दान का अर्थ in English Short Stories by ABHAY SINGH books and stories PDF | दान का अर्थ

Featured Books
Categories
Share

दान का अर्थ

दान का अर्थ है – ‘देने की क्रिया’।

सुधिजनो, दान की, और दानी की महिमा बड़ी है। महाभारत के कर्ण, दानवीर के रूप में ख्यात हैं। तो आज हम सुधिजन, दान के महात्म्य, उसके प्रकार, और दानियों की शास्त्रीय अर्थों में गवेषणा करेंगे।
●●
सुधिजनो!!

शास्त्रों में 5 प्रकार के दान का वर्णन है। ये हैं- विद्या, भूमि, कन्या, गौ, तथा अन्नदान।

आधुनिक युग मे शेयर्स, कैश औऱ यौवन का दान भी, गुणकारी माना गया। दान गृहिता को दान का पात्र कहते हैं।

जब शास्त्रों की मानी जाती थी तब सुपात्र को दान देना रिकमण्डित था। नई आजादी के बाद अमेंडमेंट हुआ। अब पात्र संबित, लंबित, खंडित, झूठा व बदमाश हो सकता है।

परन्तुक वह सत्ता में है, तो दान का महात्म्य अखंडित रहेगा।
●●
भक्तजनों। दान एक FD होता है, जिसके रिटर्न की दर, गृहिता की जाति पर निर्भर है।

ब्राह्मण को दिया दान षड्गुणित, क्षत्रिय को दिया त्रिगुणित, वैश्य का द्विगुणित एवं शूद्र को दिया दान, सामान्य फल देता है।

परन्तु आधुनिक युग मे, नेता को दिया गया दान ही सर्वश्रेष्ठ है। जो बढ़कर कितने गुने होगा, इसका अनुमान लगाना, ब्रम्हाजी के लिए भी कठिन है।
●●
गुप्त दान को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। मिलियनेयर्स गुप्तदान कर पुण्य के भागी बनें, इसकी अच्छी व्यवस्था अमृतकाल में हुई है।

जनता से छुपाकर कोई खरबपति, गुप्तदान का पुण्य ले, इसके लिए शास्त्रों में इलेक्टोरल बांड की महिमा वर्णित है।

इसमे बॉन्ड पाने वाले को दाता का, और देने वाले को ग्राही का नाम नही बताना पड़ता। सूचना गुप्त होती है। अतः बैंक के मैनेजर और गृहमंत्री के अलावे कोई नही जानता कि किसने, किसको, कितना पैसा दिया।

गलत जगह बांडदान देने पर ईडीदूत और सीबीआईदूत का प्रकोप होता है। स्थिति बिगड़ने पर यमदूत भी आ सकते हैं।

अतएव बुद्धिमान दाता, विपक्ष को दान देने से बचते हैं, तथा बैंक से कर्ज लेकर..

उसका आधा सरकारी दल को दान करते हैं।
●●
फिर बैंक 90% कर्ज माफ कर देते है। दाता को 40% का मुनाफा होता है। इस प्रकार गुप्तदान से व्यक्ति के कर्ज, और पापों का नाश होता है। उस पर ठेके, नया कर्ज और डिस्काउंट की बारिश भी होती है।

सुपात्र को पहचान कर, दान देने से, पोर्ट, एयरपोर्ट, और सरकारी सम्पत्ति कौड़ियों के मोल हाथ आती है। जातक को जनोपयोगी वस्तुओं के व्यापार पर, एकाधिकार मिलता है।
●●
गैर मिलियनेयर बदजातो के लिए भी गुप्तदान की व्यवस्था है। इसे टैक्स कहते है।

8-10 प्रतिशत से ऊपर, यदि टैक्स वसूला जाये, तो गुप्तदान की श्रेणी में आता है। इस धन उपयोग धर्म को खतरे से निकालने के लिए किया जाता है।

शिक्षा, स्वास्थ्य और अनिवार्य वस्तुओं पर अनुचित मूल्य, अर्थात महंगाई भी ऐसा ही दान है। धर्म बचाने के लिए 500 रुपये लीटर पेट्रोल खरीदने वाले ऐसे औघड़दानी होते है।
●●●
जी हां दान के प्रकार की तरह दानियों की भी कैटगरी डिफाइंड है।

औघड़दानी वे होते हैं, जो स्वयं के पास कुछ नही रखते। वे अपना, अपने बच्चों और आने वाली पीढ़ियों की संपदा समेटकर, हृदय सम्राट को अर्पित करते हैं। और स्वयं 5 किलो राशन से तृप्त हो, हरिनाम की माला जपते हैं।

अतिदानी वे होते है, जो जीवन की जरूरतों को पूर्ण करने के बाद, जो अतिरिक्त है, उसे जरूरतमंद को देने में संकोच नही करते। उनके घर से कोई भूखा नही जाता, वे करुणा, और कम्पाशन से ओत प्रोत रहते हैं।

फिर आते हैं - महादानी। जो अरबो का दान समाजसेवा के लिए देते हैं। वे खुद का चैरिटेबल फाउंडेशन बनाकर,अपना पैसा खुद को दान कर देते है।

यह अनोखी विधा है।याने दान भी हो जाता है, टैक्स भी बच जाता है।
●●
सुपरदानी सर्वश्रेष्ठ कैटगरी है।

इस कैटगरी का आदमी अपने जेब से कुछ नही देता। वह दूसरों का माल, "माले मुफ्त-दिले बेरहम" नीति से दान करता है।

वह सुपात्र के चयन के लिए, "फ्री एंड फेयर टेंडर" करता है। जिसमे हर बार एक ही आदमी, बार बार सुपात्र बनता है।

सुपरदानी, अपने पसंदीदा सुपात्र को, देश की दशकों की कमाई, सार्वजनिक सम्पत्ति, खदान, प्रोजेक्ट, सब मुरमुरे के भाव मे देता है।

वह चैनलों को उनकी औकात से ज्यादा विज्ञापन का दान देता है। जिससे एंकर उसकी महिमा का गान, चारो लोक और 11 ग्रहों तक करता है।
●●
एक दानी वह भी होता है, जो किसी को कुछ नही देता। वह सबकुछ

समेटता है..
समेटता है..
समेटता है..

दरअसल सुपरदानी का झोला इसी के पास होता है। जिस प्रकार महादानी अपने ही एक हाथ से दूसरे हाथ मे दान देता है, सुपरदानी भी वही ट्रिक करता है।

परन्तु पहचान छुपाने के लिए अपना झोला, अपने साथी के हाथ मे देकर, उससे समेटवाता रहता है।

आप कहेंगे कि जो सिर्फ समेटता है, देता कुछ नही, वह भला दानी कैसे हुआ।

हुआ न मितरों।
शास्त्रों में वही तो अदानी कहा गया है।