Tash ka aashiyana - 33 in Hindi Fiction Stories by Rajshree books and stories PDF | ताश का आशियाना - भाग 33

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ताश का आशियाना - भाग 33

सिद्धार्थ घर में घुसते ही पहला सवाल था, "यह क्या हो गया सिद्धार्थ? तुषार यह सब क्या है?"
"वो एक्सीडेंट हो गया था आंटी।"
"एक्सीडेंट! एक्सीडेंट कैसे? कब?"
"आंटी वो लंबी बात है थोड़ा पहले फ्रेश हो जाए। भूख भी बहुत लगी है।"
"ठीक है। तुम दोनो फ्रेश हो जाओ। आज मैंने दाल –चावल ही चढ़ा दिया है, तड़का मार परोसती हु।"

अपने–अपने काम निपटते ही तीनो खाना खाने किचन में ही बैठ गए।
तीनो अपनी–अपनी जगह से आए थे, गंगा भी काफी थक चुकी थी। इसलिए डाइनिंग टेबल पर दुनिया की तमाम चीजे रखी थी। इसलिये तीनो नीचे ही खाना खाने किचन में बैठ गए थे।
सिद्धार्थ कुछ ज्यादा नही खा पा रहा था।
थोड़ा खाते ही उसके सिर पर सनक आ जाती।
गंगा यह देख, तीतर–बितर हो गई।
"क्या हो गया यह सब तुम लोग बताओगे भी या नहीं?"
तुषार सिद्धार्थ की बेचैनी महसूस कर रहा था इसलिए तुषार ने गंगा से कहा, "आंटी मैं आपको बाद में सब कुछ बताता हूं भाई को खाना खा लेने दीजिए ,मुझे उन्हें गोलियां भी देनी है।"
तुषार के बोले गए शब्दों से गंगा की बेचैनी दूर नहीं हुई। फिर भी सिद्धार्थ की हालत वह भी देख रही थी चिड़िया का निवाला वह खा रहा था उसपर से वो भी खाना उसे मुश्किल जा रहा था।

मन में ही उन्होंने ठान लिया वह कल सिद्धार्थ के लिए कुछ हल्का-फुल्का बनायेगी लेकिन उससे पहले तुषार से सब कुछ जानना जरूरी था।
सिद्धार्थ ने थोड़ा बहुत खाना खाते ही तुषार ने उसे गोलियां दे दी और वो सो गया।
सिद्धार्थ के रूम से बाहर निकलते ही, तुषार की परेड लग गई।
"अब तो बता की यह सब सिद्धार्थ के साथ कैसे हुआ इतनी चोट उसे कैसे लग गई?"
तुषार सोफे पर बैठ गया गंगा ने भी कुर्सी पकड़ ली।

"आपको पता है उसे दिन आप और अंकल घर वापस आए थे और आपने मुझे कहा था की, ताऊजी की डेथ हो चुके हैं और आप कुछ दिन वही रुकना चाहते है।उसी दिन भाई का एक्सीडेंट हुआ।"
"तुमने हमें बताया क्यों नहीं फिर?" गंगा गरज उठी।
"आप पहले से ही काफी दुख में थे इसलिए मैं आपको और परेशान नहीं करना चाहता था और वैसे गलती भी तो मेरी ही थी?"
" तुम्हारी गलती! तुम्हारी गलती के कारण ही सिद्धार्थ का यह हाल हुआ है?"
"उस दिन मैंने ही भाई को उकसाया था ताकी वह यह बोल दे कि,वह रागिनी से प्यार करता है। उसने कन्फेस भी कर लिया लेकिन कन्फेस करते ही वह वहां से चला गया। मुझे सच में नहीं पता था की भाई कुछ ऐसा कदम उठाएंगे और यह सब कुछ हो जाएगा।"
गंगा जोर–जोर से रोने लगी।
"तुम्हें जरूरत क्या थी यह सब कुछ करने की?"
"आपने ही तो मुझे कहा था कि मुझे भाई को यह अहसास दिलाना होगा कि वह रागिनी के लिए बने हैं। मैंने वही करने की कोशिश की है मेरी गलती नहीं है इसमें सब।" तुषार चिड़चड़ा सा हो गया।
"रागिनी जी भी तो वही काम कर रही थी।"
अचानक गंगा स्तब्ध हो गई।
"आपने ही रागिनी जी को रिक्वेस्ट की थी ना कि वह भाई को एक बार एहसास दिलाने की कोशिश करें कि यह शादी उनके लिए कितनी जरूरी है। और उन्होंने मुझे यह भी बताया कि, वह भाई से अभी प्यार करने लगी है।"
लेकिन भाई उनके प्यार को समझ ही नहीं पा रहे है। इसलिए मैंने भाई को उकसाने की कोशिश की लेकिन मुझे नहीं पता था कि भाई खुद का ध्यान नहीं रख रहे। मेडिसिन के ओवरडोज के कारण उनका एक्सीडेंट हो गया।
रागिनीजी को भी इस बात का पछतावा है। और सबसे ज्यादा मुझे अगर मैं आज भाई को खो देता तो मैं खुदको कभी माफ नहीं कर पाता।

गंगा रोने लगी।
वह अपने बेटे के लिए कुछ अच्छा ही चाहती थी।
हर मां की तरह वह यही चाहती थी उनका बेटा खुश रहे एक नॉर्मल जिंदगी जिए लेकिन इसके लिए वह अपने बेटे की कुर्बानी कभी नहीं चाहती थी।
तुषार को कुछ समझ नहीं आ रहा था वह एक तरफ गंगा को शांत करें या उन पर गुस्सा करें तुषार ने सिर्फ आखिरकार यही कहा, "आंटी बस कर दीजिए अभी। भाई को अगर कभी आगे बढ़ना होगा तो वह खुद बढ़ जाएंगे। हम उन पर कभी भी खुशियों की जोर–जबरदस्ती नहीं कर सकते। हम उनके फैसले में साथ दे सकते हैं लेकिन इन पर फैसला थोप नहीं सकते।"

यह बात तय है की, भाई भी रागिनी जैसे प्यार करते हैं लेकिन उनकी बीमारी की इनसिक्योरिटी इतनी है कि वह आगे बढ़ना नहीं चाहते।
आपने हमसे जो कुछ भी करने को कहा हमने वह सब कुछ किया भाई को यह एहसास भी दिल दिया कि वह रागिनी जिसे प्यार करते हैं l अब सब भाई पर है। भाई जो भी फैसला लेंगे हम उसके साथ हैं।
और एक बात और, "मैं आपका साथ और नही दे सकता।"

-------------
कुछ दिन तक माहौल बहुत शांत था।
सिद्धार्थ और गंगा में ख़ासा बातें नहीं हुई। गंगा खुद पर काफी शर्मिंदा थी।
वहीं दूसरी तरफ तुषार की एडिटिंग फाइनल हो गई थी।उसमें सिद्धार्थ ने भी मदद की थी।
तुषार खुद इंदौर को जाकर वह फिल्म प्रतीक्षा को देखकर आने वाला था।

सिद्धार्थ का जीवन फिलहाल चंद गोलियों और खिचड़ी पर ही चल रहा था।
तुषार जब इंदौर को पहुंचा तभी उसे एक फोन आया, फोन रागिनी का था।
उसने सिद्धार्थ से मिलने की इच्छा जताई।
तुषार थोड़ा बेचैन हो गया। वह क्या बोले उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। खुद की कुछ सलाह देकर वह इस रिश्ते को चला नहीं सकता था यह उसे पता था इन रिश्ते की बुनियाद सिर्फ दोनों पर ही टिकी थी। इसलिए उसने बिना कुछ ज्यादा सोचे रागिनी को कहा, "मैं इंदौर आया हूं। मैं आपको भाई का फोन नंबर सेंड कर रहा हूं, आप बात कर लीजिएगा।"
यह तय था कि सिद्धार्थ रागिनी से प्यार करता है। एडिटिंग करते वक्त तुषार को यह समझ आया एडिटिंग करने की बजाय सिद्धार्थ का ज्यादातर ध्यान रागिनी के अनऑफिशियल पिक पर ही था।
क्योंकि सिर्फ बनारस में एडिटिंग ही नहीं हुई, बल्कि चारों ने काफी खुलकर मस्ती भी की और ऐसे ही कुछ तस्वीरें तुषार के कैमरे में कैद थी।
जो सिद्धार्थ ने चुपके से खुद के फोन में भेज दी थी। सिद्धार्थ को लगा तुषार को यह पता नहीं चलेगा लेकिन तुषार जैसे टेक एक्सपर्ट से यह छुपाना काफी मुश्किल था।
तुषार ने किसी भी चीज के लिए सिद्धार्थ को नहीं टोका।
उसने ठान लिया था वह किसी भी चीज के लिए सिद्धार्थ को अभी नहीं टोकेगा।
तुषार ने आखिरकार रागिनी को व्हाट्सएप पर वह नंबर सेंड कर दिया।
दूसरी तरफ, तुषार की अनदेखी रागिनी की बहुत सी तस्वीर सिद्धार्थ के गैलरी में पहुंच चुकी है इस बात पर वो खुश था।
कुछ साल पहले सिद्धार्थ के मन में एक फोटो छपा था वह चित्रा का था आज वह पूरी तरह से गायब हो गया था। बोल सकते हैं कि, सिद्धार्थ ने वह आज निकाल कर फेंका था।
बहुत बार कहा जाता है, रिश्ते कागज पर खत्म होने से पहले मन में ही खत्म हो जाते हैं।
चित्रा का नाम सिद्धार्थ के मन से कब का धुंधला पड़ चुका था। लेकिन वह सिद्धार्थ की इग्नोरेंस ही थी कि वह अब तक वॉलेट में घर कर बैठा था।
उसके वॉलेट में उसको किसी को भी जगह नहीं देनी थी।
रागिनी ने उसके दिल में जगह बना ली थी वह काफी था उसके लिए।
रागिनी की फोटो वॉलेट में रख, उसे लोगों के सवालों का जवाब नहीं देना था।
रागिनी से दूर से ही प्यार करना उसे एक अजीब सुकून देता था।
वह एक एहसास था जो उसमें ही जिंदा रहने वाला था।

इंसान को जीने के लिए दुनिया में सिर्फ़ ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती बल्कि हम अकेले नहीं यह एहसास भी काफी जरूरी होता है। वह कल्पना ही क्यों ना हो भला।
सिद्धार्थ को सिर्फ मेडिसिन नहीं लेकिन रागिनी के चेहरे पर की हंसी सपने में ही बसाई गई छोटी सी दुनिया। उसके जिंदगी को आगे सुखकर बना रही थी।
और उसकी बीमारी के चलते वह अपने इन सपनों के लिए गुनहगार–गिल्टी भी नहीं था।

उसे रागिनी को खुद की लाइफ में जगह देकर रागिनी की लाइफ बर्बाद नहीं करनी थी।
लेकिन उसे पता था अगर रागिनी उसके जिंदगी में नहीं रही तो उसकी जिंदगी आगे ही नही बढ़ पाएगी।
यही फीलिंग थी जो रागिनी के लिए उसको और पागल बना रही थी।
–-------------

तुषार और प्रतिक्षा खुश थे।
मानों दोनो टीनएज क्रश एक दूसरे को मिल रहे हो,पहली बार, कन्फेस करने के लिए।
उत्साह और गर्माहट से दोनों का मन भर चुका था।
प्रतिक्षा काफी शर्मा रही थी और तुषार भी आंखे मिलाने से चुरा रहा था। धड़कने काफी तेज हो चुकी थी।
तुषार ने दोनों के बीच की शांति तोड़ते हुए, "सबमिशन कब है?"
"कल सबमिट करना है। अगर उन्हें पसंद आया तो वह फिल्म शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल के लिए सिलेक्ट होगी।
हर एक स्टेट से बेस्ट फिल्मे जायेगी। उसके बाद बेस्ट फिल्म को सेलेक्ट किया जाएगा। हाफ ऑफ द टाइम मुंबई वाले ही जीत ले जाते हैं, अब देखते हैं।"
दोनो अभी फिलहाल अपनी भावनाओं को बाजू कर आगे पीछे चल रहे थे। प्रतिक्षा आगे, तुषार उसके पीछे।
"डोंट वरी सब ठीक हो जाएगा।" तुषार ने दिलासा दिया।
"एट लिस्ट इंदौर में से मैं सेलेक्ट होती हो तो पापा को मना भी सकती हूं। आगे कुछ करने के लिए।"
"और अगर पापा नहीं माने तो?" तुषार ने घबराते–घबराते हुए प्रतीक्षा पर सवाल दागा।
प्रतिक्षा के आगे चल रहे पैर रुक गए।
तुषार के पसीने छूटने लगे जैसे कि अच्छे मूड को उसने बिगाड़ कर रख दिया हो।
वह पूछे मूडी और एक मुस्कान के साथ बोल गई, "फिर मैं खुद के सपने के लिए खुद लड़ूंगी।"
तुषार एकाएक चिंता मुक्त हो गया, उसने प्रतीक्षा के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया।
"तुम कर लोगी, आई बिलीव इन यू।"
"मुझे मेरे पापा को प्राउड फील करवाना है, जैसे वह भाई के लिए प्राउड फील करते हैं। मैं भी उनके पगड़ी की शान बनना चाहती हूं।"
आने जाने वाले लोग उन्हें अलग-अलग नजरिए से देख रहे थे। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था।
दोनों के मन में भी कल की फिक्र नहीं थी, बस अंदर सुकून का अनुभव दौड़ रहा था।
"क्या यह सिर्फ एक अट्रैक्शन है?"
दोनों के दिल में एक ही सवाल चल रहा था।
लेकिन "Ignorce is bliss" इस एक बात पर दोनों फिलहाल अड़े थे।

वैसे भी दोनों को जिंदगी में बहुत कुछ हासिल करना था तो इन बातों पर वक्त जाया करना दोनों को फिजूल ही लग रहा था।