Badnasib - 2 in Hindi Short Stories by Suresh Chaudhary books and stories PDF | बदनसीब - 2

Featured Books
Categories
Share

बदनसीब - 2

जब तीनों लड़के और लड़की मुझे खरी खोटी सुना कर चले गए, तब मैं शाम तक इसी सदमे में रहा, क्या यह वो ही औलाद है, जिनका पालन पोषण करने में नमिता और मैंने दिन रात एक कर दिया था। आज कितनी गैर हो गई मेरी चारों औलाद।
,, बाबू जी कब तक इसी तरह से भूखे पेट बैठे रहोगे,,। रात के आठ बजे शारदा ने मेरे कमरे के दरवाजे पर आते हुए कहा।,, तुम खाना खा कर अपने कमरे में लेट जाओ,,। न जाने कब होटों की आवाज बड़ाबड़ा हट मे बदल गई, मुझे पता ही नहीं लगा।
,, बाबू जी एक बात कहूं, अगर आपको बुरी न लगे तो,,। बहुत ही धीमी आवाज में शारदा ने कहा
,, कहो क्या कहना चाहती हो,,।
,, आजकल की हवा ही बदल गई है, न जानें मां बाप के लिए कैसी सोच हो गई है, आप मुझे ही देख लो, मेरे पति एक बहुत बड़े बिज़नेस मेन थे, इकलौता बेटा है, न जानें क्या क्या सपने देखें थे, लेकिन पति के जाते ही बेटे, बहु की सोच को क्या हो गया, बहु तो फिर भी दूसरे घर से आई थी, लेकिन बेटा तो हमारा अपना खून,,, खैर छोड़ो, आप खाना खा लीजिए,, यहां कोई किसी को नहीं पूछता,,,।
,,, शायद तुम ठीक ही कहती हो शारदा,,। कुछ देर बाद मैंने फिर से शारदा को टोका,, शारदा क्या तुम नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करना चाहोगी,,।
,, मैं कुछ समझी नहीं,,।
,, मेरे कहने का मतलब है कि क्या तुम मेरे साथ शादी करना चाहोगी,,,।
,, अब इस उम्र में,, लोग क्या कहेंगे,,। अनमने ढंग से कहा शारदा ने।
,, जब तुम्हें तुम्हारे इकलौते बेटे ने घर से निकाला था, तब क्या कहा था लोगों ने,,। न जाने कैसे कह गया मैं
,, सच कह रहे हैं आप, किसी ने कुछ भी नहीं कहा था,,।
,, क्या किसी ने तुमसे यह पुछा कि तुमने खाना खाया या नहीं,,।
,, कोई भी नही आया,, लेकिन, इस उम्र में शादी,,। डरे हुए शब्दों में कहा शारदा ने
,, शारदा तुम भी बेसहारा हो और मैं भी,, और इस उम्र में शादी हवस पूरी करने के लिए नही होती, अपितु एक दूसरे का सहारा बनने के लिए होती है,, अगर तुम नही चाहती तो कोई बात नहीं,, फिर भी सोच लेना,,।
,, मुझे कल तक का टाईम दो, सोचती हूं,,,।
अगले दिन सुबह ही शारदा ने,, बाबू जी मैने रात भर सोचा,,।

,, फिर क्या फैसला किया,,।
,, मैं तैयार हूं,,,।
शारदा की हां के बाद मैने मजिस्ट्रेट के ऑफिस में एप्लिकेशन लगा दी। न जाने कैसे लड़कों को पता लग गया। रिश्तेदारों के द्वारा और मेरे मिलने वालों के द्वारा दबाव बनाया,। अपने ही बच्चों के व्यवहार को देख मैं हैरान रह गया। जब मैं नही माना तब न जानें कहां से मेरे पागल होने का प्रमाण पत्र बनवा लिया, पूरे गांव में जगह जगह मेरी और शारदा की इज्जत उछाली गई। आखिर तंग आ कर एक दीन शारदा भगवान को प्यारी हो गई, मैं फिर से अकेला रह गया। अकेलेपन का सदमा मैं कब तक सहन करता l लेकिन भगवान के घर जानें से पहले मैं आप सबसे बस यही पूछना चाहता हूं, कि क्या गलती करते हैं माता पिता अपनी औलाद को पाल पोस कर,, क्यों औलाद को अपने बूढ़े माता पिता का ख्याल नही आता, क्यों अपने माता पिता का त्याग दिखाई नहीं देता।।। दोस्तों आप सबके भी औलाद होंगी, जो आज हमारा व्रत मान है, कल तुम्हारा भी होगा। क्यों आज की बहुएं अपने सास ससुर को माता पिता का दर्जा नहीं दे पाती। मैं अपने वर्तमान में कल का अतीत देख रहा हूं। दोस्तों अगर मेरी बात गलत लगी हो तो क्षमा प्रार्थी हूं।