Fathers Day - 11 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | फादर्स डे - 11

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फादर्स डे - 11

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 11

मंगलवार, 30/11/1999

लहू रामचंद्र देखणे जिस तरह से बात कर रहा था, सूर्यकान्त उससे काफी प्रभावित हुआ। इससे पहले कि वह अपनी सहानुभूति जता पाता, लहू ने उससे कुछ पैसे मांग लिए। “पुलिस वालों ने मुझे रात-भर सोने नहीं दिया। मैं अपने घर वापस जाकर आराम करना चाहता हूं, पर मेरी जेब में घर जाने के लिए पैसे नहीं हैं। सर, यदि आप कुछ पैसे दे दें, तो बड़ा आभारी रहूंगा, ” वह बोला।

लहू के दयनीय चेहरे की ओर देखते हुए, सूर्यकान्त उसको पैसों के लिए मना नहीं कर पाया। उसने अपनी शर्ट की जेब से पचास रुपए निकाले और दे दिए।

लहू पैसों की ओर लपका। उसने अपने दोनों हाथ जोड़कर धन्यवाद दिया और गेट की ओर बढ़ गया। वह दोबारा पीछे मुड़ा और एक बार फिर हाथ जोड़कर धन्यवाद की मुद्रा में आ गया।

साई विहार के पिछले कमरे में, प्रतिभा अपने दोनों हाथ जोड़कर देव-देवताओं से माफी की याचना कर रही थी। संकेत को जो इतनी परेशानी उठानी पड़ रही है इसके लिए वह खुद को ही अपराधी मान रही थी।

उसे रविवार, 28 नवंबर, संकेत के गायब होने के एक दिन पहले घटी एक घटना स्मरण हो आई। संकेत की चाची और उनकी बहन कुसुम इनके परिवार के साथ कुछ समय बिताने के मकसद से आई हुई थीं। खुशमिजाज़ और खूबसूरत संकेत, साई विहार में आने वाले हरेक व्यक्ति को लुभाता था, चाची भी इसका अपवाद नहीं थीं। उसने अपने जीवन में कभी बैट-बॉल को नहीं छुआ था, लेकिन संकेत के साथ वह जरूर खेली थीं। पहले तो कुसुम ने रुखाई से मना कर दिया था लेकिन संकेत भला कहां मानने वाला था! साई विहार में यह पहली बार ही था कि कोई महिला क्रिकेट खेल रही थी। कुसुम भी बेहद खुश थी। अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरे उसने प्रतिभा से शिकायती लहज़े में कहा, “मैंने विवेक से कई बार कहा कि कम से कम एक बार तो मुझे क्रिकेट मैच न सही, मैदान ही दिखाने ले जाए, पर वह हमेशा यह कहकर बात टाल देता है कि औरतों को क्रिकेट से क्या लेना-देना? और देखो तो सही, यहां तुम्हारे बेटे ने मुझे क्रिकेट खिला ही दिया।”

चाची कुसुम को अपने गांव भोंगोवली वापस जाने का समय आ गया था। अब संकेत की नई फरमाइश आई कि वह उनके साथ गांव जाना चाहता है। प्रतिभा को बहुत आश्चर्य हुआ उसकी इस फरमाइश पर, उसने हंसते हुए कहा, “तुम भला कैसे जा सकते हो, तुम्हें तो कल स्कूल जाना है। और यदि तुम वहां आधी रात को रोने लगे तो तुमको वापस यहां मेरे पास कौन लाकर छोड़ेगा?”

संकेत खूब रोया था। प्रतिभा और कुसुम ने उसका ध्यान बंटाने की कोशिश की और उसे सोने के लिए कहा। कुसुम ने बड़े प्यार से उसके चेहरे को सहलाया और प्रतिभा से कहा कि वह उसे छुट्टियों में गांव लेकर जरूर आए। प्रतिभा ने हां में सिर हिलाया और कुसुम के साथ साई विहार के गेट तक उसे छोड़ने के लिए आई।

गुजरी बातें याद करते हुए प्रतिभा सोच रही थी कि संकेत को कुसुम के साथ गांव भेज देना चाहिए था। ‘यदि वह एक-दो दिन स्कूल नहीं भी जाता तो क्या बिगड़ जाता? आखिर वह एक बच्चा ही तो है, डॉक्टरी थोड़े ही पढ़ रहा है। यदि वह कुसुम के साथ चला जाता, तो अपनी चाची के साथ खुशी-खुशी खेल रहा होता और यह अपशकुन न घटित हुआ होता। और यदि वह आधी रात को रोता भी तो सूर्यकान्त उसे कार में बिठाकर वापस ले आता। मैंने ही उसे कुसुम के साथ जाने से मना किया. क्यों? यदि कोई मुझसे इसका कारण पूछे कि मैंने ऐसा क्यों किया तो?’ प्रतिभा का सोच-विचार लगातार चल रहा था।

कस्बे के आकार के हिसाब से इस अपराध की गंभीरता अत्यधिक थी। कोई आश्चर्य नहीं कि स्थानीय अखबारों ने इसे प्रमुखता से स्थान दिया था. कई ने घटना को लेकर खड़े हुए सवालों का भी जिक्र किया था। किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि आने वाले दिनों में संकेत और शिरवळ- ये दो नाम न केवल उनके कस्बे के अखबारों की सुर्खियां बनेंगे, बल्कि उनके जिले और राज्य में इस खबर को महत्व दिया जाएगा।

सूर्यकान्त एक ही सवाल पर अटका हुआ था, ‘शेखर कहां है? और वह कर क्या रहा है? उसका भांजा गुमशुदा है और वह इस समय यहां पर मौजूद नहीं है। मुझे प्रतिभा से पूछना चाहिए, हो सकता है उसे मालूम हो।’

यह बात पूछने से पहले सूर्यकान्त थोड़ा-सा हिचकिचाया, परंतु दूसरे ही क्षण उसने विचार किया कि इस बारे में पूछने में कोई बुराई नहीं है।

“मुझे कुछ पता नहीं, वह परसों यहां से गया उसके बाद उसकी कोई खबर नहीं है। क्या कोई महत्वपूर्ण बात है?”

सूर्यकान्त ने कोई जवाब नहीं दिया। उसके दिमाग में यह बात घूम रही थी कि शेखर को लंबे समय के लिए बाहर जाना था तो कम से उसे एक फोन करके बता तो दिया होता।

शिरवळ पुलिस के सौजन्य से लैंडलाइन नंबर तुरत-फुरत आउट हाउस से साई विहार में स्थानांतरित कर दिया गया। लेकिन, वह काफी लंबे समय से बजा नहीं। टेलीफोन उपकरण की ओर देखते हुए सूर्यकान्त को वह फोन कॉल याद आया जो लहू ने कुछ दिनों पहले किया था। उसको इस बात का पछतावा हो रहा था कि उस दिन उसने कितनी बुरी तरह व्यवहार किया था।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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