वाजिद हुसैन की कहानी
दिनभर ऑफिस की बकझक से दिमाग वैसी खाली हो रहा था। शरीर भी थका हुआ था। रात के खाने की चिंता सता रही थी, फिर सोचा, 'खाना- पीना
तो मर्द के दम से होता है, अकेली औरत का खाना ही क्या, मैगी खाकर काम चला लूंगी। अचानक कपिल के फोन ने चौंका दिया, 'अरे सुन आज शाम तुझसे मिलने आ रहा हूं, तेरी एक अमानत मेरे पास है वह देना है।' ... हालांकि हमारे संबंध विच्छेद को लगभग एक वर्ष हो चुका था, लेकिन कपिल बिल्कुल नहीं बदला था। उसी बेतक्ललुफी और अपनाईयत ने एक साल से बर्फ में जमी सीमा को पिघला दिया।
मुझे कपिल उस दिन भी याद आया था, जब शालिनी अस्पताल में मिली थी। वह अपने पति के साथ प्रेगनेंसी टेस्ट कराने आई थी और मैं अपने पेट पर जमी चर्बी कम कराने के लिए गई थी। डॉक्टर ने कहा, 'आपकी चर्बी का कारण स्ट्रेस है, स्ट्रेस दूर करिए चर्बी अपने आप छट जाएगी।'
मै अतीत में खो गई...। कभी शालिनी कपिल की सेक्रेटरी हुआ करती थी। कपिल को उससे प्यार भरी अपनाइयत से बातें करते देख, उसे दूसरी औरत समझ बैठी। अचानक मेरा ध्यान एक हल्की आवाज़ से टूट गया था, जो कह रही थी, 'तुम्हारे शक्की मिजाज़ से मैं तंग आ गया हूं। इस बार बस अंत है और मैं तुमसे इसी कारण दूर जा रहा हूं, वह भी इतने भद्दे ढंग से सबके सामने, ताकि वे तुम्हें समझा सकें कि हमारे बीच सब कुछ समाप्त हो चुका है।' मेरी आंखें डबडबा गईं, 'काश मैं शक्की न होती, तो स्ट्रेस टेस्ट के बदले प्रेगनेंसी टेस्ट करा रही होती!'
मेरे पापा शहर के जाने-माने वकील थे और कपिल एक मल्टीनेशनल कंपनी में सी.ई.ओ था। प्रत्येक रविवार को कपिल पापा के पास कंपनी के लीगल मैटर्स डिस्कस करने के लिए आता था। हमारे घर में एक छोटा सा लक्ष्मी जी का मंदिर था जो बाबा के ज़माने से ही हमारी आस्था का केंद्र था। होश संभालते ही, मैं मां के साथ पूजा में बैठने लगी थी और अपनी तोतली बोली से लक्ष्मी मैया से जो कुछ मांगती थी, मुझे मिल जाता था। मां, मिलने जुलने वालों से कहती थी, 'पता नहीं, इसकी लक्ष्मी मैया से कैसी ट्यूनिंग है, वह इसका दिल पढ़ लेती हैं और जो मांगती है, दे देती हैं।' ... सवेरे पापा पूजा में लीन रहते थे, इस दौरान क्लाइंटस को अटैंड करना मेरी ज़िम्मेदारी थी। ... यही ज़िम्मेदारी निभाते- निभाते मैं कपिल की चाहत बन गई और वह मेरी ज़िम्मेदारी, जिसे मैं निभा नहीं पाई थी।
हमारे मंदिर में लक्ष्मी जी की एक चांदी की मूर्ति थी, जो मां ने बड़ी श्रद्धा के साथ मेरी विदाई के समय मुझे दी थी और कहा था, 'मैया को कभी अपने से दूर न करना। यह तुझे शादी के बंधन में सदा बांधकर रखेंगी।'
जिस दिन कपिल मुझेे छोड़कर गया, उस रात पूजा के समय मुझे मूर्ति नहीं मिली। मुझे लगा, 'लक्ष्मी मैया भी मुझसे रूठकर चली गई।' मैंने मैया को मनाने के लिए हर जतन किया- दुआएं मांगी, मिन्नतें की, उपवास रखे पर मैया का दिल नहीं पसीजा। फिर एक दिन मैंने बिगड़ैल रूठी लड़की की तरह मैया से कहा, 'बुरे वक्त में तो अपना साया भी साथ छोड़ देता है, आप तो मूर्ति हैं।' और फूट-फूटकर रोने लगी।
कपिल के आने का समय हो रहा था। मैंने वही साड़ी पहनी, जो कपिल को पसंद थी, मैं हौले- हौले कंघी किए जा रही थी। आईने से झाकते चेहरे के ऊपर बाल अधिक काले और कम सुनहरे थे।... वर्ष भर पुरानी स्त्री का चेहरा कुछ पीला लेकिन भरा- भरा था। मैंने आदतन काम्पैक्ट निकाला और अपने चेहरे व नाक पर पाउडर लगाने लगी। मेरा मेकअप बिल्कुल ठीक था, कपिल को रिझाने के लिए, मैंने अच्छी ख़ासी मेहनत की थी। मैंने अपनी आंखों होठों और गालों पर मेकअप ठीक उसी अंदाज़ में किया था जैसा कपिल को पसंद आता रहा है। हां, एक साल पहले। आज मैं फिर उन्हीं आंखों में अपने को क़ैद करने जा रही थी।
कपिल कई प्रश्न मन में लेकर आया था। सूना किचन, गैस के पास रखा मैगी का पैकेट और मेरे आंसुओं ने उसके सभी प्रश्नों के उत्तर दे दिए थे। मैंने चांदी के बुत की तरह उसके पास खड़ी होकर उसकी तस्वीर को अपनी आंखों में क़ैद कर लिया था। ...कुछ देर बाद उसने मुझसे कहा, 'यह नहीं पूछोगी, मैं कौन सी अमानत वापस करने आया हूं?' ... 'एक लुटा बंजारा नहीं पूछता, 'क्या गया, क्या बचा।' वह तो रोता- गाता अपनी राह चल पड़ता है।' मैंने कहा।... यदि वह उसकी सबसे कीमती चीज हो तो भी नहीं पूछता?' कपिल ने पूछा।...'सबसे कीमती चीज़ की तस्वीर मैंने अपनी आंखों में क़ैद कर ली। मुझे जीने का सहारा मिल गया।'
'सीमा, क्या तुम अब भी मुझेे प्यार करती हो?' उसने प्यार के लहजे में पूछा।
मेरी आंखों से झरते आंसुओं ने बिना मुंह खोले, कह दिया था, 'अपनी जान से भी ज़्यादा।'
कपिल ने अपने ब्रीफकेस से एक मखमली बक्सा निकाला और बड़ी श्रद्धा से मुझे दिया, जिसमें लक्ष्मी मैया विराजमान थीं। फिर कहा, 'हमें मिलाने का श्रेय इन्हीं को जाता है। शालिनी की लाख कोशिशें मैया ने नाकाम कर दीं। ... मैं जब घर छोड़कर गया, सोचता था यह मूर्ति मेरे पास कैसे आ गई?' तुम तो जानती हो, शालिनी मेरी जोगन थी फिर अचानक उसने मुझे छोड़कर विवाह रचा लिया। मेरी समझ से यह लक्ष्मी मैया का चमत्कार है, जिससे प्रभावित होकर मैंने इन्हें मखमली बक्से में विराजमान कर दिया। और तुम्हारी अमानत तुम्हें लौटने का मन बना लिया।
मैं समझ चुकी थी, कपिल को शालिनी के चंगुल से छुड़ाने और हमें दोबारा मिलने की नियत से, मैया कपिल के साथ चली गई थी। मैने उनसे बस इतना कहा, 'मां लक्ष्मी यू आर ग्रेट, आई एम साॅरी, निराशा ने मेरी आस्था को डिगा दिया था।' और मेरा गला रूंध गया।
चांदनी से नहाई सड़क पर गाड़ी फर्राटे भरती हुई मेरे फेवरेट लेक व्यू होटल जा रही थी और मैं कपिल के साथ, नई-नवेली दुल्हन की तरह साइड सीट पर शर्माई बैठी थी।
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