Wo Maya he - 68 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 68

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वो माया है.... - 68



(68)

बद्रीनाथ आज जो कुछ उमा ने महसूस किया उस पर विचार कर रहे थे। मनोहर ने बताया था कि उमा छत पर खड़ी चिल्ला रही थीं। कह रही थीं कि माया उनके सामने खड़ी हंस रही है। उसके बाद वह बेहोश हो गईं। इससे पहले भी उन्हें दो बार माया के आसपास होने का एहसास हुआ था। सोनम और मीनू को भी माया के होने का अनुभव हुआ था। बद्रीनाथ ने कभी उन लोगों के अनुभव पर संदेह नहीं किया था। उन्हें विश्वास था कि माया का बदला पूरा नहीं हुआ है। इसलिए वह उनके घर के आसपास मंडराती रहती है। इस घर की खुशियां छीनकर संदेश देती है कि उसने जो कहा था वह पूरा होकर रहेगा।‌ वह सोच रहे थे कि उन्हें विशाल को बचाने के साथ साथ माया से मुक्ति पाने का उपाय भी करना होगा। उन्होंने तय किया कि कल पहले जगदीश नारायण से बात करेंगे। उससे पूछेंगे कि विशाल के छूटने की कितनी संभावना है। उसके बाद अपने दोस्त शिवराज रस्तोगी के साथ बाबा कालूराम से मिलने जाएंगे।
बद्रीनाथ सोने की कोशिश कर रहे थे पर नींद नहीं आ रही थी। उनके मन में अभी भी तरह तरह की बातें चल रही थीं। वह परेशान थे। लेकिन धीरे धीरे दिमाग इन सारी बातों से थकने लगा। शरीर तो पहले ही दिनभर की भागदौड़ से थका हुआ था। उनकी पलकें भारी होने लगीं। अंत‌ में वह सो गए।‌
घर के आंगन में बद्रीनाथ सर झुकाए खड़े थे। माया उनके सामने थी। वह उन्हें घूर रही थी। उसकी आँखों में गुस्सा था।‌ उसने कहा,
"ताऊ जी याद है ना वह दिन। हम इसी आंगन में खड़े आपसे गिड़गिड़ा रहे थे कि हमारी और विशाल की शादी करा दीजिए। हम उसे बहुत प्रेम करते हैं। पर आप पत्थर का बुत बने रहे। आपने हमारी विनती नहीं सुनी। क्या कमी थी हमारे अंदर ?"
माया का यह सवाल सुनकर बद्रीनाथ की आँखें और झुक गईं। माया ने उसी तरह गुस्से से कहा,
"हम आपको और ताई जी को अपने मम्मी पापा की तरह समझते थे। बुआ जी की इज्ज़त करते थे। उनके मना करने पर भी उनके पैर दबाते थे। आप सब लोग मेरी तारीफ करते थे। लेकिन जब आप लोगों को पता चला कि हम और विशाल एक दूसरे को चाहते हैं। शादी करना चाहते हैं तो आप लोग एकदम बदल गए। पापा और आप अच्छे दोस्त थे। पापा आपको अपने बड़े भाई की तरह मानते थे। आपने उनका और हमारी मम्मी का अपमान किया। उनसे कहा कि उन्होंने जानबूझकर हमें विशाल की तरफ ढकेला है। हम आपको इतनी गिरी हुई लड़की लगते थे ?"
बद्रीनाथ की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह नज़रें उठाकर माया की तरफ देख सकें। माया ने कहा,
"इस घर को हम अपना मानते थे। आप लोग हमारा परिवार थे। लेकिन आपके अहंकार ने हमें मजबूर किया कि हम इस घर को श्राप दें। अब हम उस श्राप को पूरा करेंगे। इस घर में जितनी खुशियां आई थीं उन्हें हम खा गए। आगे भी इस घर को खुशहाल नहीं रहने देंगे।"
बद्रीनाथ उसके पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाने लगे। कह रहे थे कि हमें माफ कर दो। अब बस विशाल ही बचा है जो हमारे जीवन का सहारा बन सकता है। उसे हमसे मत छीनो।
उमा डरी हुई बिस्तर पर बैठी थीं। बद्रीनाथ नींद में बड़बड़ा रहे थे। माया से माफी मांग रहे थे। डर के कारण उमा ज़ोर से चीखीं। उनकी चीख से बद्रीनाथ की नींद टूट गई। वह पसीने से लथपथ थे। सामने उमा का घबराया हुआ चेहरा देखकर समझने की कोशिश कर रहे थे कि हो क्या रहा था। उमा की चीख सुनकर मनोहर और नीलम की नींद भी टूट गई थी। दोनों भागकर कमरे में आए। बद्रीनाथ को पसीने से भीगा हुआ देखकर मनोहर बोले,
"क्या हुआ दीदी ? आप चिल्लाईं क्यों ?"
उमा ने कहा,
"विशाल के पापा सोते हुए बड़बड़ा रहे थे।"
बद्रीनाथ अब कुछ सामान्य हो गए थे। उन्हें सारी बात समझ आ गई थी। उन्होंने कहा,
"तुम लोग घबराओ नहीं। हम सपना देख रहे थे।‌"
उमा ने कहा,
"वह आपके सपने में आई थी। आप उससे माफी मांग रहे थे। वह हर तरह से हमें परेशान कर रही है।"
चीख सुनकर किशोरी भी जाग गई थीं। अनुपमा उनके कमरे में ही सो रही थी। उन्होंने उसे जगाया। उसके साथ बद्रीनाथ के कमरे में आ गई थीं। उमा की बात सुनकर उन्होंने कहा,
"बद्री....हम कह रहे हैं कि बाकी काम बाद में। कल सबसे पहले बाबा कालूराम से मिलो। उन्हें सब बताओ। बहुत ज़रूरी है माया को वश में करना।"
उमा ने भी किशोरी की बात का समर्थन किया। बद्रीनाथ सोच रहे थे कि अब और देर करना ठीक नहीं होगा।

सुबह होते ही बद्रीनाथ ने सबसे पहले अपने दोस्त शिवराज रस्तोगी को फोन करके बाबा कालूराम से मिलने की इच्छा जताई। शिवराज ने कहा कि बाबा दोपहर बाद ही मिल पाएंगे। बद्रीनाथ ने कहा कि वह आज दोपहर को ही उनके घर आते हैं। उनके साथ ही बाबा से मिलने जाएंगे। शिवराज ने कहा कि अच्छा होगा कि वह उसी रेस्टोरेंट में आ जाएं जहाँ उन दोनों की मुलाकात हुई थी। बद्रीनाथ तैयार हो गए। शिवराज ने कहा कि दोपहर तीन बजे के करीब बद्रीनाथ उनको वहीं मिलें। शिवराज से बात करने के बाद बद्रीनाथ जगदीश नारायण से मिलने जाने के लिए तैयार होने लगे।
नाश्ता करते हुए मनोहर ने पेशकश की कि वह भी उनके साथ चलते हैं। बद्रीनाथ नहीं चाहते थे कि उनके सामने सारी बात आए। उन्होंने कहा कि वह परेशान ना हों। उन्हें अपनी नौकरी पर जाना होगा। वह अपने घर चले जाएं। मनोहर के लिए भी ऑफिस से छुट्टी लेना संभव नहीं था। वह मान गए। उन्होंने कहा कि कुछ दिनों के लिए नीलम को यहीं छोड़ जाएंगे। अनुपमा की पढ़ाई का हर्ज़ ना हो इसलिए उसे साथ ले जाएंगे।

जगदीश नारायण अपने दफ्तर में बैठे थे। वह कुछ गंभीर लग रहे थे। बद्रीनाथ इंतज़ार कर रहे थे कि वह कुछ कहें। कुछ देर बाद जगदीश नारायण ने कहा,
"भाईसाहब....विशाल ने जो बताया है उसके बाद उसका केस इतना आसान नहीं होगा। उसने कौशल को अपने ही छोटे भाई पुष्कर को मारने की सुपारी दी थी।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"जगदीश.... उसने कौशल को पुष्कर की हत्या करने के लिए भेजा था। पर उसने की तो नहीं। हत्या तो किसी और ने की है।"
"लेकिन विशाल ने कौशल और उसके दोस्त के साथ मिलकर पुष्कर की हत्या की साज़िश रची थी। यह एक अपराध है। भले ही हत्या किसी और ने की हो। लेकिन उन तीनों पर साज़िश रचने का इल्ज़ाम लगेगा। उन्हें सज़ा भी मिलेगी। पर अभी हम विशाल की बेल के लिए अर्ज़ी दे सकते हैं।"
बद्रीनाथ कुछ चिंतित हो गए। उन्होंने कहा,
"ठीक है जगदीश तुम बेल के लिए अर्ज़ी दो। विशाल की मम्मी बहुत दुखी हैं। विशाल घर आ जाएगा तो तसल्ली हो जाएगी।"
बद्रीनाथ ने अपनी जेब से पर्स निकाल कर पैसे जगदीश नारायण को पकड़ा दिए। जगदीश नारायण ने पैसे गिने। उन्हें अपनी जेब में रखते हुए कहा,
"आगे जब केस शुरू हो जाएगा तब ज्यादा पैसों की ज़रूरत‌ होगी।"
"पैसों की चिंता ना करना। जब कहोगे मिल जाएंगे। बस विशाल को बरी करवा दो।"
"देखता हूँ कि क्या हो सकता है। अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगा।"
बद्रीनाथ उठकर खड़े हो गए। चलते समय जगदीश नारायण से कहा कि वह जल्दी विशाल की बेल कराने की कोशिश करें।

विशाल ने पूछताछ में सबकुछ सही सही बता दिया था। उसके पास कोई और रास्ता भी नहीं था। कौशल और पवन ने पहले ही सारी बात बता दी थी।‌ अब झूठ बोलकर विशाल अपनी मुसीबत बढ़ाना नहीं चाहता था। बीते काफी समय से वह अपने किए पर पछता रहा था। यह बात उसे बुरी तरह कचोटती थी कि अपने गुस्से में उसने वह कर दिया जो बिल्कुल भी ठीक नहीं था। अपने उस भाई को मारने की सुपारी दी थी जिसे बचपन में वह बहुत अधिक चाहता था। माया और उसकी प्रेम कहानी में वह एक महत्वपूर्ण कड़ी था।
अभी तक वह गिरफ्तार होने से डरता था। उसे लगता था कि अगर वह पुलिस के हाथ लग गया तो सारी बात दुनिया के सामने आ जाएगी। तब उसके मम्मी पापा पर क्या बीतेगी। पर गिरफ्तार होने के बाद अब उसे लग रहा था कि जो कुछ उसने किया है उसकी सज़ा उसे मिलनी चाहिए। वह सोच रहा था कि पापा को तो सब पता चल गया है। पर अभी मम्मी को यह बात नहीं पता है। तभी तो उन्होंने उसके लिए खाना बनाकर भेजा था। लेकिन जब उन्हें पता चलेगा कि उनकी ही कोख से जन्म लेने वाले ने पुष्कर को मारने की साज़िश रची थी तो उन पर क्या बीतेगी ? अगर कभी उसका अपनी मम्मी से सामना हुआ तो उनसे नज़रें कैसे मिलाएगा ? वह बहुत पछता रहा था और चाहता था कि जो गलती उससे हुई है उसका प्रायश्चित सज़ा काटकर करे। इसलिए उसने पुलिस को सब सच बता दिया था।
विशाल का बयान पूरा हो जाने के बाद भी इंस्पेक्टर हरीश के मन में कुछ सवाल थे। उनमें एक प्रमुख सवाल था कि अगर उसने पुष्कर की हत्या के लिए कौशल को उसके पीछे भेजा था तो उसने पुष्कर और दिशा को फोन क्यों किया था ? यह बात दिशा ने बताई थी और उसके कॉल रिकॉर्ड से भी स्पष्ट थी। इस सवाल के जवाब में विशाल ने कहा कि उसका सिर्फ इतना सा कारण था कि हत्या के बाद कोई उस पर शक ना करे। लोगों को लगे कि उसे अपने भाई की बहुत फिक्र थी। उसका हाल चाल लेने के लिए उसने फोन किया था। उसने कहा कि पहले उसने पुष्कर को फोन किया। जब उसका फोन उठा नहीं तो उसे लगा कि शायद कौशल ने काम कर दिया। उसने दिशा को फोन मिलाकर बात पक्की करनी चाही। वह किसी और कॉल में व्यस्त थी। फिर वह अपने घरवालों को संभालने लगा। रक्षा कवच के गायब हो जाने से सब परेशान थे। कुछ देर बाद जब उसने कौशल को फोन किया तो उसने बताया कि पुष्कर का ताबीज़ खो गया था और वह अपना काम कर गई।