दीपावली के ठीक 15 दिन बाद और कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली या देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है l
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा के दिन को सबसे शुभ दिन माना जाता है l इस दिन स्नान, दान, व्रत और दीपदान का विशेष महत्व होता है l साथ ही कार्तिक पूर्णिमा पर सुख-समृद्धि के लिए लक्ष्मी पूजन भी किया जाता है l धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया था l
देव दीपावली को त्रिपुरोत्सव और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था
पौराणिक कथा के अनुसार
त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस ने धरती वासियों को परेशान कर रखा था और उससे त्रस्त होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे l भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था इसलिए इस दिन को "त्रिपुरी पूर्णिमा" कहा जाता है l
त्रिपुरासुर राक्षस से मुक्ति मिलने के बाद देवता भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे और वहां दीप प्रज्जवलित कर खुशी मनाई l तब से लेकर आज तक यह त्योहार मनाया जा रहा है l चूंकि ये दीवाली देवों ने मनाई थी, इसीलिए इसे देव दिवाली भी कहा जाता है l
कार्तिक पूर्णिमा की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था। जिसके तीन पुत्र थे जिनका नाम तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली था।
भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय जी ने तारकासुर का वध कर दिया जिसे देख उस राक्षस के पुत्र बेहद दुखी हुए।
उन्होंने देवताओं से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा।
तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने उन्हें कहा ऐसा संभव नहीं है इसके अलावा कुछ अलग वरदान मांग लो।
यह सुनने के बाद तीनों ने तीन नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें वह बैठकर पूरे पृथ्वी और आकाश का भ्रमण कर सकें। साथ ही उन्होंने कहा कि एक हजार वर्ष बाद जब हम एक जगह पर मिलें तो तीनों नगर मिलकर एक हो जाएं और जो देवी-देवता अपने एक बाण से तीनों नगरों को नष्ट करने की क्षमता रखता हो वही हमारा वध कर सके।
तारकासुर के पुत्रों की मनोकामना ब्रह्मा जी ने पूरी की और उन्हें यह वरदान दे दिया। ब्रह्मा जी ने तीन नगरों का निर्माण करवाया। तारकाक्ष के लिए सोने का, कमलाक्ष के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया।
वरदान प्राप्त करने के बाद तीनों ने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया और स्वर्ग पर भी अधिकार स्थापित करने की कोशिश करने लगे जिससे इंद्रदेव भयभीत होकर भगवान शिव के पास पहुंचे।
इंद्रदेव की बात सुनकर महादेव ने एक दिव्य रथ का निर्माण किया और एक बाण में तीनों नगरों को नष्ट कर त्रिपुरासुरों का वध कर दिया। कहते हैं इसके बाद ही भगवान शिव त्रिपुरारी कहलाए।
मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता धरती पर उतरते हैं और काशी में दिवाली मनाते हैं इसलिए इस त्योहार को देव दीपावली कहा जाता है l इस दिन काशी और गंगा घाटों पर काफी रौनक रहती है और दीपदान किया जाता है l