इस बीच अर्जुन ने खबर दी कि वह उस लड़की से मिला है, ‘‘उसका नाम नम्रता है। बातचीत से ठीकठाक लगी। उसे जब मैंने बतलाया कि मेरी मां तुम्हारी मां को जानती है, तो वह खुश हो गयी। हम दोनाें ने अॉफिस से निकलने के बाद एक रेस्टोरेंट में काॅफी भी पी। नम्रता बहुत सुंदर लड़की है।’’
सुंदर शब्द ने मुझे धर्मसंकट में डाल दिया। अर्जुन ने नम्रता से शादी की जिद की, तब क्या करूंगी। तलाक तक तो ठीक था, पर जब बात चरित्र पर आएगी, तब क्या होगा? मुझे अपने आप पर अफसोस होने लगा कि क्यों इस मामले में जल्दबाजी दिखलायी? ना अर्जुन को लड़की की फोटो और पता बतलाती, ना ही वह एक कदम आगे बढ़ता। मैंने राजन से कहा, तो वे बड़े निश्चिंत भाव से बोले, ‘‘इसके लिए ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। अर्जुन ऐसा कुछ नहीं करेगा। हां, तुम लड़की की मां को बुला कर चाहो तो अपनी शंका का समाधान कर सकती हो। मेरे हिसाब से ऐसा कुछ नहीं होगा, जो अनुचित हो। मां का अच्छा कैरिअर है। बेटी को उच्च शिक्षा दिलवायी है। यह सब अच्छे संस्कारों से ही संभव है।’’
मुझे राजन की बात जंची। मौका देख कर दीपा को दोबारा बुलवाया।
‘‘क्या मैं आपकी निजी जिंदगी के बारे में जान सकती हूं?’’ पहले तो वह थोड़ा हिचकी, फिर तैयार हो गयी।
‘‘मेरे मन में आपको ले कर कुछ शंकाएं हैं, जिसका समाधान हो जाए, तो इस रिश्ते के लिए मुझे कोई एतराज नहीं होगा।’’
‘‘जी, पूछिए। मैं भी चाहूंगी कि कहीं कोई कसर ना रह जाए, जिसके लिए हम दोनों काे पछताना पड़े।’’
मैंने उस घटना का जिक्र किया। कुछ क्षण के लिए वह कहीं खो गयी। जब उबरी, तो उसकी आंखों के दोनों कोर भीगे हुए थे। एक स्त्री होने के नाते मैं भी भावुक हाे गयी।‘‘मैंने सोचा था कि वक्त के साथ मेरा अतीत भी दफन हो चुका होगा, पर ऐसा हुआ नहीं। आपके रूप में फिर से जिंदा हो गया। यह सच है कि मैं वही अभागिन स्त्री हूं, जिसके बारे में आप जानती हैं। वह मेरा प्रेमी था। पर यह सच नहीं था कि मैं शादी के बाद भी उससे मिलती थी। उस दिन उससे मिलने की सिर्फ यही वजह थी कि उसके पास हमारे साथ बिताए कुछ पलों की तसवीरें थीं, जिन्हें मैंने लेने का प्रयास किया। पता नहीं कैसे मेरे पति ने मुझे रिक्शे से अकेले जाते हुए देख लिया। उन्होंने मेरा पीछा किया और वे वहां तक आ पहुंचे। उसके बाद जो हुआ, वह आपकाे तो पता ही है,’’ उसने कहना जारी रखा, ‘‘शादी के 2 साल किसी तरह से गुजारे। नम्रता उन्हीं की बेटी थी, मगर उन्होंने कभी भी उसे नहीं स्वीकारा। वे बार-बार यही कहते कि यह मेरी बेटी नहीं है। अंततः जब उनकी आदतों में कोई बदलाव नहीं आया, तो एक दिन आजिज आ कर मैंने कहा, ‘‘क्या स्त्री का प्रेम करना गुनाह है? शादी के पहले आपने भी किया होगा? आपका प्रेम क्षम्य, वहीं मेरा प्रेम व्यभिचार। सिर्फ इसलिए कि मैं एक स्त्री हूं?’’
‘तुम्हारी वजह से आज भी मैं सामाजिक रुसवाइयाें से मुक्त नहीं हो पाया। कोई बात छुपती नहीं। सबको पता चल चुका है कि तुम शादी के बाद भी अपने प्रेमी से मिलती रही,’’ मेरे पति बोले।
‘‘उसके लिए आप जिम्मेदार हैं। अगर आप खुले दिमाग के होते, तो क्या जरूरत थी मुझे उससे फोटो लेने की। साथ फोटो खिंचवा लेना एक आम बात है। लड़का-लड़की एक साथ पढ़ रहे हैं। यदि उनके बीच एक अच्छी दोस्ती बन जाती है, तो साथ में फोटो खिंचवा लेने से कौन सा पहाड़ टूट पड़ता है। मगर नहीं, मन में आपको ले कर एक भय था, इसलिए उसके पास गयी थी। आपने तो सोचा कि मैं उसके पास प्रेमालाप करने जा रही हूं।’’
‘‘कौन देख रहा है कि अंदर तुम क्या कर रही हो। मैं चाह कर भी उस पल को भुला नहीं पाता।’’
‘‘इसका इलाज क्या है ?’’
‘‘तलाक।’’ यही उनका निर्णय था। मैंने भी इसे बेहतर फैसला समझा। तब से आज तक मैंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।’’
‘‘दूसरी शादी का खयाल नहीं आया।’’
‘‘पता नहीं क्यों मेरा मन नहीं हुआ। सोचा, एक लड़की है। उसे ही अपने जीवन का मकसद बनाऊंगी। उसे अच्छी परवरिश दूंगी, शिक्षा दूंगी।’’
‘‘कल को आपकी बेटी भी आपके पदचिह्नों पर चले, तब?’’
‘‘मैंने कौन सा गलत रास्ता चुना था? प्रेम किया, जो किन्हीं कारणों से शादी में तब्दील ना हाे सका। इसमें बुरा क्या है। जरूरी नहीं कि आप जिससे प्रेम करते हैं, उससे विवाह भी हो? मेरी गलती यह थी कि अपने प्रेमी से संपर्क करके उससे अपना अतीत मांगा, जो मेरे पति के शक का कारण बना। इसमें मैं अपने पति को दोष नहीं दूंगी, बल्कि मुझमें आत्मविश्वास की कमी थी। ना जाती उसके पास। जो होता देखा जाता। कल यदि मेरे पति कोे मेरे प्रेमी से पता चलता कि मैं उससे प्रेम करती थी, तो मैं निडर हो कर कहती ‘हां करती थी।’ और हां, आप यह मत समझिएगा कि मेरी बेटी नहीं जानती है। मैंने उसे सब बता दिया है। जमाने की ऊंच-नीच भी समझा दी है। मुझे उस पर पूरा भरोसा है कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिसके लिए उसे बाद में पछताना पड़े। उसमें मुझे ले कर कोई हीन भावना नहीं है।’’
दीपा की बातों से लगा कि वह बेकसूर स्त्री थी। वह उठ कर जाने लगी। मैंने उसे दरवाजे तक छोड़ा। इतना सब कुछ कहने-सुनने के बाद उसके चेहरे पर कहीं भी अपराधबोध के शिकन ना थे। यह मुझे अच्छा लगा। एक महीना गुजर गया। मैंने इस शादी के बारे में सोचना छोड़ दिया था।
एक दिन अर्जुन का फोन आया, ‘‘मां, मुझे नम्रता पसंद है। मैं उसी से शादी करना चाहता हूं।’’
सुन कर मुझे तीव्र आघात लगा। उस समय तो कुछ नहीं बोली, मगर जब रात को राजन ऑफिस से आए, तो अर्जुन की पसंदगी के बारे में जिक्र किया।
‘‘दिक्कत क्या है। लड़की उच्च शिक्षा प्राप्त है। अच्छी नौकरी में है। मुझे तो उसमें कुछ खराबी नजर नहीं आ रही।’’
‘‘मैं उसकी मां का अतीत पचा नहीं पा रही हूं।’’
‘‘अतीत के बारे में सोच कर क्या हासिल हो जाएगा। जीना तो है हमें वर्तमान में। वर्तमान यही कहता है कि उस लड़की में कोई खराबी नहीं है। अगर उसकी मां चरित्रहीन होती, तो दूसरी शादी रचा कर ऐश करती। मगर नहीं, उसने अपनी जवानी अपनी बेटी के भविष्य के लिए कुर्बान कर दी। इससे बड़ा त्याग कुछ नहीं हो सकता,’’ राजन का तर्क न्यायसंगत था।
‘‘इसका मतलब आपको यह शादी पसंद है?’’
‘‘ज्यादा खोजबीन का जमाना गया। आज के बच्चे अपने आर्थिक भविष्य के बारे में ज्यादा सोचते है। अर्जुन ने उसकी शक्ल नहीं, बल्कि अपना आर्थिक भविष्य देखा होगा। आज के बच्चे भावनाओं में नहीं बहते। ऐसा ही लड़की ने भी सोचा हाेगा?’’
‘ऐसे बच्चों के आगे हम कहां टिकते हैं? कल को बेटे-बहू काे लगेगा कि हम बेकार हैं, तब क्या हाेगा?’’
‘‘यह तुम क्या सोचने लगी?’’
‘‘मैं गलत नहीं सोच रही। आप ही तो कह रहे हैं कि आज के बच्चे भावनाओं में नहीं बहते। ना भावना रहेगी, ना वे हमें पूछेंगे,’’ कह कर मैं निराशा में डूब गयी।
‘‘उसकी चिंता मत करो। कल की कौन जानता है। और हां, दीपा के अतीत का जिक्र कभी भी अर्जुन के सामने मत करना।’’
मैंने भी मन बना लिया कि ऐसा ही होगा। राजन ने कुछ सोच कर ऐसा कहा होगा।
बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी है। सो दीपा को फोन करके बुलाया। वह भागी-भागी आयी। जैसे ही मैंने शादी की रजामंदी की खबर दी, उसकी आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। मेरा हाथ अपने हाथ में लेती हुई बोली, ‘‘आपने मेरी बेटी का हाथ थाम कर मुझे एक बड़ी चिंता से उबार दिया। मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी नम्रता यहां सुखी रहेगी।’’ मैंने दीपा को गले लगा लिया।