Dard ka Rishta in Hindi Moral Stories by Ashish Dalal books and stories PDF | दर्द का रिश्ता

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दर्द का रिश्ता

“तो ये तुम्हारा आखरी फैसला है? एक बार ठंडे दिमाग से फिर से सोचो अन्वेषा ।” अनिकेत ने ऑफिस से लौटने के बाद अन्वेषा से हुई लम्बी बहस के बाद उसे समझाने की कोशिश की । इस पर अन्वेषा ने फिर से कुछ देर पहले अनिकेत को कही अपनी बात दोहरा दी, “अनिकेत, मैं तंग आ चुकी हूं तुम्हारी इस लाइफ स्टाइल से । तुम केवल दिखने में ही स्मार्ट हो लेकिन दिमाग से पूरी तरह से खोखले हो । अब मैं और ज्यादा तुम्हें सहन नहीं कर सकती ।”     

अन्वेषा का फिर से वही जवाब सुनकर अनिकेत एक बार फिर से बुरी तरह से अंदर तक हिल गया । उसने सोफे पर बैठे हुए गहरी साँस छोड़ी और कातर नजरों से अन्वेषा की तरफ देखा ।

उसे अपनी तरफ इस तरह देखते हुए अन्वेषा ने टोका, “अब ज्यादा इमोशनल होने की कोई जरूरत नहीं है । तुम भी अच्छी तरह से जानते हो कि मुझ जैसी अपर मीडिल क्लास परिवार में पली बढ़ी किसी भी लड़की को मौजशोख वाली सारी खुशियाँ देने की तुम्हारी औकात नहीं है । रोज रोज झगड़ा करने से अच्छा है अब हम आपसी सहमति से अलग ही हो जाएं ।”

“तुम्हारी कौन सी खुशी मैंने पूरी नहीं की अन्वेषा ? तुम्हारे जिद पर अपने पेरेंट्स से अलग होकर ये फ्लैट खरीदा । मेरी आधी खुशियाँ छीन लेने के बाद भी तुम खुश नहीं हो तो अब मैं और कर ही क्या सकता हूँ । तुम्हें भी अच्छी तरह से पता है कि फ्लैट के लोन के हफ्ते भरने में ही मेरी आधे से ज्यादा सैलरी खत्म हो जाती है ।” अनिकेत ने रुआंसे होते हुए जवाब दिया ।

अनिकेत का जवाब सुनकर अन्वेषा गुस्से से खड़ी हुई और उसे खा जाने वाली नजरों से देखकर बोली, “इसीलिए तो कह रही हो कि तुम दिमाग से पूरी तरह से खोखले हो । आजकल केवल नौकरी करने से कुछ नहीं होता है । साइड इनकम के बहुत से रास्ते होते है लेकिन छोड़ो अब ये सब बातें....” कहते हुए अन्वेषा अचानक से चुप हो गई और फिर बैडरूम की तरफ जाते हुए जोर से बोली, “मैंने अपने पापा से बात कर सबकुछ फाइनल कर लिया है । तुम्हें केवल डायवर्स पेपर पर साइन ही करना है।”

अनिकेत ने अन्वेषा का ये जवाब सुनकर फुर्ती से अपनी जगह खड़े होकर उसका हाथ पकड़ लिया तो अन्वेषा ने अगले ही पल उसकी पकड़ से अपना हाथ छुड़ा लिया और उसे धमकी देते हुए बोली, “खबरदार ! जो अब मुझे छूने की कोशिश भी की तो । पापा से कहकर ऐसे कानूनी शिकंजे में फंसवा दूंगी कि सारी जिन्दगी कोर्ट के चक्कर काटते हुए बीत जाएगी ।”

अन्वेषा के ये तेवर देखकर आनिकेत की फिर उससे आगे बात करने की हिम्मत नहीं हुई । वो पस्त होकर सोफे पर बैठ गया और धीरे धीरे उसके दिमाग में तीन साल पहले की बातें तैरने लगी ।

अन्वेषा और अनिकेत दोनों ने एक दूसरे को पसंद करने बाद सामजिक रीति रिवाजों के अनुसार शादी के बंधन में बंधे थे । अनिकेत शहर की प्रख्यात मल्टीनेशनल कम्पनी में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत था और अन्वेषा ने बी. कॉम. तक पढ़ाई की थी । अन्वेषा का जिन्दगी में केवल एक ही सपना था कि किसी स्मार्ट से दिखने वाले अच्छी खासी कमाई करने वाले लड़के से शादी कर आराम से घर में रहना और अपने सारे शौक पूरे करना । अनिकेत से उसकी शादी का आधार ही ये था ।

दूसरी तरफ अनिकेत का स्वभाव अन्वेषा से बिलकुल अलग था । उसके जिन्दगी में बहुत ऊँचे सपने नहीं थे । सामान्य लेकिन सुख सुविधाओं वाला जीवन जीते हुए वो अपनी जिन्दगी में ऐसा जीवनसाथी पाना चाहता था जो उसके साथ उसके पेरेंट्स को भी सम्हाल सके । शादी से पहले दोनों के बीच हुई मुलाकातों में दोनों ने अपने मन की बात एक दूसरे से कही जरुर लेकिन दोनों ने साथ रहने का फैसला ये सोचकर ले लिया था कि वक्त बीतने पर दोनों एक दूसरे को अपने अनुसार बदल लेंगे ।

अनिकेत और अन्वेषा की वो सुहागरात थी ।  अन्वेषा शादी के सुर्ख लाल रंग के जोड़े में बहुत सुन्दर लग रही थी । अन्वेषा को भी अनिकेत में इस वक्त साक्षात कामदेव नजर आ रहे थे । अनिकेत थोड़ा शर्मीले स्वभाव का था और बहुत कुछ बोलने की इच्छा होने के बावजूद भी वो बैड पर उसके साथ बैठी अन्वेषा से अपने मन की बात नहीं कह पा रहा था ।

अन्वेषा ने अनिकेत की चुप्पी को महसूस कर खुद ही शर्म छोड़कर उससे मजाक में कहा, “सारी रात क्या इसी तरह चुपचाप मुझे देखते हुए गुजार दोगे ?”

 अन्वेषा की बात पर अनिकेत ने प्रतिक्रिया जताई, “अरे ! ऐसी बात नहीं है । बात करने का जी कर रहा है लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि क्या बात करूं ?”

अनिकेत का ये जवाब सुनकर अन्वेषा हँस दी और अनिकेत के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए उसकी आंखों में देखते हुए वो बोली, “तुम बहुत ज्यादा सीधे हो अनिकेत । आजकल सीधे बनकर रहने का ज़माना नहीं है । लगता है मुझे ही सारी जिन्दगी तुम्हें सबकुछ सिखाते रहना पड़ेगा ।”

अनिकेत अन्वेषा की इस बात पर हँस दिया और कहने लगा, “अब मेरी जीवनसाथी बन ही गई हो तो तुमसे कुछ अच्छा सीखने में मुझे कोई परेशानी नहीं होगी लेकिन हाँ मैं अपनी मर्जी का मालिक भी हूँ । जो बात मेरा मन नहीं मानता वो मैं कभी नहीं करता तो तुम्हें भी इसका ध्यान रखना होगा अन्वेषा ।”

अन्वेषा ने अनिकेत के गले में अपनी बाँहें डाल दी और गर्म साँसे उसके चेहरे पर छोड़ते हुए बोली, “अपने मन का मालिक तो हर कोई होता है अनिकेत । मन की बातें करने के लिए तो सारी जिन्दगी पड़ी है अभी शरीर को उसका काम करने दो।”

अन्वेषा ने पहल की तो अनिकेत भी खुद पर और ज्यादा काबू नहीं रख सका और थोड़ी ही देर में कमरे की लाइट बंद हो गई ।

अन्वेषा के साथ जैसे जैसे अनिकेत के दिन गुजरने लगे वैसे वैसे उसे अन्वेषा के बारे में और ज्यादा पता चलने लगा । हनीमून से लौटने के बाद अचानक ही उसे अन्वेषा के व्यवहार में परिवर्तन नजर आने लगा । अनिकेत सप्ताह के पाँच दिन ऑफिस के कामकाज की वजह से इतना ज्यादा टेंशन में रहता कि वो अन्वेषा को ज्यादा वक्त नहीं दे पाता था । दूसरी तरफ अन्वेषा की अनिकेत से ये अपेक्षा थी कि ऑफिस से लौटने के बाद और वीकएंड्स वो सिर्फ और सिर्फ उसका ही होकर रहे । अनिकेत अपने पेरेंट्स और अन्वेषा के बीच पूरी तरह से तालमेल कर दोनों में से किसी को अन्याय न हो इस बात का पूरी तरह से ध्यान रखता लेकिन कहीं न कहीं अन्वेषा का जिद्दी स्वभाव उसके आड़े आ जाता और हारकर उसे अन्वेषा की हर बात मानने को मजबूर होना पड़ता ।

शादी के छह महीने बीतने के बाद से ही दोनों के बीच छोटी मोटी तकरार होना शुरू हो गई थी लेकिन जिस सुबह अन्वेषा को ये पता चला की वो प्रेग्नेंट है तो उसने पूरा घर सिर पर उठा लिया ।

“अनिकेत, अभी हमारी शादी को केवल छह महीने ही हुए है । मेरी सारी सहेलियों की तो अब तक शादी भी नहीं हुई है । मैं अभी से माँ बनकर उनकी नजरो में अपना स्टैट्स कम नहीं होने देना चाहती ।” अन्वेषा ने अनिकेत के उसके एबोरशन करवाने की बात का विरोध करते हुए कहा तो अनिकेत ने उसे साफ शब्दों में सुना दिया, “तुम्हें केवल मौजशोख ही पसंद थी तो मुझसे शादी ही नहीं करना चाहिए थी ।”

अनिकेत के इस जवाब पर अन्वेषा परेशान होकर बोली, “बात मौजशोख की नहीं है अनिकेत  । आजकल कोई भी लड़की २३ साल में  माँ नहीं बनती है  । मैं इस बच्चे के लिए अभी तैयार नहीं हूँ  और दो साल तक इसके बारे में सोचना भी नहीं चाहती हूँ ।”

“अन्वेषा, अब जो हो चुका है उसे टाला नहीं जा सकता  । इस बच्चे के जन्म लेने से पहले इसे मारने का पाप अपने सिर पर मत लो ।” अनिकेत ने अन्वेषा की भावनाओं को समझने की कोशिश करते हुए उसे समझाने की कोशिश की तो अन्वेषा उसके इस जवाब पर कड़वी सी हँसी हँस दी और कहने लगी, “पाप पुण्य कुछ नहीं होता अनिकेत  । आजकल सब लोग एडजस्टमेंट के हिसाब से चलते है  । जो पसंद नहीं उसे चलता करो और अपनी परेशानी को इकठ्ठा मत करो  । मेरा तो ये ही मन्त्र है जीने का ।”

“चाहे जो हो जाए  । तुम्हें इस बच्चे को जन्म देना ही होगा ।” अनिकेत ने बात को खत्म करने के लिए अपना फैसला सुनाते हुए अन्वेषा से कहा तो वो इस पर और ज्यादा भड़क गई  ।

“मैं भी पढ़ी लिखी अनिकेत  । मुझ पर जोर जबरदस्ती करने की कोशिश भी मत करना  । मेरी इच्छा के विरुद्ध तुम मुझे माँ बनने को मजबूर नहीं कर सकते ।”

अनिकेत ने फिर से कहा, “मैं कोई जोरजबरदस्ती नहीं कर रहा हूँ  । इस बच्चे को तुम्हारे गर्भ में लाने के लिए तुम भी उतनी ही जिम्मेदार हो जितना मैं हूँ  ।  हमारे बीच जब वो सबकुछ हमारी आपसी सहमति से हुआ तो उसके परिणाम को लेकर तुम अकेले कोई भी फैसला नहीं ले सकती ।”

“मतलब तुम मुझे मजबूर करोगे ?” अन्वेषा ने अनिकेत को घूरा तो उसने उसे गुस्से से कहा, “ऐसा तुम्हारा सोचना है  । मैं आज तक तुम्हारी हर बात मानी है लेकिन मैं तुम्हारी इस बात से बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ ।”      

तभी अचानक से अन्वेषा ने अनिकेत के गले में अपनी बाँहें डाल दी और बड़े ही प्यार से उसे बोली, “ठीक है  । तुम जैसा कहते हो वैसा ही करुँगी लेकिन मेरी भी एक शर्त है जो तुम्हें पूरी करनी होगी ।”

अनिकेत ने अन्वेषा के अचानक से बदले हुए व्यवहार को देखकर मुस्कुराते हुए उसे कहा, “नया नेकलेस चाहिए न तुम्हें  । अगले महीने दिलवा दूँगा ।”

इस पर अन्वेषा ने उसे कहा, “तुम्हें इतनी बड़ी खुशी देने जा रही हूँ तो अब नेकलेस जैसी छोटी चीज से काम नहीं चलेगा अनिकेत ।”

“तो क्या चाहती हो जानेमन ।” अनिकेत ने बड़े ही प्यार से अन्वेषा की आँखों में देखा  ।

“अपना एक सुन्दर सा फ्लैट ।”

अन्वेषा का जवाब सुनकर अनिकेत चौंक गया और बोला, “इतना बड़ा अपना घर है तो सही फिर फ्लैट लेकर क्या करेंगे अन्वेषा ?”

“ये घर तो तुम्हारे मम्मी पापा का है  । तुम्हारा अपना कहाँ है ।” अन्वेषा का ये जवाब अनिकेत को और भी ज्यादा चौंकाने वाला था  ।

“कैसी बात कर रही हो अन्वेषा  । पापा मम्मी का जो कुछ है वो बाद में हमारा ही तो होगा ।” अनिकेत ने जवाब दिया तो अन्वेषा बोली, “वो जब होगा तब होगा लेकिन हमारा अपना भी तो कुछ होना चाहिए  । इतना कमाते हो तो क्या मुझे एक फ्लैट लेकर नहीं दे सकते ?”

अनिकेत ने अन्वेषा को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन अन्वेषा अपनी जिद पर अड़ी रही  । हारकर अन्वेषा  खुश देखने के लिए अनिकेत ने होम लोन लेकर उसकी पसन्द का फ्लैट  बुक करवा लिया  ।   

इसके बाद बच्चे के जन्म होने तक दोनों के बीच सबकुछ अच्छा चलता रहा लेकिन अन्वेषा बच्चे को जन्म देने के चार महीने के बाद जब वापस अपनी मम्मी के घर से अनिकेत के पास आई तो वो उसे नए फ्लैट में शिफ्ट होने के लिए दबाव डालने लगी  । दोनों के बीच इस बात को लेकर झगड़े होने लगे तो अनिकेत के पेरेंट्स से खुद ही अनिकेत को अन्वेषा के साथ अलग रहने के लिए कह दिया  ।

अनिकेत ने ये समझौता भी स्वीकार कर लिया लेकिन कुछ वक्त सबकुछ ठीक चलने के बाद अनिकेत को घरखर्च और अन्वेषा की मांगे पूरी करने के लिए पैसों की तंगी महसूस होने लगी  । वो इस वजह से हमेशा तनाव में रहने लगा  ।

लगातार सात महीनों तक लगातार अन्वेषा के साथ हो रही बहस के बाद जब ऑफिस से लौटने के बाद अन्वेषा ने उससे अलग होने की बात कही तो वो पूरी तरह से टूट गया  । अनिकेत खुद भी अन्वेषा से परेशान हो चुका था लेकिन अपने बच्चे के बारे में सोचकर वो खुद कोई भी फैसला लेने से पीछे हट रहा था  । अनिकेत अपने विचारों में डूबता उतराता बैठा हुआ था तभी अन्वेषा बैग लेकर उसके सामने आकर खड़ी हो गई  ।

अनिकेत ने उसे घूरा तो वो बोली, “मैं जा रही हूँ  । डायवोर्स के पेपर तैयार होने पर पापा की ऑफिस में आकर साइन कर जाना ।”

“अन्वेषा ! मुन्नू का ख्याल करो  । तुम्हारे बिना वो कैसे रह पाएगा ?” अनिकेत ने अन्वेषा को रोकना चाहा  ।

“वो तुम्हारी मर्जी से इस दुनिया में आया है तो अब उसकी जिम्मेदारी तुम्हारी हुई  । तुम्हारे बच्चे के पीछे मैं अपने आगे की जिन्दगी बर्बाद नहीं करना चाहती । गुड बाय ।”

अन्वेषा ने अनिकेत की तरफ देखा तक नहीं और घर से बाहर निकल गई  ।

छह महीने के अन्दर अनिकेत और अन्वेषा का डायवोर्स हो गया  । अनिकेत को फ्लैट भी अन्वेषा के नाम करवाना पड़ा और फिर वो अपने बच्चे को लेकर अपने मम्मी पापा के साथ आकर रहने लगा  ।   

चार महीने बाद एक दिन सुबह अखबार के आखरी पन्ने पर अन्वेषा के फोटो के साथ एक समाचार पढ़कर उसके होश उड़ गए  । अन्वेषा ने सुसाइड कर लिया था  । अन्वेषा अनिकेत को छोड़कर अपनी उम्र से दस साल बड़े किसी डॉक्टर के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही थी । वो डॉक्टर पहले से शादीशुदा था और जब उसकी पत्नी को अन्वेषा और अपने पति के इस रिलेशन के बारे में पता चला तो खोखले भावनात्मक धरातल और सिर्फ शरीर की जरूरत पर टिके संबंधों के बोझ अन्वेषा झेल न पाई  । आज अन्वेषा और उस डॉक्टर का ये रिश्ता अखबारों की सुर्खियाँ बन गया ।

अनिकेत ने गीली हो चुकी आँखों के साथ गहरी साँस ली और मन ही मन बुदबुदाया, “अन्वेषा । ऐसी तो क्या जरूरत थी तुम्हारी जो मैं पूरी न कर सका ?”