Sote vakt in Hindi Short Stories by bhagirath books and stories PDF | सोते वक्त

Featured Books
Categories
Share

सोते वक्त

सोते वक्त

 

कमरे में दो चारपाईयाँ बिछी हैं। बीच में एक दहकती हुई अंगीठी कमरे को गर्म कर रही है। एक चारपाई पर बूढ़ा और दूसरी पर बुढिया रजाई ओढ़ कर बैठे हुए हैं। वे यदाकदा हाथ अंगीठी की तरफ बढ़ा देते हैं। दोनों मौन बैठे हैं जैसे राम नाम का जाप कर रहे हों!

“ठण्ड ज्यादा ही पड़ रही है।” बूढी बोली, “चाय बना दूँ?”

“नहीं!” बूढ़ा अपना टोपा नीचे खींचते हुए बोला, “ऐसी कोई खास सर्दी तो नहीं!” बूढी खाँसने लगती है। खाँसते-खाँसते बोली, ”दवा ले ली?”

बूढे ने प्रतिप्रश्न किया, “तुम ने ले ली?”

“मेरा क्या है! ले लूँगी।” वह फिर खाँसने लगती है।

“ले लो, फिर याद नहीं रहेगा।” बूढ़ा फिर कुछ याद करते हुए बोला, “हाँ, बड़के की चिट्ठी आई थी।”

बूढी ने कोई जिज्ञासा नहीं दिखाई तो बूढ़ा स्वतः ही बोला, “कुशल है। कोई जरुरत हो तो लिखने का कहा है।”

“जरुरत तो आँखों की रोशनी की है।” बूढी ने व्यंग्य किया, “अब तो रोटी-सब्जी के पकने का भी पता नहीं लगता।”

“सो तो है।” बूढ़ा सिर हिलाते हुए बोला, “लेकिन वह रोशनी कहाँ से लायगा!” कमरे में फिर मौन पसर जाता है। वह उठती है, अलमारी से दवा की शीशी निकालती है, “लो दवा पी लो।”

बूढ़ा दवाई पीते हुए कहता है, “तुम मेरा कितना खयाल रखती हो!”

“मुझे दहशत लगती है, तुम्हारे बिना।”

“तुम पहले मरना चाहती हो। मैं निपट अकेला कैसे काटूँगा?” बूढ़ा आले में पड़ी घड़ी की तरफ देखता है, “ग्यारह बज गए!”

“फिर भी मरी नींद नहीं आती।” बूढी बोली।

“बुढ़ापा है। समय का सूनापन काटता है।”

बूढ़ा सोते हुए, खिडकी की तरफ देखता है, “देखो,चाँद खिड़की से झाँक रहा है!”

“तो इसमे नई बात क्या है?” बूढ़ी ने रूखे स्वर में टिप्पणी की।

“अच्छा, तुम ही कोई नई बात करो।” बूढ़ा खीज कर बोला।

“अब तो मेरी मौत ही नई घटना होगी!” बूढी बोली।

कमरे में फिर घुटन भरा मौन छा जाता है।

“क्यूँ मेरी मौत क्या पुरानी घटना होगी?” बूढे ने व्यंग्य और परिहास के मिले-जुले स्वर में प्रतिवाद किया।

“तुम चुपचाप सोते रहो।” बूढी तेज स्वर में बोली, “रात में अंट-संट मत बोला करो!”

 ('सोते वक्त' उम्र के आखिरी पड़ाव पर आए पति-पत्नी  का सोते वक्त संवाद है जो बुढ़ापे के अकेलेपन  और मृत्यु की भयावता को रेखांकित करता है। भागती दुनिया से पीछे छूटे वृद्ध दंपति की करूण गाथा कहती है। यह कथा मौत की छाया तले भी एक दूसरे की जीने की कामना करते हैं कि कहीं वे बिल्कुल अकेले नहीं छूट जाएं। वे एक दूसरे का सहयोग कर एक दूसरे की चिंता भी करते हैं। परिवार के अन्य सदस्य जीवन कि भागदौड़ मे व्यस्त है और उनकी सुध लेने वाला कोई  नहीं है। उनके जीवन अब कोइ घटना होगी तो वह होगी मौत। मौत के इंतजार मे जीवन के बचे दिन व्यतीत कर रहे हैं। यह कारुणिक दृश्य हमारे जीवन की सच्चाई है। जिसे महसूस करके इसके समाधान की ओर भी कदम उठाना है।  कोई पाठक समाधान  प्रस्तुत कार सके तो लेखक को अवश्य बताएं। टिपण्णी कर अन्य पाठकों को भी बताएं।