Wo Maya he - 64 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 64

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वो माया है.... - 64



(64)

पुष्कर‌ की बरीक्षा हो गई। विशाल भी अपने परिवार के साथ उसमें शामिल हुआ था।‌ सबको दिखाने के लिए खुश भी हो रहा था। लेकिन अंदर ही अंदर गुस्से में था। हर पल बस उसे एक बात का खयाल आ रहा था। क्या उसकी खुशियों का कोई मोल नहीं था ‌? उसके परिवार वालों ने उसकी खुशियों को कितनी आसानी से आग लगा दी थी। आज‌ सबकुछ भूलकर जश्न मना रहे हैं।
बरीक्षा के तीन दिन बाद परिवार की गाय मंगला की अचानक मौत हो गई। परिवार में डर पैदा हो गया। एकबार फिर सबको माया का श्राप याद आ गया। सोचा जाने लगा कि अब क्या करें ? विशाल को लगा कि इस डर के माहौल में पुष्कर की शादी नहीं हो पाएगी। लेकिन बद्रीनाथ किसी तांत्रिक को ले आए। उसने कहा कि घबराने की ज़रूरत नहीं है। बहू के गृह प्रवेश के बाद वह माया को अपने वश में करने की विधि करेगा। डर के साए में ही पर पुष्कर की शादी की तैयारियां होने लगीं।
विशाल का मन बहुत खिन्न था। वह अधिकतर घर से बाहर रहने की कोशिश करता था। घरवाले अपने में व्यस्त थे। उसे कुछ कहते भी नहीं थे। विशाल घर से निकल कर पवन के पास चला जाता था। एक दिन पवन के कमरे में दोनों बात कर रहे थे। विशाल ने पवन से पूछा कि उसका‌‌ आगे क्या करने का इरादा है। पवन ने बताया कि उसका दोस्त कौशल पंजाब में है। वह अपना कोई काम शुरू करने वाला है। उसने कहा है कि वह उसे भी‌‌ अपने साथ लगा लेगा। अपना काम शुरू करने के लिए उसे पैसों की ज़रूरत‌ है। अभी तक पैसों का इंतज़ाम नहीं हो पा रहा है। इसलिए वह भवानीगंज में रुका हुआ है। जैसे ही कौशल का काम शुरू हो जाएगा वह भी पंजाब चला जाएगा।
विशाल का अपने घरवालों पर गुस्सा बहुत अधिक था। पवन ने उसे बताया था कि वह और कौशल पहले चोरी करते थे। एकबार उन्होंने एक आदमी के सर पर डंडे से वार किया था। पवन ने यह भी बताया था कि कौशल कोई काम शुरू करना चाहता है जिसके लिए उसे पैसों की ज़रूरत‌ है। इस‌ बात ने उसके मन में एक विचार को जन्म दिया था। बात पुष्कर से संबंधित थी। परिवार के लिए उसका जो गुस्सा था उसका केंद्र पुष्कर ही था। फिर भी पहली बार जब यह विचार उसके मन में आया तो वह अंदर से कांप उठा था। उसने अपने आप को ऐसी बात सोचने के लिए धिक्कारा।‌ पर उसे पवन की बात याद आई। हर कोई सिर्फ अपना सुख देखता है।‌ भले ही वह माँ बाप ही क्यों ना हों। उसने सोचा कि बात तो एकदम सही है। उसने खुद महसूस की है। अगर सबको अपना सुख देखने का अधिकार है तो उसे भी है। अगर ऐसा होने से उसे खुशी मिलेगी तो उसमें कोई बुराई नहीं है। उसने अपना मन पक्का कर लिया।
विशाल अगले दिन पवन से मिला। उसने कहा कि वह उसकी और उसके दोस्त की मदद कर सकता है। इसके लिए उन लोगों को उसका एक काम करना होगा। जब विशाल ने पवन को अपना काम बताया तो कुछ पलों के लिए वह बस उसे देखता रहा था। पवन ने एकदम से कुछ नहीं कहा। उसने कहा कि उसे सोचने का समय चाहिए। विशाल अपने घर चला गया।

खाना खाने के बाद साइमन और इंस्पेक्टर हरीश ने कुछ देर आराम किया। उसके बाद एकबार फिर पूछताछ के लिए उस कमरे में आए जहाँ पवन और कौशल थे।‌ पूछताछ की शुरुआत करते हुए साइमन ने पवन से कहा,
"अब यह बताओ कि विशाल ने तुमसे क्या करने को कहा जिसके लिए तुमने कौशल से उसकी बात कराई। उसे पंजाब से यहाँ आना पड़ा। इतने अधिक रुपए मिले।"
साइमन ने एकसाथ कई सवाल किए थे पर सब एक दूसरे से जुड़े हुए थे। पवन ने कहा,
"सर.... जो काम विशाल ने करने के लिए कहा था उसे सुनकर मैं हैरान हो गया था। विशाल के मन में अपने परिवार के लिए गुस्सा था। इस बात को मैंने महसूस किया था। लेकिन वह इस‌ तरह सोच सकता है मेरे लिए अचंभे की बात थी।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"पवन इधर उधर की बात मत करो। सीधे मुद्दे पर आओ।‌ विशाल ने तुमसे क्या करने को कहा था ‌?"
पवन ने आगे कहानी बताई....
जब विशाल ने अपना काम बताया तो पवन ने हाँ या ना कुछ भी नहीं कहा। विशाल यह कहकर चला गया था कि सोच लेना। काम करने में तुम्हारा और तुम्हारे दोस्त का फायदा है। विशाल के जाने के बाद पवन कुछ देर सोचता रहा कि क्या यह काम कर पाना उसके या कौशल के लिए संभव होगा। दोनों ने अपराध किया था। पर उनका अपराध घरों में चोरी करना था। उन्होंने एक आदमी के सर पर डंडा मारा था। किंतु वह आत्मरक्षा के लिए था। पर विशाल जो करने को कह रहा था वह गंभीर था।‌ उसकी कुछ समझ नहीं आया तो उसने कौशल को फोन किया। उसने कौशल को सब बताया।
विशाल ने पवन से कहा था कि पुष्कर की शादी के बाद जब वह और दिशा भवानीगंज में होंगे तो वह मौका देखकर पुष्कर को मार दे। इस काम के लिए वह मुंहमांगी रकम देने को तैयार है।
यह बताते हुए पवन एकबार फिर रुक गया। पूरे कमरे में सन्नाटा था। इंस्पेक्टर हरीश और साइमन भी कुछ पलों के लिए सकते में आ गए थे। अपने आप को संभाल कर साइमन ने कहा,
"आगे की कहानी सुनाओ....."
इस बार कौशल ने कहानी आगे बढ़ाई....
जो दुविधा पवन के मन में थी वही कौशल के मन में भी थी। चोरी करने और किसी की हत्या करने में बहुत फर्क था। उसने तो चोरी भी छोड़ दी थी।‌ पर विशाल ने कहा था कि मुंहमांगी रकम देगा। यह एक बड़ा लालच था। कौशल को किसी भी तरह अपना काम शुरू करने के लिए पैसे चाहिए थे। यह एक अच्छा मौका था जब वह अपना काम शुरू करने लायक रकम की व्यवस्था कर सकता था। कौशल ने तुरंत पवन को कोई फैसला नहीं सुनाया था। उसने कहा था कि वह सोचकर उसे फोन करता है।
दो दिनों तक कौशल हाँ ना के झूले में झूलता रहा। कभी मन पक्का करता कि यह जोखिम भरा काम नहीं करेगा। यह फैसला लेते ही मन में आता कि फिर कभी वह अपना काम शुरू नहीं कर सकता है। छोटे छोटे काम करके पैसे कमाने में ही ज़िंदगी बीत जाएगी। वैसे भी जो काम वह करना चाहता है वह गैरकानूनी है। वह लालच में आ जाता और पवन को हाँ करने के लिए अपना फोन उठा लेता था। कॉल लगाने ही वाला होता कि रुक जाता। मन में आता कि कबूतरबाज़ी भी गैरकानूनी है। लेकिन उसमें किसी की जान नहीं लेनी है। किसी को जान से मारना आसान नहीं है। छोटी सी चूक होगी तो सारी ज़िंदगी जेल में कटेगी। हो सकता है पैसों का इंतज़ाम कहीं और से हो जाए। अगर जेल चला गया तो सब बर्बाद हो जाएगा।
इसी उहापोह में दो दिन निकल गए। लेकिन कौशल महसूस कर रहा था कि लालच का पलड़ा धीरे धीरे भारी पड़ रहा है। जब जेल जाने का डर मन में आता तो एक आवाज़ मन में आती। जेल जाने का डर तो कबूतरबाज़ी के काम में भी है। फिर भी वह उसे करना चाहता है क्योंकी उसे खूब पैसा कमाना है। बिना जोखिम लिए खूब पैसा नहीं कमाया जा सकता है। इसलिए उसका डर बेकार है। उसे हिम्मत करनी होगी। तभी आगे बढ़ पाएगा।
तीसरे दिन उसने पवन को फोन करके कहा कि उसकी बात विशाल से कराए। पवन ने विशाल को मेसेज भेजा कि कौशल उससे बात करना चाहता है। विशाल उसके कमरे पर आया। उसने कौशल का नंबर लेकर कॉल किया। बातचीत के दौरान उसने अपना स्पीकर ऑन रखा था। उस बातचीत में कौशल ने अपनी मुंहमांगी रकम उसे बताई। विशाल को कुछ अधिक लगी। पर अंत में वह मान गया। यह तय हुआ कि कौशल पुष्कर की शादी वाले दिन तक भवानीगंज पहुँच जाए। दिशा और पुष्कर एक हफ्ते तक भवानीगंज में रहेंगे। उस बीच पुष्कर को मारने का मौका मिल जाएगा।
कहानी सुनते हुए साइमन के मन में एक बात आई। उसने कहा,
"अगर भवानीगंज में उसे मारने की बात थी तो फिर तुम उसके पीछे ढाबे तक क्यों गए थे ?"
कौशल ने कहा,
"बात तय हुई थी कि दिशा और पुष्कर एक हफ्ते भवानीगंज में रहेंगे। विशाल को उम्मीद थी कि इस बीच पुष्कर दिशा को भवानीगंज में कहीं ना कहीं घुमाने ज़रूर ले जाएगा। विशाल कोशिश करेगा कि पुष्कर और दिशा अकेले ही घूमने निकलें। तब वह फोन कर देगा। पवन और मैं अपना काम कर लेंगे। लेकिन दिशा के विदा होकर आने के दूसरे ही दिन बवाल हो गया।"
इंस्पेक्टर हरीश ने पूछा,
"कैसा बवाल हो गया ?"
जवाब पवन ने दिया,
"विशास ने मुझे माया और उसके श्राप के बारे में बताया था। उन लोगों ने उससे मुक्त होने के लिए किसी तांत्रिक को बुलाया था। उसने पुष्कर और दिशा के लिए ताबीज़ बनाकर दिए थे। पर दोनों ने ही पहनने से मना कर दिया। इसलिए उन दोनों का घर से बाहर निकलना ही बंद हो गया। विशाल ने कहा कि देखते हैं शायद सब ठीक हो जाए। हम लोग इंतज़ार करने लगे। फिर विशाल ने बताया कि पुष्कर और दिशा ने ताबीज़ पहनने की शर्त मान ली है। लेकिन उनका प्लान बदल गया है। दोनों अगले दिन सुबह दिशा के घर के लिए निकल जाएंगे। वहीं से हनीमून पर चले जाएंगे। अब एक ही रास्ता बचा है। भवानीगंज और ग़ाज़ियाबाद के बीच पुष्कर को मारा जाए। उस समय मुझे तेज़ बुखार था। फिर भी मैं जाने को तैयार था। लेकिन कौशल ने कहा कि तुम्हारी हालत ठीक नहीं है। तुम ठहरो मैं अकेला ही काम करता हूँ।"
पवन चुप हो गया। उसने कौशल की तरफ देखा। कौशल अब कुछ नर्वस लग रहा था।