर देशमुख ची कुंडली (मैं शेखर देशमुख की कुंडली खोज निकालता हूं), ” कॉन्स्टेबल ने माने को आश्वस्त किया।
“संकेत की जन्मकुंडली के हिसाब से, उसे अभी बहुत लंबा जीवन जीना है। मैं ढूंढ़ता हूं कि आखिर किस ग्रह-नक्षत्र के चक्कर में वह इस मुसीबत में आकर फंस गया है,” नजदीक के एक गांव के ज्योतिषी ने कहा। उसने सूर्यकान्त और प्रतिभा की तरफ देखा। अपनी उंगलियों पर गिनकर कुछ अनुमान लगाया और सुझाया कि वे गायों को चारा खिलाना शुरू कर दें। “आपका बच्चा पूर्व दिशा की ओर है। वह कल शाम तक वापस आ जाएगा।” यह भविष्यवाणी भी की। अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार
©प्रफुल शाह