Wo Maya he - 67 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 67

Featured Books
  • चाळीतले दिवस - भाग 6

    चाळीतले दिवस भाग 6   पुण्यात शिकायला येण्यापूर्वी गावाकडून म...

  • रहस्य - 2

    सकाळ होताच हरी त्याच्या सासू च्या घरी निघून गेला सोनू कडे, न...

  • नियती - भाग 27

    भाग 27️मोहित म्हणाला..."पण मालक....."त्याला बोलण्याच्या अगोद...

  • बॅडकमांड

    बॅड कमाण्ड

    कमांड-डॉसमध्ये काम करताना गोपूची नजर फिरून फिरून...

  • मुक्त व्हायचंय मला - भाग ११

    मुक्त व्हायचंय मला भाग ११वामागील भागावरून पुढे…मालतीचं बोलणं...

Categories
Share

वो माया है.... - 67

(67)

कौशल शिकायत भरी नज़रों से पवन को देख रहा था। उसके इस तरह से देखने से ऐसा लग रहा था कि जैसे जो हुआ उसके लिए वह पवन को दोष दे रहा था। उसका इस तरह देखना पवन को अच्छा नहीं लग रहा था। उसने कहा,

"मुझे इस तरह देखने का क्या मतलब है ? जो हुआ उसके लिए क्या मैं ज़िम्मेदार हूँ ?"

साइमन ने पवन को डांटते हुए कहा,

"यह मत भूलो कि तुम दोनों पुलिस स्टेशन में हो। तुम लोगों से पूछताछ हो रही है।"

उसके बाद कौशल की तरफ देखकर बोला,

"वैसे इससे पहले भी जब हम लोग चाय पीने के बाद पूछताछ के लिए आए थे तब तुम पवन को किसी बात के लिए दोषी ठहरा रहे थे। क्या बात है ? तुम दोनों तो साथ थे। फिर झगड़ा किस बात का है ?"

पवन ने कहा,

"सर जबसे इस पुलिस स्टेशन में आए हैं यह हर चीज़ के लिए मुझे दोष दे रहा है। सर मैं तो बुखार के बावजूद भी इसके साथ जाने को तैयार था। तब इसने ही मना कर दिया। इस्माइल को प्लान में शामिल कर लिया। अब कह रहा है कि तुम्हारी वजह से सब गड़बड़ हुई।"

कौशल गुस्से से बोला,

"मैंने कभी उस चीज़ के लिए तुम्हें दोष नहीं दिया। लेकिन....."

"चुप......"

साइमन ने गुस्से से डांटा। उसने कहा,

"मैंने कहा ना तुम दोनों पुलिस स्टेशन में हो। चाय की दुकान पर नहीं बैठे हो कि इस तरह लड़ो। अब संयत में रहकर सही से बताओ कि क्या बात है ?"

कौशल शांत हो गया। उसने संयत स्वर में कहा,

"सर मैं इसे उस दिन के लिए कोई दोष नहीं दे रहा था। पर मैं मेरठ से इसे फोन करके कह रहा था कि तुम वहाँ हो। विशाल से मिलो। उससे पैसों की मांग करो। पर इसने कोई ध्यान नहीं दिया। इसने सोच लिया था कि अब मैं अपना काम शुरू नहीं कर पाऊँगा तो फिर इसे मेरे मामले में पड़ने की ज़रूरत क्या है ? जिस दिन विशाल से पैसे लेने जाना था उस दिन भी मैंने इससे कहा था कि साथ चले। इसने ज़रूरी काम से जाना है कह दिया। अपनी मोटरसाइकिल भी ले गया। मैं अकेला जाना नहीं चाहता था। विशाल ने मुझसे कहा था कि पुलिस के पास मेरी तस्वीर है। इसलिए मैंने अपना हुलिया बदल लिया था। मुझे लगा साथ में कोई होगा तो मदद रहेगी। इसने मना कर दिया तो मैंने एक पुराने दोस्त को अपनी मोटरसाइकिल लेकर आने को कहा। उसने मोटरसाइकिल भिड़ा दी और मेरे पैर में फ्रैक्चर हो गया। आज प्लास्टर वाले पैर में आपके सामने बैठा हूँ।"

पवन अपनी बारी की राह देख रहा था। कौशल के चुप होते ही उसने कहा,

"सर इसमें मेरी क्या गलती है ? हाँ मुझे ऐसा लगा था कि शायद इसका काम शुरू ना हो पाए। मुझे अपने लिए कुछ सोचना चाहिए। मैं उसके लिए कोशिश कर रहा था। फिर भी मैं विशाल से पैसों के लिए मिलता था। वह यह कहकर टाल देता था कि जल्दी ही कुछ करता है।"

उसने कौशल की तरफ देखकर कहा,

"इसका पैर फ्रैक्चर हो गया तो मैंने इसकी मदद की। मुझे पता था कि पुलिस के पास इसकी फोटो है फिर भी। अब यह इस तरह की बात कर रहा है।"

साइमन ने कहा,

"पहले गुनाह में एक दूसरे के साझेदार बन रहे थे।‌ अब एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगा रहे हो। जो किया है उसका भुगतान तो करना होगा। फिलहाल अब जाओ और आराम करो।"

इंस्पेक्टर हरीश ने कांस्टेबल को बुलाकर उन लोगों को उनकी सेल में ले जाने को कहा। कांस्टेबल ने कौशल को सहारा दिया। कौशल और पवन चले गए। उनके जाने के बाद साइमन ने कहा,

"बहुत रात हो गई है। विशाल से कल बात करेंगे। इस्माइल जिस ट्रैवल एजेंसी में था वह भवानीगंज के पास ही है। कल तुम सुमेर सिंह से कहो कि किसी को उस इस्माइल को गिरफ्तार करने का आदेश दे। उससे भी बहुत कुछ पूछना है।"

इंस्पेक्टर हरीश ने कुछ सोचकर कहा,

"सर मेरे दिमाग में एक बात आ रही है। कौशल ने पुष्कर की हत्या करने से मना कर दिया है। ऐसा लगता भी है कि उसने ऐसा नहीं किया होगा। पर सर उसके पास मोटरसाइकिल थी। मोटरसाइकिल के पहिए के निशान लाश से कुछ दूर पर था।"

साइमन ने कहा,

"मेरे दिमाग में भी यह बात आई थी। पर फिर मुझे लगा कि अगर कौशल मोटरसाइकिल लेकर उधर गया होता तो फिर पुष्कर की लाश देखकर वहाँ से भाग गया होता। मैं सब इंस्पेक्टर कमाल के साथ उस मैदान पर गया था जहाँ लाश मिली थी। मैदान पार करके दूसरी तरफ से हाइवे पर आया जा सकता है। लेकिन चेतन ने उसे विशाल से बात करते सुना था। इसलिए वह जो कह रहा है सही है।"

साइमन अपनी बात कहकर कुछ सोचने लगा। उसने कहा,

"ढाबे की सीसीटीवी फुटेज लैपटॉप में है। एकबार फिर उसे देखते हैं।"

"यस सर....पर अब आप जाकर आराम कीजिए। आपके ठहरने की व्यवस्था है। मैं सुमेर सिंह के घर ठहरा हूँ।"

"ठीक है.... फिर कल मिलते हैं।"

यह कहकर साइमन उठकर खड़ा हो गया। वह और इंस्पेक्टर हरीश कमरे से निकल गए।

 

बद्रीनाथ बिस्तर पर लेटे थे पर उनकी आँखों में नींद‌ नहीं थी। उनके दिमाग में वह बात घूम रही थी जो विशाल ने जगदीश नारायण से कही थी। विशाल ने जगदीश नारायण को सारी बात बताने के बाद कहा था,

"सब अपनी खुशी देख रहे थे। किसी को भी हमारी कोई फिक्र नहीं थी। हम दिल ही दिल में घुट रहे थे। बस हमको यही लग रहा था कि अगर किसी को हमारी कोई चिंता नहीं है तो हम किसी के बारे में क्यों सोचें। हमे एक ही रास्ता दिखाई पड़ा। हमने कौशल और पवन को वह काम सौंप दिया।"

उस समय वह विशाल के चेहरे की तरफ देख रहे थे। जो भी वह कह रहा था उसे कहते हुए उसके चेहरे पर एक पीड़ा थी। उसके चेहरे से स्पष्ट था कि उसने तब जो कुछ भी एक पागलपन में कर दिया था। अब उसका उसे पछतावा है। खाना खाते हुए भी उसने अपने किए की माफी मांगी थी। उस समय से ही उनके मन में अजीब सी उलझन थी। वह सोच रहे थे कि क्या विशाल ने जो कुछ किया वह माफी के लायक है ? भले ही उसने जिसे भेजा था उसने पुष्कर का कत्ल ना किया हो पर विशाल ने उसे अपने भाई के कत्ल के इरादे से ही भेजा था। यह बात जबसे उन्हें पता चली थी वह बहुत अधिक दुखी थे। अपने मन का हाल किसी को बता भी नहीं पा रहे थे।

उमा को ऐसा लग रहा था कि सबकुछ माया के श्राप के चलते हो रहा है। उसके श्राप के कारण ही आज विशाल निर्दोष होकर भी थाने में है। पुलिस उससे पूछताछ कर रही है। वह उनसे यह नहीं कह सकते थे कि यह सिर्फ माया के श्राप के कारण नहीं हो रहा है। दोष उन लोगों का भी है। माना कि माया के श्राप ने कुसुम और मोहित की जान ली थी। पर विशाल पर आए इतने बड़े दुख के बाद उन लोगों ने उसे अकेला छोड़ दिया। उन्हें लगा कि वह अकेले ही अपने दुख से उबर जाएगा। पर यह सोचना उन लोगों की बहुत बड़ी भूल थी। विशाल के भीतर उन लोगों के लिए एक गुस्सा पल रहा था। अपना वह गुस्सा वह पुष्कर को मरवा कर निकालना चाहता था। अपने बेटे के अंदर पल रही नाराज़गी को अगर उन्होंने समय रहते समझ लिया होता तो आज यह स्थिति उत्पन्न ना होती।

बद्रीनाथ मन ही मन ईश्वर से कह रहे थे कि यह उनकी कैसी परीक्षा है ? वह समझ नहीं पा रहे हैं कि उनके लिए क्या करना सही है ? उनके बड़े बेटे ने अपने छोटे भाई को मरवाने की साज़िश रची थी। यह जानने के बाद भी वह चाहते हैं कि विशाल किसी तरह बच जाए। दूसरी तरफ जो विशाल ने किया वह इतना भयानक है कि उसे भूलकर माफ कर पाना शायद ही संभव हो। उन्होंने विशाल को आश्वासन दिया था कि वह उसे बचाने की पूरी कोशिश करेंगे। वह जानते थे कि यह उनका स्वार्थ था। इस उम्र में संतान का सहारा वह खोना नहीं चाहते थे। लेकिन अगर विशाल बरी होकर आ जाए तो उनकी आत्मा उन्हें हमेशा धिक्कारेगी।

उन्होंने अपने बगल में सो रही उमा की तरफ नज़र डाली। वह सोच रहे थे कि अभी तो वह हर एक चीज़ के लिए माया के श्राप को दोष दे रही है। जब उसे इस सच्चाई का पता चलेगा कि उनके बड़े बेटे ने उनके छोटे बेटे की हत्या का षड्यंत्र रचा था तो क्या वह इस सच्चाई को स्वीकार कर पाएंगी ? उनके लिए सब कुछ बहुत कठिन हो जाएगा। तब शायद वह इस बात के लिए भी माया के श्राप को ज़िम्मेदार ठहराएं। यह करके वह उस ग्लानि से बचने की कोशिश करें जो सच जानने के बाद उनके मन में होगी।

बद्रीनाथ माया के श्राप के बारे में सोचने लगे। उस दिन घर के आंगन में खड़े होकर माया ने श्राप दिया था। उसका श्राप सुनने के बाद वह डर गए थे। उन्हें लगा था कि उन्होंने कुछ अधिक कड़ाई बरती थी। लेकिन समय बीतने के साथ माया के श्राप का डर खत्म हो गया था। विशाल की शादी हो गई। उसका काम अच्छा चलने लगा। मोहित का जन्म हुआ। उन्हें लगा कि माया ने उस समय जो कहा था वह एक निराश लड़की की खिसियाहट से अधिक कुछ नहीं था। लेकिन जब कुसुम और मोहित की अचानक मौत हो गई। विशाल ने उसे माया के सपने वाली बात बताई तो उन्हें लगा कि माया मरने के बाद अपने दिए श्राप को सच करने आई है। वह डर गए थे।‌

पुष्कर की अचानक हुई हत्या ने उनके डर को कई गुना बढ़ा दिया था।