छोटे लाल मन ही मन भले राम की बहन सरोज से प्यार करता था इसीलिए उसने भले से रिश्तेदारी वाली बात कही थी। भले के मुँह से हाँ सुनने के बाद छोटे ने अपने दिल की बात उससे कहने का मन बना लिया।
कुछ देर सोचने के बाद छोटे ने कहा, "भले सुन मैं सरोज से शादी करके तुझे मेरा साला बना लेता हूँ। बोल क्या कहता है?"
"बात तो पते की है मगर अम्मा बाबू जी से पूछना तो पड़ेगा ना?"
"हाँ-हाँ तो वे कौन-सा मना करने वाले हैं। वैसे भी सरोज की उम्र भी शादी लायक तो हो ही गई है और चाचा जी भी एक अच्छे लड़के की तलाश में हैं, मैं जानता हूँ।"
"हाँ तू ठीक कह रहा है छोटे, मैं आज ही बाबूजी से बात करता हूँ।"
उसी रात को खाना खाते समय भले राम ने अपने पिता से कहा, "बाबूजी छोटे लाल कितना अच्छा लड़का है ना? मेहनती, स्मार्ट और स्वभाव भी कितना अच्छा है, है ना बाबू जी?"
"हाँ-हाँ बहुत अच्छा लड़का है, बचपन से जानते हैं हम लोग उसे। मेहनती भी है और समझदार भी, पर आज अचानक तू इस तरह उसकी तारीफ़ के पुल क्यों बाँध रहा है।"
बीच में ही माया ने कहा, "अरे समझदार को इशारा काफ़ी है, तुम समझे नहीं? हमारा बेटा छोटे का रिश्ता लेकर आया है अपनी बहन के लिए।"
यह सुनते ही केवल की आँखों में चमक आ गई।
उनकी आँखों की चमक देख कर भले ने कहा, "तो बाबूजी उसे हम अपनी सरोज के लिए ...?"
कुछ सोचते हुए उमंग के साथ केवल राम ने कहा, "वाह यह बात कभी मेरे दिमाग़ में क्यों नहीं आई। हमने तो सरोज के लिए लड़का देखना भी शुरू कर दिया था। यह तो वही बात हो गई भले कि बगल में छोरा और गाँव में ढिंढोरा। बाहर जाने की ज़रूरत ही क्या है? हमारी बिटिया भी पास में ही रहेगी हमारी आँखों के सामने। हम दोनों कल ही जाकर मुन्ना लाल से रिश्ते की बात कर लेते हैं। वह भी यह सुनकर ख़ुश हो जाएगा।"
दूसरे दिन माया और केवल राम छोटे लाल के घर पहुँच गए।
मुन्ना लाल कुर्सी पर बैठा पान चबा रहा था। केवल को देखते ही उसने कहा, "आओ-आओ केवल बैठो। भाभी जी भी आई हैं," कहते हुए उसने गौरी को आवाज़ लगाई, "अरे गौरी देख माया भाभी आई हैं।"
आवाज़ सुनते ही वह साड़ी के पल्लू से अपने हाथ पोंछती हुई बाहर कमरे में आ गई और माया से कहा, "आ माया आजा, चल हम अंदर कमरे में बैठते हैं।"
बीच में केवल राम ने कहा, "अरे गौरी भाभी अंदर कमरे में क्यों, यहाँ क्यों नहीं? आज तो मैं आपसे भी बात करना चाहता हूँ। आओ तुम दोनों भी यहीं बैठो।"
गौरी को तो बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि आख़िर बात क्या है। फिर भी वह मुस्कुराते हुए वहीं कुर्सी पर बैठ गई।
तब केवल राम ने कहा, "मुन्ना मैं दो टूक में ही एक बात कह रहा हूँ, घुमा फिरा कर नहीं कहूँगा।"
"अरे बोल ना केवल, क्या कहना चाह रहा है?"
"मुन्ना मैं सरोज का रिश्ता लेकर आया हूँ, छोटे के लिए।"
मुन्ना मुस्कुराया और केवल की तरफ़ देखने लगा।
जब वह कुछ बोला नहीं तब केवल ने कहा, "क्या हुआ यार? क्या तुझे...?"
कुछ पलों के लिए वहाँ एक सन्नाटा-सा छा गया। सब मुन्ना लाल की तरफ़ टकटकी लगाकर देख रहे थे कि आख़िर वह क्या कहेंगे?
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः