(7)
"यदि यहां तुम्हारे आगमन का कारण केवल मनोरंजन होता तो तुम उस कलूटे के साथ कदापि न देखे जाते। कोई औरत तुम्हारे साथ होती।
"यह कोई आवश्यक नहीं था।"
"आवश्यक था।" लंबे आदमी ने हंसते हुए कहा। "मुझे मालूम है कि मेरे भतीजे के कर्मचारियों में तुम ही सबसे अधिक रंगीन मिजाज और हुस्न परस्त हो।"
कमल ने सोचा अब इस सस्पेंस से निकलना चाहिए। हो सकता है संगही इस समस्या पर प्रकाश डाल सकें कि उन्हें यहां क्यों भेजा गया था। इस विचार के आते ही उसने लंबे आदमी को आंख मेरी और मुस्कुरा कर बोला।
"अच्छा मिस्टर संगही! तुम क्या चाहते हो?"
"परिचय का समर्थन मेरे लाल! और कुछ भी नहीं।"
"लेकिन मैं नहीं जानता कि मिस्टर राजेश कहां है?" कमल ने कहा।
"फिर वही बकवास?"
"विश्वास करो मिस्टर संगही।"
"अच्छा यही बता दो कि तुम दोनों यहां क्यों आए हो?"
"यह भी मुझे नहीं मालूम।"
"क्या तुम ढंग की बातें नहीं करोगे?" संगही ने आंखें निकाली।
"मैं जो कुछ कह रहा हूं वह सच है।"
"तुम्हारे इस सच पर कौन विश्वास कर सकता है?"
"न करो। मगर मैं सच ही कह रहा हूं।" कमल ने कहा। "हमें यहां एक व्यक्ति से मिलना था उसी से हमें यह मालूम होता था कि हमें यहां क्या करना है मगर उससे हमारी मुलाकात ना हो सकी।"
"तो वापस क्यों नहीं चले गए?"
"अगर जेम्सन गायब न हो गया होता तो अब तक मैं वापस चला ही गया होता मगर अब जेम्सन की पुनः प्राप्ति के बिना मेरा वापस जाना संभव नहीं।"
"क्या मैं इस सिलसिले में किसी काम आ सकता हूं?"
"धन्यवाद मिस्टर संगही।" कमल ने कहा। फिर मुस्कुरा कर बोला। "हम आपस में मित्र तो नहीं है।"
"जिस देश में तुम कानूनन मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते वहां मुझे अपना मित्र ही समझो।"
"अगर उस डिप्टी डायरेक्टर को जो मेरे साथ है यह मालूम हो जाए कि तुम कौन हो तो फिर तुम्हारा क्या परिणाम होगा?" कमल ने मुस्कुरा कर कहा।
"वह खुद चोर है।" संगही ने कटु स्वर में कहा
"मैं नहीं समझा?"
"न वह अपने विभाग का वफादार है और न देश का।"
"हूं। मगर तुम मेरी कोई सहायता न कर सकोगे मिस्टर संगही_।"
"तुम्हारी इच्छा_" संगही ने बुरा सा मुंह बनाकर कहा।
"किंतु मैं एक बात अवश्य पूछूंगा।" कमल ने कहा।
"गाड़ी में बैठ जाओ। कब तक खड़े रहोगे?" "धन्यवाद!" कहकर कमल ने अगली सीट का द्वार खोला और अंदर बैठ गया।"
पिछली सीट पर निग्रेस अधलेटी अवस्था में पड़ी हुई थी। संगही उसे दूसरी ओर धकेलता हुआ उधर ही बैठकर बोला।
"अब पूछो क्या पूछना है?"
"मयूर वाली कहानी - तुम थारसा की फ्लाइंग मशीन का पाया पड़कर उसके साथ ही फरार हुए थे। फिर क्या हुआ था?"
[इस कहानी के लिए जसूसी दुनिया का विशेष अंक 'जोंक और नागिन' देखें। पूरी कहानी तीन अंको में है १. रंगीन धारियां २. धारियों का हमला ३. जोंक और नागिन]
संगही ने जोरदार अटृहास लगाया फिर बोला।
"होता क्या? मैं नहीं जानता था कि फेग्राज मुझे और उसे कहां ले जाएगा किंतु राजेश की मूर्खताओं में नहीं पड़ना चाहता था।
इसीलिए उस प्रकार निकल जाना उत्तम समझा।"
"फिर थारसा से क्या रही थी?"
"स्थिति मेरे अनुकूल नहीं थी। इसीलिए उस समय तो मैं ही किसी न किसी प्रकार अपनी जान छुड़ाना चाहता था। फेग्राज का पाया थाम कर किसी लंबी यात्रा का प्रश्न ही नहीं पैदा हो सकता था। अतः जैसे ही वह एक इमारत पर से गुजरा मैंने पाया छोड़ दिया।"
"काफी चोटें आई होंगी ?" कमल ने हंसते हुए कहा।
"तनिक भी नहीं।" संगही ने हंसते हुए कहा। "इमारत की स्विमिंग पूल में गिरा था। यदि अनुमान की तनिक से भी गलती हुई होती तो चीथड़े उड़ गए होते।"
"यह तो कदाचित रात की बात थी।" कमल ने कहा।
"हां_"
"तो फिर तुम्हें स्विमिंग पूल कैसे नजर आ गया?"
"उसके चारों कोनों की लाइटें खुली हुई थी। बस जिंदगी थी बच गया।"
"कदाचित अब थारसा से संधि हो गई होगी?"
"सवाल ही नहीं पैदा होता।"
"ओह! तो युद्ध जारी है।" संगही कुछ नहीं बोला। सीट के नीचे हाथ डालकर शराब की बोतल निकाली और उससे मुंह लगाकर दो-तीन घोंट लिए। फिर बोतल निग्रेस को थमाता हुआ बोला।
"लो। बेकार क्यों बैठी हुई हो?"
"नहीं बस। अधिक नहीं पीती।"
"तुम पियोगे?" संगही ने कमल से पूछा।
"नहीं, धन्यवाद।" कमल ने कहा। "तुमने मसोमा के बारे में मुझे उलझन में डाल दिया है।"
"इसीलिए कह रहा हूं की सच्ची बात बता दो। वरना कठिनाई में पड़ोगे।"
"मैं नहीं जानता था कि वह कारेवास विभाग का कोई अफसर है।"
"फिर कैसे मिल बैठा?"
"मैं क्या बताऊं? यह तो वही जानता होगा।" "यदि वह तुमसे यूं ही मिल बैठा है तो फिर यह मानना ही पड़ेगा कि वह तुम्हारे मिशन को भली भांति जानता था।" संगही ने कहा।
"क्या तुम यह कहना चाह रहे हो कि वह सरकारी तौर पर मेरी टोह में था?" कमल ने पूछा।
"हां _" सौगही ने कहा फिर बोला।
"सरकारी तौर पर भी वह तुम्हारी टोह में था और गैर सरकारी तौर पर भी_"
"इस गैर सरकारी तौर पर का अर्थ में नहीं समझा।"
"वह जीरो लैन्ड का एजेंट भी है।" संगही ने कहा।
"ओह माय गॉड!" कमल की आंखें फैल गई। "बस सतर्क रहना।" संगही ने कहा फिर मुस्कुरा कर बोला। "और इसीलिए मुझे पूरा विश्वास है कि मेरा बहुरूपिया भतीजा भी यही अवश्य मौजूद होगा।"
"अब तो मुझे तुम्हारी बातों पर विश्वास करना ही पड़ेगा।" कमल ने चिंताजनक स्वर में कहा।
"कोई विशेष कारण?" संगही ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा।
"हां_ बहुत ही खास कारण।"
"वह क्या?"
"मसोमा तुम्हारी ओर से सतर्क हो गया है।" कमल बताने लगा। "उसका विचार है कि तुम आरंभ से ही हम दोनों का पीछा करते रहे हो। मैं तुमको उसे मोटेल में देखकर चौंक पड़ा था। यह बात उसने महसूस कर ली थी और मुझसे पूछा भी था कि तुम मेरे परिचित तो नहीं हो। इसके अतिरिक्त एक बात और मैंने महसूस की।"
"वह क्या?"
"मसोमा यह जानना चाहता है कि हम दोनों अर्थात मेरे और जेम्सन के अतिरिक्त हम में से और कौन यहां आया है?"
"तुमने देखा?" संगही अंगुली उठा कर बोला। "वह भी किसी तीसरे की मौजूदगी महसूस कर रहा है और सच पूछो तो वह तीसरे के चक्कर में है।" कमल कुछ नहीं बोला। कदाचित कुछ सोचने लगा था।
"क्या हमारी बातें समाप्त हो गई?" संगही ने टोका।
"नहीं_" कमल जैसे चौंकता हुआ बोला।
"फिर मौन क्यों हो गए थे?"
"सोचने लगा था कि अब मुझे क्या करना चाहिए?"
"यह मैं तुमको बताऊंगा।" संगही ने कहा।
"बताओ_"
"पहले तुम यह बताओ कि इस समय मसोमा कहां है?"
"उसे कमरे में सोता छोड़कर मैं बाहर निकला था।" कमल ने कहा।
"ठीक है। अब मेरी सुनो।" संगही ने गंभीरता से कहा। "अब मुझसे अलग रहो।"
"और मसोमा?"
"उसकी चिंता न करो। मैं उसे देख लूंगा। बस जाओ।" कमल ने फिर कुछ नहीं कहा। चुपचाप दरवाजा खोला और गाड़ी से नीचे उतर आया। सोचा कि कुछ देर टहले घूमे किंतु फिर अचानक किसी विचार के अंतर्गत घूमने फिरने का इरादा स्थगित कर दिया और तेज़ी से होटल की ओर चल पड़ा। मगर अपने कमरे के द्वार पर उसे रुक जाना पड़ा क्योंकि मसोमा द्वार खोलकर बाहर निकल रहा था।
"त_त तुम कहां थे? कब गए थे?" उसने आकुलता के साथ पूछा।
"उसी लंबे आदमी के चक्कर में था।" कमल ने उत्तर दिया।
"क्या मालूम हुआ?" मसोमा ने उत्सुकता से पूछा।
"उसने कोई ख़ेमा भी प्राप्त नहीं किया।"
"फिर कहां है?"
"अभी तक अपनी गाड़ी में ही बैठा हुआ है।"
"बड़ी विचित्र बात है।" मसोमा ने कहा। फिर कुछ सोचने के बाद बोला। "लेकिन तुम्हें अकेले नहीं जाना चाहिए था।"
"अरे तो क्या मैं कोई अबोध बालक हूं?" कमल ने बुरा मानते हुए कहा।
"यह बात नहीं है मिस्टर_"
"फिर क्या बात है?" कमल ने पूछा।
"मेरे कहने का अर्थ यह था कि तुम यहां के लिए अजनबी हो इसलिए यदि कोई विपत्तियां पड़ी तो अनभिज्ञता के कारण उस विपत्ति का मुकाबला नहीं कर सकोगे।"
"यह तर्क मान लूंगा।" कमल ने मुस्कुरा कर कहा।
"अभी अंधेरा फैलने में देर है।" मसोमा ने कहा। "चलो जरा सागर तट तक हो आए। वहां सूर्यास्त का दृश्य देखकर खुश हो जाओगे।"
"बिल्कुल आनंद नहीं आएगा।" कमल ने कहा।
"यह कैसे कह सकते हो?"
"इसलिए कह रहा हूं कि मेरा जेहन उस लंबे आदमी में उलझा हुआ है।"
"ओह! छोड़ो भी।" मसोमा ने लापरवाही से कहा। "वह हजार आदमियों के साथ हो तब भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। चलो चलें। उधर के एक होटल में बड़ा स्वादिष्ट सब फूड मिलता है।" दोनों बाहर निकले मगर इस बार संगही की गाड़ी कहीं नहीं दिखाई दी। मसोमा के कदम भी रुक गए थे। उसने चारों ओर देखते हुए पूछा।
"तुमने उसकी गाड़ी कहां देखी थी?" कमल ने एक और संकेत करते हुए कहा,
"उधर वहां _"
"मगर अब तो कहीं नजर नहीं आ रही है।"
"मैं स्वयं चकित हूं। आखिर वह कहां गया?"
"छोड़ो। मुझसे बचकर कहां जाएगा?"
"फिर अब क्या किया जाए?"
"फिलहाल केवल मनोरंजन_" मसोमा ने कहा। कमल कुछ नहीं बोला दोनों लैंड रोवर में बैठे और तट की ओर रवाना हो गए।
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दस बारह आदमियों की मीटिंग थी और कर्नल डोना बोनार्ड की हैसियत से राजेश उस मीटिंग की अध्यक्षता कर रहा था। वह सब विभिन्न रैंक के ऑफिसर्स थे। और समस्या यह थी की यात्रा का आरंभ किस प्रकार किया जाए? उनके मध्य एक बड़ा सा नक्शा फैला हुआ नजर आ रहा था।
"लेकिन कर्नल_" उनमें से एक ने कहा।
जंगलों में से निकल कर आने वालो में से कोई भी उन स्थानों की सही निशानदेही न कर सका जहां वह प्रेत दिखाई दिया था।"
"इससे कोई अंतर नहीं पड़ता।" कर्नल ने कहा।
"उन स्थानों पर निशान मौजूद है जहां-जहां से वह जंगली निकल निकल कर हम तक पहुंचे हैं।"
"हां निशान तो मौजूद है मगर_"
"शायद तुम यह कहना चाह रहे हो कि उन स्थानों में से किस स्थान का चयन किया जाए?"
"क्यों?" राजेश ने बात काट कर पूछा।
"हां_ मैं यही कहना चाहता हूं कर्नल।"
"अगर आने वालों से कुछ लोगों को साथ ले लिया जाए तो क्या बुराई है?" राजेश ने पूछा।
"उन में से कोई भी अब उन जंगलों में जाना नहीं चाहता।"
"यह कैसे मालूम हुआ?" राजेश ने पूछा।
"हम इसके लिए कोशिश करके देख चुके हैं और जबरदस्ती नहीं की जा सकती।"
"तो फिर तुम्हारी समझ से क्या कार्य प्रणाली होनी चाहिए?"
"इसका निर्णय करना दुष्कर है कर्नल_"
"असंभव तो नहीं!" राजेश ने कहा।
"अच्छा मेरे अर्दली मगोन्डा को बुलाओ।"
थोड़ी ही देर बाद मगोन्डा अर्थात मेकफ ने खेमें में प्रविष्ट होकर एड़ियां बजाई।
"इधर निकट आ जाओ।" राजेश ने नक्शे की ओर संकेत करके कहा। मेकफ नक्शे के निकट आकर खड़ा हो गया और राजेश ने कहा।
"तुम भी तो कुछ कह रहे थे?"
"यस सर_" मेकफ ने कहा।
"कहो।" मेकफ नक्शे पर झुक कर कुछ देखने लगा। उपस्थित ऑफीसरों के चेहरों से यह बात साफ प्रकट होती थी कि उन्हें यह बात पसंद नहीं आई मगर किसी ने कुछ नहीं कहा। मेकफ ध्यान से नक्शा देखता रहा फिर एक जगह अंगुली रखकर बोला।
"यह कीगोमा है। यहां से गोम्बे का आखेट स्थान आरंभ होता है। मेरी समझ में यह पूरी पट्टी केवल इसी स्थान से पार की जा सकती है।"
"यह तो हम भी जानते हैं।" एक ऑफिसर जल्दी से बोला। मगर मेकफ सर झुकाए खड़ा रहा। न उसने राजेश की ओर देखा था और न उस ऑफिसर की ओर_ राजेश ने उस ऑफिसर को घूर कर देखा फिर बोला।
"जब तुम यह बात जानते थे तो फिर अब तक बताया क्यों नहीं था?"
"बात वास्तव में यह थी सर कि वहां से जाते तो किस ओर जाते?" ऑफिसर ने कहा।
"इसका निर्णय वहां पहुंचकर किया जाता।" राजेश ने कहा। ऑफिसर मौन रहा। राजेश ने मेकफ की और देखा फिर बोला।
"और क्या कहना चाहते हो?"
"कीगोमा के निकट की ममान्डा नाम का एक कस्बा है। मेकफ ने कहा। उस कस्बे में कुछ ऐसे लोग मिल सकेंगे जो हमारा पथ प्रदर्शन कर सकें।"