Wo Maya he - 62 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 62

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वो माया है.... - 62



(62)

साइमन और इंस्पेक्टर हरीश कमरे से बाहर आए तो सुमेर सिंह ने सूचना दी कि विशाल के घर से उसके पापा और चाचा आए हैं। वह उसके लिए खाना लाए हैं जो उसे खिलाना चाहते हैं। साइमन सुमेर सिंह के साथ वहाँ गया जहाँ बद्रीनाथ अपने भाई के साथ खड़े थे। इंस्पेक्टर हरीश भी उनके साथ था। बद्रीनाथ के हाथ में खाने का डब्बा था। इंस्पेक्टर हरीश को देखकर बद्रीनाथ ने कहा,
"इंस्पेक्टर साहब हम अपने बेटे विशाल से मिलकर उसे खाना खिलाना चाहते हैं।"
इंस्पेक्टर हरीश ने साइमन की तरफ इशारा करके कहा,
"आप साइमन मरांडी हैं। आपके बेटे पुष्कर की हत्या के लिए विशेष जांच अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। आप इनसे बात कीजिए।"
बद्रीनाथ ने साइमन की तरफ देखकर हाथ जोड़े। उन्होंने कहा,
"साइमन साहब विशाल को जब यहाँ लाया गया था तब उसने कुछ खाया पिया नहीं था। इसलिए हम उसके लिए खाना लाए थे।"
साइमन ने हाथ जोड़कर कहा,
"हम आपके बेटे के खाने पीने का खयाल रखेंगे। आप परेशान मत होइए।"
साथ आए केदारनाथ ने कहा,
"साहब हमारे भइया और भाभी बहुत परेशान हैं। एक बेटे की हत्या हो गई है। दूसरे को आप लोगों ने यहाँ रखा हुआ है।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"विशाल को हम ऐसे ही लेकर नहीं आए हैं। कारण है हमारे पास।"
केदारनाथ ने कहा,
"हमारे कहने का मतलब वह नहीं है। हम कह रहे थे कि हमारी भाभी ने यह खाना बनाकर भेजा है। आप विशाल को खा लेने देंगे तो उन्हें तसल्ली होगी।"
इंस्पेक्टर हरीश ने साइमन की तरफ देखा। साइमन ने कहा,
"ठीक है आप लाए हैं तो खिला दीजिए। लेकिन बहुत अधिक समय तक नहीं ठहरना है।"
यह कहकर साइमन और इंस्पेक्टर हरीश सुमेर सिंह के केबिन में चले गए। वहाँ उन लोगों के खाने की व्यवस्था थी। खाना खाते हुए इंस्पेक्टर हरीश के मन में विशाल का खयाल आ रहा था। पुष्कर की हत्या के बाद जब वह अपने पिता और चाचा के साथ उसकी बॉडी लेने आया था तो बहुत दुखी लग रहा था। पर आज पवन ने जो बताया था उसके हिसाब से उसके मन में अपने परिवार खासकर पुष्कर के लिए नाराज़गी थी। उसने कहा,
"सर.... मैंने विशाल को पहली बार तब देखा था जब वह पुष्कर की लाश लेने अपने पिता और चाचा के साथ आया था। उस दुख की घड़ी में उसने जिस तरह अपने पिता को संभाला था उसे देखकर मुझे वह बहुत ज़िम्मेदार इंसान लगा था। मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि उसके मन में इतना गुस्सा हो सकता है।"
साइमन ने कहा,
"इंसान की सही फितरत जान पाना आसान नहीं है। गुस्सा था तभी तो पैसे देकर कौशल को अपने भाई के पीछे भेजा था। अब देखते हैं कि उसने किस काम के लिए भेजा था।"
इंस्पेक्टर हरीश को साइमन की बात सही लगी। वह चुपचाप खाने लगा।

विशाल ने एक कौर तोड़ कर मुंह में डाला। उसे चबाने की कोशिश कर रहा था लेकिन भावनाओं की एक बाढ़ उसके अंदर उठ रही थी। वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। अभी तक खुद को संयत में रखे बद्रीनाथ भी रोने लगे। केदारनाथ समझ नहीं पा रहे थे कि उन दोनों को किस तरह तसल्ली दें। कुछ ना कर पाने के कारण वह भी रो रहे थे। कुछ देर तक तीनों ही रोते रहे। उसके बाद केदारनाथ ने खुद को संभाला। उन्होंने कहा,
"विशाल....बेटा रो मत खाना खा लो। भाभी तुम्हारे लिए बहुत परेशान हैं। खाना खा लोगे तो कुछ तसल्ली मिलेगी।"
विशाल ने खुद को संभाला और खाना खाने लगा। बद्रीनाथ भी अब शांत हो गए थे। वह विशाल को खाना खाते हुए देख रहे थे। उनके मन में चल रहा था कि इसके मन में इतना कुछ था। उन्होंने या उमा ने कभी उसके दिल को टटोल कर देखने का प्रयास नहीं किया। वह तो बस यही समझते रहे कि अपनी पत्नी और बच्चे को खोकर वह टूट गया है। खाते हुए विशाल ने बद्रीनाथ की तरफ देखा। उसकी आँखों में गहरी उदासी थी। उसने कहा,
"पापा.... प्लीज़ हमें माफ कर दीजिए।"
बद्रीनाथ ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा,
"जगदीश नारायण कल तुम्हारी बेल के लिए अपील करेगा। तुम इन लोगों को वही बताना जो सही है। वह अपनी पूरी कोशिश करेगा।"
विशाल ने अपने आंसू पोंछे और खाना खाने लगा। बद्रीनाथ गंभीर थे।‌ वह सोच रहे थे कि ना जाने विशाल का क्या होगा ? पुष्कर तो हमेशा के लिए छोड़कर चला गया। अब क्या विशाल भी उनसे छिन जाएगा। यह खयाल आते ही उनका दिल तड़प उठा। वह सोच रहे थे कि उमा का कहना गलत नहीं है। माया का श्राप ही है जो उन लोगों को चैन नहीं लेने दे रहा है।
विशाल ने खाना खत्म कर लिया। उसने बद्रीनाथ से कहा,
"मम्मी से कहिएगा कि हमारे लिए परेशान ना हों। हमारी किस्मत में सिर्फ दुख ही लिखा है। हम झेल लेंगे।"
बद्रीनाथ ने महसूस किया कि उसकी इस बात में अपनी मम्मी के लिए फिक्र की जगह अपनी किस्मत से शिकायत अधिक थी। उन्होंने कहा,
"बच्चों की किस्मत भले ही माँ बाप से ना जुड़ें लेकिन उनके दर्द से वह जुड़े रहते हैं। हम और उमा तुम्हारे इस दर्द से जुड़े हैं। तुम्हारी किस्मत अगर तुम्हें दुख देगी तो हम भी सुखी नहीं रहेंगे।"
विशाल सर झुकाए बैठा था। बद्रीनाथ ने आगे कहा,
"तुम पर जो बीती उसका असर हम दोनों पर भी रहा। तुमको अकेले घुटते हुए देखना हमारे लिए भी घुटन भरा था। हमसे गलती हुई कि हमने कभी यह जतलाने की कोशिश नहीं की कि तुम अकेले नहीं हो। हम भी तुम्हारे दुख में शामिल हैं। पर तुमने भी कभी हमारे सामने अपना दिल खोलने की कोशिश नहीं की। खुद को हम दोनों से काट कर अलग कर लिया।"
विशाल ने बद्रीनाथ की तरफ देखकर कहा,
"पापा.... हमारे हर तरफ निराशा थी। सबकुछ छिन गया था हमसे। हम समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें।‌ उस वक्त हमें बहुत ज़रूरत थी कि कोई पास बैठा कर तसल्ली देता। तब किसी ने हमें तसल्ली नहीं दी। हम और अकेले हो गए। धीरे धीरे सबसे कटने लगे।"
बद्रीनाथ ने उसका हाथ पकड़ कर कहा,
"हमने कहा कि हमसे भी गलती हुई है। पर अब जो बीत गया उसका कुछ नहीं कर सकते। हाँ हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे कि तुमको इस मुश्किल से निकाल सकें।"
यह कहकर वह खड़े हो गए। केदारनाथ ने खाने का डब्बा अपने हाथ में ले लिया। विशाल ने कहा,
"चाचा जी..... मम्मी और पापा का खयाल रखिएगा।"
"यह भी कोई कहने की बात है बेटा। तुम अपना खयाल रखना।"
बद्रीनाथ ने चलते समय विशाल के सर पर हाथ रखा। उनकी आँखें फिर भर आईं। अपने आंसुओं को छिपाए वह केदारनाथ के साथ चले गए। बद्रीनाथ के जाने के बाद विशाल फिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। कांस्टेबल अरुण ने कमरे में आकर कहा,
"तुम अपनी सेल में चलो।"
विशाल ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा,
"मुझसे पूछताछ नहीं करेंगे ?"
"तुमसे कल पूछताछ होगी।"
कांस्टेबल अरुण ने उसका हाथ पकड़ कर उठाया। उसे उसकी सेल में ले जाकर बंद कर दिया।

घर के पास वाले मोड़ पर पहुँच कर बद्रीनाथ ने अपने भाई से कहा कि अब वह घर चले जाएं। सुनंदा और दोनों बच्चियां अकेली होंगी। केदारनाथ भी अपने घर जाना चाहते थे। शाम को मनोहर और नीलम अपनी बेटी अनुपमा को लेकर आ गए थे। इसलिए उन्हें तसल्ली थी कि उनके भाई भाभी अकेले नहीं हैं। उन्होंने बद्रीनाथ से कहा,
"भइया आपको घर तक छोड़ देते हैं। उसके बाद चले जाएंगे।"
बद्रीनाथ ने अपने भाई के कंधे पर हाथ रखकर कहा,
"केदार.... हमारी मुश्किलें तो कम होने वाली नहीं हैं। तुम कब तक परेशान रहोगे। तुम अब अपने परिवार पर ध्यान दो।"
"यह कैसी बात कर रहे हैं भइया। हम क्या आपसे अलग हैं। माना अलग अलग घर में रहते हैं पर रिश्ता तो नहीं टूट गया। आप परेशानी में रहेंगे तो हम अपने घर पर चैन से कैसे रह पाएंगे।"
बद्रीनाथ ने अपने भाई को गले लगा लिया। उनकी पीठ थपथपा कर बोले,
"कुछ ही कदम तो बचे हैं। हम चले जाएंगे। तुम निश्चिंत‌ होकर जाओ।"
केदारनाथ अपने घर की तरफ चल दिए। जब वह अपने घर जाने वाली गली में मुड़ गए तो बद्रीनाथ भी अपने घर की तरफ चल दिए। कुछ आगे आए तो अपने घर का दरवाज़ा दिखाई पड़ा। उसके सामने कुछ लोग खड़े थे। उन्हें देखकर उनका दिल धड़क उठा। तेज़ कदमों से वह दरवाज़े पर आए। तिवारी ने उन्हें देखकर कहा,
"भइया आपके घर से उमा भाभी के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर हम और चौरासिया बाहर आए। उसके थोड़ी देर बाद बाद कुछ और लोग भी आ गए। हम लोग सलाह कर रहे थे कि क्या करें ? अंदर क्या हो रहा है समझ नहीं आ रहा था। हमें लग रहा था कि कोई गंभीर बात है। सब परेशान होंगे। ऐसे में दरवाज़ा खटखटाना ठीक होगा कि नहीं। फिर लगा कि पूछना तो चाहिए कि बात क्या है ? अभी दरवाज़ा खटखटाने जा रहे थे तब तक आप पर नज़र पड़ी।"
बद्रीनाथ ने आगे बढ़कर दरवाज़ा खटखटाया। अनुपमा ने दरवाज़ा खोला। उसने कहा,
"फूफा जी....बुआ अचानक बेहोश हो गई थीं। अभी होश में आई हैं।"
बद्रीनाथ फौरन अंदर गए। उमा आंगन में चारपाई पर लेटी थीं। मनोहर उनके सर पर हाथ फेर रहे थे। किशोरी पास खड़ी रो रही थीं। बद्रीनाथ को देखते ही बोलीं,
"बद्री..... माया उमा के पास आई थी।"
यह सुनकर बद्रीनाथ परेशान हो गए। उमा बड़बड़ा रही थीं,
'हमें माफ कर दो....अब और कितना बदला लोगी।'
बद्रीनाथ के चेहरे पर डर था। यह तीसरी बार था जब उमा ने माया को देखा था।‌ उनके घर पर जब भी मुश्किल आती थी माया अपने होने का एहसास कराती थी। वह सोच रहे थे कि बाबा कालूराम से मिलना होगा।