अग्ली मैन, विद अग्ली फेस, अग्ली माइंड एंड अग्ली हार्ट...
ये दुष्ट नेहरू ने कहा था। तब आजादी की बेला थी। नेहरू को नया पड़ोसी मिला था। एक प्रोपर्टी उनके और सरदार पटेल के सरकारी मकान से कुछ दूर खरीदी गई थी।
बेचने वाले को जल्द से जल्द पाकिस्तान जाना था, मगर शरणार्थी बनकर नही।
गवर्नर जनरल बनने।
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बचपन मे एक पहेली पूछी गयी थी मुझसे। बताओ- ऐसी कौन सी कली है, जो फूल नही बनती।
जवाब था-छिपकली।
पोस्ट आगे पढ़ते समय, आपको मेरी पहेली का जवाब भी खोजना है। सवाल है- ऐसा कौन सा मियां है, जिससे भजपाण्डुओ को नफरत नही??
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तो भावी गवर्नर जनरल ने अपने मित्र को दिल्ली की वो प्रॉपर्टी बेची। खरीदने वाले ने इसे, आगे चलकर गौरक्षा लीग का हेडक्वार्टर बना दिया।
ये थे डालमियां ग्रुप के हेड
रामकृष्ण डालमियां।
टाटा, बिड़ला और बजाज के बाद देश तीसरे बड़े पोलिटीकल फ़ंडर थे रामकृष्ण डालमिया।
बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के संत जीव थे। उनके व्यवसाय भारत के कई कोनो में फैले थे, जिसमे पाकिस्तान होने जा रहे वाले इलाके में बड़ा हिस्सा फ़ैला था।
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तो बचपन से ही संत प्रवृत्ति के रामकृष्ण पास प्रारम्भ से दौलत नही थी। इसलिए वे उधार लेकर सट्टे में पैसा लगाते थे।
अब शोले में अमिताभ ने मौसी को बताया ही था- कि जुआरी रोज रोज थोड़ी जीत पाता है। कभी कभी हार भी जाता है बेचारा।
डालमियां जी हार जाते। तो जल्द शहर भर के कर्जदार, और डिफाल्टर हो गए। लोग उनकी शक्ल न देखना चाहते थे। फिर एक दिन उनके ज्योतिषी ने कहा कि- तुम एक हफ्ते में लखपति बन जाओगे।
इसलिए उन्होंने ढेर सारी चांदी खरीदी और उसका मूल्य बढ़ने पर लखपति बन गए। मने ऐसा, उनके पूंजी प्रबन्ध के विषय मे, उनकी जीवनी में, उनकी पोती ने लिखा है।
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इसके बाद उन्होंने कुछ बिजनेस शुरू किए। हर व्यापारी आदमी के अंग्रेज से लेकर कांग्रेस से लेकर मुस्लिम लीग तक सम्पर्क रहते थे। इनके भी हुए।
लेकिन दिल मिला जिन्ना से। ऑफकोर्स ही हैज अ लवली सिस्टर- फातिमा जिन्ना..
संत प्रवृत्ति के रामकृष्ण मानवमात्र से प्रेम में यकीन रखते थे। प्यार बाँटते चलो, क्या हिन्दू क्या मुसलमाँ, हम सब हैं भाई भाई...
अर्र्रर, नॉट एग्जेक्टली। भाई नही,
प्रेम बांटते बांटते रामकृष्ण जी की 6 ऑफिशयल पत्नियां जरूर हो गयी।
मारवाड़ी,
बंगालन,
सिख,
अंग्रेज..
जगजीत ने गाया है- "ना उम्र की सीमा हो, न जात का हो बंधन"
हेनरी अष्टम का गुलदस्ता भी इतना वर्सटाइल नही था।
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रामकृष्ण का बिजनेस उससे भी वर्सटाइल था।
ये बिजनेस वहां वहां ज्यादा था, जहां जहाँ मुस्लिम लीग सत्ता में थी।
और मुस्लिम लीग की सत्ता जिन्ना के पास थी, और साथ मे फातिमा भी। तो सन्तजी बोले- "जब तक बंगले में चखना रहेगा, आना जाना लगा रहेगा"
मने शाम का लिटिल लिटिल।
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पार्टीशन ने सन्तजी का दिल तोड़ दिया। जिन्ना भाई-बहन उन्हें अपना बंगला 10 लाख में गिफ्ट करके पाकिस्तान चले गए।
यहां रह गए नेहरू,
तो सन्तजी ने उन पर डोरे डालने की कोशिश की। पर नेहरू का उनके बारे में ओपिनियन जो था, पहली ही लाइन में बता चुका।
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तो अब किधर जाते। एक ही मार्ग बचा था। सन्तजी हिन्दू हो गए। गौ सेवा, गौमूत्र, और धर्म का प्रचार करने लगे। और भी बहुत कुछ करने लगे।
जिसे फिरोज ने नोटिस कर लिया। अरे, वही फीरोज. नेहरू का दामाद, जो नेशनल हेराल्ड चलाता था। जिस नेशनल हेराल्ड मामले में पप्पू जमानत पर है।
तो नेशनल हेराल्ड में मे कुछ- कुछ छपा। तो सन्तजी अचानक नेशनल हेरल्ड पर मेहरबान हुए। ठेलकर विज्ञापन दिये। मगर फीरोज, तो फीरोज थे। जिसे बीवी न कन्ट्रोल कर पाई, सन्तजी क्या ही कर लेते।
खुश करने की कोशिश की, पर नाकाम हुए। फिरोज उम्र भर अपने ससुर की सरकार को बांस किये रहता था, तो इस बांसुरी की काहे सुनता।
जो छपा, झूम के छपा।
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नतीजा- फ्रॉड चेक करने को ज्यूडिशियल इंक्वायरी बैठी। फाइनांशियल फ्रॉड, टैक्स इवेजन और कुछ आर्थिक अपराधों में रामकृष्णा जेल गए।
तीन चार साल, कृष्ण जन्मभूमि में गुजरे। सन्तजी जेल से छूटकर आगे 10 साल और जिये। हिन्दू धर्म के कट्टर रक्षक हुए।
भरा पूरा "एक्स्ट्रा लार्ज परिवार" छोड़ गए जो उनके काम धंधों के टुकड़ो को कब्जा लेने के लिए आपस मे कोर्ट घसीटी करता रहा।
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उनके वंशज विष्णु हरि डालमिया विश्व हिंदू परिषद के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे।
राम मंदिर, मथुरा काशी आदि आंदोलन के बड़े नेता थे। रामकृष्ण डालमियां ने औरँगजेब रोड की प्रॉपर्टी जिन्ना से खरीदी थी। डालमिया ग्रुप ने उस परम्परा को जिंदा रखा है।
उन्होंने कुछ बरस पहले शाहजहां की प्रॉपर्टी हिन्द की सरकार से खरीद ली। आप उस प्रोपर्टी को लाल किले के नाम से जानते हैं।
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पहेली का जवाब आपको मिल चुका है।