मैंने कभी अपने पिताजी को नहीं देखा... बहुत छोटी थीं जब पापा मुझे छोड़ कर दूसरी दुनिया में जा चुके थे...। मेरी माँ ने मुझे सिंगल मदर होकर बहुत अच्छी शिक्षा दी ओर शादी की उम्र होने पर रोहन से मेरी शादी भी करवा दी..। रोहन और उसके पेरेंट्स ने मुझे बहुत अच्छे से रखा...।
रोहन के पिताजी एक सरकारी अफसर थे.... इसलिए कुछ ही महीनों में उनका तबादला दूसरे शहर में हो गया...। वो ओर मम्मी जी अब दूसरे शहर में रहने चले गए...। मैं घर पर बोर होने लगी तो मैंने भी कुछ समय बाद एक नौकरी ज्वाइन कर ली...।
कुछ समय बाद मम्मी जी का एक गंभीर बिमारी के चलते निधन हो गया...। पापा अब शहर में अकेले रहने लगे..। हम अक्सर पापा को बोलते थे की नौकरी छोड़कर अभी यहाँ आ जाएं रहने...। लेकिन पापा हर बार कहते थे की जब तक शरीर में जान हैं तब तक इसे चलाते रहना जरुरी हैं...।
एक दिन आफिस से घर आई तो पापा का खत मिला जिसमें कुशल मंगल के साथ लिखा था की.... " मैं अगले हफ्ते से तुम्हारे साथ रहने आ रहा हूँ...।"
खत पढ़कर मैं पहले तो बहुत खुश हुई पर फिर थोड़ी टेंशन भी होने लगी.... क्योंकि मुझे पता था पापा के आने के बाद घर का कामकाज भी बढ़ जाएगा... ओर पापा को सब चीजें एकदम परफेक्ट चाहिए होतीं हैं.... रोहन मेरा किसी भी काम में जरा़ सा भी हाथ नहीं बटाते थे.... ऐसे में घर ओर नौकरी कैसे संभालुंगी...। लेकिन मना करना भी सही नहीं था....।
कुछ दिनों बाद पापा आएं ओर उन्होंने बताया की वो अब हमेशा साथ में रहने वाले हैं...। पहला दिन तो बातचीत ओर सामान के रखरखाव में निकल गया...। अगले दिन मैं सवेरे पांच बजे उठ गई....। सभी के उठने से पहले ही काम खत्म करने के लिए...। रात के बर्तन साफ़ करके कपड़े धोने जा रहीं थीं तभी पापा भी उठ गए...। उनको चाय देने के बाद कपड़े धोएं.... इतने में रोहन भी उठ गए... उनको चाय देकर सफाई में लग गई...। पापा और रोहन अखबार में व्यस्त थे...। जैसे ही रोहन ने चाय खत्म की मैंने देखा पापा उनका खाली कप उठाकर खुद किचन में गए ओर साफ करके रख दिया..।
थोड़ी देर बाद रोहन नहाने चले गए ओर मैं नाश्ता बनाने में लग गई...। नहाकर बाहर आते ही रोहन ने टोवेल बिस्तर पर फेंक दिया था हर रोज़ की तरह.... तब पापा ने उनका टोवेल उठाकर बालकनी में सुखाने रख दिया...। मैं ये देखकर थोड़ा आश्चर्य चकित हो रहीं थीं क्योंकि रोहन की तरह पापा भी कभी घर काम में हाथ नहीं बटाते थे फिर आज ऐसा क्यूँ...। खैर सोचते सोचते मैंने उन दोनों को नाश्ता दिया ओर खुद नहाने चलीं गई...। मैंने देखा की पापा ने नाश्ते के खाली बर्तन भी रसोई में साफ़ करके रख दिए थे...।
तैयार होकर पापा के लिए दोपहर का खाना ओर हमारा लंच पैक करके हम दोनों आफिस चले गए....। शाम को जब घर आएं तो देखा पापा ने धीमी आंच पर चाय रख दी थीं...। हम कपड़े बदलकर आएं तो पापा सभी के लिए चाय लेकर बालकनी में आ गए...।
तीन चार दिन से पापा का बदला रुप देखकर रोहन को भी मन ही मन ग्लानि महसूस हुई ओर अब वो...अपना कप खुद उठाकर धोकर रखते.... टोवेल खुद बाहर सुखा देते... उठने के बाद खुद का कंबल या चद्दर समेट लेते...छोटे मोटे खुद के काम खुद ही करने लगे... इससे मुझे बहुत मदद मिलने लगी...।
एक दिन आफिस जातें वक्त पापा ने कहा... " बेटा तुम एक मेड क्यूँ नहीं रख लेती....सवेरे उठकर कितना काम करना पड़ता हैं...ओर वैसे भी अभी तो मैं हूँ यहीं...अच्छे से सारा काम करवा दूंगा...।ओर बेटा तुम्हें रोजमर्रा की जो भी सब्जियां या सामान चाहिए उसकी एक पर्ची भी मुझे दे जाया करो....।मेरा भी बाहर आना जाना हो जाएगा ओर घर का काम भी हो जाएगा..।"
मैं कुछ बोलती इससे पहले रोहन बोले... हाँ... पापा आप सही कह रहें हैं...। पहले मेड का ध्यान कौन रखेगा.... इसलिए रखी ही नहीं... लेकिन अभी आप हैं... ओर पूजा को भी बहुत मदद मिल जाएगी... मैं कल ही एक मेड रखवा लेता हूँ...।
मैं पापा के पास गई ओर उनका शुक्रिया अदा किया तो पापा ने कहा.... बेटा इसमें शुक्रिया कैसा... मैं भी रोहन जैसा ही था... कभी तुम्हारी माँ की मदद नहीं की... लेकिन उसके चले जाने के बाद जब अकेला रहने लगा... तब मुझे पता चला तुम औरतें घर को घर बनाएं रखने के लिए कितना कुछ करतीं हो.... ओर हम अगर तुम्हारी थोड़ी सी मदद कर दे तो तुम अपनी सारी थकान भूल जाती हो...।
पापा की बात सुन आज पहली बार रोहन ने भी मेरी जमकर तारीफ की..।
मैं पापा के आने की खबर से जो टेंशन में थीं... वो अब काफूर हो चुकी थीं...। आज मैं खुद को बहुत खुशनसीब मानती हूँ की मुझे ससुर के रुप में पापा का प्यार मिल रहा था..।
हम सभी अब खुशी खुशी रहने लगे... सुबह की ओर शाम की चाय अब हम सभी साथ में बैठकर बातें करते हुए पीने लगे थे.. साथ में नाश्ता और साथ में खाना... हर रविवार को पापा के साथ बाहर घुमने जाना..।
आज पापा की वजह से ही रोहन भी मेरी कद्र करने लगे हैं...। सच में मेरे पापा ने मेरे जीवन के मायने बदल दिए हैं...।