आलेख
विश्व शांति की स्थापना में भारत की भूमिका
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शांति की समस्या आज जब चहुँओर दिखती है, घर परिवार समाज से लेकर राष्ट्र और समूचे विश्व की ये वैश्विक समस्या है। और आज जब वैश्विक स्तर पर भारत की पहल और प्रयासों की प्रशंसा हर ओर सुनाई और दिखाई दे रही है। आज विश्व युद्ध की आशंकाओं के बादल छाए ही रहते हैं। आज रूस यूक्रेन युद्ध की विभीषिका पूरे विश्व के लिए किसी डरावने सपने की तरह सामने से डरा भी रहा है। पश्चिमी देशों और नाटो देशों में भी भय का वातावरण बना हुआ है। विश्व की महाशक्तियों में भी आपसी तालमेल नहीं हो पा रहा है।
अमेरिका और नाटो देश भी यूक्रेन के साथ सहयोग कर रहे हैं और कोई भी इस युद्ध को खत्म कराने के लिए प्रयास नहीं कर रहा है और अपने निहित स्वार्थ की आड़ में हाथ सेंक रहे हैं। कूटनीतिक तौर पर चीन और उत्तर कोरिया रुस के साथ हैं। यही नहीं रुस और यूक्रेन भी कहीं से भी युद्ध समाप्त करने के बारे में विचार तक नहीं करना चाहते। जबकि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी हर मंच से इस युद्ध को रोकने के लिए प्रयास करते हैं। उन्होंने तो स्पष्ट रूप से रुसी राष्ट्रपति से दो टूक शब्दों में कहा भी है कि ये युद्ध का वक्त नहीं है। संवाद से हल निकाला जाना चाहिए।
आज विश्व में जहां एक ओर भय का वातावरण गहराता जा रहा है, वहीं प्राकृतिक आपदाओं का तांडव कम नहीं है। और आये दिन प्राकृतिक आपदाओं का दंश विश्व के किसी न किसी क्षेत्र में डंक मार ही रहा है, मानवता कराह रही है। और मानवीय सहयोग की जब बात आती है तब भारत बिना दोस्त दुश्मन समझे यथा संभव सहयोग के लिए तत्पर रहता है, विभिन्न देशों में टकराव होता ही रहता है। अनेक पड़ोसी देशों में वैमनस्य और हिंसा का प्रभाव मजबूत हो रहा है।देश के भीतर ही नहीं बाहर भी जाति धर्म के नाम पर पर अपने आधिपत्य जमाने की जुगत भिड़ाते रहते हैं।
आज वैश्विक स्तर पर भारत ही एक ऐसा देश है जो युद्ध में किसी को समर्थन नहीं दे रहा है और न ही युद्ध का पक्षधर है।
आज हमारे सामने ही वैश्विक स्तर पर बहुत से ऐसे कार्य हैं जो मानवता की रक्षा, प्रकृति संरक्षण, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय मूल्यों के विकास की अपार संभावनाएं हैं। के लिए जरूरी हैं। आज जरूरत है कि समूचे विश्व को एक परिवार, एक इकाई मानकर सभी की सार्वभौमिक स्वायत्तता को स्वीकार किये जाने के साथ सभी को स्वतंत्र विकास के लिए अवसर दिया जा सकता है, तो निश्चित ही यह धरा स्वर्ग बन सकती है।
आज हमें ही नहीं वैश्विक स्तर पर आपसी मतभेदों को भुलाकर पूरे विश्व को परिवार/इकाई मानते हुए भारत के मूलमंत्र "वसुधैव कुटुम्बकम्" की अवधारणा को समूचे विश्व में फैलाने की आवश्यकता किसी एक व्यक्ति,देश की ही नहीं पूरी दुनिया की है। इस दिशा में धरती आकाश, जल, हवा प्राकृतिक वातावरण को प्रदूषण मुक्त करना है। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, प्रकृति, के वैश्विक स्तर पर समृद्धि करने का व्यापक और महत्वपूर्ण कार्य है। प्राकृतिक वातावरण के असंतुलन पर भी विश्व वैज्ञानिक एक जुट होकर काम करने की जरूरत है। हथियारों के बढ़ती होड़, विनाशकारी रासायनिक हथियारों को बढ़ावा देने की समस्या से मुंह मोड़ना खतरनाक साबित होगा। इस दिशा में वैश्विक स्तर पर प्रयास किए जाने की जरूरत है, भारत की सोच, चिंता और प्रयास संपूर्ण मानव जाति,समूची धरती के लिए है लेकिन एक अकेला कितना कर सकता है, जबकि ज़रुरत सबकी है, एक राष्ट्र के तौर पर भारत की भी कुछ सीमाएं, बाध्यताएं भी हैं।
इसके लिए वैश्विक स्तर पर एकजुट संकल्पित प्रयासों की जरूरत है,तभी विश्व शांति का प्रयास सार्थक होगा, जिसके लिए भारत अपनी भूमिका आगे बढ़ कर निभाने का उत्सुकता से प्रयास करने में पीछे भी नहीं रहता।
और यह कहने में संकोच करने का कोई कारण नहीं है कि विश्व शांति के लिए वैश्विक स्तर पर भारत की भी मुख्य भूमिका है और आगे भी रहेगी। जरुरत है हर किसी को, देशों को इसे अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानकर निभानी होगी। तभी विश्व शांति का सपना साकार हो सकेगा।
सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश