Rishtey.. Dil se dil tak - 2 in Hindi Love Stories by Hemant Sharma “Harshul” books and stories PDF | रिश्ते… दिल से दिल के - 2

Featured Books
Categories
Share

रिश्ते… दिल से दिल के - 2

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 2
[गरिमा जी की अक्कू के लिए चिंता]

"मां…! मां…! कहां हैं आप? जल्दी नीचे आइए।", सिल्वर कलर की महंगी और सुंदर सी साड़ी पहने चहरे पर एक गुरूर के साथ होठों पर रेड कलर की डार्क लिपस्टिक लगाए और खुले बालों के साथ एक रौबदार आवाज़ में 42 वर्षीय गरिमा जी ने आवाज़ लगाई। उनके चहरे पर एक रौब तो हमेशा ही रहता था पर आज गुस्सा भी था।

उनकी आवाज़ सुनकर दामिनी जी(उम्र लगभग 60 साल) तेज़ी से नीचे आईं और बोलीं, "क्या हुआ, बेटा? तुम ऐसे ज़ोर–ज़ोर से मुझे आवाज़ क्यों लगा रही हो?"

"मां! अक्कू कहां है?", गरिमा जी ने गुस्से भरी आवाज़ में कहा तो दामिनी जी हैरानी से बोलीं, "वो तो अपने कॉलेज में होगी।"

"नहीं, मॉम! वो कॉलेज में नहीं है। अभी मैंने उसकी प्रोग्रेस जानने के लिए कॉलेज में फोन किया तो प्रिंसिपल ने बताया कि उसने फिर से क्लास बंक की है।"

गरिमा जी के वाक्य पर दामिनी जी ने हैरानी से पूछा, "क्या?"

"हां… वो पहले भी क्लासेज बंक कर चुकी है और हमें आज तक ये बात पता नहीं चली। अगर मैं प्रिंसिपल को कॉल नहीं करती तो शायद ये बात मुझे कभी पता नहीं चलती।"

"पर वो गई कहां होगी?", दामिनी जी ने खुद से ही सवाल करते हुए कहा तो गरिमा जी गुस्से से बोलीं, "वो ज़रूर उस विराज के साथ होगी। मां! मैंने आपसे कहा था कि उसे इतनी ढील मत दीजिए। मैं तो सारा दिन ऑफिस के काम में बिजी रहती हूं पर आप तो उसकी इन हरकतों को रोक सकती थीं, उसे कंट्रोल कर सकती थीं।"

दामिनी जी ने उन्हें समझाते हुए कहा, "बेटा! तुम टेंशन क्यों ले रही हो? विराज एक अच्छा लड़का है।"

"मां! लोगों की अच्छाई या बुराई उनके चहरे से दिखाई नहीं देती। यूं तो देखने में विनीत जी भी बहुत अच्छे और सच्चे लगते थे लेकिन फिर भी…", गरिमा जी गुस्से में सब बोल रही थीं कि अचानक रुक गईं और अपनी आंखें बंद कर लीं। फिर दामिनी जी की तरफ देखकर बोलीं, "सॉरी, मां! लेकिन मैं क्या करूं जिस तरह विनीत जी ने मुझे धोखा दिया, मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी के साथ भी कुछ ऐसा हो। डर लगता है मुझे उसके लिए। मैं जानती हूं कि जब कोई अपना आपको धोखा देता है तो कितनी तकलीफ होती है, दिल टूट जाता है जब हम किसी को जान से ज़्यादा प्यार करते हैं और वो… वो हमें सिर्फ तकलीफ देता है। मेरे साथ ये हुआ, मैंने सह लिया लेकिन अपनी अक्कू के साथ ऐसा कुछ भी नहीं होने दूंगी… कभी नहीं।"

दामिनी जी गरिमा जी के पास आईं और उन्हें गले लगाकर बोलीं, "मुझे माफ कर दो, बेटा! मेरे बेटे की वजह से…" दामिनी जी की बात पूरी नहीं हो पाई उससे पहले ही गरिमा जी उनसे अलग हुईं और बोलीं, "नहीं, मां! इसमें आपकी क्या गलती है! मेरे साथ जो भी गलत हुआ उसमें कसूर सिर्फ उस इंसान का था जिसे मैंने बेहद प्यार किया आपका नहीं बल्कि आप तो हर कदम पर मेरे साथ खड़ी रही हैं। शायद कोई और मां होती तो अपने बेटे का ही साथ देती पर आपने सही को चुना। आप सिर्फ मेरी मां ही नहीं बल्कि एक बहुत अच्छी सहेली भी हैं जिसके साथ मैं अपनी हर तकलीफ बांट सकती हूं इसलिए प्लीज आप मुझसे माफ़ी मत मांगिए।"

दामिनी जी हल्का सा मुस्कुराईं और बोलीं, "तो अपनी इस सहेली की एक बात मानोगी?"

"हां, बोलिए ना।"

"सबसे पहले तो अपने इन कीमती आंसुओं को साफ करो।", कहकर उन्होंने गरिमा जी के आंसुओं को पोंछा और फिर बोलीं, "और… अक्कू को कुछ मत कहना प्लीज।"

"मां! आपकी वजह से आज वो हमारे सिर पर चढ़ गई है। नहीं, आज नहीं, अब तो उसे उसकी गलती की सज़ा मिलेगी।"

"नहीं, नहीं बेटा! आज माफ कर दो। मैं उसे समझाऊंगी। आगे से वो ऐसा कुछ नहीं करेगी।"

"लेकिन, मां…"

"प्लीज़!", दामिनी जी ने छोटा सा मुंह बनाकर कहा तो गरिमा जी बोलीं, "अच्छा, ठीक है। लेकिन ये आखिरी बार है। उससे कह दीजिएगा कि उस विराज से दूर रहे। मुझे वो सिर्फ एक गोल्ड डिगर लगता है इसलिए उससे प्यार तो क्या दोस्ती भी ना रखे तो अच्छा है।"

"हां, ठीक है बाबा। तुम अब जाओ नहीं तो ऑफिस के लिए देर हो जायेगी।", दामिनी जी ने उन्हें जाने के लिए कहा तो एक बार फिर गरिमा जी उनके गले लग गईं और बोलीं, "थैंक यू, मां! जब मुझे सच में एक परिवार की ज़रूरत थी, किसी अपने की ज़रूरत थी, तब आप मेरे पास थीं। मुझे हर पल आपने उस तकलीफ से बाहर निकालने की कोशिश की। अगर आप नहीं होतीं तो ना तो मैं खुद को संभाल पाती और ना ही अक्कू को। आज आपकी वजह से मैं इतनी बड़ी बिजनेस वुमन बन पाई हूं, अपने सपने को पूरा कर पाई हूं। उसके लिए मैं आपका जितना भी शुक्रिया करूं वो कम है।"

दामिनी जी ने गरिमा जी को खुद से अलग किया और बोलीं, "बेटा! मैंने ये किसी पराए के लिए नहीं, अपनी बच्ची, अपनी गरिमा के लिए किया है। हर मां अपने बच्चों के लिए करती है तो मैंने भी किया। इसमें ये थैंक यू कहां से आ गया! अब तुम गंगा–जमुना मत बहाना शुरू कर देना। जल्दी जाओ वरना लेट हो जाएगा। फिर ऑफिस वालों पर भड़ास कब निकालोगी?", उनके आखिरी वाक्य पर गरिमा जी हँस दीं और उन्हें देखकर दामिनी जी भी।

गरिमा जी मुस्कुराते हुए घर से बाहर निकल गईं।

दामिनी जी वहीं सोफे पर बैठ गईं और बोलीं, "कैसे बताऊं तुम्हें बेटा कि जो बात तुम्हें इतनी तकलीफ पहुंचा रही है असल में वो सच ही नहीं है… तुम्हारे विनीत जी ने तुम्हें कोई धोखा दिया ही नहीं है। पर क्या करूं मैं भी हालातों के हाथों मजबूर हूं और उसकी कसम भी मुझे तुम्हें कुछ बताने नहीं दे रही।" आंखों में नमी भरकर दामिनी जी बोल रही थीं इन बातों से उनकी कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो गईं…

"मां! प्लीज़ गरिमा को इस सब के बारे में कुछ मत बताइएगा। प्लीज़।", विनीत जी ने दामिनी जी के हाथों को अपने हाथों में थामकर कहा तो दामिनी जी रोते हुए बोलीं, "पर कैसे बेटा? कैसे छुपाऊंगी मैं उससे इतना बड़ा सच? नहीं, बेटा! मुझसे नहीं हो पाएगा ये।"

"मां! आप जानती हैं ना कि अगर वो सच गरिमा को पता चला तो उसकी जान भी खतरे में पड़ सकती है।", विनीत जी ने दामिनी जी को समझाते हुए कहा तो दामिनी रोते हुए ही बोलीं, "तो क्या करूं? एक बच्चे की जिंदगी बचाने के लिए दूसरे को एक गुनहगार बनने दूं? तुम समझ क्यों नहीं रहे हो तुम्हारे इस झूठ की वजह से आज तुम्हें ये घर छोड़ना पड़ रहा है, अपनी पत्नी, अपनी मां और अपनी बच्ची से दूर होना पड़ रहा है। उसे सच बता दो, बेटा!"

"मां! मैं आप सबसे दूर रहकर जिंदा रह सकता हूं लेकिन उसे सच बताकर नहीं रह पाऊंगा। नहीं, मां! वो नहीं बर्दाश्त कर पाएगी उस सच को। मैं भले ही इस घर से दूर जा रहा हूं पर आपके दिल से दूर कभी नहीं जाऊंगा।"

"बेटा! मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि कभी ऐसा दिन भी आएगा जब मुझे मेरे बेटे को उसके घर से इस तरह दूर होते हुए देखना पड़ेगा, उस पर धोखेबाज का धब्बा लगते हुए देखना पड़ेगा।", दामिनी जी की आंखों से आंसू बेहिसाब बहे जा रहे थे।

"मां! अब तक आपने गरिमा को अपनी बहू नहीं बेटी माना था लेकिन अब आपको उसे अपना बेटा मानना होगा। अगर वो मेरे बारे में कुछ भी गलत कहे, मुझे धोखेबाज बुलाए, कुछ भी उल्टे–सीधे शब्द कहे तो प्लीज आप उसका साथ देंगी उसे रोकेंगी नहीं और ना ही मेरे पक्ष में बोलेंगी। आप भी हमेशा इसी तरह से बातें करेंगी जैसे मैं एक गुनहगार हूं। आप हमेशा गरिमा के साथ खड़ी रहेंगी।"

"लेकिन, बेटा…"

"मां! आपको मेरी कसम… ना तो आप उसे ये सच बताएंगी और ना ही मेरे पक्ष में बोलेंगी। आपका ये बेटा आपसे एक वचन चाहता है। प्लीज़ इतना कर दीजिए मेरे लिए।", विनीत जी की बातें सुनकर दामिनी जी का कलेजा कटा जा रहा था। वो तेज़ी से जाकर उनके गले लग गईं।

ख्यालों में खोए होने की वजह से उन्हें लगा जैसे विनीत जी उनके आगे ही हैं और वो अब भी गले लगने को हुईं पर किसी के वहां ना होने की वजह से वो उसी स्थिति में रुक गईं।

फिर अपने मुंह पर हाथ रखकर ज़ोर–ज़ोर से रोने लगीं।

"क्यों, भगवान! क्या बिगाड़ा था हम सबने तुम्हारा जो तुमने हमें इतनी बड़ी सज़ा दे दी?", दामिनी जी रोते हुए भगवान को कोस रही थीं।

क्रमशः