" दी वेक्सीन वार " एक परफेक्ट फिल्म
पल्ल्वी जोशी द्वारा निर्मित और विवेक रंजन अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित फिल्म " दी वेक्सीन वार " भारतवर्ष में रासयनिक शोध के प्रति चिकित्स्कीय प्रतिबद्धता के फिल्मांकन के अनुपम उदाहरण के रूप में सामने आयी है। यह फिल्म कोरोना महामारी के बाद चिकित्सा के क्षेत्र में जीवन रक्षक वेक्सीन के आविष्कार में घटित घटनाओं का रोमांचक रूप से नाटकीय विवरण प्रस्तुत करती है। फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है जिसमे एक ऐसे भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर डाक्टर बलराम भार्गव के चिकित्सा के क्षेत्र में शोध के प्रति जूनून और संघर्ष को फिल्माया गया है। डाक्टर भार्गव संकल्प लेते हैं कि वे मानवता और भारतियों के हित में विश्व भर की मानव जाति को कोरोना वाइरस के घातक आक्रमण से बचाएंगे। कोरोना महामारी के कारण सैकड़ो लोगों के प्राणांत से उत्पन्न भयावह स्थितिओं के बीच डाक्टर भार्गव ने तय किया कि वे केवल भारतीय स्रोतों का उपयोग करके उस जीवन रक्षक वेक्सीन का निर्माण करेंगें, जो करोड़ो भारतीयों के साथ विश्व की अधिसंख्य आबादी की कोरोना वाइरस से रक्षा करेगी। उनके इस कार्य को भारत सरकार से जब भरपूर सहयोग मिलना तय होजाता है तब वे जी जान से अपने कार्य में अपनी पूरी टीम के साथ जुट जाते हैं। एक घातक और रहस्यमय वाइरस की पहचान, मानव शरीर को संक्रमित करने के बाद उसको निष्क्रिय करके, उसके प्रतिकार के उपाय की खोज की सिलसिलेवार अन्वेषण प्रक्रिया फिल्म की कहानी है। कहानी में रोमांच है, उत्सुकता है, वैज्ञानिको द्वारा उठाये गए खतरों के समावेश के साथ अपने कार्य के प्रति उसकी पूरी टीम की प्रतिबद्धता और जूनून का फिल्मांकन है, जो दर्शको को शुरू से अंत तक फिल्म से बांधकर रखता है। दो घंटे चालीस मिनट की इस फिल्म की यात्रा में दर्शक कहीं भी ऊबता नहीं है।
फिल्म में मुख्य पात्र डाक्टर भार्गव, जो भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक के पदपर कार्यरत हैं, की भूमिका नाना पाटेकर ने अभिनीत की है। इस भूमिका में नाना फिल्ममें पूरी तरहसे अपने किरदार में उतर गए हैं । उनका भाव भंगिमा, चाल - ढाल, संवाद -अदायगी सब कुछ एक धीर गंभीर वैज्ञानिक का है जो केवल विज्ञानं और शोध को ही अपना धर्म मानता है। फिल्म में नाना पाटेकर का स्वाभाविक अभिनय फिल्म का सबसे सशक्त पक्ष है जो एक वैज्ञानिक का अपनी शोध के प्रति लगन को बखूबी परदे उतारता है। नाना पाटेकर के साथ फिल्म के अन्य कलाकारों पल्लिवी जोशी, गिरिजा ओक, अनुपम खेर, राइमा सेन, निवेदिता भट्टाचार्य, मोहन कपूर और सप्तमी गौड़ा ने अपने - अपने पात्रों को अपने अभिनय से जीवंत स्वरूप दे दिया है।
फिल्म की कहानी पर्याप्त रिसर्च और गहन चिंतन के साथ इस तरह लिखी गयी है कि दर्शक उन कठिन और कहीं कहीं वीभत्स्व परिस्थितिओं से स्वयं को जुड़ा पाता है, जो मानवता के हितमें किसी शोध और सृजन के लिए आवश्यक समर्पण, त्याग, जूनून और विजय तक की यात्रा को समेटती हैं। फिल्म यह समझाने में पूरी तरह से सफल हुई है कि इतनी भयंकर और जान लेवा महामारीको पछाड़कर आम नागरिक यदि आज अपने घर में एक सुरक्षित और स्वस्थ जीवन - चर्या को पा सका है तो इसमें उन अनेक समर्पित और कर्मठ लोगों का योगदान है जिन्होंने मानव - हित के लिए अपना जीवन दावं पर लगाने में कोई हिचक नहीं दिखाई । हमारे वास्तविक नायक और यौद्धा यही लोग है।
फिल्म में पल्लवी जोशी ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की डायरेक्टर डॉ. प्रिया अब्राहम की भूमिका को निभाया है। इस भूमिका में पल्लवी जोशी का स्वाभाविक और परिपक्व अभिनय फिल्म को एक आकर्षक मंच में बदल देता है। फिल्म में एक अन्य महत्वपूर्ण और मजबूत किरदार राइमा सेन का पत्रकार रोहिनी सिंह धुलिया की भूमिका है। इस पात्र के माध्यम से फिल्म पत्रकार जगत में कुंडली मार कर बैठी उस राष्ट्र विरोधी मानसिकता के एक वर्ग का पर्दाफाश करती है जो मिडिया का दुरु[योग देश के अंदर और उसके बाहर सक्रीय अपने आकाओं के लिए काम करते हैं । इस रूप में राइमा सेन ने एक कुटिल पत्रकार की भूमिका को परदे पर जीवंत कर दिया है। फिल्म के महत्वपूर्ण दृश्यों में उनकी पत्रकार वार्ताओं में उनके अभिनय में उनके चेहरे पर आये मक्कारी के भाव और जनता के दिल में संशय उत्पन्न करने वाली उनकी गढ़ी हुई कृत्रिम शंकाये, उन्हें एक खलनायिका में परिवर्तित करती हैं। उनके किरदार के माध्यम से फिल्म देश के विरुद्ध उन षड्यंत्रकारियों बेनकाब करती है जो अफवाहें फैलाकर जनता को भृमित करते हैं और निहित राजनितिक स्वार्थों का पोषण करते हैं। इन खूबिओं के साथ फिल्म में हर कलाकार ने अपनी भूमिका को सशक्त और स्वाभाविक अभिनय से चिकित्स्कीय शोध संस्थान के परिवेश को जीवन्त स्वरूप दे दिया है। इसके लिए निर्देशक का निर्देशन पूरे अंकों का हकदार है।
फिल्म का पार्श्व संगीत रोहित शर्मा ने दिया है और वे फिल्म के दृश्यों में वैज्ञानिक शोध की गंभीरता और रोमांच को अपने संगीत के माध्यम से उभारने में पूरी तरह से सफल हुए हैं। पार्श्व संगीत इस प्रकार का बना है कि दर्शक का मस्तिष्क उन कठिन परिस्थितिओं को अपने परिवेश में आत्मसात करता चलता है, जिसमें परिस्थितियां विपरीत होते हुए भी हमारे वैज्ञानिको ने जीवन रक्षककोरोना वेक्सीन का निर्माण कर दिखाया। फिल्म का घटनाक्रम कहीं भी यह एहसास नहीं देता कि यह लगने लगे कि फिल्म लम्बी हो गयी है। भले ही वेक्सीन वार तकनीकी दृष्टि से एक मेडिकल ड्रामाथ्रिलर फिल्म है,जो रोमांच से भरपूर है, परन्तु वास्तव में यह सभी देशवासिओं के लिए एक प्रेरणादायी मनोरंजक फिल्म है और एक संदेश देती है की हमारा जीवन कुछ रचनात्मक करने के लिए बना है। फिल्म की कहानी उन चुनौतियों को स्पष्ट करने में पूरी तरह से समर्थ हुई है जो वैज्ञानिको के सामने शोध के समय आती हैं। फिल्म के संवाद और घटनाएं दर्शक को भावनाओं के समुन्दर में ले जाती हैं, जिसमें वह कभी निराश होता है तो कभी उत्साह से भर जाता है। यह सभी स्थितियां उसकेसाथ पात्रों की आशा - निराशा, प्रभावशाली संवाद -अदायगी और कुशल अभिनय के कारण सम्भव होती है। यही इस फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता कजैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, दर्शक फिल्म के पात्रों के साथ जुड़ते हुए, उनकी भूमिका में उतरता चला जाता है। फिल्म की कहानी इस तरह से लिखी गयी है कि शोध के प्रति समर्पित पात्र निराशा के क्षणों में दर्शक को उत्तेजित करते हैं तो दर्शक अवसादित हो जाता है तो वही पात्र जब सफलता की ओर बढ़ते हैं तो उन्हें देखकर दर्शक उत्साह से भर जाता होता है। और अंत में राष्ट्र के प्रति सर्वस्व समर्पित करने का भाव उसके अंदर पुख्ता होता चलता है।
फिल्म देखकर निकलने के बाद दर्शक के मन में देश और मानवता के लिए कुछ ठोस करने का संकल्प मजबूत होता है। वह सोचने लगता है कि वह भी देश के लिए कुछ अच्छा करे। वह यह भी चाहता है कि उसे भविष्य में इसी प्रकार का सार्थक, रोमांचक और मनोरंजक सिनेमा देखने को मिलें। इस रूप में" दी वेक्सीन वार " एक परफेक्ट फिल्म है। जिसे कम से कम एक बार तो आवश्य देखा जा सकता है।
सुरेंद्र कुमार अरोड़ा,