Towards the Light – Memoir in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमस्कार

मित्रों

अचानक ही जब कुछ ऐसा सामने आ जाता है जो चौंका तो देता ही है साथ ही कुछ ऐसे प्रश्न सामने परोस देता है जिनके उत्तर हमें स्वयं के भीतर ही झाँककर लेने होते हैं | सच, अक्सर ऐसा लगता है कि हम कितने भाग्यशाली हैं जो इतने सुख में हैं |

हम बड़े मज़ेदार लोग हैं जो दिनों को बाँटने लगे हैं। हम संयुक्त रूप से रहने वाली संस्कृति के लोगों के लिए हर दिन सबको प्यार बाँटने का दिन होता है जिन्हें हमने टुकड़ों में विभाजित कर लिया है। वैसे यह विचार अचानक ही मन में कौंध गया था इसलिए लिखा। अन्यथा इसकी चर्चा बाद में करुंगी।

हाँ, इन बँटे हुए दिनों में जो दिन सामाजिक जागरूकता के लिए रखे जाते हैं वे समाज की आँखें खोलने में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, उनके प्रति नमन तो बनता ही है।

6 अक्टूबर 23 को अहमदाबाद की आर्ट गैलरी में कैंसर की जागरूकता के लिए तीन दिवसीय कार्यक्रम रखा गया था जिसमें पहले दिन अतिथि के रूप में आमंत्रण था। कैंसर की जागरूकता के विषय में चर्चा करने के लिए एक युवा डॉक्टर थे। उन्होंने पहले विषय पर चर्चा की, कुछ प्रश्नोत्तर हुए। जिनसे बहुत सी बातें पता चलीं | हम इस गलतफहमी में थे कि 'ब्रेस्ट कैंसर' केवल स्त्रियों को होता है लेकिन डॉक्टर साहब के व्याख्यान से पता चला कि यह पुरुषों में भी हो सकता है और पुरुष हो अथवा स्त्री इसकी जांच करनी जरूरी है | व्याख्यान के पश्चात अन्य अतिथियों को भी मंच पर आमंत्रित किया गया |

मुझे भी कुछ संबोधित करने के लिए मंच पर आमंत्रित किया गया। मैंने कुछ शब्द कहकर एक सकारात्मक रचना प्रस्तुत की |

'जीवन में उजियारे न हों, ऐसा कभी नहीं होता,

चंद संग सितारे न हों,ऐसा कभी नहीं होता ||

उस पर प्रशंसा पाकर अच्छा लगा। अंत में मैंने अपनी एक प्रिय पंक्ति दोहरा दी जो थी, 'आई एम इन लव'! कुछ लोगों को संभवतः अच्छा लगा तो कुछ को अजीब भी। यह तो हर मनुष्य की अपनी दिमागी़ ख़ुराफात होती है।

कैंपस में बहुत से कलाकार कैंसर से संबंधित चित्र बनाकर जगरूकता फैलाने का प्रयास कर रहे थे | अधिकतर चित्रों में महिलाओं की मन:स्थिति स्पष्ट हो रही थी | जिनमें भय था, पीड़ा थी और उसमें से निकलने की, जूझती मानसिकता के विभिन्न आयाम जिनमें कलाकारों द्वारा चित्रण किए गए विभिन्न चित्र थे |

आज भी हम इस शब्द से बहुत घबराते हैं ,बीमारी से घबराते हैं,उसके परिणामों से घबराते हैं| यह घबराना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसके लिए बहुत प्रयास भी किए गए हैं और उनमें सफलता भी प्राप्त हुई है | इसके लिए यह प्रदर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण था व आवश्यक भी !

कुछ कलाकार खुले स्थान पर अपने चित्र बना रहे थे तो दो-एक अंदर भी थे | इन्हीं अंदर वाले कलाकारों में एक युवा लड़की भी थी जिसका शरीर कुछ ऐबनार्मल था लेकिन सबसे बड़ी बात यह थी कि उसने अपनी नाक में ऑक्सीज़न पाइप लगा रखी थी जिसका सिलेंडर उसके पास ही रखा था |

उसका मुस्काता चेहरा देखकर हम सब अभिभूत हो गए | जहाँ हम छोटी-छोटी बातों में परेशान हो जाते हैं वहाँ वह इतनी परेशानियों के बावज़ूद भी अपनी कला में मग्न थी | कार्यक्रम की समाप्ति के बाद वह मेरे पास आई और उसने कहा ;

"मैम ! थैंक यू । आपने मुझे बहुत बड़ी बात की सीख दी है | मैंने उसके चेहरे पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली और उसके कंधों को प्यार से पकड़ा | मुझे नहीं मालूम था वह क्या कहना चाहती थी |

"अब से मैं सबको बताया करूँगी ---'आइ एम इन लव विद माई आर्ट ---" उसके चेहरे की रोशनी, प्रफुल्लता और संतोष देखकर पास खड़े लोगों ने तालियाँ बजाकर उसका स्वागत किया |

स्वाभाविक था, सबको बिछड़ना ही था लेकिन उसके चेहरे की प्रसन्नता व चमक लेकर, मैं घर आई और मेरे मन में बार-बार ये शब्द घूमते रहे, 'आइ एम इन लव '

ज़िंदगी में जिससे भी जो कुछ लिया जा सके मित्रों, उससे ले सकें इससे अधिक सफलता व प्रसन्नता क्या हो सकती है ? प्रेम के अतिरिक्त धरती पर हम कुछ भी छोड़कर नहीं जाएंगे | महसूस करें कि हममें जो प्यार, स्नेह, नेह, करुणा कूट-कूटकर भरी है, उसका उपयोग कर सकें |

अक्टूबर के माह को 'कैंसर' के जागरूकता अभियान का माह मुकर्रर किया गया है | मित्रों ! सामाजिक चेतना के प्रति हम सबकी ज़िम्मेदारी बनती है, सोचकर देखें |

सबको स्नेह

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती