Chamkila Baadal - 10 in Hindi Fiction Stories by Ibne Safi books and stories PDF | चमकीला बादल - 10

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चमकीला बादल - 10

(10)

"राजकुमार तुम कदाचित मुझे अच्छी तरह नहीं जानते।" संगही ने बदले हुए लहजे में कहा और उसमें कुछ ऐसी ही बात थी। कमल चौंक कर उसे आश्चर्य से देखने लगा।

"और अब तुम मुझे बताओगे कि राजेश कहां है?" संगही बोला।

"तो गोया तुम मित्र नहीं बल्कि शत्रु हो।" कमल का लहजा भी बदल गया।

"जो दिल चाहे समझ लो।"

"मगर तुमने तो कहा था कि जिस देश में कानूनन हम तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते वहां तुम हमारे मित्र ही हो शत्रु नहीं।"

"इस तर्क को छोड़ो और बताओ कि राजेश कहां है?" संगही ने कहा।

"उन्हें क्यों पूछ रहे हो?"

"उससे मुझे कुछ काम है।"

"सुनो मिस्टर संगही। अगर जानता होता तब भी न बताता।" कमल ने कहा। "आखिर तुम मुझे क्या समझते हो?" इन दोनों के मध्य हिंदुस्तानी में ही बातें हो रही थी। संगही ने कहा।

"अगर तुम जानते होंगे तो अवश्य बता दोगे।"

"मैं नहीं जानता।" कमल ने झटकेदार आवाज में कहा।

"न बताने पर मारपीट खाओगे और लड़की भी हाथ से जाएगी।"

"वह लड़की? मुझे लड़की की चिंता नहीं है।" कमल ने कहा। "इस लड़की के समान न जाने कितनी लड़कियां मिलती रहती है और मैं उन्हें ठुकराता रहता हूं।"

लड़कियों की परवाह मर्दों को हुआ करती है।" संगही ने हंस कर कहा।

"क्या मतलब?"

"अगर तुम्हें लड़कियों के परवाह नहीं है तो फिर तुम्हे मर्द नहीं समझता।"

"मत समझो।" कमल ने हंसते हुए कहा।

"चलो मेरे साथ आओ।" संगही ने कहा।

"कहां चलूं?"

"मसोमा के पास।"

"क्यों?"

"मेरा विचार है कि मसोमा से मिलने के बाद तुम अपने व्यवहार में अवश्य लचक पैदा करोगे। चलो।"

"नहीं। मैं मसोमा का सामना नहीं करना चाहता।"

"वह क्यों?" संगही ने उसे घूरते हुए पूछा।

"मैं उसे उचित नहीं समझता। वह मेरे साथ मित्रों जैसा व्यवहार करता रहा है।" कमल ने कहा। "मैं नहीं जा सकता।"

"तुम्हें चलना पड़ेगा। संगही ने धमकी देने वाले भाव में कहा। "और यदि न मानोगे मेरी बात तो फिर विवश होकर मुझे दूसरा मार्ग अपनाना पड़ेगा।"

कमल ने सोचा कि बुरे फंसे। पता नहीं यह शैतान क्या चाहता है। वह सोच भी नहीं सकता था कि संगही के व्यवहार में ऐसा परिवर्तन हो जाएगा।

"चलो सोचने क्या लगे?" संगही फुफकारा।

"चलो।" कमल ने कहा। संगही उसे एक कमरे तक लाया और दरवाजा खोल कर कमल को अंदर धकेल दिया और फिर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। अंदर का दृश्य देखकर कमल के शरीर से ठंडा पसीना छूटने लगा। मसोमा कमरे के फर्श पर पड़ा कराह रहा था। उसके शरीर पर केवल एक अंडरवियर था और वह सिर से पैर तक लहू लुहान हो रहा था। ऐसा लगता था जैसे किसी जंगली हिंसक पशु ने उसका सारा शरीर भंभोड़ कर रख दिया हो।

"तुमने देखा।" मसोमा हाथ उठाकर कराहा।

"यह_ यह कैसे हुआ?" कमल ने रुक-रुक कर पूछा।

"वह_ वह कोई दुष्ट आत्मा है।" मसोमा कराहता हुआ बोला।

"चिमट जाता है तो शरीर की हड्डियां चटकने लगती है। में हिल डोल भी नहीं सकता और वह मुझको काटता और भंभोड़ता रहता है।"

"क_क कौन?" कमल ने हकला कर पूछा।

"वही लंबा आदमी।"

"ओह_"

"मगर तुम तो बिल्कुल ठीकठाक हो। ऐसा क्यों?" मसोमा ने आश्चर्य से पूछा।

"तुम भ्रम में हो मेरे दोस्त।" कमल ने कहा।

"मैं भी उसके हत्थे चढ़ गया हूं और मेरा भी वही परिणाम होने वाला है जो तुम्हारा हुआ है।"

"तुम्हारा क्यों?"

"तुम्हारे ही समान वह भी मुझे मेरे किसी ऑफिसर के बारे में पूछ रहा है जो यहां मौजूद है। धमकी दी है कि अगर मैंने न बताया तो फिर वह मेरे साथ बहुत ही बुरा व्यवहार करेगा। इसीलिए मुझे यहां लाकर छोड़ भी गया है कि मैं तुम्हारी दशा देखकर डर जाऊं और उसको अपने ऑफिसर के बारे में बता दूं।"

"अगर न बताओगे तो सचमुच वह अपनी धमकी की पूरी कर दिखाएगा। किसी समुद्री केकड़े के समान जकड़ता है।"

"मैं जानता ही नहीं तो बताऊंगा क्या?" कमल ने कहा।

"यह तुम जानो।"

"क्या उसने तुमसे केवल मेरे ऑफिसर ही के बारे में पूछा था?"

"वह तो गौण बात थी। असल मामला कुछ और मालूम होता है।" मसोमा ने कहा।

"क्या मालूम होता है?"

"वास्तव में वह मुझसे उस औरत के बारे में मालूम करना चाहता है जिसकी तलाश में हम दोनों यहां आए थे।"

"क्या उसने उस औरत का नाम लिया था?" कमल ने पूछा।

"नहीं। बस यह पूछता रहा था कि अपने विभाग के डायरेक्टर के अतिरिक्त और किससे आजकल आदेश प्राप्त करता रहा हूं?"

कमल के होंठ सिकुड़ कर रह गए। वह कुछ सोचने लगा।

"क्या सोच रहे हो?" मसोमा ने टोका।

"अपने परिणामों के बारे में।" कमल ने कहा। फिर चौंकने का अभिनय करता हुआ बोला।

"अरे हां! आखिर तुम घाट से अचानक उस प्रकार भागे क्यों थे?"

"मेरे आदमियों ने एक जगह उसे घेरा था।" मसोमा बताने लगा।

"मुझे सूचना मिली तो मैं दौड़ा गया। इतनी देर में उसने मेरे दो आदमियों को गिरा दिया था। ऐसा दक्ष और निपुण चाकू बाज भी मेरी नजरों से नहीं गुजरा था।"

"तुम्हारे आदमी तो सशस्त्र होंगे?" कमल ने पूछा।

"हां।" मसोमा ने उत्तर दिया।

"तो फिर तुम्हारे आदमियों ने या तुमने उस पर फायर क्यों नहीं किया?"

"हमने केवल यह सोचकर फायर नहीं किया की तट पर आतंक फैल जाएगा। बस हमारी इसी कमजोरी से उसने लाभ उठाया।" "कमजोरी न कहो, बल्कि गलती कहो।" कमल ने कहा।

"जो चाहे समझो।"

"तुमने केवल आतंक फैलने की आशंका से फायर नहीं किया और फायर न करने का परिणाम तुम्हारे सामने है। इस दशा में पड़े हो। यह गलती नहीं तो और क्या थी?" मसोमा खामोश रहा और कमल ने फिर कहा।

"वह मुझसे कह रहा था कि दो आदमी मर गए और तीन आदमी जख्मी है।"

"मुझे कुछ होश नहीं की क्या हुआ।"

"क्यों? इसका क्या मतलब?"

"उसने मुझ पर चाकू से हमला करने बजाय मेरी कनपटी पर घुसा मारा था और मैं लड़खड़ा कर गिर पड़ा था। फिर कुछ याद नहीं की क्या हुआ था।"

"शायद तुम बेहोश हो गए थे।" कमल ने कहा।

"बिल्कुल यही हुआ था वरना जो कुछ हुआ था उसे कम से कम देखे तो अवश्य हुआ होता।"

"अच्छा आगे कहो।"

"जब आंख खुली तो यहां इसी कमरे में था और इसी दशा में। शैतान ने मेरे कपड़े तक उतरवा दिए।"

"हूं _" कमल कह कर फिर कुछ सोचने लगा।

"कमल भाई_" मसोमा ने उसे संबोधित किया।

"अब तुम मेरा एक काम करो।"

"कौन सा काम?" कमल ने पूछा।

"पता नहीं उसने मेरा सूटकेस कहां फेंका होगा? कोट की जेब में एक फाउंटेन पेन है। किसी प्रकार तुम उस फाउंटेन पेन की प्राप्त करो।"

"फाउंटेन पेन?" कमल ने आश्चर्य के साथ कहा।

"हां।"

"भला उसमें क्या होगा?"

"यह नहीं बताऊंगा। बस कोशिश करो कि यह किसी प्रकार हाथ लग जाए।" मसोमा ने कहा।

"तुम अभी ठीक-ठाक हो। कोशिश कर सकते हो।"

"अच्छी बात है। कोशिश करूंगा।"

"तुम्हारा यह विचार मुझे भी अब ठीक मालूम हो रहा है कि उसनेतुमको मेरे पास इसीलिए भेजा है कि तुम मेरी दशा देखकर डर जाओ और वह जो पूछ रहा है वह तुम उसको बता दो।" मसोमा ने कहा।

"उसकी यह चाल तो मैं तुम्हें देखते ही समझ गया था और तुम्हें बता भी दिया था।"

"बस तो फिर तुम इसी प्रकार ठीक-ठाक रहने की कोशिश करो और किसी न किसी प्रकार मेरा फाउंटेन पेन प्राप्त करो। वरना हम दोनों ही कुत्ते की मौत मारे जाएंगे।"

"वह तो ठीक है दोस्त मगर जो बात मेरे एक ज्ञान में नहीं है उसके बारे में उसे क्या बताऊंगा?"

"कुछ झूठ सच। यूं ही हांक दो।"

"माई डियर मसोमा _ तुम फिलहाल अपने बारे में सोचो।" कमल ने कहा। "नीचे से ऊपर तक जख्मी हो।"

"उसकी चिंता ना करो। मुझे जख्मों की परवाह कभी नहीं हुई।" मसोमा ने कहा। "मगर उस दुष्ट के हाथों मारा जाना कभी नहीं पसंद करूंगा।"

"क्या तुम सचमुच उसे नहीं जानते?" कमल ने पूछा।

"किसको? उस लंबे आदमी को?"

"हां _"

"नहीं। मैं उसे नहीं जानता। पहले कभी नहीं देखा।" मसोमा ने कहा। "उसकी राष्ट्रीयता तक का तो अनुमान नहीं लग सका।"

"वह अंतरराष्ट्रीय ख्याति रखता है।" कमल ने कहा।

"संसार का कोई ऐसा देश नहीं है जहां उसका रिकार्ड मौजूद न हो।"

"म म_ मैं बिल्कुल नहीं समझा कि तुम किसकी बात कर रहे हो?"

"वह प्रसिद्ध चीनी संगही है।"

"नहीं।" मसोमा बौखला कर उठ बैठा।

"विश्वास करो दोस्त_" कमल ने कहा। "हल्के-फुल्के मेकअप में है। केवल घनी मूंछों की वृद्धि के साथ।" मसोमा हवन्नको के समान मुंह और आंखें फाड़े बैठा रहा फिर भराई हुई आवाज में बोला।

"त त_ तुमने पहले क्यों नहीं बताया था?"

"इतने निकट से देखने का संयोग कब हुआ था?" कमल ने लंबी सांस खींच कर कहा। "यह तो थोड़ी ही देर पहले मैंने उसे पहचाना है।"

"बहुत बुरा हुआ। बहुत ही बुरा।" मसोमा ने कहा। फिर ठंडी सांस खींच कर बोला। "उसके लिए तो पूरी बटालियन भी अपर्याप्त होती।" "अब मेरी बात सुनो।" कमल ने गंभीरता पूर्वक कहा।

"उस पर कदापि यह प्रकट न होने देना कि तुम उसे पहचानते हो।"

"सवाल ही नहीं पैदा होता।"

"मैं तुम्हारे लिए क्या करूं? तुम बहुत ज्यादा जख्मी नजर आ रहे हो।"

"मेरी चिंता ना करो दोस्त। बस किसी प्रकार मेरा फाउंटेन पेन हासिल करो।"

"देखो भाई मसोमा_" कमल ने कहा। "मेरी हैसियत भी एक कैदी ही की है। वह मुझे कब ऐसा अवसर देगा कि मैं तुम्हारा कोट तलाश करता फिरूं?" मसोमा कुछ नहीं बोला। उसके अदर एक दूसरे पर जमे हुए थे किंतु आंखें कराह रही थी। उनसे आंतरिक पीड़ा प्रकट हो रही थी। कमल कांत सोच रहा था कि उससे भी बड़ी भारी भूल हो गई। आखिर वह संगही के झांसें में क्यों आ गया? अब पता नहीं संगही उसके साथ कैसा व्यवहार करें? और अब खुद उसे क्या करना चाहिए?

अचानक कमरे का द्वार खुला और संगही मुस्कुराता हुआ अंदर दाखिल हुआ। उसके हाथ में काले रंग का एक फाउंटेन पेन था। मसोमा उसे भयभीत नजरों से देखता रहा। संगही ने उसे फाउंटेन पेन दिखाते हुए कहा। "यह रहा तुम्हारा फाउंटेन पेन। क्या अभी तुम्हें इससे इंकार है कि तुम जीरो लैंड के एजेंट हो बोलो?" मसोमा थूक निगल कर रह गया। संगही कुछ क्षणों तक देखता रहा फिर कमल की ओर मुड़ा। कुछ देर तक उसे तेज नजरों से घूरता रहा फिर बोला।

"तुमने बहुत अच्छा किया कि इसे यह बता दिया कि मैं कौन हूं।"

"वह वास्तव में म म_ मैं ।"

"मौन रहो।"

संगही फुफकारा फिर मसोमा को संबोधित करके बोला।

"अपना कोड नंबर और इंट्रोडक्टरी कोड बताओ।" मसोमा सख्ती से होंठ भिड़े बैठा रहा।

"ना बताओगे तो मैं तुमको यातनाएं दे दे कर मार डालूंगा।" संगही ने कहा। "और तुमको मार देने से मेरी कोई हानि भी ना होगी।" मसोमा अब भी मौन रहा। कमल ने उससे कहा।

"बता दो। क्यों जान दे रहे हो?"

"मैंने कहा कि तुम मौन रहो।" संगही गुर्राया। कमल ने देखा कि मसोमा धीरे-धीरे उठ रहा है। फिर वह तन कर खड़ा हो गया और विचित्र से आवाज में बोला।

"तुम मुझे मार डालो। मैं दोगला नहीं हूं। तुम मुझसे कुछ भी नहीं मालूम कर सकते।" संगही हंस पड़ा फिर बहुत ही विषैले स्वर में बोला।

"क्या यह दोगलापन नहीं है कि तुम अपने राष्ट्र को धोखे में रखकर अंतरराष्ट्रीय अपराधियों को सहयोग दे रहे हो?"

"मैंने जो कुछ किया है अपने राष्ट्र के हित के लिए किया है।" मसोमा ने भरपूर आवाज में कहा। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस समय उसे अपने जख्मों की पीड़ा की बिल्कुल अनुभूति न हो।

"वह कैसे?" संगही ने पूछा।

"हमारे राष्ट्र का हित इही में है कि हम बड़ी शक्तियों के किसी विरोधी का साथ दें।"

संगही ने भरपूर अट्टहास लगाया। कुछ देर तक हंसता रहा फिर बोला।

"जिन्हें तुम बड़ी शक्तियों का विरोधी समझ रहे हो वह चोर है।"

"चोर ही सही। मगर हम उन्हें सहयोग देते रहेंगे।" मसोमा ने कहा। "इसलिए सहयोग देते रहेंगे कि हम उन्हीं की सहायता से अंग्रेजों को अफ्रीका से बाहर कर सकेंगे।

"बस_ बस।" संगही हाथ उठाकर बोला। "निकल गए अंग्रेज।"

"देख लेना। हम उन्हें बाहर निकाल कर ही दम लेंगे।" मसोमा ने आवेश में कहा।

"अच्छा, निकाल देना। अब अपना कोड नंबर बताओ।"

"असम्भव। मैं अपने राष्ट्र और अपने ध्येय के साथ गद्दारी नहीं कर सकता।"

"नमक के ढेर में दफन करा दूंगा।" संगही ने धमकी दी।

"आग में भी जला सकते हो मगर तुम जो चाहते हो वह नहीं होगा।" मसोमा ने अकड़कर कहा।

मसोमा की अकड़ और उसका साहस देखकर कमल विस्मित हो उठा।

संगही खा जाने वाली नज़रों से मसोमा को घूरता रहा फिर बोला।

"आधे घंटे का समय दे रहा हूं।"

"आधे घंटे बाद भी मेरा उत्तर यही होगा।" मसोमा ने कहा।

संगही कुछ नहीं बोला। खामोशी से दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया।

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