little more in Hindi Philosophy by Anand Tripathi books and stories PDF | थोड़ा और

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थोड़ा और

जब तक हम सत्य जानते हैं। तब तक बहुत देर हो जाती है।
यह आत्मा, इंद्रिय,मन कितने वज्र के बने होते हैं। यह बात तो हम सभी गाहे बगाहे जानते ही हैं। इनका स्वयं पर कोई नियंत्रण ही नही है।
और न ही हमको ये अपने ऊपर किसी भी प्रकार का नियंत्रण करने देती है।
और
बस केवल इसीलिए इंसानों ने इस अनियंत्रित अवस्था से भयभीत होकर धर्म , आस्था, संयमता प्रतिष्ठा आदि का निर्माण किया होगा।
ताकि अगर ये किसी भी प्रकार से पकड़ में न आई। तो हम धर्म का सहारा ले लिया करेंगे।
हम सब कही न कही इक्षाओ के वशीभूत हैं।
इसलिए हम सब ज्यादा जीने लगे हैं।
क्युकी हम जिस चीज पर आकर्षित होते हैं। उस पर अपना ध्यान केन्द्रित करने लगते हैं।
उदाहरण: एक मानव जीवन को शुरू से अंत तक देखे तो
1 बचपन: बच्चा की इक्षा है खाने की पहनेने की खेलने की। घूमने की,
2 युवा : शरीर बनाने की चाह,लड़की पटाने की चाह,कुछ करने की चाह,अच्छा जीवन की चाह ,
3 वृद्ध : बेटे की नौकरी, बेटे की शादी, स्वास्थ, नाती पोते, नाना नानी बनना,
और अंततः मृत्यु की चाह होनी चाहिए थी। लेकिन नही वो कहते है
अरे अब पोते की भी शादी देख लेते तो थोड़ा
और परम पद मिलता है।
इस प्रकार से जीवन में बिना किसी अच्छी गतिविधि के ही हम सब केवल और केवल एक प्रबल इच्छा के बल पर ही सब जिए जा रहे हैं।
हम यह जानते हैं की हम सब अपनी इक्षाओं को अपने वश में नहीं कर सकते है।
फिर भी हम उन्हे आजाद नही करते हैं। और वो हैं की आजाद होना चाहती हैं।
आजकल जीवन बढ़ती चिंता
और उसके कारण बढ़ता गलत व्यवहार भी थोड़ा और की ओर बढ़ने को प्रेरित करती है।
चाहत इंसानी कौम की एक ऐसी फितरत है। जो अच्छे अच्छे को बर्बाद कर देती है।
मुझे कुछ पैसा मिला। जबकि उससे पहले मेरे पास कुछ भी नही था। लेकिन अब और अधिक हो जाने की आशा कई बार निराशा का कारण बन जाती है। क्या ये पतन नही है ? क्या ये निषफ्लता नही है ?
जीवन एक सफेद रंग की चादर है मेरे दोस्त। जिसपर जैसा रंग चढ़ाओगे वो चढ़ जाएगा। परंतु फिर वो कभी भी दुबारा सफेद रंग नही कहलाएगा। हम जितने के लायक हैं परमात्मा उतना तो दे रहा है। उससे अधिक की चेष्टा नही प्रयास करना चहिए।
ताकि एक स्थिति पर आकर आप सीमित हो सके।
चेष्टा में नाना प्रकार की अवस्था आएगी।
तुम उसे वश में करने के लिए साम दाम दण्ड भेद छल कपट निंदा अनीत आदि को अपनाओगे।
और अंतः वह हाथ में भी न आया तो
तुम मरोगे या मारे जाओगे।
क्या यह जीवन है ? की एक तुच्छ से वस्तु को अलौकिक मान बैठना और निरंतर उसके पीछे लगे रहना।
प्रयास करो की किसी को पाने की एक समय तक प्रतीक्षा करो। न की चेष्टा।
उदाहरण: रेलगाड़ी एक साधन है। तुम उस पर यात्रा करना चाहते हो। तो क्या करोगे। जाकर सीधे नियंत्रण कक्ष से केवल अपने लिए बुलालोगे। नही न ,
तुम एक निश्चित प्लेटफार्म पर खड़े होकर उसकी प्रतीक्षा करोगे।
और सुनो,
तुम उसका कुछ नही कर सकते
मान लो वह रास्ते में आने में विलम्ब हो गई तो ,
या फिर आई ही नहीं।,
इस प्रकार तुम फिर दूसरी टिकट निकलवा के और दूसरे रेल पर जाने को बाध्य हो जाओगे।
मैं बहुत कुछ चाहता हूं।
इसमें से (मैं) निकालो अहंकार।
(बहुत कुछ) हटाओ। लालसा।
(चाहता ) : तुम्हारे चाहने से कुछ होने वाला भी नहीं है। सो हटा दो। और
ये है थोड़ा और।
हूं। एकदम गलत : तुम होते तो ये वाक्य ही नही आता।
इसीलिए स्वयं में आकर रहना और जीना सीखो।
ताकि इससे (थोड़ा और ) का प्रभाव धीरे धीरे खत्म होने लगेगा।

धनयवाद।