लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण 10
मंगलवार, 30/11/1999
मंगलवार के इन ठंडे, अंधेरे घंटों में लहू देखणे अपने ख्यालों में खोया हुआ था कि वह कैसे इस पुलिस चौकी के घिसे हुए फर्नीचर को पॉलिश करेगा। नींद से वंचित, लाल आंखें लिए हुए लहू अपने ख्यालों में इतना खोया हुआ था कि जांच के लिए जब उसका नाम पुकारा गया तो उसे सुनाई ही नहीं पड़ा।
एक सिपाही ने उसे झकझोरा। लहू उठ खड़ा हुआ। उससे कोई सवाल पूछा जाता उससे पहले ही उसने हाथ जोड़कर सिपाही से कहा कि वह निर्दोष है। “काय नाय केलं( मैंने कुछ नहीं किया है). कल मैं अपने चचेरे भाई के साथ था. हम उसकी शादी के लिए एक लड़की देखने के लिए दूसरे गांव गए हुए थे। उसके बाद मैंने अपने गांव के लड़कों के साथ क्रिकेट खेला।” उसने बताया। सिपाही ने उसके हुलिए को दोबारा परखा कि कहीं वह अंजलि टीचर के बताए हुलिए से मेल तो नहीं खा रहा। उसने पाया कि वह वैसा नहीं था।
सिपाही ने चिरपरिचित झुंझलाहट व्यक्त की और कहा, “ज्यादा होशियार बनने की कोशिश न करो और ज्यादा बातें मत बनाओ। चलो जाओ यहां से।” सिपाही को लहू का व्यवहार या हुलिया संदेहास्पद नहीं लगा।
लहू को राहत मिली। उसने सिपाही को अलविदा कहा, पुलिस चौकी में आसपास के फर्नीचर को देखा उन लोगों पर एक नजर दौड़ाई जिन्हें पूछताछ के लिए लाया गया था। उसने अपनी गर्दन पर पसरे पसीने को अपने गंदे रूमाल से पोंछा और जल्दी से शिरवळ पुलिस चौकी से बाहर निकल गया।
सुबह हो चुकी थी लेकिन पुलिस बल और भांडेपाटील परिवार अभी-भी अंधकार में थी। उन्हें गुमे हुए बच्चे के बारे में कोई सुराग नहीं मिल पाया था।
शिरवळ में जितने रहवासी थे उतने सुझाव और संभावनाएं आ रही थीं। कुछ रहवासी समझदार थे, तो कुछ ओवरस्मार्ट भी। इन्हीं में एक ने भविष्यवाणी की कि संकेत 24 घंटे बाद घर वापस आएगा। किसी अन्य ने कहा कि उसकी संकेत के बारे में की गई भविष्यवाणी पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि संकेत का मामला जितना आसान लग रहा है, उतना है नहीं। तीसरे रहवासी (जिसने पुलिस चौकी में रात गुजारी थी) ने कहा कि कुछ भी हाथ में आने वाला नहीं, क्योंकि पुलिस वाले भ्रष्ट हैं। उसका सुझाव था कि इस मामले को सुलझाने का सबसे पक्का तरीका है सूर्यकान्त के साले शेखर देशमुख को खोजा जाए।
दिन हो कि रात, प्रतिभा को कोई फरक नहीं पड़ रहा था। वह लगातार सोच रही थी कि उसका बेटा कहां होगा और घर कब वापस आएगा। वह आशा लगाए बैठी थी कि वह भागकर आएगा उसकी बाहों में समा जाएगा और और उसके गालों को चूम लेगा।
सूर्यकान्त के दोस्त उन लोगों की फेहरिस्त बनाने में जुटे थे जो लोग इस अपराध में शामिल हो सकते हैं। उन्होंने उनमें से कुछेक को जांच-पड़ताल के लिए पुलिस चौकी में लाया भी।
प्रतिभा की दशा दयनीय थी। उसका धैर्य अब घबराहट में बदलते जा रहा था। वह अचानक प्रार्थना करना या मंत्रोच्चारण करना शुरू कर देती थी। किसी ने सलाह दी कि उन्हें संकेत की ट्राइसिकल को खिड़की की ग्रिल से बांध कर उसमें संकेत के कपड़ों को लटका देना चाहिए। इससे आकर्षित होकर संकेत घर वापस लौटेगा।
यह उपाय काम करेगा या नहीं, यह चुनने का उसके पास कोई तर्क नहीं बचा था। दूसरों की मदद से उसने साइकिल बांध थी, उसके कपड़े लटका दिए और किसी चमत्कार होने की प्रतीक्षा करने लगी।
साइकिल की ओर देखते हुए प्रतिभा गुजरे समय में लौट गई। बड़े उत्साह से सूर्यकान्त ने यह साइकिल संकेत को दिलवाई थी। वह छोटा-सा बच्चा इस उपहार को पाकर कितना खुश हुआ था, लेकिन उसे यह भी याद आया कि वह इस पर नाराज हो गई थी-नाराजगी जताने का उसका अपना विशिष्ट तरीका था, वह बात करना बंद कर देती थी। सूर्यकान्त उसकी नाराजगी को समझ गया था, लेकिन क्यों यह नाराजगी थी- समझ नहीं पाया। “उसके पास साइकिल चलाने के लिए काफी वक्त है। क्या होगा यदि उसे चोट लग जाए तो?” उसने कहा था। इस पर सूर्यकान्त ने उससे कहा था कि साइकिल की सवारी करते हुए बच्चे का आनंद तो देखो। उसे याद आया कि किस तरह सूर्यकान्त के इस तर्क से उसका गुस्सा काफूर हो गया था।
इस उपहार को पाने के दूसरे या तीसरे दिन, संकेत इस साइकिल की सवारी करते हुए गिर पड़ा था और उसके हाथ में चोट लग गई थी। खरोंच मामूली ही थी, पर संकेत खूब जोर-जोर से रोया था। प्रतिभा ने याद किया कि किस तरह उसने उसे चिंता और ममतावश उसे कसकर आलिंगन में ले लिया और किस तरह अपनी मां का ध्यान आकर्षित होता देखकर संकेत और जोरों से रोने लगा था। इस नाटक को बंद करने के लिए सूर्यकान्त ने उसे चुपचाप पीछे से चॉकलेट दी और संकेत ने तुरंत रोना बंद कर दिया था। क्या हुआ यह सोचकर हैरान-परेशान प्रतिभा ने जब पीछे मुड़कर देखा तो सारा माजरा समझ में आ गया। संकेत चॉकलेट का रैपर खोलने में लगा हुआ था। उसने याद किया कि कैसे उसकी नाराजगी ज्यादा देर टिक नहीं पाई जब उसने सूर्यकान्त को मुस्कुराते हुए देखा, साथ ही संकेत चॉकलेट का मजा उठाते हुए भी देखा।
उन खुशनुमा दिनों को याद करते हुए, वह अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रही थी। हालांकि आंसुओं की परतों के बीच साइकिल धुंधली नजर आ रही थी, पर उसे लगा कि संकेत उसकी ओर दौड़ा चला आ रहा है।
वह किसी के पदचापों को सुन पा रही थी और उसे ऐसा लगा कि कोई उसके आंसुओं को पोंछ रहा है। वह महाडिक काकू थीं। “संकेत को यह टी-शर्ट बहुत पसंद था। उसने इसे तीन दिनों तक पहना और वह इसे बदलना ही नहीं चाह रहा था। काकू, क्या वह इसे फिर से पहन पाएगा?” उसने पूछा।
काकू ने उसे कंधों से थामा और कहा, “भगवान पर भरोसा रखो, वह बहुत दयालु है।”
केवल काकू ही नहीं, तो कई लोग भांडेपाटील परिवार की मदद करने को कोशिश कर रहे थे। उनमें से कुछ ज्योतिषी के पास गए यह जानने के लिए कि ग्रह-सितारे क्या भविष्यवाणी कर रहे हैं। कुछ ने बताया कि संकेत पश्चिम दिशा की ओर है, तो कुछ ने कहा पूर्व की ओर। कुछ कह रहे थे कि उसका अपहरण हुआ है लेकिन वह पक्के तौर पर लौटेगा। किसी ने सलाह दी कि गायों को चारा खिलाने से वह अगले दिन निश्चित ही लौट आएगा।
एक वास्तुविशेषज्ञ साई विहार में आया। उसने सूर्यकान्त को आश्वस्त किया कि यदि वह
‘कार्तवीर्य जुनोनमम राजा बाहु सहस्त्रावनामम्
तास्येय स्मरनाम मात्रेनाम् गतम नश्तांच लभ्यते’’
इस मंत्र का रोज जाप करेंगे तो उनका निश्चित ही बेटा स्वस्थ और सानंद वापस आ जाएगा।
उसने समझाया कि यह मंत्र कितना शक्तिशाली है। “यदि आपने किसी चीज को या किसी व्यक्ति को खो दिया है तो, बजाय शिकायत करने या नाराज होने के, इस मंत्र का रोजाना 108 बार जाप करें। पराक्रमी महाराजा कार्तवीर्य का नाम आपके सामान या व्यक्ति को खोजने में मदद करेगा। ”
सूर्यकान्त ने तुरंत ही मंत्र जपना प्रारंभ कर दिया।
उस समय सुबह के 10.30 बजे थे, जब लहू ने साई विहार में प्रवेश किया। उसने यहां फर्नीचर के पॉलिश का काम किया था। वह दूसरे मजदूरों से अलग, बहुत शांत किस्म का व्यक्ति था। न तो वह सिगरेट पीता था, न तंबाकू या गुटका खाता था। दूसरे मजदूरों को यदि समय पर चाय न मिले तो वे हंगामा मचा देते थे, लेकिन लहू कभी-भी चाय की मांग नहीं करता था न ही चाय के लिए काम को रोकता था। उसे अपने काम के आगे और कुछ नहीं सूझता था।
संकेत को लहू के पॉलिश का काम बहुत पसंद था। जहां लहू काम करता था, संकेत उससे कुछ दूरी पर बैठकर उसके काम को देखता रहता था कि किस तरह वह पॉलिश करता है। संकेत अपनी जगह से टस से मस नहीं होता था; या तो उसने लहू पसंद था या फिर ताजे पॉलिश की गंध! लहू भी अपना काम करते हुए बीच-बीच में बच्चे की ओर देख कर मुस्कुरा देता था।
वही संकेत सूर्यकान्त के सामने हाथ जोड़े खड़ा था और रोते रुंआसा होकर गुहार कर रहा था, “ये लोग मुझे मेरे गांव से आधी रात को लेकर आए हैं....जबकि मैंने कोई अपराध नहीं किया है।”
अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार
©प्रफुल शाह
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