Main Galat tha - Part - 6 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | मैं ग़लत था - भाग - 6

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मैं ग़लत था - भाग - 6

धीरे-धीरे अब समय आ गया था जब हर आँख में आँसू आ ही जाते हैं यह सरोज की विदाई की बेला थी। यूँ तो वह एक घर से निकलकर बाजू वाले घर में ही जा रही थी लेकिन फिर भी विदाई तो विदाई ही होती है। आज भले राम, माया और केवल राम की आँखें आँसुओं से भीगी जा रही थीं। भले ही ससुराल बाजू में ही हो पर फिर भी शादी के बाद बेटी का मायका तो छूट ही जाता है। वह पहले जैसी आज़ादी कहाँ मिल पाती है।

सरोज ने जब अपने पिता को चुपके से चश्मे के पीछे से आँसू पोछते हुए देखा तब वह दौड़ कर उनके सीने से जा लिपटी। तब ऐसा लग रहा था मानो केवल राम ने भी उसे अपने सीने में छुपा लिया हो। यह दृश्य देख कर भले राम भी ख़ुद को रोक ना सका और उसने भी सरोज को अपने सीने से लगा लिया। विदाई के गानों ने इस माहौल को और भी अधिक भावुक बना दिया था।

केवल राम की आँखों से बहते आँसुओं को देखकर मुन्ना ने कहा, "केवल ये आँसू किस लिए? यहाँ बाजू में ही तो है तुम्हारी बेटी। रोओ मत कोई फ़र्क़ नहीं हुआ है केवल।"

इस तरह भीगी आँखों के साथ ही विदाई भी हो गई।

उधर छोटे लाल के घर में सरोज का गृह प्रवेश बड़े ही विधि विधान से हुआ। सत्य नारायण की कथा, गाना, बजाना सब चल रहा था। सरोज के लिए भी यहाँ कुछ नया नहीं था। रोज़ का आना जाना तो था ही। बस नया यह था कि आज उसकी सुहाग रात थी। छोटे और सरोज अब एक दूसरे के हो चुके थे।

विवाह के तीसरे दिन भाई अपनी बहन को पग फेरे के लिए लेने आता है और बहन बहनोई दोनों को अपने घर लेकर जाता है। भले राम भी अपनी बहन को लेने छोटे के घर यानी सरोज की ससुराल आया।

तब उसने मुन्ना लाल जी से कहा, "चाचा जी मैं सरोज और छोटे को लेने आया हूँ, क्या मैं ...?"

"अरे हाँ भले राम जो भी रीति रिवाज़ हैं उन्हें तो निभाना ही चाहिए, ले जाओ दोनों को।"

भले राम, सरोज और छोटे लाल को लेकर अपने घर आ गया। यूँ तो हर घर में दामाद का बहुत आदर सत्कार किया जाता है लेकिन गाँव में तो यह आदर सत्कार बहुत ही बढ़ चढ़ कर किया जाता है। यहाँ तो दामाद के आने पर उसके पैर परात में रखकर धोये जाते हैं। उस पानी से आचमन तक किया जाता है। यानी इस पानी को अपनी आँखों के ऊपर लगाया जाता है। छोटे ने अपने कई रिश्तेदारों के घर यह सारे विधि विधान देख रखे थे।

आज उसे भी इसी तरह के आदर सत्कार की उम्मीद थी कि बस अभी उसके लिए पीतल की बड़ी-सी परात आयेगी फिर वह भी बड़ी शान से उसमें अपने पाँव रखेगा और गुलाब की पंखुड़ियाँ उसके पैरों पर चढ़ाई जाएंगी। उसे तिलक लगेगा लेकिन कुछ पलों के इंतज़ार के बाद उसे ऐसा लगने लगा कि शायद उसे वह आदर सत्कार मिलेगा ही नहीं क्योंकि घर की मुर्गी दाल बराबर ही होती है। वह मन ही मन सोच रहा था कि यह रिश्ता करके कहीं उसने कोई ग़लती तो नहीं कर दी?

इधर छोटे लाल के मन में यह खिचड़ी पक रही थी और उधर भले राम के घर में सब बहुत ख़ुश थे। बेटी और दामाद पहली बार उनके घर जो आए थे। छोटे लाल को तो आज भी वह अपने घर का बच्चा ही समझ रहे थे। दरअसल छोटे लाल के लिए अब सभी के दिल में पहले से भी कहीं ज़्यादा प्यार था इसीलिए दामाद जैसा मान सम्मान करने की औपचारिकता की उन्होंने ज़रूरत ही नहीं समझी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः