Rishtey.. Dil se dil tak - 9 in Hindi Love Stories by Hemant Sharma “Harshul” books and stories PDF | रिश्ते… दिल से दिल के - 9

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 52

    નિતુ : ૫૨ (ધ ગેમ ઇજ ઓન)નિતુ અને કરુણા બંને મળેલા છે કે નહિ એ...

  • ભીતરમન - 57

    પૂજાની વાત સાંભળીને ત્યાં ઉપસ્થિત બધા જ લોકોએ તાળીઓના ગગડાટથ...

  • વિશ્વની ઉત્તમ પ્રેતકથાઓ

    બ્રિટનના એક ગ્રાઉન્ડમાં પ્રતિવર્ષ મૃત સૈનિકો પ્રેત રૂપે પ્રક...

  • ઈર્ષા

    ईर्ष्यी   घृणि  न  संतुष्टः  क्रोधिनो  नित्यशङ्कितः  | परभाग...

  • સિટાડેલ : હની બની

    સિટાડેલ : હની બની- રાકેશ ઠક્કર         નિર્દેશક રાજ એન્ડ ડિક...

Categories
Share

रिश्ते… दिल से दिल के - 9

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 9
[विराज की घिन्होनी हरकत]

आकृति पार्टी में जाने के लिए अच्छे से तैयार हो चुकी थी। उसने खुद को आईने में निहारा और बोली, "हाए! कितनी सुंदर लग रही हूं मैं! आज तो विराज को फिर से मुझसे प्यार हो जायेगा।" कहकर वो बाहर निकलने वाली थी कि गरिमा जी उसके रास्ते में आ गईं और उसे रोकते हुए बोलीं, "ये इतना तैयार होकर कहां जा रही हो तुम?"

"मैं आज एक पार्टी में जा रही हूं।"

"किसके साथ?"

"किसके साथ, मतलब? अकेले भी तो जा सकती हूं।"

"अक्कू! सच–सच बताओ, उस लड़के के साथ जा रही हो जा तुम?", गरिमा जी ने एक शक की नज़र उस पर डालकर कहा तो आकृति अपनी आंखें गोल–गोल घुमाकर बोली, "हां… और उसका नाम लड़का नहीं, विराज है तो प्लीज उसे इसी नाम से बुलाइए।"

इतना कहकर आकृति जाने लगी कि पीछे से गरिमा जी ने कहा, "कहीं नहीं जाओगी तुम।"

उनकी बात पर गुस्से से आकृति मुड़ी और बोली, "क्यों नहीं जाऊंगी? मैं तो जाऊंगी। बचपन से लेकर आज तक बस आप यही करती आई हैं, अक्कू ये मत कर, अक्कू वो मत कर… अरे, बस थक गई हूं मैं आपकी इन पाबंदियों में रहकर, घुटन होती है मुझे। इसीलिए मैं तो जाऊंगी आपको जो करना है वो कर लीजिए।"

"अक्कू!", गरिमा जी उसे आवाज़ देती रह गईं लेकिन वो आगे तेज़ी से चली गई। गरिमा जी ने गुस्से से अपनी मुट्ठियां बंद कीं और गुस्से से अपने कमरे में चली गईं।

विराज आकृति को लेकर पार्टी में पहुंच चुका था। पार्टी की डिम लाइट्स में बहुत सारे कपल्स डांस कर रहे थे। विराज ने भी आकृति के आगे हाथ किया। आकृति ने एक मुस्कान के साथ उसका हाथ थाम लिया और दोनों गाने पर डांस करने लगे…

जो अख लड़ जावे, सारी रात नींद ना आवे
मैनू बड़ा तड़पावे, दिल चैन कहीं ना पावे पावे पावे
जो अख लड़ जावे, सारी रात नींद ना आवे
मैनू बड़ा तड़पावे, दिल चैन कहीं ना पावे पावे पावे

खन्न खन्न खन्न खन्न चूड़ी
तेरी खन्न खन्न खन्न खन्न खनके रे
खन्न खन्न खन्न खन्न खनके
वेख वेख के चेहरा
मेरा दिल ये धक् धक् धड़के रे
दिल ये धक् धक् धड़के

तरसावे तेरे बिन ये रह ना पावे
माही जो तू ना आवे आवे आवे..
अख लड़ जावे, सारी रात नींद ना आवे
मैनू बड़ा तड़पावे, दिल चैन कहीं ना पावे पावे पावे

म्यूजिक के बीच में ही विराज आकृति को एक तरफ खींचकर ले गया। आकृति को इसकी ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। उसने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और बोली, "ये क्या कर रहे हो, विराज?"

"अरे, बेबी! तुम मेरे साथ चलो तो सही।", विराज फिर से उसका हाथ पकड़कर ले जाने लगा।

आकृति ने उससे हाथ छुड़ाने की कोशिश की पर उसने नहीं छोड़ा। आकृति को एक शांत कमरे में ले जाकर उसने उसे दीवार से टिका दिया और उसके दोनों तरफ अपने हाथ रख दिए। वो अपने होठों को आकृति के होठों से मिलाने वाला था कि आकृति ने उसे खुद से दूर किया और बोली, "विराज! ये सब क्या है? तुम क्या कर रहे हो ये?"

विराज उसके मुंह पर उंगली रखकर फिर से उसके पास आया और बोला, "श्श्श्श! हम दोनों के अलावा यहां कोई नहीं है। आज हम दोनों वो करेंगे जो आज तक हमारे बीच नहीं हुआ।"

"ये… ये क्या बोल रहे हो तुम?", आकृति ने एक घबराहट के साथ कहा तो विराज बोला, "आज तुम और मैं…" कहते हुए वो फिर से आकृति के पास आया। लेकिन इस बार आकृति ने उसे ज़ोरदार तमाचा दे मारा और बोली, "जस्ट स्टॉप इट… वॉट्स रॉन्ग विद यू, विराज! कर क्या रहे हो ये तुम? हाउ कैन यू डू दिस टू मी?"

आकृति अपनी बात पूरी कर पाती उससे पहले ही विराज ने गुस्से से उसका मुंह पकड़ लिया और बोला, "ए! तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे थप्पड़ मारने की? तू क्या समझती है कि तू कोई हूर की परी है जो लोग तेरे पीछे दीवाने हैं? अरे, बेवकूफ! ये सब तेरे पैसों का कमाल है। अब तक तू मुझे पैसे दे रही थी तो मैं भी तुझे कुछ नहीं कह रहा था पर इसका मतलब ये नहीं कि तूने मुझे खरीद लिया और तू मुझे थप्पड़ भी मार सकती है। अब तक तेरे नखरों को, तेरे बेफिजूल के नाटक को बहुत बर्दाश्त किया लेकिन तेरा ये थप्पड़ मेरी बर्दाश्त से बाहर है। अब देख मैं तेरे साथ क्या करता हूं!" कहते हुए विराज ने गुस्से से आकृति के कंधे से उसकी ड्रेस फाड़ दी।

आकृति तो समझ ही नहीं पाई कि ये क्या हुआ? फिर अचानक से जब उसे होश आया तो वो रोते हुए विराज से बोली, "विराज! ये क्या कर रहे हो तुम? तुमने तो मुझसे प्यार…"

"अरे, कोई प्यार–व्यार नहीं किया मैंने तुझसे। वो सिर्फ एक नाटक था, मेरी तो पहले से ही एक गर्लफ्रेंड है और उसी के लिए मैंने तेरे साथ ये प्यार का नाटक किया और तू अकेली नहीं है। अब तक ना जाने कितनी ही अमीर लड़कियों के साथ मैंने ये किया है… लेकिन आज तेरे साथ जो करने वाला हूं वो अब तक किसी के साथ नहीं कर पाया।"

आकृति घबराकर अपने कदम पीछे करते हुए बोली, "क्या… क्या करने वाले हो तुम?"

विराज एक कुटिल मुस्कान के साथ उसकी तरफ बढ़ रहा था। अचानक से आकृति का पैर कार्पेट में अटका और वो नीचे गिर गई। विराज उसकी तरफ अपनी घिनहोनी नजरों से देखकर अपना हाथ बढ़ाने लगा। उसे देखकर आकृति ने एक चीख के साथ अपनी आंखें बंद कर लीं। लेकिन विराज का हाथ आकृति तक पहुंच पाता उससे पहले ही किसी ने विराज के हाथ पर एक कांच की बॉटल से वार किया। वार इतना तेज़ था कि उस बॉटल में से जांच के टुकड़े विराज के हाथ में धंस गए और उसके हाथ से खून बहने लगा।

विराज की चीख सुनकर आकृति ने अपनी आंखें खोलीं और देखा कि उसके सामने और विराज के पास प्रदिति कांच की टूटी हुई बॉटल को लेकर खड़ी थी।

विराज कराहकर और गुस्से में बोली, "ए, टीचर! अभी के अभी मेरे रास्ते से हट जा वरना जो हाल में इस आकृति का करने वाला हूं वही तेरा करूंगा।"

प्रदिति ने उस टूटी बॉटल को विराज के सामने करते हुए कहा, "तू मुझे और मेरी बहन को हाथ तक नहीं लगा सकता।"

प्रदिति के मुंह से खुद को बहन सुनकर आकृति हैरानी से उसकी तरफ देखने लगी। विराज ने भी हैरानी से प्रदिति से कहा, "ये तेरी बहन है?"

"हां, मेरा और आकृति का दिल का रिश्ता है और जिनके दिल में किसी के लिए प्यार हो वो दूसरों की मदद करते हैं, उनकी परवाह करते हैं, उनका सम्मान करते हैं पर ये बात तुम जैसे लालची कहां समझेंगे।", प्रदिति ने गुस्से से कहा।

विराज उसकी तरफ बढ़ने लगा कि प्रदिति ने उस बॉटल को उसके सामने किया और बोली, "जो वार हाथ पर हुआ है, वो चहरे पर भी हो सकता है। अगर अपनी सलामती चाहते हो तो चुपचाप यहां से निकल जाओ क्योंकि ये वार पहले से भी ज़्यादा खतरनाक होगा।"

विराज एक कुटिल मुस्कान के साथ बोला, "तुझे क्या लगता है, मैं एक लड़की से डर जाऊंगा? कभी नहीं।"

प्रदिति गुस्से में ही बोली, "तुम ऐसे नहीं मानोगे।" कहकर प्रदिति ने उसके दूसरे हाथ पर भी उस टूटी बॉटल से वार कर दिया।

विराज फिर से कराह उठा। प्रदिति बोली, "अब अगर ये बॉटल तुम्हारी मौत का कारण भी बनी तो इसमें तुम्हारी ही गलती होगी। इसलिए चुपचाप यहां से निकल जाओ।"

विराज ने अपने जख्मी हाथ को पकड़कर मन ही मन सोचा, "ये लड़की तो पागल हो गई है। ये कुछ भी कर सकती है। इस वक्त मेरा यहां से भागना ही अच्छा रहेगा।"

फिर वो उन दोनों से बोला, "तुम दोनों को तो मैं देख लूंगा" कहकर वो तेज़ी से वहां से भाग गया।

उसके जाने के बाद प्रदिति का ध्यान आकृति पर गया जो अपनी जगह पर बैठी हुई रो रही थी। प्रदिति ने जब उसकी ड्रेस को कंधे से फटा हुआ देखा तो उसने अपने आसपास देखकर एक ब्लैंकेट को वहां से उठकर आकृति के ऊपर डाल दिया।

प्रदिति उसके पास बैठकर उसे संभालने लगी। आकृति प्रदिति के गले से लगकर फफक पड़ी।

आकृति रोते हुए ही बोली, "मैं कितनी बड़ी बेवकूफ थी जो उस पर भरोसा किया, मैंने ना तो आपकी बात सुनी और ना ही अपनी मॉम की। मैं ये कैसे भूल गई कि उन्होंने मुझे जन्म दिया, मुझे ज़्यादा उन्हें मेरी चिंता है, वो मेरे लिए जो भी करेंगी वो सही ही करेंगी। मैं इसी लायक हूं, यही होना चाहिए था मेरे साथ"

प्रदिति उसे चुप कराते हुए बोली, "नहीं, गलत तुम नहीं थी, वो तो उस लड़के ने तुम्हारी आंखों पर ऐसी पट्टी बांध दी थी कि तुम्हें बस वो ही ठीक लग रहा था। तुमने तो उस पर भरोसा किया था अब उसने ही वो भरोसा तोड़ दिया तो इसमें तुम्हारी क्या गलती है… तुम शांत हो जाओ।"

"अगर आप यहां नहीं आतीं तो आज मेरे साथ न जाने क्या हो जाता!"

"कुछ नहीं होता तुम्हें। मेरे होते तुम्हें कुछ नहीं होगा। मैं हूं तुम्हारे साथ, तुम पर आंच तक नहीं आने दूंगी मैं।", प्रदिति ने उसके चहरे को अपनी हथेली में भरकर कहा।

आकृति ने नम आंखों से प्रदिति से कहा, "मैंने आपको इतना बुरा–भला कहा फिर भी आप मेरी हेल्प करने के लिए यहां तक आ गईं वो भी जान की परवाह किए बिना।"

"मेरी जान मेरी अक्कू की इज्ज़त से बढ़कर नहीं है।", प्रदिति ने कहा तो आकृति एक बार फिर रोते हुए प्रदिति के गले लग गई।

फिर उससे अलग होकर आकृति ने कहा, "आज आपने एक बड़ी बहन की तरह मेरी रक्षा की है, मुझे उस राक्षस से बचाया है। इसीलिए आज से मैं आपकी अक्कू और आप मेरी दी।"

आकृति के मुंह से खुद को दी तो प्रदिति कब से सुनना चाहती थी। हां, बस उसने ये नहीं सोचा था कि वक्त कुछ ऐसा होगा।

उसने झट से आकृति को अपने गले से लगा लिया। प्रदिति की आंखें भी नम हो आई थीं।

उसे खुद से अलग करके उसके आंसू पोंछते हुए प्रदिति बोली, "अब तुम बिलकुल नहीं रोओगी। चलो, अब घर चलते हैं।"

"नहीं, मैं नहीं जा पाऊंगी।" आकृति ने मना करते हुए कहा तो प्रदिति ने सवाल किया, "लेकिन, क्यों?"

आकृति ने रोते हुए उसका जवाब दिया, "यहां आने से पहले भी मॉम ने मुझे मना किया था, कहा था कि मैं यहां नहीं आऊं… मैंने उनकी बात नहीं मानी और ना जाने उन्हें क्या–क्या कहा। अब मैं कैसे उनसे नज़रें मिला पाऊंगी।"

प्रदिति ने आकृति के आंसू साफ किए और बोली, "अक्कू! मां हैं वो तुम्हारी। तुम्हारी चिंता थी इसीलिए तुम्हें ये सब कहा। उन्हें तुम्हारे बारे में ये सब जानने का हक है और अगर ये बात उन्हें किसी और से पता चली तो उन्हें ज़्यादा दुःख होगा।"

"पर मैं कैसे?" आकृति ने नम आंखों से कहा तो प्रदिति बोली, "अक्कू! मैं हूं ना तुम्हारे साथ।" कहकर प्रदिति ने उसे खड़ा किया और अपने साथ वहां से बाहर ले गई।

क्रमशः