ये कैसा हसीन गुनाह करना चाहते हो l
क़ायनात को फिरदौस बनाना चाहते हो ll
सब को अपने जैसा दिल वाला ना समझ l
सखी खुद से ही खुद को हराना चाहते हो ll
बड़े बेईमान, पढ़े लिखे, खुदगर्ज, मतलबी l
जहां को इंसानियत से सजाना चाहते हो ll
एक बार मेरी जुबां से मेरी दास्तान सुनो तो l
काटों के बीच गुलाबो को लगाना चाहते हो ll
दिलों की क़दर नहीं रहीं एक पैसे की भी l
पल में अदा बदले उसे क्या बताना चाहते हो?
१-१०-२०२३
आंखों से जाम पीला दो l
थोड़ी मुहब्बत मीला दो ll
फिसलते जा रहे हैं लम्हें l
छलकती सुराही हीला दो ll
दर्द समेटकर मुस्कुरा दो l
रंज ओ ग़म को सीला दो ll
मीठी सुमधुर आवाज़ में l
तरन्नुम छेड़कर सुला दो ll
रफ़्तार इस क़दर तेज़ है l
दिलों दिमाग से भुला दो ll
२-१०-२०२३
होठों से प्यार की सुराही छलक जाने दे आज l
मुहब्बत का जाम पीकर बहक जाने दे आज ll
साथ साथ रहकर दुनिया वालो को भुला दे l
दिल के अरमानो को चहक जाने दे आज ll
जिंदगी में लुफ्त उठाने की चाहत हुई है तो l
तड़पते हुए इरादों को छलक जाने दे आज ll
सुन मैंने नहीं मेरे दिल ने चुना है तुझको अब l
खुशबु से तेरी लिपटकर महक जाने दे आज ll
चैन सुकून और अपनेपन की महक मिलेगी l
मौका मिला है बाहों में सरक जाने दे आज ll
३-१०-२०२३
महफ़िल आ तो गये हों, जाओगे हमारी रजामंदी से l
पाओगे हमारी रजामंदी से ll
खाओगे हमारी रजामंदी से ll
लाओगे हमारी रजामंदी से ll
गाओगे हमारी रजामंदी से ll
जाओगे हमारी रजामंदी से ll
तू नहीं तो ये महफिल किस काम की l
होठों पे मुस्कान होती है बस नाम की ll
जो कहा नहीं गया वो रह गया मन में l
वही सुनाने जरूरत होती है जाम की ll
हर किसीको उड़ान के लिए आसमाँ दो l
बिना पूछे उड़े ज़ुर्रत नहीं है गुलाम की ll
शरारतें, ख्वाइशे, मोहब्बतें, हसरतें सब l
खुशियां और ख्वाब होती है कलाम की ll
दिल चाहता कुछ और होता कुछ और है l
अब कोई तमन्ना नहीं रहीं इनाम की ll
४-१०-२०२३
जानेमन खुद को सजाना सीख लो l
खुश रखकर जग जलाना सीख लो ll
सुन शोर मचाने का वक्त भी आएगा l
चाहे जो भी हो मुस्कुराना सीख लो ll
कुछ देर शांत होकर बैठ जा आज l
फिर हौसलों को फैलाना सीख लो ll
किसीके पास मेरे हक का वक्त नहीं तो l
ख़ुद के शब्र को आज़माना सीख लो ll
किसीकी खुशी के लिए उसे दूर रहो l
खामोश रखकर जी तपाना सीख लो ll
जो आप के लिए मरने को तैयार हो l
उसके लिए जरूर जीना सीख लो ll
लिपट गई हैं मुहब्बत अहसासों में l
नज़रों से नज़रे मिलाना सीख लो ll
जी लो जी भर के जरा सा जीवन है l
सच्चे रिस्तों को बनाना सीख लो ll
खुद को तराश ले और तलाश ले l
इश्क है तो वह बताना सीख लो ll
५-१०-२०२३
रोज वक्त की अदा के साथ गुजरना पड़ा l
आँखों में समंदर लेकर मुस्कुराना पड़ा ll
रंग काला पड़ गया है तमन्नाओं का तो l
क़ायनात से अरमानो को छुपाना पड़ा ll
दिल मसरूफ है सारे गम छुपाने में आज l
चंद लम्हों को महफिल में लुटाना पड़ा ll
बहुत तकलीफ दे रहा है प्यार का बंधन l
नाराजगी का रिसता भी निभाना पड़ा ll
कुछ किस्से फ़िर से जीने को जी करे है l
जिंदगी का ये पड़ाव भी बिताना पड़ा ll
६-१०-२०२३
दस्ताने जिंदगी की सबसे अलग है l
रूह का लिबास तो कबसे अलग है ll
ज़ख्मों को भरने में वक्त लग जायेगा l
अपनों की महेरबानियाँ रबसे अलग है ll
तुम्हारी छोड़ी हुईं खामोशी बहुत बोले l
तन्हा ही गुज़री रास्ते जबसे अलग है ll
ख्वाबों को बुनू या ख्वाइशों को बुनु l
वादी में ठहरे हुए लम्हे तबसे अलग है ll
महसुस रंजोगम नहीं होते वो पत्थर है l
प्यारी मुस्कराहट तो लबसे अलग है ll
७-१०-२०२३
अभी खुद को रेज़ा रेज़ा सहेजा हुआ है l
बाद मुद्दतों के खुद को खोजा हुआ है ll
बहोत अँधेरे बढ़े थे जिंदगी में उसकी l
रोशनी को चराग ए दिल भेजा हुआ है ll
उनके घर न जाते तो क्या करते हम l
सखी उसका तो दामन रेज़ा हुआ है ll
जब से बसंत का मौसम आया पेड़ो पे l
हर शाख पे हसी का आवेजा हुआ है ll
शिकायतें है, नाराजगी भी है चलता है l
रहने दे अब नहीं कहना बेज़ा हुआ है ll
आवेजा- लटकने वाली चीज़
रेज़ा रेज़ा कण कण
बेज़ा - अनुचित
८-१०-२०२३
आज नज़रोंका जाम पी लिया l
खुशियो का दीदार हो ही गया ll
इस जिंदगी में छूकर चल दिये l
दो पल में सदियाँ जी लिया ll
उम्रभर के लिए दवा देके गया कि l
सखी नजरों ने ज़ख्म सी लिया ll
बात कह देते तो हल निकाल देते l
दिल का हाल बताने सदी लिया ll
कुछ यूँही चलेगा रिसता उम्रभर l
प्यार से जब भी दिया तभी लिया ll
९-१०-२०२३
वो ना जाने कहां से आई है l
फिझाए खुशबु ले आई है ll
बहुत बहुत बहुत महंगी सी l
मुहब्बत में परवाह पाई है ll
बेहद प्यार करने वाले ने l
आज सुरीली नज़्म गाई है ll
महक रहीं हैं ख्यालों में उस l
तमन्ना ने ली अंगड़ाई है ll
जरा अदब से बुलाऐ जनाब l
ख़ामोशियों से भी शरमाई है ll
यहां इक अलग सा रुतबा है l
शहर में जोरों की पुरवाई है ll
इक दफ़ा बिखरना चाहते हैं l
साथ चल रहीं पड़छाई है ll
झील सी आँखों में डूब जाएंगे l
समंदर से ज्यादा गहराई है ll
सिमट जाए दौड़कर बाहों में l
प्यार की बारिस बरसाई है ll
१०-१०-२०२३
बड़ी अजीब दुनिया है किसीको न किसीकी है परवाह l
सच्चे को जूता मारे जूठे की होती रहती हैं वाह वाह ll
होठों पे अफ़साने और आँखों मे बड़ी बड़ी ख्वाहिशे l
क़ायनात के दिलकश मदहोश नज़ारे करते हैं गुमराह ll
किस पे करे और किस पर करे यहां कहो एतबार l
अपने ही गुरूर मे जीते हैं कहाँ मिलते हैं हमराह ll
खुद के कंधों पर ख़ुद का बोझ नहीं उठा पाते हैं तो l
सुन उम्मीद आख़िर में टूट जाएगी ना कर कोई चाह ll
दिखावे की चापलूसी करने वालो के इर्द-गिर्द घूमते हैं l
सखी वादे देकर ना आने वालो की ना देखाकर राह ll
११-१०-२०२३
इतजार की घड़ियाँ ख़त्म होने को है l
चैन ओ सुकूं के लम्हा खोने को है ll
चल रहे हैं एकदूसरे का हाथ थामे l
समंदर के बीचो बीच में जाने को है ll
महज कहने को वचन नहीं दिया है l
आज हमकदम हमदर्द पाने को है ll
आधी रात में आँखों ही आंखों में l
साथ जलते हुए दीपक सोने को है ll
इश्क़ और मुहब्बत कहाँ जुदा है भला l
हवाओ के छूने से स्पर्श बोने को है ll
१२-१०-२०२३
बोतल जो जाम छलकती है वो प्यारी हैं l
एक नज़र देखते ही नशा दे वो न्यारी है ll
जानते हैं दर्द, आंसूं, इंतजारी मिलेगी और l
इश्क से वफादारी की तभी दिल हारी है ll
हमक़दम, हमराह, हमसफ़र बनकर आज l
वक़्त ओ सहारा देने की हमारी बारी है ll
सीने में छुपाये रखा,उसने खत्म किया l
सुन धागा ही मोमबत्ती की पतवारी है ll
अपने आप को खोकर उसको पा लो l
नाजुक कली भली मीठी सी सवारी है ll
१३-१०-२०२३
मायूसी के बवंडर में ना फ़सना कभी l
सम्बंधो की डोर को ना कसना कभी ll
बहुत कम लोग होते हैं जो खुशी दे सके l
किसीकी मुस्कुराहटो में बसना कभी ll
दिलों दिमाग में छाया शोर खत्म करने l
खुद से तन्हाइयों में बातेँ करना कभी ll
तकदीर के अलावा हर जगह मिलेगे तो l
चाहनेवालों पर एक बार मरना कभी ll
जब जब ढूंढ़ोगे मुहब्बत में खुशियों को l
इश्क़ की झोली गुलाबों से भरना कभी ll
उलझनों से भरी पडी है पूरी क़ायनात l
सुकून के लिए गहरी नींद में सरना कभी ll
वैसे तो हर चीज़ को लूटा जा सकता है l
चैन ओ सुकून की दौलत ना हरना कभी ll
१४-१०-२०२३
रिश्तों में खूबसूरती बनाएँ रखना l
ताउम्र साथ तुम निभाएँ रखना ll
ये कजरारे नैनो ने दिल चुरा लिया है l
खामोशी से चुपचाप दिल लुभा लिया है ll
रूह तक पहुंचने की बात थी l
छली गई,वो सुहानी रात थी ll
दर्द लोग मुफ़्त में दे जाते रहे हैं l
बस ताउम्र यही फ़रियाद थी ll
नीद भी नीलाम हो चुकी है कि l
दिलों की महफिल याद थी ll
खोकर खोजना खेल बन गया l
कदर ओ वक्त की मात थी ll
जब पलटोगे जिंदगी के पन्ने l
बेपरवाह अंदाज़ में साद थी ll
१५-१०-२०२३
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह