Satya Itihaas - 1 in Hindi Short Stories by Ritin Pundir books and stories PDF | सत्य इतिहास - भाग 1 - कौन है पुंजा ?

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सत्य इतिहास - भाग 1 - कौन है पुंजा ?

कई वर्षों से देश मे एक नैरेटिव सेट कर दिया गया कि, की राणा पूंजा एक भील थे. जो सभी ने आसानी से मान लिया .

जबकिं राणा पूंजा ,भीलों की सेना प्रतिनिधित्व करते थे, भीलों के राणा थे, ना कि भील.

राणा पूंजा सोलंकी मेवाड़ के एक ठिकाने पानरवा जमींदारी के ठिकानेदार थे, ये जमींदारी सोलंकी राजपूतों की पुस्तैनी जागीर है,जिनके आस पास आदिवासी क्षेत्र है, जंहा भीलों की संख्या की बहुतायत थी, और इनकी सेना में ज्यादातर सैनिक भील थे...इसलिए इन्हें भीलों का राणा कहा जाने लगा...और बाद में यही नाम भीलू राणा पूंजा बन गया जिससे लोग राणा पूंजा को भील समझने लगे....

मैंने 2 पोस्ट डाली थी राणा पुंजा जी के क्षत्रिय होने का लेकिन असली रक्त ही अपने रक्त को ही पहचान पाए । कहने का अर्थ ये की क्षत्रियों ने तो विश्वास किया पर कुछ विशेषों ने प्रश्न उठाया ।
तो इसे साबित करने का एक ही उपाय है "इतिहास खोलकर दिखाना"
मैं "राणा पुंजा जी" को क्षत्रिय साबित आसानी से कर सकता हूँ क्योंकि मैं उन्हें बहुत करीब से जानता हूँ और क्योंकि मैं भी भोजवत सोलंकी ही हूँ इसलिये ।
राणा आदित्यसिंह वैभव:
भोजावत सोलंकी त्रिभुवनपाल द्वितीय के 7वीं पीढ़ी बाद के वंशज हैं एवं भोज का दूसरा पुत्र गौड़ा था। गौड़ के पुत्र सुल्तान सिंह ने पनारवा पर कब्जा कर लिया। उनके वंशज राणा पुंजा थे, जो हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ के इतिहास में और महाराणा प्रताप की मदद करने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके पास भोमान की ऑगाना भी है।

ठिकाना की स्थापना अक्षयराज सोलंकी राजपूत द्वारा की गई थी, जिन्होंने पनडुवा पर हमला करके जीवराज नामक एक राजपूत पर हमला कर उसकी हत्या कर दी थी। 16 वीं शताब्दी में किसी समय, पनारवा के शासक हरपाल ने मेवाड़ के शासक उदय सिंह द्वितीय की सेवा की, जब बादशाह अकबर के हमले के बाद पनारवा की पहाड़ियों में शरण लिए। बदले में, उदय सिंह ने हरपाल को 'राणा' की उपाधि दी; पनारवा के शासकों ने तब से यह खिताब अपने नाम किया। 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में हरपाल के पोते राणा पुंजा अपने कई हज़ार सैनिकों के साथ उपस्थित थे; पुंजा लड़ाई के नायक माने गए हैं
राणा आदित्यसिंह वैभव:
पनारवा ठिकाना वर्तमान समय में राजस्थान के पूर्व मेवाड़ राज्य में भोमट क्षेत्र में स्थित था। थिकाना की राजधानी मानपुर गाँव में थी। पनारवा का क्षेत्र 1700 के दशक तक व्यापक था, पश्चिम में जुरा से लेकर पूर्व में पाई तक, धीरे-धीरे आकार में कमी आती गई क्योंकि विभिन्न छोटे ठिकाना इसके क्षेत्र से दूर हो गए। ओगना, आदिवास, उमरिया, ओडा और अन्य के थिकाना पनारवा को उनके मूल के रूप में दावा करते हैं।
1949 में भारत में प्रवेश के समय, पनारवा की सीमा जुरा थिकाना और पश्चिम और उत्तर-पश्चिम में थी, पूर्व और उत्तर-पूर्व में ओघना थिकाना, दक्षिण में इदर राज्य था। 1903 तक, थिकाना में 60 गाँव थे, और दो जागीर - ओरा और आदिवासियों का दावा किया।
राणा आदित्यसिंह वैभव:
पानरवा की वंशावली


अक्षयराज(पानरवा के संस्थापक)
राजसिंह
महिपाल
हरपाल (मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह से राणा की उपाधि प्राप्त)
राणा डेड़ा
राणा पुंजा
राणा रामजी
राणा चंद्रभान
राणा सूरजमल (1771-1774 का शासन) [2]
राणा भगवानजी
राणा जोधजी
राणा रघुनाथ सिंह
राणा नाथूजी
राणा कीर्ति सिंह
राणा केशरी सिंह
राणा उदय सिंह
राणा प्रताप सिंह
राणा भवानी सिंह
राणा अर्जुन सिंह (1881-1923 का शासन)
राणा मोहब्बत सिंह (1923 से 1949 तक एकीकरण में शासन)

नोट: जिन्हें अभी भी शक हो उनका कोई इलाज नहीं उन्हें मालूम होना चाहिए कि राणा पुंजा जी के वंशज अभी भी जीवित हैं एवं क्षत्रिय होने का ही दावा करते हैं । आप मेवाड़, पानरवा में आकर देख सकते हैं, पर वोट एवं राजनीति के चक्कर मे आवाज दबाई गयी है । इस मुद्दे पर कई बर्षो से आवाज उठाई जा रही है, पर देश की राजनीति , हर आवाज दवाने में लगी रहती है....कुछ साक्ष्य आपको कमेंट बॉक्स में मिल जाएगे...

कलेक्शन:राणा आदित्यसिंह वैभव
सहयोग:बलवीर सिंह बासनी , वीरेंद्र सिंह सोलंकी एवं समस्त सोलंकी परिवार ।