Wo Maya he - 60 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 60

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वो माया है.... - 60


(60)

साइमन मरांडी ने कौशल और उसके दोस्त पवन को एक कमरे में रखा था। विशाल को पूछताछ के लिए अलग कमरे में बैठाया गया था। उसके पास कांस्टेबल अरुण और सुमेर सिंह थे। विशाल नज़रें झुकाए बैठा था। उसने बद्रीनाथ के सामने सब सच बताया था। उसके सच को जानकर उनके चेहरे पर छलक आई पीड़ा उसे परेशान कर रही थी। उसने अपना सर अपने हाथों में लेकर कहा,
"पापा हमें माफ कर दीजिएगा। हमने आपको बहुत तकलीफ दी है।"
सुमेर सिंह ने कहा,
"करते समय नहीं पता था कि एकदिन बात सामने आएगी। तब नहीं सोचा था। अब रो रहे हो।"
विशाल बहुत परेशान था। चाहता था कि जल्द से जल्द पूछताछ हो। वह अपनी बात कहे और छुट्टी पाए। उसने कहा,
"आप लोगों को जो पूछना है पूछ क्यों नहीं लेते हैं।"
"पूछेंगे....पर तुम क्या सोचते हो। सब बताने के बाद तुम टहलते हुए अपने घर चले जाओगे।"
विशाल जानता था कि अभी उसे बहुत इम्तिहान देना है। एकबार फिर उसने अपने हाथों में अपना मुंह छुपा लिया।

दूसरे कमरे में कौशल और उसका साथी पवन अगल बगल कुर्सियों पर बैठे थे। उनके सामने साइमन मरांडी और इंस्पेक्टर हरीश थे। साइमन ने कौशल को घूरते हुए कहा,
"तुम्हारा कहना है कि पवन ने तुम्हें फोन करके विशाल के बारे में बताया था।"
कौशल ने पवन की तरफ देखकर कहा,
"जी सर.... इसने कहा था कि भवानीगंज में एक काम है जिसमें अच्छे पैसे मिल सकते हैं।"
"तुम कहाँ रह रहे थे ?"
कौशल ने साइमन की तरफ देखकर कहा,
"सर मैं पिछले दो साल से पंजाब में था।"
"तुम्हें पैसों के लिए यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी ?"
"मैं यह सोचकर वहाँ गया था कि खूब सारे पैसे कमाऊँगा। कई जगह काम किया। बहुत मेहनत की। इतने पैसे तो मिल जाते थे कि गुजर हो सके। लेकिन मैं चाहता था कि किसी तरह ऐसा काम हाथ लग जाए कि ढेर सारे पैसे कमा सकूँ। ऐश की ज़िंदगी बिताऊँ। मुझे एक ऑफर मिला था। एक आदमी ने कहा था कि अगर मैं कुछ पैसों का इंतज़ाम कर लूँ तो वह मेरे साथ कबूतरबाज़ी का काम शुरू कर सकता है। उसमें अच्छा पैसा होगा।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"कबूतरबाज़ी से तुम्हारा मतलब है लोगों को गैर कानूनी तरीके से विदेश भेजना।"
कौशल ने सर हिलाकर हाँ किया। साइमन ने कहा,
"तो विशाल तुम्हें उतने पैसे दे सकता था कि तुम उसके ज़रिए कबूतरबाज़ी का काम शुरू कर सको।"
"जी सर.... पहले हमारी फोन पर बात हुई थी। पवन ने हमारी बात कराई थी। विशाल ने कहा था कि अगर मैं उसका काम कर दूँगा तो वह मुझे पैसे दे देगा।"
"कितने पैसे तय हुए थे ?"
"तीन लाख....."
"भवानीगंज में तुम्हारे माता पिता रहते हैं।"
"मेरा कोई नहीं है। पापा मेरे बचपन में खत्म हो गए थे। जब बीस साल का हुआ तो मम्मी भी चल बसीं। किराए का मकान था। कुछ दिन वहाँ गुज़ारे। फिर मकान मालिक ने निकाल दिया।"
इंस्पेक्टर हरीश ने पूछा,
"यहाँ से जाने से पहले कहाँ रहते थे ?"
"उसी टीन शेड कमरे में जहाँ से आपने गिरफ्तार किया था। पवन के ताऊ की थी वह जगह।"
साइमन ने पवन का रुख किया। उसने कहा,
"अब तुम अपने बारे में बताओ। तुम्हारे माता पिता कहाँ हैं ? जिन ताऊ की प्रॉपर्टी में वह कमरा है वह कहाँ हैं ?"
"मेरे पिता भी बचपन में ही गुज़र गए थे। कुछ साल बाद मम्मी भी चली गईं। मुझे ताऊ ने पाला। ताऊ उसी पुराने शिव मंदिर में पुजारी थे। उनका परिवार नहीं था। मंदिर के पीछे की ज़मीन पर वह एक छोटा सा कमरा ही मेरा घर था। मैं जवान हुआ तो ताऊ जी भी चले गए। मंदिर में कोई पुजारी नहीं रहा। लोगों ने उधर आना बंद कर दिया। ताऊ जी के जाने के बाद मैं और कौशल उसी कमरे में रहने लगे।"
"वहीं से तुम दोनों की दोस्ती शुरू हो गई।"
"दोस्ती तो पहले से थी। साथ रहने से और पक्की हो गई।"
साइमन ने कहा,
"तुम दोनों भवानीगंज छोड़कर क्यों गए थे‌ ?"
पवन ने कौशल की तरफ देखा। उसके बाद बोला,
"कौशल और मैं जब भवानीगंज में थे तो आसपास के इलाके में छोटी छोटी चोरियां करते थे। हमारा खर्चा चल जाता था। एकबार एक चोरी करते समय अचानक घर का मालिक आ गया। अपने आप को बचाने के लिए हमने उसके सर पर डंडे से वार किया। वहाँ से भाग लिए। हम दोनों डर गए थे कि कहीं पुलिस के हाथ ना लग जाएं।"
पवन चुप हो गया। कौशल ने कहा,
"मुझे लगा कि अब यहाँ से निकलना ठीक होगा। मैंने पवन के साथ सलाह की। हम दोनों ही इस बात से सहमत थे कि इस छोटे से कस्बे में छोटी छोटी चोरियां करने से कुछ मिलेगा नहीं। अच्छा हो कि किसी दूसरी जगह जाकर नौकरी करें। हम दोनों दिल्ली चले गए। अधिक पढ़े लिखे थे नहीं। दिल्ली में मुझे एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम मिल गया। पवन एक छोटे से रेस्टोरेंट में काम करने लगा। दोनों ने एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया था। वहीं साथ रहते थे।"
इंस्पेक्टर हरीश ने पूछा,
"दोनों दिल्ली में थे तो तुम पंजाब कैसे पहुँच गए ?"
"मैं जिस प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करता था उसके मालिक ने अपना धंधा समेट कर अपने बेटे के पास विदेश जाने का मन बना लिया था। लेकिन उसने अपने यहाँ काम करने वाले कुछ लोगों को पंजाब में अपने साले के पास काम पर रखवा दिया। मैं भी उनमें से एक था। मैंने पवन से कहा कि वह भी साथ चले। पर यह माना नहीं।"
साइमन ने पवन से कहा,
"तुम दोनों अच्छे दोस्त थे। फिर तुमने इसकी बात क्यों नहीं मानी ?"
पवन ने कहा,
"दिल्ली में हम दोनों लगभग एक साल बिता चुके थे। बहुत कुछ हमारा देखाभाला था। मुझे लगा कि नई जगह पता नहीं सब ठीक रहे ना रहे। रेस्टोरेंट की मेरी नौकरी भी अच्छी थी। मैंने इससे कहा कि पंजाब जाने की जगह दिल्ली में ही कोई काम तलाश ले। पर इसे तो किसी ने सब्ज़बाग दिखाए थे कि वहाँ पैसा कमाने के बहुत से ज़रिए हैं। इसने मेरी बात नहीं मानी। मैंने भी जाने से मना कर दिया।"
"फिर तुम दिल्ली छोड़कर भवानीगंज क्यों आ गए ?"
इंस्पेक्टर हरीश के इस सवाल का जवाब देते हुए पवन ने कहा,
"मुझे क्या पता था कि जो रेस्टोरेंट अच्छा खासा चल रहा है वह भी बंद हो जाएगा। इसलिए मैं पंजाब नहीं गया था। लेकिन रेस्टोरेंट जिस जगह था उस जगह को किसी बिल्डर ने खरीद लिया। एक झटके में मेरे साथ कई लोग बेरोज़गार हो गए। थोड़ा बहुत जो पैसा इकट्ठा किया था उसे लेकर मैं भवानीगंज आ गया। मेरी कौशल से बात हुई तो इसने कहा कि अभी भवानीगंज‌ में रुको। वहाँ वह अपना काम शुरू करने का जुगाड़ कर रहा है। अगर वह काम शुरू हो गया तो मुझे भी अपने साथ लगा लेगा। कौशल ने कहा कि उसे कम से कम तीन लाख रुपए चाहिए। क्या मैं कुछ कर सकता हूँ ? मेरे पास इतने पैसे कहाँ थे। मैंने सोचा कि कौशल का काम शुरू होने की राह देखता हूँ।"
साइमन उठकर खड़ा हो गया। खबर मिलते ही वह भवानीगंज के लिए निकल गया था। यहाँ आते ही पूछताछ शुरू कर दिया। अब कुछ थकावट महसूस कर रहा था। इंस्पेक्टर हरीश ने उससे कहा,
"क्या हुआ सर ?"
"हरीश..... थोड़ा ब्रेक लेते हैं। चाय पीने के बाद आगे पूछताछ करेंगे।"
एक कांस्टेबल को कौशल और पवन के पास छोड़कर दोनों सुमेर सिंह के केबिन में चले गए।

सुमेर सिंह कांस्टेबल अरुण को विशाल के पास छोड़कर साइमन और इंस्पेक्टर हरीश के साथ चाय पी रहा था। उसने साइमन से पूछा,
"उन दोनों ने कुछ बताया ?"
"अभी तक तो उनके बारे में ही जानकारी ली है। इस ब्रेक के बाद फिर पूछताछ शुरू करूँगा।"
इंस्पेक्टर हरीश ने पूछा,
"उस विशाल के क्या हालचाल हैं ?"
"अच्छे नहीं हैं। सर झुकाए बैठा है। बीच बीच में रोने लगता है। कह रहा था कि उससे जल्दी जो पूछना है पूछ लिया जाए।"
सुमेर सिंह ने साइमन से पूछा,
"सर तीनों को एकसाथ बैठाकर भी तो पूछताछ की जा सकती थी।"
"नहीं.... विशाल और उन दोनों को अलग रखने से हमें दोनों पक्षों की बात पता चलेगी। एकसाथ होते तो मिला जुलाकर बयान देते।"
सुमेर सिंह ने मुस्कुरा कर कहा,
"अब एक दूसरे का बयान सुन नहीं पाएंगे तो वही कहेंगे जो हुआ था।"
साइमन ने अपने कप से एक सिप लेकर कहा,
"विशाल को कुछ और परेशान हो लेने दो। वह जितना परेशान होगा उतनी ही जल्दी सच कबूल करेगा।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"सर मैं एक बात आपको बता नहीं पाया।"
"कौन सी बात ?"
"विशाल के पिता बद्रीनाथ एक वकील के साथ उससे मिलने आए थे। विशाल ने उनसे बात की थी।"
"हो सकता है कि वकील ने उसे कुछ सुझाया हो। पर हम सब सही सही पता कर लेंगे। कौशल और पवन का बयान महत्त्वपूर्ण है।"
साइमन ने अपनी चाय खत्म की और बोला,
"चलो अब चलकर बात आगे बढ़ाते हैं।"
इंस्पेक्टर हरीश ने भी जल्दी से चाय खत्म की और उसके साथ चला गया। कमरे में कौशल और पवन आपस में बातें कर रहे थे। पवन कुछ घबराया हुआ था। उसने कहा,
"यार पैसों के लालच में हम किस झंझट में फंस गए।"
कौशल ने गुस्से से कहा,
"पैसा ऐसे ही नहीं मिल जाता है। उसके लिए रिस्क लेना पड़ता है। सब सही रहता अगर मेरा एक्सीडेंट ना होता। उस बेवकूफ ने मोटरसाइकिल ठोक दी। तुम होते तो ऐसा ना होता। लेकिन काम के वक्त तुम चले गए थे।"
यह कहते हुए उसकी नज़र साइमन पर पड़ी तो वह चुप हो गया।