आज इतने सालों बाद इस हिमाचल की मंदाकिनी घाटी में आकर अच्छा लग रहा है,लेकिन कुछ पुरानी बातें सोचकर मन खिन्न सा हो गया,मैं अपने काँलेज के आखिरी साल में कुछ दोस्तों के साथ यहाँ घूमने आई थीं,हम चारों दोस्तों ने यहाँ ट्रैकिंग करने का सोचा था क्योंकि हमने सुना था कि दूर पहाड़ों पर एक दुर्लभ फूल उगता है जिसका नाम ब्रह्मकमल है और हम चारों दोस्त उसी ब्रह्मकमल की खोज में यहाँ मंदाकिनी घाटी में चले आए थें,मेरी दो सहेलियाँ जिनके नाम अभिलाषा और किरण थे और हमारे साथ था हमारा दोस्त जो एक लड़का था और उसका नाम इत्तेफ़ाक़ से ब्रह्मकमल था,जिसके नाम को लेकर हम हमेशा उसका मज़ाक बनाते थे और वो इस बात से बहुत चिढ़ता था....
वो कहा करता था कि उसका नाम उसके दादा जी ने रखा था,जिसका अर्थ होता है "ब्रह्मा का कमल", उसे सब बहुत चिढ़ाते थे लेकिन मैं कभी भी उसके नाम का मज़ाक नहीं बनाती थी,इसलिए वो मुझे अपनी सबसे अच्छी दोस्त मानता था,मैं पढ़ने में भी अच्छी थी,इसलिए पढ़ाई में भी उसकी मदद कर दिया करती थी,कुल मिलाकर हमारी दोस्ती पूरे काँलेज में मशहूर थी और इसी दौरान हमने हिमाचल की ट्रिप प्लान की और जा पहुँचे मंदाकिनी घाटी जहाँ ऊँचाई पर जाने पर वहाँ के पहाड़ो पर ब्रह्मकमल पाने की सम्भावना पाई जाती थी,ये बात उस समय की है जब मोबाइल फोन और स्मार्टफोन का चलन नहीं था......
हमने एक होटल ले लिया था किराए पर,होटल क्या था किसी का घर था जिसे उन्होंने होटल का नाम दे रखा था,हमारे पास उतने रुपऐ नहीं थे कि हम कोई महँगा होटल ले पाए इसलिए हम सभी ने उस होटल में रुकने का सोचा,मैं,अभिलाषा और किरण एक कमरें में शिफ्ट हो गए और ब्रह्मकमल अलग कमरें में शिफ्ट हो गया,उस होटल के मालिक वृद्ध दम्पति थे,उनके बच्चे नौकरी करने बाहर चले गए थे और उन्हें रुपयों के नाम पर कुछ भी नहीं भेजते थे इसलिए उन्होंने अपने घर को एक होटल का रुप दे दिया था,उन्होंने दो नौकर रखें थे जो मेहमानों के लिए खाना पीना बनाते थे और होटल की साफ सफाई किया करते थे...
हम जब रात का खाना खाने डाइनिंग हाँल में पहुँचे तो वहाँ एक और लड़का खाना खाने आया ,वो बहुत ही खूबसूरत था,इतना खूबसूरत कि कोई एक बार देख ले तो उसे दोबारा देखना चाहे,वो दिल्ली से आया था,उसका नाम आशुतोष सिंघानिया था और वो बड़े अमीर घर का लगता था,फिर हमारी उससे जान पहचान हुई तो उसने बताया कि उसे महँगे होटलों में ठहरना पसंद नहीं,उसे आम लोगों के साथ ही रहना अच्छा लगता है और फिर उसने भी हम सभी के संग ट्रैकिंग पर चलने की बात कही तो हमने उसे अपने संग जाने की इजाज़त दे दी,फिर क्या था हम सुबह का नाश्ता करके ट्रैकिंग पर चल पड़े,सफर के दौरान आशुतोष मुझसे नजदीकियाँ बढ़ाने लगा तो अभिलाषा और किरण मुझे उसका नाम ले लेकर चिढ़ाने लगी,विश्वास तो मुझे भी नहीं हो रहा था कि मुझ जैसी साधारण सी लड़की को इतना खूबसूरत लड़का पसंद कर सकता है....
मैं बहुत खुश थी लेकिन ब्रह्मकमल इस बात से खुश नहीं था,उसे किसी लड़के की मुझसे ऐसी नजदीकियांँ बरदाश्त नहीं थी,क्योंकि वो मुझे नादान और भोली समझता था,उसे लगता था कि मैं किसी की भी चिकनी चुपड़ी बातों में आकर धोखा खा जाऊँगी,इसलिए वो हमेशा मुझे सावधान रहने को कहता था,इसका कारण ये बिलकुल भी नहीं था कि उसे मुझसे प्यार था,लेकिन वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त था और मेरा बहुत ख्याल रखता था,इसलिए वो मेरा बुरा होता नहीं देख सकता था,शायद इसलिए उसे मेरी आशुतोष से बढ़ती नजदीकियांँ भी अच्छी नहीं लग रही थी....
ऐसे ही हमें साथ में घूमते हुए एक हफ्ता होने को था और उस दिन हमारा उस होटल में आखिरी दिन था, उस दिन मुझसे आशुतोष ने कहा....
"सौम्या! दोपहर में मेरे साथ अकेली बाहर चलोगी,मुझे तुमसे कुछ कहना है",
ये सुनकर मैं बहुत खुश हुई कि लगता है आज आशुतोष मुझे अपने दिल की बात बताने वाला है और मैंने उसके साथ बाहर जाने के लिए खुशी खुशी हाँ कर दी,जब मैने ये बात अभिलाषा, किरण और ब्रह्मकमल से कही तो अभिलाषा और किरण तो खुश हुईं लेकिन ब्रह्मकमल को मेरा आशुतोष के साथ बाहर अकेली जाना अच्छा नहीं लगा,लेकिन फिर भी गैर मन से उसने मुझे आशुतोष के साथ बाहर जाने दिया, फिर हम बाहर गए कुछ बातें की और एक चाय की छोटी सी दुकान पर चाय पी और वापस आ गए ,इस दौरान मुझसे आशुतोष ने कुछ भी नहीं कहा लेकिन जब हम होटल के भीतर घुसने लगे तो उसने मुझे एक चिट्ठी दी और बोला कि अपने कमरें में जाकर पढ़ना.....
मैं खुशी खुशी वो चिट्ठी लेकर कमरें में गई और ज्यों ही उसे खोलकर पढ़ने लगी तो उसमें जो लिखा था वो पढ़कर मेरे पैरों तले से जीन खिसक गई और मैं रोने लगी ,मुझे रोता देखकर अभिलाषा और किरण परेशान हो उठीं और उन्होने भी वो चिट्ठी पढ़ी,चिट्ठी पढ़कर वें भी चौंक उठीं और सीधा ब्रह्मकमल के कमरें पहुँची,ब्रह्मकमल ने जैसे ही वो चिट्ठी पढ़ी तो वो गुस्से में आशुतोष के कमरें पहुँचा और आशुतोष से बिना कुछ कहें और बिना कुछ पूछे उसकी ताबड़तोड़ पिटाई करने लगा,वो तब तक आशुतोष को मारता रहा जब तक कि आशुतोष लहुलूहान ना हो गया,हम तीनों उसे रोकते रहें लेकिन वो तब रुका जब आशुतोष धरती पर जख्मी होकर गिर पड़ा.....
फिर हम सभी अपने अपने कमरें में लौट आएं और सुबह हमें पता चला कि आशुतोष ने रात को ही एक छोटी पहाड़ी से कूदकर आत्महत्या कर ली है और एक सुसाइड नोट अपने कमरें में छोड़ा था जिस पर लिखा था कि उसे ब्लड कैंसर है इसलिए वो अब जीना नहीं चाहता,उसकी आत्महत्या में किसी का भी कोई हाथ नहीं है.....
ये सब सुनकर हम सभी के होश उड़ गए और ब्रह्मकमल फूट फूटकर रोते हुए बोला.....
"उसने मेरी वजह से ही आत्महत्या की है,मुझे उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था,लेकिन क्या करूँ ? मैं वो चिट्ठी पढ़कर अपना आपा खो बैठा,वो सौम्या से नहीं मुझसे प्यार करता था,उसने सौम्या से इसलिए नजदीकियांँ बढ़ाई ताकि सौम्या उसकी बात मुझ तक पहुँचाने का जरिया बन सकें,उसने वो प्यार भरी चिट्ठी सौम्या के लिए नहीं,मेरे लिए लिखी थी,हे भगवान ! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई,मुझे उसको प्यार से समझाना चाहिए था,वो तो वैसें भी ज्यादा दिनों का मेहमान नहीं था,अब जिन्दगी भर मैं इस पश्चात की आग में जलता रहूँगा कि मेरी वजह से एक निर्दोष ने अपनी जान ले ली",
और फिर ब्रह्मकमल जोर जोर से हँसने लगा और वो बदहवास सा इधर उधर भागने लगा,वो ऐसी ऐसी हरकतें करने लगा कि उसे सम्भालना मुश्किल हो गया,उसे आशुतोष की मौत का इतना गहरा सदमा लगा था कि वो अब भी पागलखाने में है और जब भी मैं उससे मिलने जाती हूँ तो वो यही कहता कि उसका कातिल मैं ही हूँ और ब्रह्मकमल का ऐसा बर्ताव देखकर मेरी आँखें नम हो जातीं हैं,मेरे उस पुराने दोस्त ब्रह्मकमल को पाना उस ब्रह्मकमल की भाँति ही अब दुर्लभ हो गया है.....
समाप्त.....
सरोज वर्मा.....